अनहोनी – बालेश्वर गुप्ता  :Moral stories in hindi

आप देख लेना पापा अबकि बार आपका ये बेटा हर हाल में पीसीएस कॉम्पिटिशन में सफल होगा।ये मेरा आत्मविश्वास मेरी अपनी मेहनत के कारण है।रात दिन पढ़ाई की है।

        मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है,बेटा।ईश्वर तुझे जरूर सफल करेगा।

    ईंटो के कई कई भट्टो के मालिक सेठ राम शरण जी का एकलौता बेटा था समीर।होनहार पढ़ाई में बेहद रुचि रखता था समीर।राम शरण जी चाहते थे कि उनका एकलौता बेटा उनके  व्यापारिक साम्राज्य की देखभाल करे, वे नही चाहते थे कि उनका बेटा नौकरी करे।पर समीर की उत्कंठा या अपने से ही जिद पीसीएस बनने की थी।

वह रात दिन पीसीएस के कॉम्पिटिशन की तैयारी में ही लगा रहता।समीर को गणित विषय मे विशेष रुचि थी,इसी कारण उसने पीसीएस कॉम्पिटिशन में एक विषय गणित भी लिया था।कॉम्पिटिशन के हिसाब से गणित विषय को टफ और अधिक समय खाने वाला विषय माना जाता है, पर समीर की रुचि होने के कारण उसने गणित को मुख्य विषय के तौर पर  चुना।

        समीर ने सोच लिया था कि गणित ही ऐसा विषय है जो इस प्रतियोगिता में उसकी सफलता निश्चित जर सकता है,क्योकि गणित में ही शतप्रतिशत अंक आ सकते है,सो उसने गणित विषय पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। राम शरण जी ने जब समीर के जुनून को देख और समझ लिया तो वे उसकी राह का रोड़ा नही बने बल्कि सहयोगी ही हो गये।वे समीर को उत्साहित ही करते।

     इस बीच समीर की सहपाठिनी शैलजा जो कभी कभी गणित की कुछ प्रॉबलम्स के लिये उससे सहायता लेती रहती थी,नजदीक आ गये।मिलना आकर्षण होना प्रेम में बदल गया।समीर के मन मे आता यदि बाबूजी ने हमारे संबंधों को स्वीकार नही किया तो? ये सोचकर समीर के चेहरे और शिकन और मन मे दुविधा पैदा हो जाती।

विचारों की ये उथल उथल उसकी पढ़ाई को प्रभावित कर रही थी।उसके सामने रह रह कर शैलजा का चेहरा आ जाता।वो समझ ही नही पा रहा था कि करे तो क्या करे? समीर ने अपनी चिन्ता शैलजा से शेयर की,पर वह क्या समाधान देती,सिवाय इसके कि दोनो ही सामूहिक चिंता में डूब जाते।

      राम शरण जी ने देखा और महसूस किया कि समीर के व्यवहार में अंतर आया है,वह खोया खोया सा रहने लगा है,कुछ न कुछ सोचने की मुद्रा में रहता है।उन्होंने सोचा कि कॉम्पिटिशन का प्रेसर मान रहा होगा।उन्होंने समीर से कहा भी बेटा इजी वे में लो , मेहनत करो,परिणाम पर  तुम्हारा बस थोड़े ही है।

सफल हो जाओगे तो ठीक न भी होओगे तो तुम्हारा इतना बड़ा कारोबार है,उसे संभालना, काहे चिंता करते हो?समीर मन की वेदना को  पिता से कैसे कहता?खूब मेहनत का नतीजा उसके ध्यान भटकाव के कारण शून्य हो गया।वह प्रतियोगिता में सफल न हो सका।घोर निराशा से समीर घिर गया।उसके मन मे साफ था आगे भी प्रयास करेगा तो भी क्या होगा?परिस्थितियां थोड़े ही बदली थी।

राम शरण जी ने बेटे को हताशा से उबारने का भरसक प्रयास किया,पर समीर की रुचि अब प्रतियोगिता में रह ही नही गयी थी।तब रामशरण जी की समझ मे आया कि मामला शायद कुछ और है, उनकी अनुभवी निगाहों ने ताड लिया कि हो ना हो कोई प्रेम प्रसंग का मामला है।उन्होंने अपने सूत्रो से पता लगा लिया कि एक सरकारी मुलाजिम की लड़की शैलजा से समीर के प्रेम प्रसंग है।

अब उनके सामने सारा मामला स्पष्ट था।सुलझे विचारों के रामशरण जी के सामने अपने बेटे को हताशा के समुन्द्र से निकालने का सवाल था।उन्होंने शैलजा से बेटे से शादी करने में भी बुराई नजर नही आयी।राम शरण जी ने अपने बेटे से साफ कहा सुनो समीर तुमने तो अपने मन की बात अपने पिता को नही बताई पर मैं अपने मन की बात तुझे बताता हूँ

बेटा उठ इस कॉम्पिटिशन की फिर तैयारी कर,पूरी लगन से।अबकी बार सफल हो जा बेटा।सफलता की खबर जिस दिन देगा ना उसी दिन शैलजा से तेरा रिश्ता  पक्का।समीर अवाक सा पिता का मुँह देखता रह गया।खुशी में उसके आंसू छलक आये,रामशरण जी ने अपने बेटे को अपने आगोश में ले लिया।

       अब तो समीर के पर लग गये थे,पुरानी स्प्रिट लौट आयी थी। उसने फिर तैयारी प्रारम्भ कर दी।आखिर परीक्षाओं के दिन भी आये। उन दिनों पीसीएस की परीक्षा का एक ही पूरे प्रदेश में होता था वो भी तब के इलाहाबाद में,जो समीर के घर से 700 किलो मीटर दूर हुआ करता था।समीर इलाहाबाद पहुंच गया और एक होटल में कमरा ले लिया। सब पेपर्स ठीक जा रहे थे,गणित का पेपर अंतिम था और चार दिन का बीच मे गैप भी था।

समीर की खुशी का कोई ठिकाना नही था,क्योकि गणित उसका प्रिय विषय था और उसकी तैयारी भी पूरी थी।परंतु किस्मत का मारा  समीर गणित की परीक्षा से पूर्व ही  बीमार हो गया।पूरा शरीर टूट रहा था,103 बुखार था,कोई देखभाल वाला भी नही था।परीक्षा केंद्र पर समीर किसी प्रकार पहुंचा तो पर उसकी हालत मानसिक कार्य करने की थी ही नही।वह अपनी सीट पर ही अर्ध मूर्छित अवस्था मे आ गया।उसे परीक्षा रूम से हटा कर डॉक्टर को दिखाया गया,घर सूचना भिजवायी गयी।अगले दिन  रामशरण जी उसे घर लिवाकर ले गये।

        समीर की पूरी मेहनत और उमंग तथा आत्मविश्वास किस्मत के इस खेल में ध्वस्त हो चुका था।उसने अपने पिता के व्यवसाय में ही हाथ बटाने का निश्चय कर लिया। समीर कहीं अवसाद में न चला जाये उसके पिता ने उसकी शादी शैलजा से कर दी।

       लगभग तीन चार माह बाद आयोग से एक पत्र उसके पास आया जिसमे लिखा था,कुछ अपरिहार्य कारणवश प्रतियोगिता की गणित परीक्षा निरस्त कर अमुक तिथि को दुबारा आयोजित होगी।आयोग आपके आने जाने का रेल भाड़ा द्वितीय श्रेणी का वहन करेगा।पढ़कर समीर खुशी से उछल पड़ा, यह अनहोनी कैसे हुई।क्या किस्मत दगा देकर भी चमक सकती है? वह खुशी में चीखता हुआ घर की ओर दौड़ लिया ,अपने पिता और शैलजा को ये खुशखबरी देने।

         नियत तिथि पर समीर ने गणित की परीक्षा दी और शतप्रतिशत अंक का पेपर हल किया।इलाहाबाद में ही उसे पता चला कि पहले हुई गणित की परीक्षा की कापियां जौनपुर जंचने के लिये गयी थी,जहां अचानक बाढ़ आई,जिसमे वे कापियां नष्ट हो गयी थी,इसी कारण ये परीक्षा दुबारा हुई।

     समीर ने प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त की।एक सबक भी मिला मेहनत लगन के साथ किस्मत भी जरूरी है।

(1975 की यू पी की पीसीएस प्रतियोगिता में गणित की परीक्षा इसी कारण दुबारा हुई थी,इसी सच्ची बात को लेकर कहानी की रचना)

   बालेश्वर गुप्ता,पुणे

मौलिक एवम अप्रकाशित

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