कुछ दर्द ऐसे होते है जिन्हें आपको अकेले ही सहना पड़ता है। नयना देवीपुर गांव में रहती थीं।देखने में सुंदर ,12 पास घर के सब कामों में कुशल ।जो देखता यही कहता जिस घर जाएगी उसे स्वर्ग बनाएगी।नयना के दादाजी के मित्र रतन लाल शास्त्री जो बनारस में रहते थे
और उनकी वहां बहुत बड़ी लॉ फर्म थी। उसी फर्म में उनके दोनों बेटे सुबोध और विभोर तथा उनका पोता विभाज्य भी काम करते थे।पर इतने बड़े आदमी होने पर भी वह हर साल अपने गांव आते अपने मित्र से मिलने इस बार जरा एक दो साल की देरी हुई तबियत ठीक ना होने के कारण वो गांव आए नयना को देख उन्हें लगा
कि नयना और विभाज्य का विवाह होना चाहिए उन्होंने इस बात का जिक्र अपने मित्र श्याम लाल से भी किया ।श्याम लाल ने कहा पहले तुम अपने घर में बात करो फिर हम इस रिश्ते को आगे बढ़ाते हैं।रतन लाल जी बोले तुम चिंता मत करो मेरा पोता मेरे कहने के बाहर नहीं है।
रतन लाल जी बनारस आए और उन्होंने इस बात का जिक्र घर में किया। इस बात को सुन उनकी बड़ी बहु मालती कुछ खुश ना हुई और ना ही विभाज्य परंतु बेटे अपने पिता के फैसले से सहमत थे।मालती अपने पति सुबोध को बोली मेरा एक बेटा है मै उसे किसी गांव की गवार से नहीं बांध सकती।सुबोध बोले कि वो गांव की गवार नहीं हैं बारहवीं तक पढ़ी है। और मेरा बेटा वो वकील है। सुबोध बोला मै बाबु जी की बात नहीं काट सकता तुम एक बार लड़की को देख लो फिर देखते हैं क्या करना है।
यू सभी की सहमति से लड़की देखने का कार्यक्रम हुआ।सबको लड़की पसंद आई सिर्फ मालती और विभाज्य को छोड़ कर सगाई करके और अगले महीने शादी का मुहूर्त तय कर सब वापस आ गए। विभाज्य ने आते ही अपना फैसला सुना दिया कि वो उस गवार से शादी नहीं करेगा। पर वो दादा जी के सामने मुंह नहीं खोल सकता था इसलिए शादी से तीन दिन पहले की अमेरीका की टिकट बुक कर वो चला गया परिवार के नाम चिट्ठी छोड़ कर।अब क्या होता घर में रिश्तेदार आने शुरू हो गए।
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सुबोध सारी बात अपने घर वालों को बताई। रतन लाल बोले मेरी सालों कमाई इज्जत को मिट्टी में रौंद गया उस बच्ची का क्या होगा।मालती बोली उस गवार की वजह से मेरा बेटा घर से दूर चला गया और आपको अभी भी उसे गवार की पड़ी है।यह सुन रतन लाल की आंखों से आंसू बह निकले और उन्हें लकवा मार गया।वो अपने बेटों के सामने आंसू बहा रहे थे हाथ जोड़ रहे थे तभी उनका छोटा बेटा विभोर आया और बोला पिताजी आप चिंता मत कीजिए।हम निरंजन से उस लड़की की शादी करवा देंगे।
रतन लाल आंखों से ही ना कर रहे थे लाचार थे कुछ बोल नहीं सकते थे।निरंजन एक आवारा और थोड़ा गुंडा किस्म का आदमी था जो विभोर का साला था ।किसी ने रतनलाल की तरफ देखा नहीं नौकरानी को घर रख शादी में चले गए वहां पूरे समय निरंजन सेहरे में था किसी ने भी उसका चेहरा ना देखा और जैसे तैसे शादी करके वो बहु को जल्द ही लिवा लाए।रतन लाल की बीमारी का सुनकर किसी ने रोका भी नहीं। नयना आंखों में सपने सजाए विभाज्य की यादों में खोई अपने सुखद भविष्य की कामना करती हुई ससुराल पहुंची।
घर जाकर सबसे पहले रतन जी से मिली उनकी आंखों में आंसू थे। वहां से उसे निरंजन के कमरे में पहुंचा दिया गया वहां आई तो उसे लगा शायद गलत कमरे में आ गई है।नौकरानी पानी रखने आई बोली दीदी बहुत गलत हुआ आपके साथ नयना हैरानी से नौकरानी को देखने लगी ।तभी आवाज आई कल्पना जल्दी आ कहा मर गई। कल्पना चली गई नयना देख रही थीं कमरा ना सजा था ना ऐसा लग रहा था कि नई दुल्हन का कमरा है।नयना बैठी विभाज्य के आने का इंतेज़ार कर रही थीं।तभी कमरे में निरंजन आया
और उसने नयना का घुघट बड़ी बेहरमी से उठाया। वो निरंजन को देख डर गई और बोली तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो? निरंजन बोला कौन वो तो भाग गया तेरा पति तो मै हु।अब ज्यादा इतरा मत चल इधर आ और निरंजन उस पर टूट पड़ा और उसकी अस्मिता को तार तार करता रहा। दूसरे दिन सुबह कल्पना आई तो नयना की हालत देख रो पड़ी।घर की औरतें आई बोली अब क्या बोले पति पत्नी का मामला है होते हैं कुछ लोग रंगीले कल्पना और विभाज्य की बहन रागिनी के अलावा उसका दर्द समझने वाला कोई नहीं था।
दूसरे दिन सुबह नयना का भाई उसे लियाने आया।घर में सब औरतों ने बोल दिया ऐसा वैसा कुछ ना बताना घर में नयना जब रतन लाल जी के सामने आई तो वो दुख से भरे उससे माफी मांग रहे थे आंसू बह रहे थे पर क्या फायदा । नयना के भाई मदन ने पूछा विभाज्य नजर नहीं आ रहा।तभी अंदर आता निरंजन बोला विभाज्य तो यहां है ही नहीं तो आएगा कहा से,क्या मतलब विभाज्य यहां नहीं है कल तो शादी हुई आज कहा है।शादी निरंजन हंसते हुए बोला ये तो मेरी बीवी है
दीदी आपने अभी तक साले साहब को बताया नहीं। मदन बोला ये क्या मजाक है हमने अपनी बहन का रिश्ता विभाज्य से किया था तो ये दूल्हा कैसे हुआ आप लोगों ने हमें धोखा दिया रतन लाल जी खुद चल कर आए थे इतने सालों की दोस्ती का ये सिला।चलो नयना यहां से, नैना जाने लगी तो निरंजन बोला मै लेने नहीं आऊंगा। बसाना हो तो छोड़ जाना नहीं तो इस जैसी बहुत है। मदद अपनी बहन को लेकर घर आ गया। जब घर में सबको पता चला तो सब रोने लगे और नैना के पिताजी और दादाजी दोनों ही मूर्छित गए।
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मां भाभी सब रो रहे थे । इस इस दुख को पिताजी और दादाजी शहर ना कर सके और उन्होंने प्राण त्याग दिए। मां बिस्तर से जा लगी हंसता खेलता परिवार शमशान बन गया सभी रिश्तेदारों ने समझाया जो हो गया वह बदला नहीं जा सकता अब नयना को वही भेज दो। भारी मन से मदन नयना को उसके ससुराल छोड़कर आया। आप नयना की किस्मत में केवल दुख थे। दिन भर नौकरों की तरह काम और रात को अपनी अस्मिता पर कलंक। इसी बीच नयना गर्भवती हो गई। अपने निरंजन राते बाहर गुजारने लगा
और फिर खबर आई कि पुलिस की मुठभेड़ में उसकी मौत हो गई। विधवा,बिना किसी की पसंद की लड़की को कौन घर में रखता और उन लोगों ने उसे घर से निकाल दिया इस समय कल्पना और रागिनी ने उसे सहारा दिया।रागिनी ने अपनी सहेलि की मदद से उसकी डिलीवरी करवाई और उन दोनों मां बेटे का वही इतंजाम भी करवा दिया।नयना ने वहां अस्पताल में काम सीख कर नौकरी कर ली और अपना और बच्चे का पेट पालने लगी।
नयना की मेहनत का नतीजा था जो आज उसका बेटा आदित्य एक न्यूरो सर्जन बन गया था आज उसके लिए महत्वपूर्ण दिन था आज उसे बहुत बड़े वकील विभाज्य जी की सर्जरी करनी थी।वो बोला मां आज लेट हो जायेगा जागना मत सो जाना और अदिति तुम भी अपनी मां और पत्नी को बोल वो निकल गया।नयना ने अदिति से पूछा बेटा आज ऐसा क्या काम आ गया।अदिति ने बताया तो नयना की आंखों के सामने पूरा चल चित्र घूम गया।वो भी अस्पताल गई जहां ये सर्जरी हो रही थी।दूर से उसने सब घरवालों को देखा तो उसकी आंखों में गुस्सा उतर आया।
सर्जरी हो गई और आदित्य ने आकर बताया कि सर्जरी इस सक्सेसफुल सब उसको धन्यवाद दे रहे थे उसके माता पिता को दुआ दे रहे थे।तभी नयना वहां आई आदित्य बोला मां आप यहां? नयना बोली मुझे भी मरने से पहले कुछ हिसाब चुकाने है।अरे आप लोगों ने गवार के बेटे से कैसे ऑपरेशन करवा लिया।आप का अमेरिकी बेटा वहां इलाज नहीं करवा पाया।नयना सब बोले मालती आगे आई और बोली बेटा हमें माफ करदो तुम्हारे जाते ही सब चला गया। विभाज्य के दादाजी गुजर गए सारा बिजनेस चौपट हो गया एक एक्सीडेंट की वजह से सुबोध और विभोर दोनो मं।
जूर हो गए।रागिनी ने हमसे सभी रिश्ते तभी तोड़ दिए और अपने सहपाठी से विवाह कर लिया।दोनो भाई रोज तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं कि तुम उन्हें मुक्ति दो।नयन बोली वाह आज अपनी मुक्ति की बात आई तो आपको मेरी याद आई।माफ कीजिए मै अब इतनी गवार नहीं आप लोगों की वजह से मैने वो अनकहा दर्द सहा जो मेरा मुक़दर नहीं था आपके बेटे का इनकार आप पहले बताते मुझे उस जानवर के आगे क्यों डाल दिया।रागिनी रोती रही आदित्य ने उसे संभाला मै एक डॉक्टर हूँ अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकता ।पर आप लोगों का केस अब डॉक्टर अतुल देखेंगे।
आदित्य नयना को ले घर की तरफ चल पड़ा।मालती सोचती रही कि दर्द तो सबने सह। बेटा कभी बसा ही नहीं बेटी दूर हो गई पति मरने की राह देख रहे हैं और जिसने सब किया वो जिंदा है।मालती चीखी हमे माफ करदो मुक्ति दो और उसके प्राण निकल गए।
दोस्तो एक गलत कदम हमे कहा ले जा सकता है इसका अंदाजा भी हम नहीं लगा सकते।
स्वरचित कहानी
आपकी सखी
खुशी