ऐसे शब्द सुनकर मेरा खून खौल गया – के कामेश्वरी : Moral stories in hindi

कौशल्या कल मेरी बहन दो महीने के लिए अपने घर आराम करने के लिए आ रही है । उसकी तुम्हें अच्छे से देखभाल करनी है । इतना याद रखना कि वह यहाँ आराम करने के लिए आ रही है । वह बारंबार आराम पर ज़ोर दे रहा था । 

कौशल्या ने कुछ नहीं कहा जल्दी से सबके लंचबॉक्स रखकर सास का खाना टेबल पर रख अपना लंचबॉक्स लेकर चली गई । सौरभ से सावित्री ने कहा कि देख महारानी बिना जवाब दिए कैसे चली जा रही है । मुझे मालूम था मेरी बेटियों को देखते ही इसका मूड ऑफ हो जाता है ।

माँ आप भी जब भी बहनें आतीं हैं वही तो काम करती है । ज़बरदस्ती उसे कुछ भी कहती रहती हो । 

कौशल्या का स्कूल यहाँ से बहुत दूर है उसे पाँच मिनट भी देर हुई तो उसकी बस छूट जाती है । इसलिए भागते हुए बस वह स्टॉप पर पहुँचती है । उस दिन स्कूल में भी उसका दिल नहीं लग रहा था । वह बार बार यही सोच रही थी कि सौरभ की बहनें आए दिन आराम करने के लिए मायके आ जाती हैं । उसे उनके काम और स्कूल के काम करते हुए थकान हो जाती थी । 

घर में उसके बारे में सोचने वाला कोई भी नहीं है । 

शीला अपने बच्चों के साथ आई और दो महीने भाई के घर पर रहकर अपने घर वापस चली गई ।  

इन दो महीनों में कौशल्या की क्या हालत हुई घर में किसी ने भी सोचने का प्रयास तक नहीं किया था । 

उस दिन कौशल्या ने घर में कदम रखा तो देखा कि पति सौरभ , बेटी दीपिका जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी और आदित्या जो इंजीनियरिंग कॉलेज में दाख़िला लेने वाला है तीनों बैठकर आराम से टी वी देख रहे थे । सास कल ही अपनी छोटी बेटी के साथ रहने के लिए उनके घर गई है । कौशल्या ने सबको संबोधित करते हुए कहा कि मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहती हूँ । 

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तीनों ने एक साथ कहा कि अभी हम व्यस्त हैं कल बात करेंगे । 

कौशल्या ने कहा कि कल मैं नहीं रहूँगी ? सौरभ ने पूछा कि कहाँ जा रही है गाँव जा रही है क्या ? मुझे बताना ज़रूरी नहीं समझा है क्या ? 

बच्चों ने कहा कि माँ आप चली गई तो घर पर काम कौन करेगा । 

कौशल्या को हँसी आई । उसने कहा कि मैं पी जी एकामिडेशन में रहने जा रही हूँ । वहाँ थोड़े दिन रहकर स्कूल के आसपास ही घर ले लूँगी ।

कौशल्या के मुँह से इन शब्दों को सुनकर सौरभ का खून खौल उठा । उसने आवाज़ ऊँची करके कहा कि तुमने इतना बड़ा फ़ैसला ले लिया है और मेरी राय तक नहीं ली है । 

तुम्हें हो क्या गया है ऐसी कौनसी तकलीफ़ है जो घर छोड़कर जाना पड़ रहा है ।

कौशल्या ने कहा कि मैं अब घर और स्कूल का काम नहीं कर पा रही हूँ । मुझसे नहीं हो रहा है । अपनी सेहत का ख़्याल मैं नहीं रखूँगी तो बाद में मुझे ही सहना पड़ेगा। 

इसलिए मैंने सोच लिया है कि मेरा ख़याल मैं खुद रखूँगी । आपने भी तो इस घर को ख़रीदने के पहले मेरी राय नहीं जानी थी । मैं तो जाने के पहले बता रही हूँ आपने तो यहाँ आने के एक दिन पहले मुझे बताया था । 

सौरभ— मैं तो सब हमारे भले के लिए ही सोच रहा था । बच्चे और मेरे ऑफिस यहाँ से नज़दीक पड़ता है इसलिए लिया है । 

कौशल्या- वही तो कह रही हूँ मैं कि हमारे में मैं कहाँ हूँ । मैं सुबह से लेकर रात को सोने तक आप लोगों के लिए काम करती आई हूँ । आप लोगों ने कभी मेरे लिए कुछ किया है यह अपने दिल से पूछिए । 

सौरभ- तुम ऐसे घर से चली गई तो कैसे चलेगा बच्चे अभी छोटे हैं ।

वाहहह बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं ।  अपने काम खुद कर सकते हैं और आप कहते हैं कि बच्चे छोटे हैं।

आप लोगों को अगर मेरे साथ आना है तो आ सकते हैं परंतु वहाँ मेरे अनुसार रहना पड़ेगा । 

दीपिका ने कहा कि आपके अनुसार मतलब?

तुम लोगों को भी मेरी मदद करनी पड़ेगी । 

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माँ रात को पढ़ाई करने के बाद मैं सुबह नहीं उठ सकती हूँ दीपिका ने कहा । आदित्या कहने लगा कि आप सारे काम कर लेती हैं क्योंकि आपको सारे काम आते हैं ।  हम से नहीं होता है। कौशल्या ने हँसते हुए कहा कि आदित्या काम करते रहने पर अपने आप आ जाता है । 

सौरभ कहने लगा कि मुझे एक बात समझ में नहीं आती है कि सारी औरतें खाना बनाना और घर के काम करती है । तुम अकेले ही नहीं हो जो यह काम कर रही हो । हाँ अगर तुम काम नहीं कर सकती हो तो एक खाना बनाने वाली बाई को रख लेते हैं ताकि तुम्हें भी आराम मिल जाए । 

पिताजी की बात सुनकर आदित्या को वह दिन याद आया जब माँ बहुत बीमार थी और घर के काम नहीं कर पा रही थी तो उन्होंने एक खाना बनाने वाली बाई को रखना चाहा तो दादी ने बहुत तमाशा किया था कि कुकर रखना और सब्ज़ी बनाना बहुत बड़ी बात नहीं है । हम लोगों की कोई फ़रमाइश भी तो नहीं है जो खिलाती हो वही खा लेते हैं । ऐसा कहने वाली दादी ने कभी एक दिन भी कुकर चढ़ाने की कोशिश भी नहीं की थी ।

पिताजी ने भी अपनी माँ की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि तुम ही अच्छा खाना बनाती हो और किसी के हाथ का बना खाना हमें पसंद नहीं आता है। 

ऐसा कहने वाले पिताजी ने कभी एक कप चाय भी खुद लेकर नहीं पिया है। इसलिए इस बार माँ अपनी बात पर अडिग है । 

उसने माँ की तरफ़ मुड़कर कहा कि माँ मैं आपके साथ चलने के लिए तैयार हूँ । आप आराम कीजिए मैं आपकी मदद करूँगा कहते हुए कमरे में चला गया था । 

अब कमरे में बाप बेटी ही बच गए थे। 

कौशल्या को ग़ुस्से से देखते हुए सौरभ ने कहा कि मेरी माँ ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है पर कभी उफ तक नहीं की है और तुम बवाल खड़ी कर रही हो ।

दीपिका ने कहा कि पापा प्लीज़ आप माँ की तुलना दादी से कैसे कर सकते हैं । दादी तो घर में रहती थी जबकि माँ बाहर नौकरी भी करती है ।

मैं आप दादी हम सबने माँ के साथ गलत किया है । मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है । मैं माँ के साथ जा रही हूँ । 

सौरभ अकेला ही बैठक में रह गया था। वह भी सोचने के लिए मजबूर हो गया था । ऑफिस पहुँच कर भी उसके मन में विचारों का ताँता लगा रहा । 

अंत में उसने कुछ सोचा और जल्दी से ऑफिस से बाहर चला गया ।

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सौरभ रात को घर पहुँचा और उसने सबको बैठक में बुलाया तो आदित्या पानी का गिलास लेकर आया और दीपिका सबके लिए चाय बना लाई । कौशल्या के आते ही सौरभ ने उससे कहा कि आज मैंने तुम्हारे स्कूल के पास दो फ़्लैट देखा है कल हम सब जाकर देखेंगे जो पसंद आए उसमें शिफ़्ट हो जाएँगे । कौशल्या मैं भी तुम्हारे साथ हूँ । 

दीपिका ने कहा कि मेरी एक राय है सबने कहा कि बोल क्या बोलना है । 

हम इसी घर में रहेंगे पर खाना बनाने वाली बाई को रख लेते हैं । माँ को बस स्टाप तक जाने के लिए ऑटो रख लेते हैं ।

सौरभ ने कहा कि ऑटो की ज़रूरत नहीं है मैं ड्रॉप कर दिया करूँगा । इस तरह से सबने मिलकर कौशल्या की तकलीफ़ को पहचानने की कोशिश की और उसे दूर करने में उसका साथ दिया । 

दोस्तों माँ की तकलीफ़ को बच्चे और पति नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा । 

उन्हें अपना समझिए और उनकी मदद कीजिए । जब औरत नौकरी कर सकती है तो पुरुष घर के कामों में हाथ क्यों नहीं बँटा सकता है । 

के कामेश्वरी

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