‘अंग्रेज़ पड़ोसन ‘ – विभा गुप्ता

हिन्दी भाषा का राग हमलोग चाहे जितना भी आलाप ले लेकिन अंग्रेजी का अं और इंग्लिश का इं बोलने में हम महिलाओं के चेहरे पर जो चमक आती है,उसके क्या कहने।इस भाषा की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि जिन शब्दों का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में करते हैं,उसका मतलब हमें मालूम ही नहीं होता।                             

            जैसे हिन्दी भाषा में मात्राओं का महत्त्व होता है।दीर्घ और हस्व मात्रा से अर्थ बदल जाते हैं।यहाँ तक कि ‘चिंता’ शब्द में छोटी-सी बिंदी न लगे तो ‘ चिता ‘ शब्द का अर्थ बदल जाता है।उसी तरह अंग्रेज़ी भाषा में ही उच्चारण का है।पर हमें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है,बस अंग्रेज़ी बोलनी है।

        पति का तबादला शहर में हुआ था।काॅलोनी की सुविधाओं भरी ज़िंदगी से एकाएक शहर के कोलाहल वाले माहोल में खुद को एडजेस्ट करना बहुत मुश्किल हो रहा था।रोज़मर्रा की ज़रूरतों से लेकर बच्चों के स्कूल तक की ज़िम्मेदारी स्वयं निभाने की आदत तो थी नहीं तो सोचा,पड़ोसी से मदद ले लेनी चाहिए।

          अगले दिन ही पड़ोसिन चंद्रा भाभी जी के दरवाज़े पर दस्तक दे दी।नाम सुन रखा था,देख पहली बार रही थी।उस बत्तीस वर्षीय महिला के चेहरे पर जितना मेकअप था,उतने ही तन पर गहने चमचमा रहें थें।

      मैंने नमस्ते कहकर अपना नाम बताने की औपचारिकता पूरी की थी कि उन्होंने अपनी गृहसेविका को आवाज़ लगाई, ” नैनी, मैडम के लिए वाटर लाओ।” नैनी’ नाम सुनकर सोचा कि कोई स्कर्ट पहने-स्कार्फ़ बाँधे लड़की होगी लेकिन वो तो पूरी माँग भरने वाली महिला निकली।खैर, मैंने पूछा, ” यहाँ कौन-सा स्कूल अच्छा है,आप तो सालों से रह रहीं हैं तो जानती होगी।”

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जवाब में अपना हाथ नचाते हुए बोलीं  ” हमारे चिल्ड्रेन तो इंग्लिश वाले स्कूल में पढ़ते हैं ना।”

मैंने कहा, “हाँ..,तो आप उसी का नाम-पता बता दीजिये।”

” अरे,बहुत बड़ा नाम है उसका,कहाँ याद रहता है,हसबैंड से पूछती हूँ।” कहकर वो फ़ोन लगाने लगीं तो मैंने कहा, ” अभी रहने दीजिए, कल-परसों में बता दीजियेगा।” और मैं अपने घर आ गई।

       स्कूल का नाम पूछना तो एक बहाना था, दरअसल नये शहर में मैं जान-पहचान बनाना चाहती थी।कुछ दिनों बाद छत पर दिखी तो बोलीं, ” आईये ना,साथ बैठकर चाय पीते हैं।”

      चाय उन्होंने बनवा रखी थी,मेरे जाते ही डिज़ाइनदार टीसेट में चाय सर्व करके उनकी सेविका लाई।कहने लगीं, ” इंपोटेंट(इम्पोर्टेड) हैं।मेरा भाई बिदेस में रहता है ना।जब भी आता है तो हमारे लिए बहुत सारा …वो क्या कहते हैं…”

” गिफ़्ट “

” हाँ, वही..लाता है।जानती हैं,बिदेस में बहुत बीयर(bearभालू)होता है।” फिर बोली,” आप एप्पल खायेंगी?”

” नहीं, मेरे बच्चे ग्रेप्स पसंद करते हैं।”

सुनकर वो मुझे देखने लगी, फिर बोली, ” वो सब तो नहीं, मेरे हसबैंड एप्पल की पूरी पेटी ही ले आते हैं।”

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मैं उनके ड्राइंग रुम में लगी पेंटिंग को देख रही थी कि तभी उनका बेटा जो कि वाॅशरुम में था बोला,” मम्मीऽऽऽऽ”

   चंद्रा भाभीजी अपनी खींसे निपोरते हुई  बोलीं, ” बेटा पुट्टी(पाॅटी) कर रहा है।” एक बार तो मैं समझ नहीं पाई क्योंकि मैं ठहरी इंजीनियर की पत्नी।सो इतना तो जानती थी कि पुट्टी का प्रयोग टाइल्स और खिड़कियों के शीशों को जोड़ने के लिए प्रयोग में लाते हैं।अब ये तो…।एक मन किया कि उनकी अंग्रेजी भाषा में सुधार कर दूँ लेकिन फिर सोचा,उनके पति और बच्चों ने ही सुधार नहीं किया तो मुझे क्या।इंग्लिश का भूत तो उनपर इतना सवार था कि नैना का नाम नैनी कर दिया था।

         कुछ सालों बाद मेरे पति का तबादला फरक्का थर्मल पावर प्लांट में हो गया।फ़ोन के माध्यम से हमारा संपर्क बना रहा।उनके बच्चे की नौकरी लग गई, बहू आ गई, वे दादी बन गयी,ये सारी सूचनाएँ वे समय-समय पर मुझे देती रहती थीं।

       एक सप्ताह पहले उनका फ़ोन आया।मैंने पूछा,              “कायरा(पोती)कैसी है?”

तपाक से बोली, ” खाली इंग्लिश में ही बोलती है जी।” मैं समझ गई,मोदी जी लाख कह दे कि हिन्दी भाषा हमारी शान है लेकिन सच तो यही है कि मेरी अंग्रेज़ पड़ोसिन जैसे लोग गलत अंग्रेज़ी बोलकर भी गर्व महसूस करते हैं।

                             — विभा गुप्ता

                                 स्वरचित

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