अम्मा का आशीर्वाद – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“भाभी ओ भाभी,कल घाट पर चलना होगा आपको।हमारे सोनू ने निमंत्रण भेजा है आपको बिनती के साथ।”

पिंकी बड़े उत्साह से चहकती हुई बोली।पिछले बीस सालों से उसे काम करते हुए देख रही थी मृदुला।सोनू (उसका बेटा)तब आठ साल का रहा होगा,जब पिंकी ने आकर मृदुला से कहा था”भाभी,अम्मा कह रही थी कि आपको अपने बेटे की देखभाल के लिए किसी की जरूरत है।इसे रख लीजिए ना।सारा दिन आवारा बना घूमता रहता है।शाम को बाप से पिटता है।पढ़ाई -लिखाई करता नहीं।

आपसे थोड़ा बहुत लिखना -पढ़ना सीख जाएगा।”मृदुला को वास्तव में अपने बेटे के साथ खेलने के लिए ऐसे ही लड़के की जरूरत थी।अगले दिन से सोनू आने लगा था।मृदुला ने धीरे-धीरे उसे स्कूल जाने के लिए मना लिया था।बारह बजे स्कूल से सीधा मृदुला के घर आ जाता था।थोड़े ही दिनों में घुल मिल गया था साल भर के बेटे से।

सोनू से जब भी मृदुला पिंकी(उसकी मां )के बारे में,वह सहज ही कहता”भाभी ,बहू रानी की तबीयत ठीक नहीं रहती।बहुत खांसी होती है।दिन भर काम करके थक जाती है।मैं जब बड़ा हो जाऊंगा ना,बहू रानी को रानी बनाकर रखूंगा।गैस खरीद दूंगा,चूल्हे के धुएं से ही खांसी आती होगी उसे।”

सोनू का अपने मां के प्रति प्यार देखकर मृदुला गदगद हो जाती।डपटकर कहती भी”क्या रे,तू अपनी मां को मम्मी या मां क्यों नहीं बोलता?बहू रानी क्यों बुलाता है?मुझे भी भाभी मत बोला कर।तेरी मां भाभी बुलाती हैं,तू आंटी कह सकता है ना।”वह सिर नीचा किए कहता”अम्मा(दादी)तो उन्हें बहू रानी ही कहती हैं।मुझे भी यह नाम बहुत पसंद है।और वो आपको भाभी कहती हैं तो मुझे भी आपको भाभी कहना अच्छा लगता है।बोल लूं ना आपको भाभी।”

मृदुला हंसकर कहती “ठीक है।जो तुझे अच्छा लगे कह।पढ़ाई खूब मन लगाकर करनी होगी तुझे सोनू।तभी तेरी मां बहू रानी से महारानी बन पाएगी,है ना।”वह समझदार बच्चा हां में चार -पांच बार सिर हिला देता।

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देखते-देखते साल बीतते रहे। जहां-जहां सोनू की बहू रानी (मां-पिंकी)काम करती थी,उनमें से जिनके घरों में छठी मैया की पूजा होती,सोनू भाग-भाग कर काम किया करता था।घाट पर बैंड बाजा बजाकर लोग जब पूजा करने जाते,तो सोनू को डांस करने पर नेग मिलता।कई घरों से नए कपड़े भी मिलते।

पिंकी की तबीयत नरम-गरम ही रही आती। अम्मा भी अब बूढ़ी हो रही थीं।सोनू ने एम पी बोर्ड से प्रथम श्रेणी में दसवीं पास कर ली।डिप्लोमा में दाखिला ले लिया था उसने।अब मृदुला का बेटा भी बड़ा हो गया था।सोनू बारहवीं के बाद भोपाल चला गया, डिग्री करने।पिंकी को उदास देखकर मृदुला समझाती”बस अब कुछ समय और इंतजार कर बहू रानी।तेरा बेटा तुझे महारानी बनाएगा।तुझे सब सुख देगा वो।खुश रहा करो।”

वह हंसकर कहती”क्या भाभी,आप भी मजा लेती हो।अम्मा(सास)मुझे ताना मार कर बहू रानी कहती रही ज़िंदगी भर।मैं काहे की बहू रानी?पति का सुख जिसकी क़िस्मत में नहीं,पति ढंग से ना कमाए,वो औरत काहे की बहू रानी और कैसी महारानी।अम्मा अपना दुःख टालने के लिए,बेटे से तो कभी कुछ नहीं पाईं,मुझे ही ताना देती रही गई बहू रानी का।”

मृदुला ने दृढ़तापूर्वक कहा था पिंकी से”बुजुर्गों के ताने में भी आशीर्वाद छिपा होता है पिंकी।वो भी क्या करे?सारी जिंदगी उसने भी तो दूसरों के यहां काम करके बिता दी।बेटियों की जैसे-तैसे शादी भी करी,तो दामाद भी अच्छे नहीं मिले।कम से कम उनका बेटा तो दामादों की तरह बीवी को मारता नहीं।उनके मुंह से बहू रानी बहुत अच्छा लगता है सुनने में।तू मन छोटा ना किया कर।अब उनकी उम्र हो गई है,ख्याल रखा कर उनका भी और अपना भी।पति के बस में जितना है,कर रहा है।कोसा मत कर खुद को।”

पिछले साल ही सोनू का चयन किसी अच्छी प्राइवेट कंपनी में हो गया था।मिठाई लेकर आया था पैर पड़ने।

सामने सोन पापड़ी देखकर भी नहीं खा रहा था ,सोनू तो मृदुला ने हंसकर पूछा”क्यों रे!अब किस फिकर में‌ पड़ा है?साहब बन गया है अब तो।अब तो तेरी चिंताएं खत्म।तेरे सारे सपने अब पूरे कर सकता है तू।”

सोनू का जवाब सुनकर मृदुला अवाक रह गई थी।वह साहस बटोरकर बोला”भाभी, बहू रानी को इस बार छठी मैया का व्रत करवाऊंगा भाभी।बचपन से बड़ा मन‌ था मेरा कि मेरी बहू रानी भी घाट पर जाकर पूजा करें।मैं बांस की बड़ी सी टुकनी सिर पर रखकर घाट पहुंचूं।बहू रानी लाल रंग की साड़ी पहनेगी।मैं‌ सोने की बेंदी बनवाऊंगा।पापा को पीला कुर्ता,अम्मा को भी नई साड़ी दिलवाऊंगा।मैं कर पाऊंगा ना भाभी?तुम्हें आना पड़ेगा।अबकी बार बैंड बाजा बजेगा,और सोनू अब अपने लिए नाचेगा।पटाखा भी फोड़ेगा सोनू भाभी।”

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सोनू का गला भर आया था।बचपन से गरीबी का दंश झेलते हुए अपनी मां को दादी के मुंह से बहू रानी बोलना सोनू ने वरदान समझकर संकल्पित कर लिया था।बस अब छठ पूजा का इंतजार था।

सुबह-सुबह बहू रानी ने निमंत्रण भी दे दिया था।तीन बजे ऑटो भिजवा दिया था सोनू।गाड़ी भर गई थी पूजा की डालियों से।केले की बड़ी सी कांदी घर की ही थी।ऑटो में,अम्मा,पापा,बहू रानी और मृदुला बैठे।सामने बैंड बाजा वालों के साथ सोनू नाचते-नाचते घाट पर पहुंचा।बहू रानी ने सोने की टिकुली पहनी थी,बेटे की दी हुई।

पूजा करने के बाद नाक से मांग तक भरकर सिंदूर लगाई बहू रानी अम्मा के पैर पड़ने झुकी तो,पहली बार रोते हुए बोली सास”हम तो जानते थे कि तू महारानी है,हमारी बहू रानी है।हमार बेटा की खातिर तू बहुत दुःख सही है,अब हमर आशीर्वाद लें ले।रानी बनकर रहेगी अब ज़िंदगी भर।काम पर जाना छोड़।बैठ घर में।तेरा बेटा तो लायक निकला है री।जुग-जुग जिए,हमरा बउआ।उनका भी दुलहिन‌ देख लेते तो,चैन से शरीर छूटता।”

“कैसी बात करती हो अम्मा,ऐसे शुभ दिन में का अशुभ बोले जा रही हो।शरीर छोड़ें आपके दुश्मन।आपको तो अपने पोते की कमाई का सुख भी तो साधना है।चलिए,पटाखा फोड़िए,एकगो अपने मन का।”

छठी मैया के घाट पर यह दृश्य उतना ही विहंगम था जितना अभी कुछ देर पहले लोगों के शोरगुल,सजावट से था।सोनू ने अपनी बहू रानी को महारानी बना ही दिया आज।हमेशा बनाकर रखेगा।

तभी पिंकी प्रसाद देती हुई बोली”सही में भाभी,ए तो अम्मा के आशीर्वाद सच बन गई।हमारा सोनू हमें‌ रानी बना डाला भाभी।अम्मा ही हमारी देवी मईया है।ताना भी मारती है ना,तो वरदान बन जाता है।लीजिए ना,एक और ठेकुआ।”

मृदुला के लिए यह दृश्य किसी तीर्थ से कम नहीं था।जो बच्चा दूसरों के लिए ढोल बजने पर नाचा करता था नेग के लिए,वही आज अपने बहू रानी की पूजा खातिर नाच रहा था नेग देकर।

शुभ्रा बैनर्जी 

#बहूरानी

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