अमरता का वरदान – पुष्पा पाण्डेय 

काॅलेज में गये अभी एक माह भी नहीं हुआ था कि खुशबू की जिन्दगी बदल गयी। अन्तर्मुखी  स्वभाव की खुशबू को अपनी पढ़ाई और माँ के कामों में हाथ बटाँने के सिवा किसी और उपकर्म में कोई रुचि नहीं थी। एक महीने में इतना बड़ा परिवर्तन……

बाल- सज्जा के नये-नये तरीके…आकर्षित और मर्यादित पहनावा…न जाने और क्या-क्या…..

ऐसा ही होता है जब दिल में रूहानी प्रेम का बीज अंकुरित होने लगता है। इसके कोपले जब प्रस्फुटित होने लगते है तो दुनिया बड़ी खूबसूरत लगती है। बिन पंख ही इंसान उड़ने लगता है। प्रकृति का कण- कण उसे खूबसूरत दिखता है। प्रेम का सफर रूमानी से रूहानी तक अनवरत चलता है। प्रेम को अमरता का वरदान जो मिला है। 

           खुशबू स्वयं इस प्रेम से अनजान थी, फिर भी काॅलेज में आते ही उसकी नजरें प्रतीक को ही ढूंढती थी। आकर्षक ब्यक्तित्व का धनी प्रतीक अपने वर्ग में भी सबका चहेता था। कुशाग्र बुद्धि और व्यवहारिक होने के कारण अध्यापकों का भी लाडला था। क्लास की सभी लड़किया उसके सम्पर्क में आना चाहती थी, लेकिन प्रतीक की नजरें खुशबू पर ही अटक गयी। ———-

किसी दिन प्रतीक काॅलेज नहीं आता था उस दिन खुशबू अपने-आप को अधूरा महसूस करती थी। धीरे-धीरे उसे लगा कि शायद मेरा दिल प्रतीक का गिरवी हो चुका है।

अब तो अक्सर काॅलेज से बाहर भी किसी पार्क या काँफी-हाउस में मुलाकातें होने लगी। कसमें-बादें तो पीछे छूट गये, चकोर और चकोरी की स्थिति में पहुँच गये। जब ये दोनों साथ होते थे तो सारी दुनिया भूल जाते थे। वार्षिक परीक्षाएँ भी निकल गयी। प्रतीक व्यवहारिक था।वह जानता था कि प्रेम को भी एक घर और दो रोटी चाहिए। वह खुशबू पर भी वक्त की पाबंदी लगा दी और प्राथमिकता पढ़ाई को देने लगा। अपने प्यार की ख़ातिर खुशबू ने पढ़ाई को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया।


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कहते है न कि मलयागिरी से आने वाली हवा मलयज की खुशबू लेकर ही आती है। खुशबू और प्रतीक के प्रेम की खुशबू भी फैल गयी। काँलेज के साथ-साथ माता-पिता के आँगन को भी महका गयी।

रूहानी प्रेम के आगे तो बड़े-बड़े ताज भी झूक जाते हैं और माता-पिता के लिए तो औलाद की खुशी ही सबसे बड़ी होती है।

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परीक्षाएँ समाप्त हुई और सफलता भी निश्चित थी। और क्या चाहिए?

खुशियों से दोनों की झोली भर गयी।——-

कल क्या होगा? ये तो सिर्फ परमात्मा ही जानता है। प्रतीक एक दुर्घटना का शिकार हो गया। एक हफ्ते बाद जब उसकी चेतना जागृत हुई तो वह खुद को भी पहचानने में असमर्थ था। दुर्घटना में उसकी स्मरण शक्ति प्रभावित हुई थी। कब वह सामान्य हो पायेगा कुछ कहा नहीं जा सकता था।

         खुशबू की स्थिति  अवर्णनीय है। वह निष्प्राण सी लगभग हो गयी थी। फिर भी खुशबू अपनी शादी के फैसले पर अड़ी रही। उसका कहना था कि ये घटना शादी के बाद भी तो हो सकती थी। दोनों के अभिभावक शादी के पक्ष में नहीं थे, लेकिन खुशबू को विश्वास था कि मेरे साथ रहकर ,अतीत के सहारे प्रतीक की यादें वापस आ सकती है। डाॅक्टर भी इससे सहमत थे, पर खुशबू के माँ-बाप बिल्कुल नहीं तैयार थे शादी के लिए।

कोई भी माता-पिता अपनी संतान को  जीते जी मक्खी निगलने की सलाह नहीं दे सकता। अपनी बेटी का भविष्य अंधकारमय कैसे देख सकते थे, लेकिन प्यार कब किसी का सुना है। 

खुशबू जन्मदाता के खिलाफ जाकर प्रतीक की माँ की सहायता से अदालती शादी कर ली। न शहनाई बजी, न बारात आई, लेकिन उस प्रेम को पा लिया,जिसे अमरता का वरदान मिला था, है और रहेगा।

 

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड।

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