अजनबी दोस्त – गीता वाधवानी

अश्विनी ने जोर से आवाज लगाई और हाथ भी हिलाया, उसके साथ साथ और कई लोग भी जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे, पर वह किसी की भी नहीं सुन रहा था। कानों में ईयर फोन लगाए गाने सुनता हुआ, आंखें नीचे किए मस्ती में रेल की पटरी पर चलता जा रहा था। अपनी तरफ बढ़ती हुई मौत से अनजान। 

       रेलगाड़ी धड़धड़ाती हुई उसकी तरफ बढ़ती आ रही थी। आखिरकार अश्विनी ने और कोई चारा ना देखकर प्लेटफार्म से पटरी पर छलांग लगाई और बिजली की गति से दौड़ता हुआ उस व्यक्ति के पास आया और उसे खाली पटरी की तरफ जोरदार धक्का दिया। वह व्यक्ति खाली पटरी पर गिर पड़ा। अश्विनी भी भागा पर ट्रेन की चपेट से गिरने से खुद को बचा ना सका और उसकी दोनों टांगें ट्रेन के नीचे आ गई। 

     भीड़ एकत्र हो गई लोगों ने देखा कि अश्विनी की दोनों टांगे कट चुकी थी। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि किसी की समझ में कुछ नहीं आया। अश्विनी बेहोश हो चुका था। लोग उसे पास के अस्पताल में ले गए। डॉक्टर ने तुरंत उसे इंजेक्शन लगाया था कि उसके शरीर में जहर ना फैले। उसकी दोनों टांगों का ऑपरेशन जरूरी था। 

उसके फोन से कॉल करके उसकी मां और उसकी छोटी बहन को बुला लिया गया था। दोनों का रो-रोकर बुरा हाल था। वह व्यक्ति जिसकी जान अश्विनी ने बचाई थी, वह समीर था। वह बहुत शर्मिंदा था कि उसकी लापरवाही के कारण इतना बड़ा हादसा हो गया था। अपनी मां और छोटी बहन का एकमात्र सहारा था अश्विनी। मां के सामने बच्चे का ऐसा हाल हो तो कौन सी मां को बर्दाश्त होगा। 




थोड़ी देर बाद अश्विनी को होश आया। उसे होश में आया देखकर समीर उससे मिलने के लिए गया। 

समीर-“भाई, मैं तो आपके लिए अजनबी था, फिर आपने मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में क्यों डाली? यह दुर्घटना मेरी लापरवाही की वजह से आपके साथ हुई है। मुझे माफ कर दो भाई। आपने एक अजनबी को बचाने के लिए अपनी मां और छोटी बहन के बारे में भी नहीं सोचा। बाहर बैठी आपकी मां और बहन कितना रो रही है।” 

अश्विनी दर्द से कराते हुए-“दोस्त, मुझे लगता है कि मैं बचूंगा नहीं। मुझे अपनी चिंता नहीं है मुझे तो मां और मेरी छोटी बहन टीना की चिंता सता रही है। अब उन्हें कौन” सहारा “देगा?”अश्विनी से बोला नहीं जा रहा था उसके होंठ भी सूख चुके थे। 

समीर-“(अश्विनी का हाथ अपने हाथों में लेकर) सुनो मेरे अजनबी दोस्त, मैं तो अनाथ हूं। मैं अभी से तुम्हारी मां और बहन की जिम्मेदारी लेता हूं। वह मेरी मां और बहन है। जीवन भर उनकी सेवा का वचन मैं तुम्हें देता हूं। तुम बिल्कुल चिंता मत करो और हां, यह मरने  की बातें मत करो। तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे और फिर हम दोनों मिलकर मां की सेवा करेंगे।” 

अश्विनी हल्का सा मुस्कुराया और फिर बेहोश हो गया। अगले दिन जब उसकी आंखें खुली तो उसका ऑपरेशन हो चुका था। समीर ने सब कुछ संभाल लिया था। ठीक होकर व्हील चेयर पर बैठने में पूरे 2 महीने का वक्त लगा था अश्विनी को। इस बीच समीर ने मां और टीना, घर का खर्च और अस्पताल का खर्च सब कुछ अच्छे से संभाल लिया था। समीर और अश्विनी अब “अजनबी दोस्त “से भाई बन चुके थे।

#सहारा 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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