अमीरी का घमंड – आस्था सिंघल

धनराज यादव एक बहुत बड़ा बिजनेस मैन है। पिछले दस सालों में उसने करोड़ों की सम्पत्ति अपने नाम की है। आलीशान बंगला, छह- सात गाडियांँ , नौकर चाकर क्या नहीं है उसके पास। बस उसके पास अपने परिवार को देने के लिए वक़्त नहीं है।

वह उनपर  केवल धन दौलत की बारिश कर सकता है। पर उनके साथ प्यार के दो बोल बोलने, उनकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है, यह देखने का समय नहीं था उसके पास।

साल 2020 में कोरोनावायरस से पूरा विश्व जूझ रहा था। सरकारी और प्राइवेट सभी हॉस्पिटल कोरोना मरीजों से भरे हुए थे। सब लोग घर में कैद हो गये थे। सब अपने आपको बचाने के लिए हर प्रकार का जतन कर रहे थे। 

धनराज यादव ऐसे समय में भी पैसा बनाने में लगा हुआ था। उसने बहुत सी बड़ी बड़ी दवा बनाने वाली विदेशी कम्पनियों की एजेंसी ले ली। उनसे जिस माल पर कोरोनावायरस की दवाइयांँ उठाता था उससे दोगुना दाम पर भारत में बेचता था। 

“आज देश को आपके पैसे की ज़रूरत है। और आप ऐसे समय में भी केवल मुनाफा कमाने की सोच रहे हो। हद है! इस समय हमें देशवासियों की मदद करनी चाहिए। आपके पास उस दवा की एजेंसी है जिसकी आज देश में सबसे ज़्यादा डिमांड है। आपको तो उसे सब जरुरतमंदों को पहुंँचानी चाहिए। और आप सौदेबाजी कर रहे हैं।” धनराज की पत्नी सुमन ने कहा। 

“ये बिजनेस है सुमन। तुम नहीं समझ सकती। इसमें घुसने की कोशिश मत करो।” धनराज बिगड़ते हुए बोला।

“कल को हमें कोरोनावायरस हो गया तो? तब क्या करोगे?” सुमन‌ ने कहा।

“अपने परिवार को बचाने के लिए मैंने भरपूर दवाएंँ, ऑक्सीजन सिलेंडर, इंजेक्शन, सब स्टॉक कर रखा है। किसी को कुछ नहीं होगा।” धनराज ने अपने पैसों का रौब भरते हुए कहा। 

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“सर, मेरी पूरी फैमिली वायरस की चपेट में हैं। और वो दवा जो उन्हें बचा सकती है वो मार्केट में उपलब्ध नहीं है। प्लीज़ हैल्प कीजिए।” धनराज के एक गरीब कर्मचारी ने कहा। 

“ऐसा है भाई, एक की मदद करुंँगा तो सबकी करनी पड़ेगी। खैरात नहीं बांँट रहा हूंँ मैं। पैसे लाओ और दवा का जितना स्टॉक चाहिए ले जाओ।” धनराज ने अपनी नीची सोच का प्रदर्शन करते हुए कहा।

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“सुनिए, वो मेरे दूर के चाचा का बेटा है ना, वो‌ वैंटीलेटर पर हैं। उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर की सख्त ज़रूरत है।‌ अरेंज करा दो प्लीज़।” सुमन‌ ने कहा। 

“सुमन, सच में मैंने कोशिश की पर मेरे गोदाम भी खाली हैं।” धनराज ने कहा।

“वो..हमारे लिए जो सिलेंडर रखे थे अभी वो  उन्हें दे देते हैं। वो बच जाएगा।” 

“बिल्कुल नहीं। वो स्टॉक मेरी फैमिली के लिए है। वो मैं किसी को नहीं दूंँगा।” धनराज चिल्लाते हुए बोला। 

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“डॉक्टर प्लीज़ बैस्ट ट्रीटमेंट कीजिए और मेरी फैमिली को बचाइए। जितना पैसा खर्च हो‌गा मैं करुंँगा। दवाएंँ, सिलेंडर, इंजेक्शन सब लाकर आपको दे दिया। प्लीज़ सबको बचा लीजिए।” धनराज डॉक्टर के आगे गिड़गिड़ाने लगा।

“सर, उनपर किसी दवा और इंजेक्शन का असर नहीं हो रहा। अब तो दुआ ही बचा सकती है उन सबको।” 

धनराज ने डॉक्टर का गिरेबान पकड़ते हुए कहा,”मैं पैसा ख़र्च करने को तैयार हूंँ। तुम्हें कितना चाहिए बताओ। पर मेरी फैमिली को ठीक कर दो। प्लीज़…” 

“सर, पैसों से ज़िन्दगी नहीं खरीदी जा सकती। आप भगवान से प्रार्थना करें।” डॉक्टर ने कहा।

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“उस आम इंसान के परिवार को ठीक कर दिया तुमने। तो मेरे परिवार को क्यों नहीं कर सकते?” धनराज ने पूछा।

“सर, उनके साथ शायद बहुत से लोगों की दुआएंँ थीं। इसलिए वह सब इस महामारी से बच गए।” 

धनराज वहांँ खड़ा डॉक्टर को जाते देखता रहा। आज उसका सारा कमाया धन कूड़ा ही तो था। वो इनसे अपने परिवार को बचा नहीं पाया। उसका पैसा तिजोरी में पड़ा सड़ गया। उसने पैसा बहुत कमाया पर दुआएंँ नहीं कमाईं। 

लेखिका

आस्था सिंघल

#घमंड

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