अम्मा जी का पान – मधु मिश्रा

” अरे वाह सुधीर, तुम मज़े में हो भई! घर के खाने की तो बात ही कुछ और होती है..!” ऑफ़िस में सुधीर के टिफिन को देखकर बॉस ने कहा..

-” क्या हुआ सर, मैडम कहीं गईं हैं क्या..? ” सुधीर ने टिफिन खोलते हुए बॉस से कहा..

” हाँ भई मैडम हमारी मायके गयी हैं, महीने भर हो गये उनको गये, अब तो बाहर का खाना खा खाकर जी उबने लगा है हमारा .! “

तो सुधीर ने अपना टिफिन आगे बढ़ाते हुए उनसे आग्रह किया  – “आइये न सर… हम साथ में ही खा लेते हैं.. वैसे भी आज रश्मि (पत्नी ) ने पराठे ज़्यादा ही रख दिये हैं..और साथ में है आलू फ्राय… !” घर के खाने की महक ही कुछ और होती है.. कहते हुए बॉस अपने आप को रोक न पाए और सुधीर के साथ टिफिन साझा करने लगे … उन्हें खाना पसंद आया ये देखकर सुधीर ने बॉस को अगले दिन अपने घर खाने के लिए बुला लिया  l

तो वो मना करने लगे -” अरे नहीं ..बेकार में ही तुम परेशान हो रहे हो !”

तो सुधीर ने उनसे कहा -” नहीं… सर … परेशानी की तो कोई बात ही नहीं है  .. हमें तो आपके आने से ख़ुशी होगी…! “

अंततः सहमति देते हुए उन्होंने सख़्त हिदायत दी कि – “स्पेशल कुछ भी नहीं बनवाना.. जैसा रोज़ बनता हो…बस वैसा ही.. कम तेल मसाले वाला ..!”

दूसरे दिन बॉस आये रश्मि ने मेथी आलू की सब्ज़ी और हरी मिर्च वाली लौकी तथा हींग के छौंके वाली दाल बनाई.. और गर्मागर्म रोटी के साथ खाना परोसा गया जिसे उन्होंने बड़े प्रेम से खाया और खाते खाते ही वो पूछे -” सुधीर, तुम्हारे घर में और कौन कौन लोग हैं ..? “


” सर, माँ.. बाबुजी और हम दोनों… !”

“क्या…!माँ बाबुजी तुम्हारे साथ ही रहते हैं.. ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है..क्योंकि आजकल ये सुनना तो किसी सपने की तरह लगता है..!” और फ़िर भोजन के तुरंत बाद ही बॉस, माँ कहाँ हैं.. कहते हुए उनसे मिलने उनके कमरे में ही पहुँच गये…  माँ उस समय पान की टोकरी सामने रखकर पान बना रहीं थीं…

“अरे माँ जी… आप घर में ही पान बना लेती हैं…! ” आश्चर्य चकित हो कर बॉस ने माँ के पैर छूते हुए कहा.. .

“ख़ुश रहो बेटा .. लो.. पान, तुम भी खाओ…!” कहते हुए माँ ने पान का एक बीड़ा बॉस की तरफ़ बढ़ाया…

“मैं…” कहकर वो हक़लाये…!

“सर लीजिये न… अम्मा बहुत अच्छा पान बनाती हैं ..!” सुधीर ने कहा   ..

तो बॉस… पान का बीड़ा अम्मा के हाथो से लेते हुए भावुक हो गए.. उनके चेहरे को देख कर ऐसा लगा जैसे वो पान नहीं.. प्रेम स्वीकार कर रहे हैं..  ये देखकर सुधीर ने उनसे कहा … “अम्मा का पान बहुत लोकप्रिय है सर … हमारे घर में जो भी आता है न… अम्मा से पान माँग कर ज़रूर खाता है..!”

“अच्छा.” …. कहते हुए उन्होंने पान को मुँह में डाला और फ़िर वो

बुदबुदाये -” सचमुच… एक छोटे से पान में मानो ज़माने भर का स्नेह लिपटा हुआ है “लाजवाब..” कहते हुए बॉस अपनी आँखें मूंदकर पान का स्वाद लेते हुए पुनः बोले – ” माँ बाप के आशीर्वाद की वज़ह से ही यहाँ सब कुछ प्रसाद सा लग रहा है..! “

और फ़िर वो भावुक होकर अम्मा से रिक्वेस्ट करते हुए बोले -” अम्मा जी, आप तो मेरे लिए दो तीन पान और बना दीजिये.. मैं अपने साथ लेकर जाऊँगा…! “

“सच बेटा…! ” कहते हुए अम्मा के हाथ अब तेज़ी से पान के पत्तों पर कत्थे चूने और चमन बहार के साथ प्रेम बांधने लगे…

मधु मिश्रा, ओडिशा

 

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