अनकहा बंधन   – रचना कंडवाल

“हां मुझे मोहब्बत है उससे” सतीश बहुत जोर से चिल्लाया।  ये सुनकर सावी तो जैसे किचन में जम कर पत्थर की मूरत बन गई। चाय का कप उसके हाथ से नीचे गिर कर टूट गया। उसकी सास बेहद कर्कश स्वर में छाती पीट पीट कर चिल्ला रही थी। सुनते हो  सतीश क्या कह रहा है???  बदतमीज बद दिमाग छोकरे तेरा दिमाग चल गया है। थप्पड़ की आवाज गूंज उठी। सतीश के गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ चुका था। विजय के पापा ये सब आपकी करनी का फल है। मैं तो इस बेहया को इस घर में नहीं रखना चाहती थी। अगर मेरे विजय का अंश इसकी कोख में नहीं होता तो मैं इसे धक्के मारकर इस घर से निकाल देती।

ये मनहूस मेरे एक बेटे को खा ग‌ई।

अब डायन ने अपने मायाजाल में दूसरे को भी फंसा लिया है।

इसकी तो आज मैं अच्छे से खबर लेती हूं।

लता ने तेजी से अपने कदम किचन की तरफ बढ़ाए।

सतीश ने आगे बढ़कर लता को बीच में रोक लिया।

खबरदार जो सावी को हाथ भी लगाया। अच्छा तो अब तू भाभी से सावी पर आ गया।

“कब से चल रहा है ये सब??? मैं इसे छोडूंगी नहीं “

“क्या करेगा तू??? अपनी मां पर हाथ उठाएगा???”

सतीश के पापा जो अब तक बैठ कर तमाशा देख रहे थे। उठ कर आए और लता को डांट कर खींचते हुए अंदर ले जाने लगे। 

“ये क्या अनाप-शनाप बक रही हो।”

मुहल्ले पड़ोस के लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे???

“सुनने दो”उन्हें भी तो पता चले

तुम्हारी लाड़ली बहू की करतूत। लता सीधे अंदर चलो जगन्नाथ जी ने क्रोध से कहा।

लता भुनभुना कर पैर पटकती हुई कमरे में चली गई।

जगन्नाथ जी सिर पकड़ कर बरामदे में बैठ ग‌ए।

अचानक से उन्हें जैसे होश आया “सावी कहां है??”

सतीश किचन के बाहर खड़ा था वो सब बोल कर उसमें हिम्मत नहीं थी कि वो सावी के सामने खड़ा हो सके।



वो जगन्नाथ जी से बिना नजरें मिलाए सिर झुका कर अपने रूम में चला गया।

जगन्नाथ जी किचन में आए सावी को देख कर हतप्रभ रह गए।सावी किचन में फर्श पर बेहोश पड़ी थी।

जगन्नाथ जी ने पानी के छीटें मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की पर वो होश में नहीं आई। वो बाहर आए उन्होंने सतीश को आवाज दी,

सतीश उनकी आवाज सुनकर घबरा गया।

दौड़ते हुए आया सावी को बेहोश देख कर उसके हाथ पैर सुन्न हो ग‌ए। सतीश ने सावी को बाहों में उठा लिया और बेडरूम में ले गया।

जगन्नाथ जी अपने मित्र डाक्टर मेहता को फोन करने लगे।

डाक्टर मेहता ने आकर सावी को चेक किया।

” जगन्नाथ बहू को हास्पिटल में एडमिट करना होगा।”

सिक्स मंथ्स प्रेगनेंट और हालत देखो इसकी कितनी वीक हो गई है।

बेचारी विजय की मौत ने इसे तोड़ कर रख दिया है। मैंने एंबुलेंस को कॉल कर दिया है।

“थैंक्यू सो मच”  तुम अपने बिजी वक्त के बावजूद यहां आए। सावी को अस्पताल में एडमिट कर दिया था।

लता ने तो कसम खा ली थी कि कल की मरती चुड़ैल आज ही मर‌ जाए मैं तो भूल कर भी उसे देखने  नहीं जाऊंगी।

 सतीश और जगन्नाथ जी दोनों उसका ख्याल अच्छे से रख रहे थे। सतीश के अंदर सावी का सामना करने की हिम्मत नहीं थी। क्योंकि उसे लग रहा था कि उसकी ऐसी हालत का जिम्मेदार वही है। क्यों उसने वो सब बोला?? सावी दवाई लेने के कारण गहरी नींद में थी। सतीश उसे चुपचाप देखने लगा उसका रुप उसकी मासूमियत सब कुछ कितना पवित्र था।जब विजय भैय्या की दुल्हन बन कर वो घर में आई थी तो सब कितना खुश थे। नाते रिश्तेदारों ने मोहल्ले पड़ोस वालों ने मम्मी को बधाई

देते हुए कहा था कि बहुत सुंदर बहू आई है आपके घर में। वो अक्सर मजाक में सावी को कहता कि भाभी काश! आपकी कोई बहन होती तो मैं उसे आपकी देवरानी बना कर इस घर में ले आता। सावी मुस्करा देती कहती देवरजी आपकी दुल्हन मैं ढूंढ कर लाऊंगी। मेरी पसंद हमेशा अच्छी होती है। विजय इंजीनियर थे। सावी से उनकी मुलाकात किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में हुई थी। मुलाकातें बढ़ी तो विजय ने अपने माता-पिता को सावी के घर रिश्ता ले कर भेजा। सावी के माता-पिता बहुत अमीर नहीं थे जैसा सपना विजय की मां लता ने अपने समधियाने का देखा था उस कसौटी पर साधारण लोग खरे कैसे उतरते??? ऊपर से उनकी दो बेटियां थीं। विजय की मां लता ने अपनी अस्वीकृति जाहिर कर दी। दूसरी भी बेटी है भाई होता तो और बात होती। तुझे ही उनके परिवार का बोझ उठाना पड़ेगा।

इसके विपरीत जगन्नाथ जी को सावी पहली नजर में ही भा गई थी।

 

विजय और सावी के विवाह को तीन साल हो गए थे। तीन साल बाद सावी मां बन रही थी कि अचानक साईट पर हुए हादसे में विजय की मौत हो गई। फिर तो जैसे उन सबकी जिंदगी बदल गई। विजय की मां लता ने विजय की मौत का इल्ज़ाम सावी पर मढ़ दिया और उसे मनहूस का तमगा पहना दिया। सावी बिल्कुल खामोश हो गई थी उसके पापा उसे लिवाने आए तो लता ने उनकी बहुत बेइज्जती की कहा अगर इसकी कोख में विजय की आखिरी निशानी न होती तो वह खुद ही इसे धक्के दे कर बाहर निकाल देती। ‌सावी को उम्मीद थी कि बच्चा आ कर उसकी सास को बदल देगा। वो इसी उम्मीद के सहारे जी रही थी कि सतीश के शब्दों ने सब कुछ तहस नहस कर दिया। जगन्नाथ जी अस्पताल में सावी के रूम के बाहर सतीश के साथ बैठे थे। कि नर्स ने आकर उन्हें बताया कि सावी की हालत अब पहले से बेहतर है। “आप लोग उनसे मिल सकते हैं।‌‍”

जगन्नाथ जी थके हुए कदमों से उठ खड़े हुए “चल़ो

सतीश !”

मुझे काउंटर पर जाकर पेपर्स साइन करने हैं। आप मिल लीजिए। कब तक बचोगे उससे??? जब तुमने इतनी हिम्मत की तो अब सामना करो। अगर प्यार करने का जूनून रखते हो तो नफरत सहने की हिम्मत भी रखनी चाहिए।



“पापा नहीं अभी नहीं” उसकी आंखों में आंसू उमड़ आए।

वो सिर झुकाए चला गया।

जगन्नाथ जी ने गहरी सांस ली। वो सावी के पास आ कर बैठ ग‌ए। उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरा “कैसी हो बेटा”

सहानुभूति पा कर उसकी बड़ी-बड़ी आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया। उसने हाथ जोड़ दिए आंखें छलछला आई।

पापा, मैंने कुछ नहीं किया, मैंने कुछ भी नहीं किया।

जानता हूं बेटा

मैं आपसे और मम्मी जी से कैसे नजरें मिलाऊंगी??

विजय को क्या मुंह दिखाऊंगी???

पता है पापा उसके सलोने मुखड़े पर दर्द की लकीरें खिंच आई। विजय मुझे हर रोज रात सपने में मिलने आते हैं। हम दोनों अपने बच्चे के बारे में बात करते हैं। वो मुस्कराते हैं कहते हैं सावी मैं यही हूं तुम्हारे पास

पर जब से यहां आई हूं पिछले चार दिनों से नहीं आए।

पापा! कहीं विजय भी अपनी सावी को चरित्रहीन……. उसकी हिचकियां बंध गई।

सावी बच्चे ! मत रो कहते कहते जगन्नाथ जी खुद बुरी तरह रो पड़े। जवान बेटे को खोने का सदमा बड़ी मुश्किल से बर्दाश्त कर पाए थे। सावी और उसके होने वाले बच्चे को विजय की अमानत के रूप में सहजने का प्रयास करके अपने दुःख भूलने की कोशिश कर रहे थे।

सावी के माता-पिता पिछले चार दिनों से अस्पताल में ही थे।

सावी की मां अभी घर से उनके लिए नाश्ता लेकर आई थी। वो जगन्नाथ जी को नमस्कार करके बोली। भाईसाहब ! मैं बिटिया को अपने साथ ले जाना चाहती हूं।

कुछ वक्त हमारे साथ रहेगी तो थोड़ा माहौल बदल जाएगा।

पहले सावी ने उनके साथ जाने को मना कर दिया था। जगन्नाथ जी उलझन में थे। कि क्या कहें??

सावी ने उदास नजरें उनकी तरफ घुमा दी।

पापा ! पापा मैं मां-बाबा के साथ जाना चाहती हूं।

सावी बेटा जैसे तेरी मर्जी जगन्नाथ जी का स्वर विचलित हो उठा।

सतीश छोड़ आएगा।



नहीं पापा, हम लोग ऑटो से चले जाएंगे। जगन्नाथ जी ने विरोध नहीं किया।

वो जानते थे कि सतीश और सावी का रिश्ता उस एक बात से किस मोड़ पर पहुंच चुका था??

क्या ये ही अंत था??? या फिर विधाता एक न‌ई कलम से उनका भाग्य लिखने को तैयार था??

सावी अस्पताल से अपने माता-पिता के साथ चली गई। जगन्नाथ जी अस्पताल से सतीश के साथ घर वापस आ ग‌ए।

लता ने उनको देख कर गुस्से से अपना मुंह फेर लिया।

खाने की टेबल पर सतीश चुपचाप सिर झुकाए खाना खा रहा था कि लता ने अपने तानों से से उसे बींध दिया।

अच्छा हुआ अब उस कुलटा की शक्ल रोज नहीं देखनी पड़ेगी।

तुम दोनों पर उसने जाने क्या जादू कर दिया है???

सतीश खाना अधूरा छोड़ कर उठ गया।

जगन्नाथ जी दुःखी होकर बोले। लता तुम सतीश को कोसना कब बंद करोगी???

जब तक वो उस कुलटा का ख्याल अपने दिमाग से नहीं निकालेगा।

जगन्नाथ जी लता की बातों से उब चुके थे। इसलिए बाहर निकल ग‌ए। बाहर निकल कर सतीश को फोन किया सतीश गाड़ी निकालो।

क्या बात है पापा?? सतीश ने जगन्नाथ जी  से कहा उन्होंने कहा कहीं जाना है।

सतीश उन्हें लेकर चल दिया।

सतीश किसी ऐसी जगह ले चलो जहां हम दोनों बात कर सकें। क्योंकि घर पर तुम्हारी मां के रहते कोई भी बात कर पाना असम्भव है।

घर से दूर एक मंदिर में आकर दोनों बैठ ग‌ए।

सतीश उस दिन तुमने जो सावी के बारे में कहा उसका मैं क्या मतलब समझूं??? क्या वो सब सच था??

पापा ! सतीश ने नजरें झुका ली। कुछ देर तक मौन पसर गया। सतीश की आवाज भारी हो गई थी। हां पापा वो मेरा सच था। पर वो मुझसे नफरत करने लगी है। मैंने अपनी बेस्ट फ्रैंड को भी खो दिया। पापा! अब मैं समझ गया हूं कि सच्चा प्रेम उम्मीद नहीं करता। मुझे उससे कोई उम्मीद नहीं है। जहां कुछ पाने की इच्छा हो वहां प्रेम हो ही नहीं सकता।

पापा मैं सावी के साथ जीना चाहता हूं। मेरे भाई की आखिरी निशानी पर अपने हक को नहीं खोना चाहता हूं। एक मासूम बच्चा जब इस दुनिया में आए तो उसके सिर पर माता पिता दोनों का हाथ हो। मैंने सावी को बेसहारा या कमजोर कभी नहीं समझा अगर वो इस बंधन के लिए राजी होती तो मेरी खुशकिस्मती होती।

सतीश वो बहुत बड़े दुःख को झेल रही है। तुम उससे इतनी जल्दी सामान्य होने की उम्मीद कैसे कर सकते हो??



पापा उस दिन मेरी बात ने सब कुछ खत्म कर दिया सतीश की आंखें भीग गई।

जगन्नाथ जी उसे सांत्वना देते हुए बोले मैं खुद चाहता हूं कि सतीश सावी का घर बस जाए। देखते हैं कि मैं क्या कर सकता हूं?? वो सावी के पिता को अस्पताल में ही सब कुछ बता चुके थे।

अगले दिन जगन्नाथ जी ने सतीश को सावी की जरूरत का सामान लेकर उसके मायके भेज दिया। सावी के पिता सतीश के आने की बात से पहले ही वाकिफ थे। इसलिए उसकी मां को ले कर मार्केट चले गए।

सतीश हिम्मत जुटा कर सावी के मायके पहुंच गया। सावी बाहर बरामदे ही बैठी हुई थी। मेन गेट खुलते ही उसकी नजरें सतीश पर पड़ी वह चौंक ग‌ई। उठ कर अंदर चली गईं। सतीश ने बड़ी मुश्किल से अंदर आने की ।इजाजत मांगी। अंदर आ कर ड्राइंग रूम में बैठ गया। वह काफी देर तक वेट करता रहा पर सावी बाहर ही नहीं आई। आज तो बात करनी ही होगी उसने अपने आप से कहा। वह सीधे उस रूम में पहुंच गया जहां सावी थी।

उसे देख कर सावी क्रोध में जल उठी। उसने मुंह फेर लिया।

मुझे कुछ कहना है।

तुम्हें मेरी बात सुननी ही होगी सतीश ने धीरे से कहा।

मैं तुमसे प्यार करता हूं।

ये बेकार की बकवास मैं नहीं सुन सकती। तुम्हारे मन के पाप को तुम अपने पास रखो।

अपनी भाई की बीवी के लिए ये शब्द कहते हुए तुम्हें जरा सी भी शर्म नहीं आई।

जो तुम चाहते हो वो कभी नहीं हो पाएगा। तुमने मुझे सबकी नजरों में गिरा दिया।

मैं तुम्हें चाहता हूं मैं अपने भाई के बच्चे को पूरे अधिकार के साथ अपनाना चाहता हूं इसमें गलत क्या है??? मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए तुम पूरी जिंदगी मुझसे नफरत करना। मुझे शरीर का रिश्ता नहीं चाहिए। न प्यार की उम्मीद करूंगा। न कोई जिद न जबरदस्ती। मैं जानता हूं प्यार मैंने तुमसे किया है तुमने मुझसे नहीं।

वक्त जितना चाहे उतना ले लो इस बंधन में कोई जबरदस्ती नहीं होगी। पर मेरी जिंदगी में अब तुम्हारे अलावा कोई और नहीं आएगी।

तो ये ज़िद और जबरदस्ती नहीं तो और क्या है??? सावी क्रोध से उबल पड़ी।

ये प्यार है और कुछ नहीं।

मैं अपने बच्चे को अकेले पालूंगी मुझे किसी की आवश्यकता नहीं है।

पर बच्चे को पिता की जरूरत होगी। मैं बच्चे को चाहे जितना भी प्यार दूंगा पर मेरे किसी और से विवाह करने पर दूरियां आ जाएंगी। अगर तुम हां कर दोगी तो जिंदगी आसान हो जाएगी।

मैं तुमसे कभी कुछ नहीं चाहूंगा। कुछ भी नहीं।

सतीश उठ कर जाते हुए बोला।  वक्त आगे बढ़ चुका है।

छह साल बीत चुके हैं।  सावी अब अकेले रहती है उसका एक बेटा है उसका नाम समर्थ है। आज स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग है। मम्मा पापा कब आएंगे??? वो हमारे साथ क्यों नहीं रहते। रोज आते हैं आप उन्हें बोलो न यहीं रहें। गाड़ी की आवाज सुनकर समर्थ बाहर भाग गया। सतीश ने उसे अपने बाजुओं में उठा कर चूम लिया। मेरा बच्चा चलो देर हो गई जल्दी चलते हैं। तीनों स्कूल चले ग‌ए।  वापस लौटते हुए सतीश ने समर्थ को उसकी फेवरेट चॉकलेट आइसक्रीम दिलाई। सावी के लिए केसर कुल्फी ली। समर्थ हमेशा गाड़ी में उसके साथ आगे बैठता है। फिर दोनों बहुत बातें करते हैं सावी पीछे बैठ कर दोनों की बातें सुनती रहती है। सतीश सावी के कुछ भी पूछने संक्षिप्त उत्तर देता है। बातचीत ना के बराबर है।

घर के बाहर पहुंच कर सतीश ने समर्थ को गोद में उठाया।

चलो पापा को बॉय कहो। उसने उसका माथा चूम लिया। समर्थ मचल उठा पापा नहीं आज नहीं जाना।

पापा प्लीज!

मैं कल आऊंगा मेरे बच्चे आज पापा को बहुत जरूरी काम है।आप रोज ऐसे ही कहते हो वो गोद से उतर कर मुंह फुलाकर चला गया। सतीश गाड़ी में बैठ रहा था। सावी पीछे से बोली मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। सतीश रूक गया पर उसकी तरफ पीठ करके।



मेरा सामना नहीं कर सकते और प्यार करने का दावा करते हो।

सतीश खामोश रहा।

कुछ कहते क्यों नहीं??

मांजी ने मुझे कहा है कि मैं तुमसे तुम्हारी शादी के बारे में बात करूं। मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो रही है।

इस गिल्ट से मैं मर जाऊंगी।

सतीश चुपचाप खड़ा रहा।

सावी उसके आगे आ कर खड़ी हो गई। कब तक मेरे लिए रूके रहोगे सतीश मुक्त कर दो मुझे।

मैंने तुम्हें किसी बंधन में नहीं बांधा है। तुम हमेशा आजाद थी हो और रहोगी।

अगर मैं किसी और से शादी कर लूं तो तब तो तुम शादी करोगे न।

मैंने तुमसे कोई उम्मीद नहीं की है सिर्फ प्यार किया है। बिना शर्त। तुम्हारी जिंदगी तुम्हारी हैं तुम जो चाहे करो।

मैं यहां केवल समर्थ के लिए आता हूं।

और जो मुझे तुम्हारी आंखों में खुद के लिए महसूस होता है। उसे कैसे छिपाओगे??? बोलो सतीश ! सावी का गला भर आया।

मैं जिससे शादी करूंगी समर्थ को वो अपना लेगा तुम समर्थ की चिंता छोड़ दो।

कोई बात नहीं।

समर्थ खुश रहेगा तो मैं भी खुश रहूंगा।

जिंदगी में सब कुछ जीत कर ही पाया नहीं जा सकता। मैं हार कर भी खुश हूं।

अच्छा! मैं चलता हूं देर हो रही है।

सावी रोते हुए दौड़ कर उसके सीने से लग गई।

सतीश मुझे माफ़ कर दो मैंने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है।

प्यार करने वाले बहुत होते हैं पर निस्वार्थ प्यार करने वाला हर किसी की किस्मत में नहीं होता।

सतीश ने उसे अपनी बाहों में समेट कर उसका माथा चूम लिया।

दोनों के बीच का “अनकहा बंधन” आज प्यार के बंधन में तब्दील हो चुका था।

© रचना कंडवाल

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