अम्माजी , आंखें खोलो बस…….। – डॉ. विभा कुमरिया शर्मा : Moral Stories in Hindi

तू क्या जाने हम तो राजा – महाराजा के बच्चे हैं ,जो राजपाट और शान -शौकत हमने अपने मायके में

देखी है ना वह ससुराल में और तुम्हारे पापा से नहीं मिली , कुछ ना ही कहूं तो अच्छा है।‌ अरे कहां

कर सकते थे हमारा मुकाबला यह लोग ? अम्माजी ससुराल वालों को और पिताजी को जब तब कोसने

लगती। वह तो मैं ही थी जिसने शादी के बाद बच्चे पाल लिए , पढ़ा – लिखा दिए।‌ अच्छे घरों में

ब्याह दिए ,अम्मा जी का अपना और अपने मायके का महिमामंडन शुरू …..। तोबा ।हम तो यह सब

सुनते- सुनते बड़े हुए हैं । तब हमारा बचपन था, बाल बुद्धि थी उस समय, हमें लगता कि हम जो कुछ भी

हैं अपने ननिहाल के कारण हैं , हमारे पापा जी ने अम्मा जी की बातों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया।

कभी भी उन्हें ना रोका ना टोका । पापा जी को एक ही बुरी लत थी , रोज शाम को ऑफिस से लौटते

हुए वह शराब पीकर घर आते थे और कभी खाना खाए बिना सो जाते थे और कभी खाना खा लेते थे ।

अम्मा जी यहां वहां फुंकारती नागिन सी गाली- गलौच करती घूमती रहतीं । वक्त बीतता चला गया ।

हम बच्चे शादियां कर के दूसरे शहरों में चले गए। कभी कबार मायके आना होता। हमारी विदाई के

समय अम्मा जी सिवाय एक मिठाई के डिब्बे के हमें कुछ भी ना देती और मजबूरी दिखाकर हाथ जोड़

देतीं । हम अपने पैसे से खरीदी चीजों को मायके का उपहार कहकर ससुराल में अपनी इज्जत बचा लेते।

आज मैं उम्र के उस पड़ाव पर हूं जहां हमारे बच्चे भी विवाह योग्य हो गए हैं । हमारे पापा जी नहीं रहे।

अम्मा जी पापा की पेंशन पर निर्भर हैं और आज उनकी उम्र 95 वर्ष है । इस उम्र में भी उन्हें अपना

मायका और मायके का गौरव- गान नहीं भूलता।कौन उनकी सेवा कर रहा है, कितनी निष्ठा से उनका ध्यान

रख रहा है? हर कोई उनके मायके के सामने बेकार है, नगण्य है ,वह अजीब प्रकार के घमंड में चूर हैं, पैरों पर

पानी नहीं पड़ने देती ।

अब बच्चों को छोड़कर मायके अब जाना मुश्किल-सा लगता है । सबके अलग-अलग समय हैं सबके

काम भी अलग-अलग हैं। ऐसे में मेरा भी तो अपने परिवार के प्रति कर्तव्य है ।बस हम तो अब घर में

ही रच बस गए हैं ।

एक दिन अम्मा जी का फोन आया हेलो ,क्या कर रही है ? अम्मा जी ने पूछा। मैंने कहा कुछ नहीं

दूध वाले का हिसाब कर रही थी। क्या दूध का हिसाब ? एक किलो, डेढ़ किलो दूध का भी कोई

हिसाब है, मिनटों में हो जाता है । दूध तो हमारे घर आता था बाल्टियां भरकर। अम्मा जी का आनंद

उत्सव शुरू होने ही वाला था कि मेरे मुंह से निकला अम्मा जी आपकी शादी 16 साल की उम्र में हुई थी

ना ? वह बोली हां तब मेरी किस्मत फूटी थी ……। मुझे बहुत गुस्सा आया मेरे दिल में आया आज

मेरे मन जो कुछ आएगा कह दूंगी । बहुत हो गई लानत और बेइज्जती ।मैंने कहा अम्मा जी 16 साल

को 95 साल में से घटा देते हैं , आप लगभग 80 साल से ससुराल में हो , अब आप ही बताओ आप

गुण गान हर समय अपने मायके का करोगी तो कैसे चलेगा ? ‌ अरे तू बच्चा है तुझे क्या पता , हम राजा

महाराजा के बच्चे हैं और हमारे घर में तो पानी भरने वाले नौकर अलग से आते थे, हमारे घर में

बाल्टियां भर – भर के दूध आता था , मैंने ससुराल से ज्यादा मायके में खाया है। वह बोली। कैसे ? मैंने

पूछा । मुझसे अब चुप ना रहा गया । अम्मा जी आपने तो अपने मायके में 15 साल खाया है और

ससुराल में 80 साल से खा रही हो । कभी सोच लिया करो आप । दूसरी तरफ फोन पर उनके खांसने

की आवाज आने लगी , मैंने पूछा क्या हो गया अम्मां ? वह बोली गालियां दोगी तो धस्का ही लगेगा।

वाह अम्मा ! चित्त और पट दोनों तुम्हारे , मैंने गुस्से में कहा। सच में बचपन से लेकर अब तक उनके राज

– रजवाड़े और रियासतों के नारे दिमाग के कोनों में जमें हुए थे। मैंने पूछा अच्छा इतना तो बता दीजिए

कि कौन सी रियासत के मालिक रहे हैं आप लोग ? तुझे क्या प्रमाण देनेहै मुझे ? तुझे पता भी है

हमारे पास नौ – नौ गांव हुआ करते थे‌। हां मैंने कई बार आपसे सुना है। मैंने पलट कर कहा ।‌ कहां

से आए थे गांव ? किसने खरीदे थे ? मैंने पूछा । मैं इतने प्रकांड पंडित की बेटी हूं, जिसे पूरा शहर

जानता था । लोगों ने उन्हें दान में गांव दिए थे ।‌ वह शान से बोली । मेरे मुंह से निकला दान में ? उस

पर इतना घमंड ? आप लोगों ने , आपके बुजुर्गों ने अपने पैसों से क्या खरीदा ? हर समय सुनाती

रहती हो , हमने बहुत देखा ,हमने बहुत खाया , आप लोगों ने तो दान लिया था । पापा तो मेहनत

करते रहे । कपड़ा -लत्ता , खिलाना -पिलाना ,पढ़ाना -लिखाना हम सबकी शादियां किसी के दान और

दया धर्म पर नहीं हुई । क्या नहीं किया उन्होंने ? कहां कमी है ? हम ननिहाल की तुलना में कमजोर

कैसे हो गए ? आप इतने साल तक हमें यूं हीं भरमाती रही हो । वह गुस्से में थी और फोन पर मेरे ही

शब्दों को दोहरा रही थीं। मैं समझ रही थी कि आज तीर निशाने पर लगा है ।मैंने बिना रुके कहा, आप

जिनका महिमामंडन करती हैं उन्होंने ना तो अपने पिता की शिक्षा को अपनाया और ना ही उनकी

विरासत को संभाला , बल्कि मामा जी ने तो सब कुछ बेच खाया। उन पर घमंड करती हो ? अम्मा जी

, पापा की पेंशन से तुम स्वाभिमान पूर्वक दिन निकाल रही हो , आपके रजवाड़ों और रियासतों से खाना –

पानी नहीं आता । हमें नहीं सुनना कुछ भी । हम सब सच्चाई जानते हैं। हमने कभी नहीं कहा तो

इसका मतलब यह नहीं कि हम मूर्ख हैं । पापा को भी मूर्ख समझना बंद कर दो , वह शांतिप्रिय थे ।

अब तो आंखें खोलो अम्मा जी । दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया। मैं सोच सकती हूं कि वह गुस्से

में भन्ना रही होंगी , मुझे लगाआज उनकी ऐंठी गर्दन का कायाकल्प हो जाएगा ।

डॉ. विभा कुमरिया शर्मा

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