अंगूठी खो गई – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

 सुमी के हाथ से आज बड़ा नुकसान हो गया था, उसे बहुत दु:ख हो रहा था। वह घबरा रही थी,उसका रोना रूक नहीं रहा था, घर में कोई था भी नहीं जो उसे दिलासा देता। उसके हाथ से दो तोले की सोने की अंगूठी कहीं गुम गई थी।

अभी छ महिने पूर्व ही उसका विवाह विवेक के साथ हुआ था। विवेक ने दो साल पहले वकालत का धंधा शुरू किया था। कमाई ज्यादा नहीं थी, जो कमाता ईमानदारी से कमाता, और उस कमाई से ही पैसे बचाकर वह सुमी के लिए पिछले महिने यह अंगूठी लाया था।

सुमी सोच रही थी कि वह विवेक से कैसे कहेगी? पता नहीं वे क्या सोचेंगे? आज मुझे जरूर डाट पड़ेगी। विवेक कोर्ट से जब घर आया तो सुमी का उदास चेहरा देखा, उसने पूछा क्या हुआ सुमी? तुम्हारी ऑंखें क्यों सूजी हुई है? सुमी को फिर से रोना आ गया ।

बोली ‘आज मुझसे बहुत बड़ा नुकसान हो गया……. आप जो अंगूठी लाए थे वह मिल नहीं रही है।’ ‘मिल जाएगी और अगर उसे नहीं मिलना होगा, तो तुम्हारे ऑंसू बहाने से तो मिलने से रही, इसलिए रोना छोड़ो और जल्दी हम दोनों के लिए चाय ले आओ।

‘ सुमी चाय बनाने के लिए गई तो सोच रही थी, ये मुझ पर जरा भी नाराज नहीं हुए, क्या इन्हें मुझ पर जरा भी गुस्सा नहीं आया। चाय पीते -पीते उसने पूछ ही लिया – ‘मेरे हाथ से इतना बड़ा नुकसान हो गया फिर भी आपने मुझसे कुछ नहीं कहा?

आप  इतने शांत कैसे रह लेते है?’ ‘सुमी तुमने जानबूझकर तो नुकसान नहीं किया,जो होना था हो गया। मैं जानता हूँ मेरी कमाई ज्यादा नहीं है, चार पैसे बचाने के लिए तुम घर में नौकर चाकर नहीं लगवाती हो, स्वयं अपने हाथों से काम करती हो।

सुमी मैने प्रण किया था कि मैं स्त्री का सम्मान करूँगा। अपने पापा की तरह नहीं बनूँगा।’ कहते हुए विवेक की आवाज नम हो गई थी।वह फिर बोला ‘सुमी मेरी माँ देवी थी, दिन भर घर पर काम करती और पैसे बचाती थी, पिता की शराब पीने की लत थी,

वे अकारण माँ को मारते थे और पैसे छीन कर ले जाते थे। मैं उस समय छोटा था,सातवीं कक्षा में पढ़ता था। पापा का व्यवहार देखकर मेरा खून खौलता था, इच्छा होती थी, उनका हाथ पकड़ लूं और पूछूँ कि वे माँ को क्यों मारते हैं, कोई उन्हें मारेगा तो उन्हें कैसा लगेगा?

  मगर माँ हमेशा मुझे अपनी कसम देकर रोक देती। वे जानती थी कि पापा का सारा गुस्सा मुझपर उतर जाएगा, वे मुझे बहुत प्यार करती थी। अधिक शराब पीने के कारण पापा के फेफड़े खराब हो गए थे, वे बिमार रहने लगे । माँ उनका दुर्व्यवहार भूलकर उनकी सेवा करती थी,

मैं अगर कुछ कहता तो वे कहती‌‌- “बेटा उनकी सेवा करना मेरा धर्म है।”   ‘और उनका क्या धर्म है मॉं?’  ‘उनकी वे जाने।’ मैं जब भी‌ पापा को देखता मेरा खून खौलता था। पिता का देहांत हो गया। मैंने वकालत का धंधा शुरू किया था, जितना भी मिलता माँ को खुश रहने की कोशिश करता,

मेरी शादी का अरमान मन में लिए वे भी दुनियाँ छोड़ कर चली गई। सुमी कोर्ट में कई ऐसे कैसे आते हैं जहाँ दाम्पत्य जीवन में कभी स्त्री तो कभी पुरूष प्रताड़ित होते हैं। जब मैं देखता हूँ तो मेरा खून खौल उठता है । मैं हमेशा पीड़ित पक्ष को न्याय दिलाने की कोशिश करता हूँ।

कभी मेहनत के हिसाब से पैसे कम मिलते हैं पर किसी की मदद कर मुझे संतोष मिलता है। एक छोटी सी अंगूठी के लिए तुम्हारें ये किमती ऑंसू ? भई बहुत मेंहगा सौदा है। अब  हंस भी दो अंगूठी फिर कभी ला दूंगा।’ सुमी के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी थी, वह बोली मुझे अब अंगूठी की जरूरत नहीं है, मेरा असली गहना तो आप है, बस आप ऐसे ही रहना।’ तनाव का माहौल खुशी में बदल गया था।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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