ट्रिन … ट्रिन… ट्रिन
‘ हैलो ,हाँ माँ बोलो ,
‘ बेटा , आज फिर तुम्हारी बूआ आई थीं कह रही थीं।
कि अच्छा मध्यमवर्गीय परिवार है। पिता बैंक में नौकरी करते थे। दो बहन और एक भाई है।
उसका नाम ‘ श्रेया’ है। तुम्हारा फोन नम्बर दे दिया है। तुम्हें भी भेज रही हूँ उनका नम्बर ,
‘बेटा , बूआ बहुत मिन्नते रही थीं पिता विहीन लड़की है। जब फुर्सत मिले जा कर एक बार जरूर मिल लेना शायद कल्याण हो जाए किसी का ‘
‘ ठीक है माँ ‘ यह कह कर फोन रख दिया आशुतोष ने।
अभी-अभी ऑफिस से लौटा ही हूँ कि फोन बज उठा था।
‘श्रेया ‘ न जाने क्यूं इस छोटे से दो अक्षर के नाम को सुन कर अन्दर से सुकून मिला।
फिर थका हुआ था इसलिए तुरंत नींद आ गई।
कुछ दिनों बाद उधर से ही निमंत्रण का फोन आ गया।
तो आने वाले एतवार की छुट्टी में प्रोग्राम तै कर चला गया था उनके घर।
वहाँ पिता की आकस्मिक मृत्यु से कोम्पैशनेट ग्राउंड पर मिली नौकरी से किसी तरह गृहस्थी की गाड़ी खींचती श्रेया और उसकी माँ एवं दो छोटे भाई बहनों से मिल कर अच्छा लगा।
हाँ साँवली -सलोनी श्रेया भी जो एम.एस.सी की परीक्षा के साथ-साथ बैंक की तैयारी भी कर रही थी।
वो अपनी सी लगी पिता का जिक्र आने पर उसकी बड़ी आंखें डबडबा गई थी।
खैर सबसे मिल कर अच्छा लगा। नम्बर तो पहले ही सेव था। कभी-कभी गुडमौरनिंग मेसेज का आदान-प्रदान हो जाता बस इतना ही।
दो-चार महीने बीत चुके।
मैंने माँ को खबर कर दी थी।
दोनों तरफ की रजामंदी से बस श्रेया की बैंकिंग परीक्षा के खत्म होने का इंतजार था।
अचानक एक दिन दोपहर बाद ऑफिस में फोन आया नम्बर देख कर मैं चौंक गया।
इतनी जानपहचान तो बढ़ी नहीं थी कि बात की जाए फिर भी फोन उठा लिया ,
भरी हुई आवाज से
‘हैलो , प्लीज हेल्प मी , माँ को अचानक से हार्टअटैक आया है ‘
मैं उन्हें ‘लोकनाथ हॉस्पिटल’ लेकर आई हूँ ‘
‘क्या ? ,
तुम वहीं रुको मैं आ रहा हूँ ‘
कह कर ऑफिस से निकल स्कूटर स्टार्ट कर हॉस्पिटल जा पहुँचा।
वहाँ बैठी तीन जोड़ी आंखें मुझे देख कर दुख के मारे डबडबा गयीं।
दर्द की अनकही रेखा श्रेया के चेहरे पर स्पष्ट देख पा रहा हूँ ,
‘ माँ ?
‘उन्हें आई. सी .यू में ले गयें हैं।
बता रहे हैं इमीजियट ऑपरेशन की जरुरत है जिसमें दो लाख रुपये लगेंगे अभी तुरंत मैं … कहाँ… से ‘
कहती हुई श्रेया की आवाज थरथराने लगी है ‘
‘ओहृ … घबराओ नहीं मैं कुछ करता हूँ ‘
बोल कर सबसे पहले माँ को मेसेज किया।
जबाव में उन्होंने फोन ही लगा दिया।
श्रेया के पास से थोड़ा दूर हट कर मैंने कौल उठा लिया,
‘हैलो माँ बोलिए , माँ ने मुझे स्पष्ट मना कर दिया …
‘इन सब झंझटों में तुम्हें नहीं पड़ना है आशु ,
तुम फौरन वहाँ से निकल जाओ एक तो लड़की के पिता नहीं थे। अब माँ भी बीमार रहेगी ।
तू कितना बोझ उठाएगा बेटा, हमें यह रिश्ता नहीं करना है अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा है ‘
‘क्या सच में माँ ? ‘
मैंने आंख उठा कर श्रेया सहित तीनों भाई-बहनों पर दृष्टि डाली।
तीनों की नजर में याचना के अणगिणत भाव तैर रहे थे ,
‘अच्छा माँ देखता हूँ ‘
कह कर मैंने फोन काट दिया।
मैं फिर एक बार उन सबको देखता हूँ। श्रेया गर्दन हिला कर इशारा कर रही थी।
मैं जा कर आई.सी.यू के विंडो के पास जहाँ वह खड़ी थी चला गया। रूलाई से उसकी आंखें बंद हो गई हैं।
उसके छोटे भाई की डबडबाई आँखों में मुझको अपना ही अक्श दिखाई देता है।
जब अचानक पढ़ते हुए में ही पिता सड़क हादसे में गुजर गये थे।
मैं पलट कर डेस्क पर रखे परमीशन फार्म पर साइन करने को झुक जाता हूँ।
श्रेया पास आ जाती है।
माँ का नाम, पूरा पता और नौकरी के विवरण देने लगती है।
दस्तख्त करने वाले गार्जियन के रिश्ते वाली जगह अभी भी खाली है।
मैं सोच रहा था,
‘ क्या करूँ एक तरफ माँ की हिदायत दूसरी तरफ एक ‘अन्जाना सा बंधन ‘ जो इस समय महसूस कर रहा हूँ ‘
तभी वार्ड में से निकल कर स्टाफ कहने लगा है,
‘ जल्दी करें ब्लड प्रेशर हद से ज्यादा बढ़ जाने के कारण ब्रेन स्ट्रोक का खतरा है ‘
पास ही खड़ी श्रेया पर सांत्वना भरी नजर डाल कर मैंने बगैर नतीजे की परवाह किए उस खाली जगह में लिख दिया ,
‘ सन -इन- लॉ ‘ और साइन कर दिया।
आंसू की एक बूंद निकल कर मेरी हथेलियों पर गिर जाती है।
मैंने अपनी हथेली उन आँसुओं पर रख दी है।
सीमा वर्मा /नोएडा