अमर प्रेम – मीनाक्षी सिंह

सुबोध, ऊर्मिलाजी का एकलौता बेटा ! पति ब्याह के पांच साल बाद ही हादसे का शिकार हो गए ! 3 साल के सुबोध और ऊर्मिला जी को अकेला छोड़ गए ! जब पति नहीं होता तो घर वाले भी साथ नहीं देते ! ससुराल वालों ने भी उन्हे बिना कुछ दिये घर से निकाल दिया ! मायके में कहने को एक भाई था ! वह भी अपनी घर गृहस्थी में व्यस्त ! कभी ऊर्मिला जी का हाल भी नहीं जानना चाहा उसने ! किसी तरह किराये पर एक कमरा लिया ऊर्मिलाजी ने ! दो चार घरों में काम कर आती ! रात में सिलाई करती ! बस इसी आश में जिए जा रही थी कि

बेटे को पढ़ा लूँ ! उसे काबिल बना दूँ ! फिर ईश्वर अपने साथ ले जायें ! कई औरतें मोहल्ले की आती,कहती दूसरा ब्याह  कर ले ऊर्मिला ! पूरी ज़िन्दगी पड़ी हैँ ! तेरा मन नहीं करता ,कोई तुझ पर हाथ फेरें ! तुझे सीने से लगाये ! ऊर्मिला जी हंस जाती कहती ,सुबोध के पापा के प्यार की यादें मेरे लिए काफी हैँ ! कोई ब्याह करेगा भी मुझसे तो ज़रूरी हैँ मेरे सुबोध को अपना बेटा मानें ! अगर मेरे और बच्चें हुए तो क्या मैं सुबोध पर उतना प्यार कर पाऊंगी ! नहीं नहीं ,मैं अपने स्वार्थ के लिये सुबोध के साथ अन्याय नहीं कर सकती ! धीरे धीरे सुबोध बड़ा होने लगा ,कुषाग्र बुद्धि था ! हाईस्कूल ,इंटर अच्छे नंबर से पास कर ली ! अब आगे क्या करें ,उसे समझ नहीं आ रहा था ,पैसों की तंगी थी ! उसने

बीएससी में दाखिला ले लिया ! और साथ में किताब लाकर तैयारी करने लगा ! कहते हैँ मेहनत रंग लाती हैँ ! दो साल की तैयारी में ही सुबोध का नंबर बैंक में आ गया ! ईश्वर की कृपा से बैंक में ही काम करने वाली सहकर्मी से उसने विवाह कर लिया !

ऊर्मिला जी को लगा था ,घर में बहू आ जायेगी तो उन्हे कुछ आराम हो जायेगा ! दिन पर दिन शरीर ढल रहा था ! पर यह क्या,बहुरानी मिनी बस खुद  से और सुबोध से मतलब रखती ! ऊर्मिला जी को तो नौकरानी समझती ! कभी बाहर से खाना खा आते  दोनों ! ऊर्मिला जी खाना बनाकर दोनों का इंतजार करती रहती ! पर दोनों आते ही अपने कमरे में चले ज़ाते !

एक दिन मिनी ने सुबोध से कहा – पता है हमारे पीछे घर में क्या होता हैँ ?? तुम्हारी माँ किसी पराये मर्द को बुलाकर उसके साथ ….

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सुबोध – चुप करो तुम ,ऐसा हो ही नहीं सकता ! बचपन से देखता आ रहा हूँ माँ को ! मेरे लिए उन्होने अपना जीवन बिता दिया ! मेरी ही सेवा में लगी रही ! हर बात बर्दास्त कर सकता हूँ पर माँ  के ऊपर ये लान्छन बिल्कुल नहीं ! सुबोध का चेहरा गुस्से से लाल हो गया !

मिनी – मुझे पता था तुम मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे ! पर ये बात मैं नहीं पूरा मोहल्ला कह रहा है ! मुझे तुम्हारी पड़ोस वाली चाची ने बताया हैँ ! विश्वास नहीं हैँ तो आज बैंक जाने का बहाना करके निकलना ! फिर घर आकर देखना !




हाँ ,तुम भी देख लेना मिनी अगर तुम गलत साबित हुई तो तुम्हे ये घर छोड़कर जाना होगा  क्यूंकी जब घर की बहू ही सास पर ऊंगली उठाये तो ऐसे रिश्ते का कोई फायदा नहीं !

सुबोध और मिनी दोनो बैंक के लिए निकल गए ! ऊर्मिला जी ने उनके ज़ाते ही दरवाजा बंद कर लिया !

कुछ आगे जाकर दोनों लौट आयें और छुप गए !

एक यहीं कोई 60 वर्षीय आदमी ,आँखों पर चस्मा लगाये ,हाथ में लाठी लिए ,सुबोध के  घर के सामने दरवाजा खटखटाने लगा ! ऊर्मिलाजी ने मुस्कुराकर दरवाजा खोला ! आदमी अन्दर चला गया ! फिर दरवाजा बन्द हो गया ! सुबोध को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ! उसने खिड़की से झांका ! ऊर्मिला जी उस आदमी को खाना दे रही थी ! वो बहुत जल्दी जल्दी खा रहा था ! फिर उसने ऊर्मिला जी को अपने हाथ से एक कौर खिलाया !

मिनी – देख लिया ,अपनी माँ की करतूतें ! बड़ी सती सावित्री बनती हैँ बेटे की नजरों में ! यहाँ किसी पराये मर्द को बहू बेटे की गैर मौजूदगी में घर में बुला रखा हैँ ! सच में कलयुग हैँ  !

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सुबोध बिना कुछ बोले गुस्से में दरवाजा खटखटाने लगा ! ऊर्मिला जी ने सकपका कर दरवाजा खोला ! सुबोध तू ,इतनी जल्दी कैसे आ गया ?? सब ठीक तो हैँ !

सब ठीक कहाँ हैँ माँ ,वो आदमी कहाँ है जो अभी घर में आया था ! अच्छा तू विनोदजी की बात कर रहा हैँ ! वो हाथ धोने गए हैँ अन्दर !

तभी विनोदजी हाथ पोंछते हुए बाहर आयें ! ऊर्मिला क्या ये तुम्हारा बेटा सुबोध हैँ ! ये तो कितना बड़ा हो गया हैँ !

काश मैं बड़ा ना होता माँ तो शायद इन बातों को ना समझ पाता ! हो कौन तुम ,मेरे घर में क्या कर रहे हो ??




सुबोध ,ये मेरे बचपन के दोस्त विनोदजी हैँ ,एक बार रास्ते में बाजार में ये जमीन पर बेसुध पड़े थे ! मैं इन्हे पहचान गयी ! अस्पताल लेकर गयी ! पता चला ,इन्हे खून का कैंसर हैँ ! ऊर्मिला जी बोली !

तो आप इनकी इतनी फिक्र क्यूँ कर रही हैँ ! ये मरे य़ा जीयें ,इनके घर वालें देखेंगे ! पता हैँ पूरा मोहल्ला आपको चरित्रहीन कह रहा है ,कुछ तो इज्जत रखो माँ !

बेटा ,सुबोध ऊर्मिला को कुछ मत कहो ,गलती मेरी हैँ ! ऊर्मिला को बचपन से चाहता था पर कुछ बनना चाहता था जीवन में ऊर्मिला से शादी करने के लिए ! पर जब तक कुछ बन पाया ऊर्मिला की शादी तुम्हारे पिताजी से हो चुकी थी ! मैने भी आजीवन विवाह ना  करने का फैसला ले लिया था ! दिल में कोई और बसा ही नहीं पाया ! ईश्वर ने मुझे फिर एक मौका दिया ! पता चला तुम्हारे  पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे ! मैं एक उम्मीद के साथ ऊर्मिला के पास आया ! पर अबकी बार ऊर्मिला ने साफ कह दिया – मैं अपने सुबोध के साथ अन्याय नहीं कर सकती ! तुम चले जाओ हमेशा के लिये ! मेरी ज़िन्दगी अब बस सुबोध हैँ !

अब इस उम्र में जब इस भयानक बिमारी ने अपनी चपेट में ले लिया हैँ तो बस अंतिम समय में कुछ दिन ऊर्मिला को देखते हुए बिताना चाहता हूँ ! इसलिये कभी कभी आ जाता हूँ ! तुम इस रिश्ते को कोई भी नाम दे सकते हो पर मेरी नजर में ये गलत नहीं ! इतना कहते कहते विनोद जी के मुंह से खून निकलने लगा ! वो जमीन पर गिर गए ! ऊर्मिला जी ने उनके सर को अपनी गोद में रख लिया ! और बस अनवरत आंसू बह निकले !

यह द्रश्य देख सुबोध औए मिनी भी खुद को रोक ना सकें ! मिनी ने अपने आंसू पोंछ सुबोध से विनोदजी को अस्पताल पहुँचाने के लिए कहा !

विनोद जी ने सुबोध को रोक लिया – बेटा ,अब समय नहीं हैँ मेरे पास ! बस मेरी अंतिम इच्छा पूरी कर दो ! मुझे ऊर्मिला की मांग में सिन्दूर भर लेने दो ! ऊर्मिला पाक थी ,पाक हैँ ,पाक ही रहेगी ! उसे गलत मत समझना !

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मिनी दौड़कर सिन्दूर लेकर आयी ! विनोदजी ने एक लम्बी मुस्कान के साथ ऊर्मिला जी की मांग भरी ! ऊर्मिला जी ने उनके पैर छुये ! उनके सर पर उन्हे आशिर्वाद दे विनोदजी हमेशा के लिये सो गए !

दोनों का प्रेम अमर हो गया !




#मासिक_प्रतियोगिता_अप्रैल 

स्वरचित

मौलिक अप्रकाशित

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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