सनी -भाभी बाहर मेहमान आये हैँ ,,मम्मी कब से आवाज लगा रही हैँ ,,चाय तो दे आईये ! और हाँ मेरी अच्छी भाभी मेरे लिए एक सैंडविच और एक काफी भी रेडी कर दिजिये फटाफट ! मुझे अभी दोस्तों के साथ निकलना हैँ !
बांसुरी का देवर सनी सारी बात एक सांस में बोल गया !
बांसुरी का जब से जन्म हुआ बेचारी बस सबकी खातिरदारी ही करती रही ! जन्म के तीन साल बाद ही माँ घर के छोटे मोटे काम करवाने लगी ! आठ साल की उम्र में तो वो चुल्हे पर खाना बनाने में महारथ हासिल कर चुकी थी ! माता पिता दोनों ही मजदूरी करते थे ! सुबह ही काम पर निकल ज़ाते !
घर में बांसुरी से छोटी दो बहनें और एक 2 साल के भाई को बांसुरी ही संभालती ! ऐसा प्रतीत होता मानों वही अपने भाई बहनों की माँ हो ! बांसुरी को तो बिमार होने का हक़ ही नहीं था ! बिमार होती तो माँ कह देती पानी की पट्टी कर लेना ! शाम को दिहाड़ी मिल गयी तो दवाई ले आऊंगी !
और वो दवाई लाने वाली शाम कभी नहीं आती ! वो अपने भाई बहनों से बहुत प्यार करती थी ! पास के सरकारी विद्यालय में सभी भाई बहन पढ़ने ज़ाते ! बांसुरी घर के कामों के साथ पढ़ाई में भी होशियार थी ! किसी तरह घर परिवार के काम करते हुए ,सारी ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए वो हाई स्कूल में पहुँच गयी !
सोलह बरस की बांसुरी दिल लगाकर पढ़ती ! कभी उसने अपने माता पिता से कुछ भी लाने की ज़िद नहीं की ! पर नियति को क्या पता था उस मासूम के साथ क्या होने जा रहा हैँ !
उसके विद्यालय में 26 जनवरी का समारोह चल रहा था ! आस पास के सभी लोग समारोह देखने आये थे ! ज़िलाधिकारी महोदय ने बांसुरी को अच्छे नंबर लाने के लिए सम्मानित किया ! भीड़ में किसी की पारखी नजर बस बांसुरी को ही निहारे जा रही थी ! वो पास के गांव के जमींदार थे ,बहुत ही सम्पन्न और सज्जन आदमी थे !’
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वो देख रहे थे कैसे बांसुरी अपने छोटे भाई बहनों को उस समारोह की भीड़ से बचा रही थी ! छोटे भाई को कुछ खिला रही थी शायद रोटी साग लायी थी कपड़े में बांधकर ! उसने बड़े प्यार से अपने भाई क मुंह पोंछा ,उसे पानी पिलाया ! शायद किसी बात पर भाई ने उसके गाल पर नोंच भी लिया था ,फिर भी छोटी सी बांसुरी बिल्कुल अधीर नहीं हो रही थी ,
बल्की अपने भाई को गोद में लेकर उसे प्यार कर रही थी ! कुछ देर बाद उसका भाई भी उसके गले से लग गया और सो गया ! जब बांसुरी का नाम पुरुस्कार के लिए पुकारा गया ! तो भी उसने उतनी उत्सुकता नहीं दिखायी जो इस उम्र के बच्चों में होती हैँ ,,,पहले भाई को छोटी बहन की गोद में सुलाकर ,उसे अपनी शौल उड़ाकर ,सीने पर थपथपाकर मंच पर गयी ! और उसकी आंखे पुरुस्कार लेते हुए आंसूओं से भरी थी !
उस जमींदार से रहा नहीं गया ,उसने अपने बगल में बैठे काका ज़िन्हे वो जानते थे,उनसे पूँछा ,ये इतनी समझदार और परिपक्व छात्रा कौन हैँ काका ????
बगलवाला तो जैसे जवाब देने के लिए ही बैठा हो ! मुंह से पान मसाला थूकते हुए बोला – का बताये माई बाप ,,ये छोरी हमारे गाम की ही हैँ ,,बेचारी बहुत होशियार हैँ ,,2 छोटी बहनों ,एक छोटे भाई की देखभाल अकेले ही करती आयी हैँ बचपन से ! माँ बाप सबेरे ही निकल जाते हैँ मजदूरी पे ! घर के काम के साथ साथ पढ़ाई में भी बहुत होशियार हैँ छोरी !
बचपन से देखता आ रहा हूँ कभी बच्ची सी तो लगी ही नहीं हमारी बांसुरी लाली ! बस माँ की तरह अपने भाई बहिनों की सेवा में लगी रहती हैँ ! आ जाती हैँ कभी कभी मेरी दुकान पर भी – काका ,,आटा ,चीनी दे देना ,,अम्मो शाम को आयेगी तो पैसे दे जाऊंगी ! मुझे भी तरस आ जाता हैँ ,,एक किलो की जगह बढ़ा कर ही देता हूँ सामान कि कल फिर आयेगी लेने ,,दो दिन का गुजारा तो हो ही जाये ! इतना कहते कहते काका की आँखों से आंसू लुढ़क गए !
जमींदार – तो छोरी का नाम बांसुरी हैँ बड़ा ही प्यारा नाम हैँ ! हैँ भी बहुत समझदार !
काका – हाँ सेठ जी ,,मुझे तो बस यहीं चिंता खाये जाती हैँ ! कहीं इसका बाप इसे मजदूरी के काम में ना लगा दे ! मुझसे कह रहा था ,,अब बांसुरी बड़ी हो गयी हैँ ,,बहुत कर ली पढ़ाई लिखाई ,,हमारा हाथ बंटायेगी !
तब से सोच रहा हूँ अभी तक तो चुल्हे चौके तक ही सीमित थी बांसुरी ,अब मजदूरी भी करनी पड़ेगी बेचारी को छोटी सी उमर में !
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इतना सुनकर जमींदार कुछ सोच में पड़ गया ! सोचने लगा पिछली साल ही उनकी पत्नी उन्हे छोड़कर परलोक सिधार गयी ! तीन छोटे छोटे बच्चे ,,एक 6 साल का ,एक 5 साल का ,एक दो साल का इनके सहारे छोड़ गयी ! कई नौकरानियां ,आया रख ली बच्चों की देखभाल के लिए पर कोई बच्चों को ठीक से संभाल नहीं पायी !!
वो काका से बोले – क्यूँ ना तुम बांसुरी के पिता जी से बात करो कि बांसुरी को मजदूरी पर ना भेजकर हमारे यहाँ काम पर भेज दे ! घर का कोई काम नहीं करें ,,बस मेरे बच्चों की देखभाल कर लिया करें जैसे अपने भाई बहनों की करती हैँ ! इस लड़की का ये मात्रत्व रुप मन को भा गया हैँ !
काका – माई बाप बात तो आप सही कह रहे हैँ ,,पर कहने के लिए क्षमा मांगता हूँ ! पर छोटा मुंह बड़ी बात क्यूँ ना आप हमारी बांसुरी बीटिया से ब्याह कर लो ! बच्चों को माँ मिल जायेगी और आपको सहारा !! आपकी सारी उम्मीदों पर खरा ऊतरेगी ! हीरा हैँ हमारी बांसुरी !
जमींदार – आप ऐसा सोच भी कैसे सकते हैँ ,,मैं तो सपनों में भी नहीं सोच सकता ऐसा ! वो मेरी बेटी की उम्र की हैँ !
काका – बात तो आप सही कह रहे हैँ ,,पर इसका बाप कोई अच्छा रिश्ता तो खोज ना पायेगा इसके लिए ! पता नहीं कहाँ कहाँ दर दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी बेचारी को ! आप जानते नहीं इसके माँ बाप के मजदूरी पर जाने के बाद गांव के भूखे भेड़ियें कैसी कैसी नजर रखते हैँ इस पर ! वो तो मेरी दुकान घर से लगी हुई तो नजर रखें रहता हूँ
कुछ अनर्थ ना हो जायें इसके साथ ! सयानी जो हो गयी हैँ ! मै भी किस किस से बचाऊंगा इसे ! आप सज्जन आदमी हैँ ,,पूरा विश्वास हैँ आप पर ,,रानी की तरह रखेंगे उसे !
जमींदार – ठीक हैँ अगर आपको ये उचित लगता हैँ तो बात कर लिजिये बांसुरी के पिता जी से !
काका – ये हुई ना बात ,,वो कौन सा मना करने वाला हैँ ! उल्टा खुश ही होगा कि चलो एक मुसीबत टली !
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काका ने बांसुरी के माँ बाप से बात कि वो झट से तैयार हो गए ! ब्याह हो गया छोटी सी उम्र में बेचारी का ! अपने भाई की याद में ससुराल में बहुत रोती बांसुरी ! जमींदार जी से देखा नहीं गया ! वो उसके भाई को भी अपने घर ले आये ! बांसुरी कुल मिलाकर ससुराल में सबका बहुत ख्याल रखती ! जमींदार के बच्चों की तो वो जान बन गयी थी !
पूरे दिन बच्चों के पींछे पींछे भाग भागकर बेचारी बहुत थक जाती ! जमींदार जी बहुत समझदार आदमी थे,कभी उसे पत्नी की नजरों से नहीं देखा ! उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देते ! घर की ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए बांसुरी 23 साल की हो गयी ! अब बांसुरी समझने लगी थी की वो शादी शुदा महिला हैँ ! उसका मन भी इस उम्र में एक पति के प्यार की चाह रखने लगा था !
पर वो भी समझती थी जमींदार जी उसे पत्नी बनाकर नहीं उनके बच्चों की माँ के रुप में लाये हैँ ! बांसुरी का एक देवर हैँ जो उसे बहुत मानता हैँ ,,बहुत छोटा था जब बांसुरी घर में आयी थी ,अब तो सोलह साल का हो गया हैँ !
बस बांसुरी जन्म से लेकर अब तक बस अपने माँ बाप की ,जमींदार जी की ,अपनी सास की ,अपने बच्चों की ,सभी की उम्मीदों पर खरा उतरती आ रही हैँ ! पर उसकी भी तो कुछ उम्मीदें हैँ ! कहने को तो किसी चीज की कमी नहीं हैँ उसके पास ,,पर फिर भी एक खालीपन हैँ ! काश कोई उसे भी समझने वाला होता ! उसकी भी जीवन में ख्वाहिशें थी ,शायद पढ़ लिखकर कुछ बन जाती
पर नियति से कोई नही जीत सकता ! ऐसी बहुत सी बांसुरी हैँ इस समाज में जिनकी इच्छायें शायद उनके साथ ही चली जायेंगी !! शायद इस कहानी के अंत से आप संतुष्ट नहीं होंगे ! पर ये आँखों देखी कहानी हैँ ! वैसे आपको इस कहानी का अंत कैसा अच्छा लगता ,,बताईयेगा ज़रूर !!
स्वरचित
मौलिक अप्रकाशित
मीनाक्षी सिंह
आगरा