देखो रमेश, सूर्य ढलने को है,फिर अंधेरा छा जायेगा।ये अंधेरा कितना डरावना होता है ना?सच मे मेरा वश चले तो सूर्य को कभी अस्त ना होने दूँ।
माधवी,ये तो है कि अंधेरा किसी को भी अच्छा नही लगता,सब यही चाहते है सूर्य सदैव चमकता ही रहे।पर माधवी यदि ऐसा हो भी जाये तो क्या संसार का चक्र थम नही जायेगा?क्या अस्त होता सूर्य हमें यह संदेश नही देता कि अंधेरा समाप्त जरूर होगा और उसका पुनः उदय होगा?
शहनाई की गूंज ,ढोलक की थाप की आवाज,रिश्तेदारों की गहमागहमी के बीच छः वर्ष पूर्व ही तो रमेश और माधवी एक दूसरे से सात जन्मों के बंधन में बंधे थे।रमेश एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे वेतन के साथ कार्यरत था तो माधवी एक आई टी कंपनी में जॉब करती थी।दोनो एक उच्च वर्गीय जीवन निर्वाह कर रहे थे।डेढ़ वर्ष होते होते ही घर मे बाल स्वरूपा लक्ष्मी का भी आगमन हो गया।
गुड़िया के आने के बाद तो रमेश और माधवी के जीवन में मानो बहार ही आ गयी।नीरस जीवन समाप्त हो गया।गुड़िया की अटखेलियां में दोनों खोये रहते,समय कब पंख लगा उड़ जाता पता भी नही चलता।माधवी ने कंपनी से वर्क फ्रॉम होम की अनुमति ले ली थी तथा एक मेड भी रख ली थी,सो गुड़िया की परवरिश में उनकी नौकरियां आड़े नही आ रही थी।
इधर कुछ दिनों से रमेश अपने मे कुछ अधिक ही थकान महसूस करने लगा था।बुखार भी रहने लगा था।रमेश और माधवी का ख्याल था कि काम की अधिकता के कारण शायद ऐसा हो।सो उन्होंने एक सप्ताह की छुट्टियां लेकर गोवा जाने का कार्यक्रम बना लिया।पर्यटन स्थल पर बिना किसी तनाव के परिवार के साथ एक सप्ताह बिताना रमेश और माधवी दोनो के लिये ही रोमांचकारी था। गोवा पहुंच कर वहाँ के बीच की रौनक को देख रमेश अपनी थकान को भूल गया।पर दो दिनों बाद ही रमेश को तेज बुखार आ गया और उसके लिये गोवा रुकना असहनीय हो गया,रमेश घर वापस जाना चाहता था।तीसरे दिन ही वो वापस आ गये।घर आकर माधवी रमेश को लेकर डॉक्टर के पास गयी।सारी स्थिति समझ डॉक्टर ने कुछ टेस्ट कराये।टेस्टिंग से साफ हो गया ,रमेश को ब्लड कैंसर था।सुनहरे भविष्य के तमाम सपने एक दम धराशायी हो गये।माधवी तो पागल सी हो गयी,मानो भरी दुपहरी में ही शाम हो गयी हो।डॉक्टर ने माधवी को ढांढस दिया कि आपको हिम्मत रखनी होगी,इस बिमारी का पूर्ण इलाज है,रमेश जी ठीक हो जायेंगे,इलाज लंबा जरूर है,पर धैर्य के साथ निरन्तर इलाज से इस बीमारी को परास्त किया जा सकता है।माधवी को डॉक्टर की बातों से राहत मिली।
रमेश की नौकरी चली गयी,पर कंपनी और साथियों ने माधवी की आर्थिक मदद की।अब माधवी की दिनचर्या बिल्कुल बदल गयी थी।गुड़िया का पालन,रमेश का इलाज और अपना जॉब बचाना, ये तीन चुनोती माधवी के सामने थी,जिसे माधवी ने स्वीकार कर उनका सामना करना प्रारंभ भी कर दिया।रात दिन माधवी ने रमेश की सेवा में अपने को झोंक दिया।एक वर्ष बाद डॉक्टर ने रमेश को विजयी घोषित कर दिया,हालांकि अभी कुछ दवाइयां आगे चलनी थी,पर अब रमेश अपना जॉब कर सकता था।सौभाग्य से पुरानी कंपनी ने ही रमेश को वापस अपनी कंपनी में जॉब दे दिया।
सूर्य के अस्त होते ही छाये अंधकार ने जीवन को कुंद करने का प्रयास तो किया,पर सूर्य तो उदय होना ही था, बस उदय होने का इंतजार और विश्वास तो करना ही पड़ेगा,माधवी और रमेश ने यही किया।
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)