अंधेरी रात – अनीता चेची | Moral Story In Hindi

यह कहानी 17 वर्षीय नवविवाहिता स्त्री की है। जो जीवन परिवर्तन से तंग आकर आत्महत्या करने की कोशिश करती है।

हजारों सपने आंखों में लिए रोशनी की अभी नई नई शादी हुई है। ससुराल में चार जेठ जेठानी,  उनके बच्चे, सास-ससुर सभी हैं। भरा पूरा परिवार है। यह देखकर रोशनी बहुत खुश होती है। क्योंकि उसे बड़ा परिवार बहुत अच्छा लगता है।

विदा होते समय पिताजी ने रोशनी से कहा,  “बेटी ससुराल में सभी को अपना समझना।”।

इन्हीं भावों के साथ रोशनी ने ससुराल में कदम रखा। सास ससुर उसने अपने माता-पिता और जेठ जेठानी  को बड़े भाई  बहन की तरह देखा, और उनके बच्चे तो जैसे उसकी की जान है। उनके साथ खेलना, कूदना ,मस्ती करना , ये सब उसे बहुत अच्छा लगता  क्योंकि वह उम्र में सबसे छोटी है, इसलिए वह हमेशा बच्चों के साथ ही ज्यादा खुशी रहती। अभी उसकी उम्र भी ज्यादा नहीं थी वह केवल 17 वर्ष की है। साज श्रृंगार, नए नए कपड़े ,जगह जगह घूमना। ये सब कितना सुखद एहसास दे रहे हैं। मानो सारे सपने पूरे हो रहे हो। उसे सुख का आभास तो था परंतु दुःख का आभास नहीं था। इसके साथ साथ उसकी पढ़ाई भी चल रही थी क्योंकि वह अभी 12वीं कक्षा में ही थी। उसका पति सुधीर तो उस पर जान छिड़कता है। धीरे-धीरे रोशनी सबको प्यारी लगने लगी, अपने मृदु स्वभाव और सौंदर्य से रोशनी सभी का मन मोह लेती। एक वर्ष के भीतर भीतर ही उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। अब तो उसके जीवन में चार चांद लग गए। मानो जीवन अब पूर्ण हो गया हो।  वह 12वीं कक्षा में पास हो गई ।अब उसे आगे पढ़ना है। वह कॉलेज जाना चाहती है। परंतु घर की जिम्मेदारी और बेटी को छोड़कर  कॉलेज नहीं जा सकती । इसलिए सुधीर ने उसके फॉर्म घर से ही भर दिए। वह खुश होकर पढ़ाई करती, बेटी को रखती और घर का काम भी करती।। सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था। सभी जेठ सरकारी अफसर थे इसीलिए अपने कार्यक्षेत्र पर वह अपनी पत्नियों को भी ले गए। अब घर की सारी जिम्मेदारी रोशनी पर आ गई। सास हमेशा बीमार रहती। अपनी बीमारी के कारण वह बहुत चिड़चिड़ी रहती । हर बात पर गुस्सा करती। सुधीर भी नौकरी न मिलने की वजह से अपना चिड़चिड़ापन रोशनी पर ही निकलता।

अब तो जीवन जैसे बदल ही गया । कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा। दिन भर काम करने के बाद रोशनी अपनी पढ़ाई करती।। अब ससुर भी बीमार रहने लगे।

जीवन का यह परिवर्तन बड़ा ही असहज था। फिर भी वह उम्मीदों से भरी रहती। और हमेशा सुधीर को समझाती।

“देखना एक दिन सब कुछ ठीक हो जाएगा।”

काम और पढ़ाई के बोझ तले धीरे धीरे रोशनी  दबाने लगी, उस पर सभी की जिम्मेदारी इतनी छोटी सी उम्र में। परंतु वह कभी हार नहीं मानती थी। अब घर खर्च को लेकर रोज घर में बहस होती।

रोशनी सुथीर से कहती हैं ,”मेरी पढ़ाई पूरी होते हैं मैं कोई प्राइवेट जॉब कर लूंगी आप भी कोई प्राइवेट नौकरी कर ले।”



कुछ ही दिनों में सुधीर की एक प्राइवेट जॉब लग गई। वह सुबह से शाम तक वहां काम करता। रोशनी घर में सास ससुर की सेवा, बेटी की देखभाल, घर का काम और पढ़ाई ये सब करती। धीरे-धीरे सासु मां हर छोटी छोटी बात पर रोशनी को डांटती।वह कभी भी सुधीर को सासु मां की बातें नहीं बताती  क्योंकि वह नहीं चाहती  कि वह उन सब बातों से परेशान हो। परंतु सास रोज सुधीर से रोशनी की शिकायत करती। कुछ दिन तक तो सुधीर अपनी मां की बातों को टालता रहा।

परंतु धीरे-धीरे वह उन सब बातों पर गौर करके रोशनी को डांटने लगा। जेठानियां छुट्टी मनाने घर आती और

रोशनी को लंबे लंबे भाषण देकर जाती ।

“रोशनी मां-बाप की अच्छे से सेवा किया करो”

सभी नसीहत देकर वहां से चले जाते, काम कोई भी नहीं करता । देर रात तक पढ़ना और पूरे दिन घर का काम करना ,वह इन सबके बीच पिस रही थी। वह अपने मायके में भी किसी से कुछ नहीं कह सकती थी क्योंकि उसके पिताजी नहीं चाहते थे कि वह अपने ससुराल की बातें मायके में बताएं। अब वह अंदर ही अंदर घुटने लगी।

और आज तो हद ही हो गई। कल रोशनी का पेपर हैऔर सासू मां ने उसे पूरे दिन घर के काम में लगाए रखा।

फिर भी वह चुप रही। शाम को सुधीर ने आते उसे बहुत

जोर से डाट लगाई “क्या करती हो पूरा दिन, मेरी मां की  ढंग से देखभाल नहीं करती।’

सुधीर ये तुम क्या कहे जा रहे हो ,

“”मैं अपने मम्मी पापा ,भाई बहन और अपना बचपन छोड़कर तुम्हारे पास आई हूं।”

पेपर की चिंता, गृह क्लेश और शारीरिक कमजोरी ये सब मिलकर आज रोशनी का मनोबल गिरा रहे थे। और वह मन ही मन सोच रही थी।



” काश !हर पुरुष हृदय के भीतर

एक स्त्री हृदय होता

तो वह जान पाता

स्त्री हृदय की करुण कथा

सोई हुई मौन व्यथा।”

 जिसके प्यार की वजह से वह सारी परेशानियां उठा रही आज वह भी उससे नाराज है।

इन पांच वर्षों में कितना कुछ बदल गया है सभी ना जाने क्यों मेरे खिलाफ हो गए हैं? इन्हीं सभी विचारों के साथ

रोशनी खुद को खत्म करने की सोचने लगती है।

इससे तो अच्छा है” मैं मर ही जाऊं,

रोज-रोज के क्लेश, मेरे मरते ही खत्म हो जाएंगे।”

हारा थका सुधीर रात को सो गया परंतु रोशनी की आंखों में नींद नहीं है उसके मन मस्तिष्क में तरह-तरह के विचार चल रहे हैं। तभी अचानक उसने अपना दुपट्टा उठाया और दूसरे कमरे में चली गई।

वहां जाकर उसने अपने गले में फांसी लगा ली। जैसे ही उस का दम घुटने लगा उसकी बेटी का चेहरा उसके सामने आ गया। उसकी आंखों के आगे धीरे-धीरे अंधेरा छाने लगा, हाथ पैर शिथिल पड़  गए। जैसे भीतर से कोई साथ छोड़  रहा हो। यह अजीब सा एहसास उसको पहले कभी नहीं हुआ था। उसने तुरंत अपने गले से वह दुपट्टा हटाया और और अपनी बेटी को छाती से चिपका लिया। उसकी आंखों से झर झर आंसू बह रहे लगे।

वह कभी सुधीर को देखती तो कभी अपनी बेटी को।

“कितना प्यार करते हैं, सुधीर मुझसे, न जाने मै ऐसा कैसे सोच गई।”?

“अब मैं जीवन में कभी भी आत्महत्या करने की कोशिश नहीं करूंगी,परिस्थितियों से लड़ कर आगे बढूगी”।

हे प्रभु!

“ऐसी अंधेरी रात मेरे जीवन में फिर कभी ना आए।”

अनीता चेची मौलिक रचना (हरियाणा)

 

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