जब संत ने देखा कि मोहित रात भी मंदिर में ही गुजार देता है अपनी धर्मपत्नी को छोड़कर, घर-गृहस्थी त्यागकर तो उन्होंने उसे बुलाया अपने पास। उससे पूछा कि वह उदास-उदास सा क्यों रहता है, क्या कष्ट है, किन्तु वह मौन रहा। कुछ पल के बाद उन्होंने पूछा कि क्या उसकी पत्नी उसे पसंद नहीं है।
क्षण-भर बाद ही सिर हिलाकर उसने उनकी बातों से सहमति जताई, तब उन्होंने फिर मृदुल आवाज में प्रश्न किया कि उसकी पत्नी में क्या कमी है, वह अंधी है, लंगड़ी है या व्यवहार-कुशल नहीं है, आखिर क्या खराबी है, शिष्टाचार नहीं जानती है, मृदुभाषी नहीं है।
“नहीं बाबा!.. वह सब कुछ ठीक है, उसमें इस तरह की कोई कमी नहीं है।”
मोहित की नई-नई शादी हुई थी। उसके अनुसार उसकी पत्नी आकर्षक नहीं थी, वह सांवली थी, दुबली-पतली थी। उसका चेहरा भी उसे पसंद नहीं था। वह चिंतित रहने लगा। शायद रिश्तेदारों के दबाव में यह शादी संपन्न हो गई थी। उस वक्त फोटो में सभी को ठीक ही लग रही थी।
उसी समय उस छोटे से बाज़ार के मंदिर में संत दिनमणी महाराज का आगमन हुआ था। प्रत्येक दिन शाम से रात नौ-दस बजे तक उनका प्रवचन होता था। मोहित के दिल में विरक्ति की भावनाएंँ पनपने लगी थी। वह घर-द्वार छोड़कर उसने मंदिर में ही अपना बसेरा बना लिया था।
उसकी धर्मपत्नी ने उसके साथ हमेशा मधुर व्यवहार किया और बात-चीत में शिष्टता प्रदर्शित की इस मकसद से कि वह उसके करीब आये किन्तु वह भागा-भागा फिरता था।
संत के प्रवचन में नियमित तो वह शामिल होता ही था। वह संत के सेवा-सत्कार में भी लगा रहता था। इसके अलावा प्रवचन के कार्यक्रम को सफल बनाने में भी प्रयासरत रहता था। रात में भी वह वहीं सो जाता था।
संत के कानों में उड़ती खबर मिली थी कि मोहित अपनी नई-नवेली धर्मपत्नी से नाराज(रुष्ट) है। उससे विकर्षण पैदा हो गया है।
“तुम्हारे कहने का मतलब है कि उसका चेहरा-मोहरा तुम्हें पसंद नहीं है।”
“हांँ!.. आपने सही कहा।”
“तुम मूर्ख हो!.. स्त्री के सौंदर्य से अधिक मायने रखता है उसका व्यवहार, उसका आचरण और उसकी सेवा-भावना। चेहरे की सुन्दरता सीमित समय तक ही प्रभावशाली रहता है, उसमें भी अगर उसके व्यवहार में कटुता आ जाए, वह शिष्टाचार भूल जाए तो वह बदसूरत महसूस होने लगती है, ऐसी स्थिति में वह रूपवती सामान्य स्त्री से भी नीचे के पायदान पर वह पहुंँच जाती है। पति-पत्नी के पवित्र रिश्ते में तो श्रेष्ठ भावनाओं की ही भूमिका होती है, बच्चा।.. दाम्पत्य-जीवन को प्यार-मोहब्बत के रंग में रंग दो!.. अपनी धर्मपत्नी से प्रेम करो, उसे अपने दिमाग में नहीं दिल में जगह दो, वही पत्नी तुमको हूर नजर आएगी। प्यार के उफान के सामने सुन्दरता और कुरूपता का कोई अस्तित्व नहीं होता है। सारी कमियाँ स्वतः समाप्त हो जाती है। “
कुछ पल तक खामोश रहकर संत ने उसके चेहरे को निहारा फिर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,
” सुन्दरता तुम्हारी सोच में है बच्चा!.. ऐसे आचरण को अपनाने के बाद तुम्हें उसकी हर गतिविधियों में उसकी निपुणता और सुन्दरता का बोध होगा। अपनी धर्मपत्नी से संबंधित सारी शिकायतें दूर हो जाएगी। इसके लिए यह भी जरूरी है कि उस पर बल का प्रयोग नहीं होना चाहिए।.. मैं चलता हूँ मोहित, मेरी शुभकामनाएँ हमेशा तुम्हारे साथ है। “
” आपकी नीतियों का पालन करूंँगा बाबा! “
उसने अपने अंतर्मन को धिक्कारा कि वह अंँधेरे में भटक रहा था जबकि उजाला उसके समीप ही था।
स्वरचित
मुकुन्द लाल
हजारीबाग (झारखंड)