अहमियत रिश्तों की (भाग-5) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

अब आगे …

जैसे ही प्रथम  बाहर प्लेटफार्म  पर आया….

उसके भईया  पिंटू और वह उतरे ही थे …

कि तभी सामने से एक आदमी ,एक लड़की आए…

लड़की बोली…

हेलो प्रथम जी….

मैं निहारिका…

प्रथम एक पल को तो आश्चर्य में रह गया…

कौन निहारिका…??

उसके मन में एकदम से  सवाल कौंधा ….

शायद प्रथम जी  आपने मुझे  पहचाना नहीं….

मैं वही निहारिका हूँ…

जिसका बैग आपके पास रह गया…

और आपका बैग मेरे पास …

पिंटू भाईसाहब प्रथम की ओर देख रहे थे…

कि इस अनजान शहर में प्रथम को जानने वाला कौन मिल गया…

यह कौन है रे छोटे …??

धीरे से पिंटू बोला..

वो भईया मैं  बाद में बताता हूं …

प्रथम बोला …

हां जी निहारिका जी …

लेकिन आपको कैसे पता कि मैं आ जा रहा हूं ….

मैंने ऐसा  कुछ तो चिट्ठी में लिखा नहीं था….

प्रथम बोला ….

जी देवेश  ने बताया ये जो मेरे साथ में है ….

ये  रेलवे में काम करते हैं…

मैंने  इनसे पूछा था कि आपके शहर से बेंगलुरु आने वाली गाड़ी हफ्ते में तीन दिन ही चलती है…

जिस दिन भी प्रथम नाम का कोई भी लड़का आए …

तो आप थोड़ा नाम चेक करके मुझे बता दीजिएगा…..

बस इन्होंने चेक करके मुझे बता दिया ….

और मुझे पता था की प्रथम आप ही होंगे….

आपका नाम ही ऐसा है …

जो बहुत  ही कम सुनने को मिलता है….

क्या आपने देखा नहीं था चिट्ठी पर मेरा पता बेंगलुरु का ही लिखा हुआ था….

निहारिका बोली …

जी इतना ध्यान नहीं दिया….

प्रथम मुस्कुरा गया…

अब प्रथम ने निहारिका  की ओर ध्यान देना शुरू किया….

कम उम्र की ,,बहुत ही सुंदर,,गोरा रंग,,तीखे नैन नक्श,,कुल मिलाकर निहारिका एक खूबसूरत लड़की थी …

जिस पर किसी की भी निगाह चली जाए ….

लेकिन प्रथम के मन में अभी सवाल चल रहा था…

कि निहारिका के साथ आने वाला आदमी कौन है ….

लेकिन उसकी इतनी हिम्मत कहां…

कि  वह पूछ सके कि यह कौन है तुम्हारे साथ…

लीजिये  निहारिका जी अपना बैग….

प्रथम ने कहा…

जी लाइए….

प्रथम ने निहारिका का बैग उसकी ओर बढ़ा दिया…

और निहारिका ने प्रथम का बैग दे दिया…

तो तुम लोगों के बैग एक दूसरे से बदल गए थे ….

पिंटू बोला …

बताओ ये भी क्या बात हुई  कि  बैग  इतना दूर जाकर के हमारे शहर में बदले…

और मिल  आज यहां पर रहे हैं …

सच में यह दुनिया गोल ही है …

गलत नहीं कहा गया है ….

अच्छा चल छोटे…

चलते हैं …

तेरे कॉलेज भी तो पहुंचना है…

नहीं तो शाम हो जाएगी ….

पिंटू बोला …

और अभी तो पता भी नहीं है….

कि कहां रुकना है..

कैसे करना है सब  …

सामने खड़ी निहारिका बोली…

आपको ऐतराज ना हो तो आप लोग हमारे घर पर रह  सकते हैं….

जब तक आपको कोई अच्छा कमरा नहीं मिल जाता …

क्यों देवेश  यह हमारे घर रुक सकते हैं ना …??

हां हां  क्यों नहीं…..

तुम्हारा  बैग  दे दिया है  इन्होने……

अब  हमारे मेहमान है ये…

हमारे शहर में आए हैं….

देवेश बोला…

प्रथम ने कहा कि  खुशी हुई जानकर कि आप लोग  बेंगलुरु के हैं….

पिंटू प्रथम की ओर देखकर घूर  रहा था …

कि इसमें प्रथम को क्या खुशी हो रही है…

छोटे यहां तू  पढ़ाई करने आया है …

समझ रहा है ना …

पिंटू सख्त लहजे में प्रथम से बोला …

प्रथम ने अपना सर नीचे कर लिया…

जी आप लोग जाइए…

हमारी वजह से परेशान मत होईये…

हम लोग कमरा  देख लेंगे…

पिंटू ने कहा …

जैसी आपकी मर्जी…

लेकिन बस आप लोगों को परेशानी ना हो ..

मैंने  तो इस वजह से कहा…

कोई दिक्कत हो तो आप मेरा नंबर ले लीजिए …

मैं आप लोगों की व्यवस्था करवा दूंगा…

देवेश बोला…

प्रथम का मन  तो हुआ कि निहारिका का नंबर मिल जाता….

लेकिन वो चुप रहा….

हां जी बताइए…

प्रथम ने देवेश का नंबर अपने फोन पर सेव कर लिया …

एक दूसरे को प्रणाम कर विदा लिया उन लोगों ने…

प्रथम अभी भी पलट कर निहारिका की ओर देख रहा था….

कि शायद निहारिका भी उसको  पलट कर देखें …

वह दो-तीन कदम बढ़  रहा था…

पिंटू आगे की तरफ बैग टांगे  तेज रफतार से बढ़ रहा  था…

प्रथम का  दिल जोर से धड़क रहा था…

कि क्या सच में सिर्फ निहारिका मेरा बैग  देने आई थी ….

उसे  मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं…

फिर से प्रथम पलटा …

अभी भी निहारिका  चलती जा रही थी …

प्रथम की निगाह निहारिका की ओर से जा नहीं रही थी…

तभी अंत में निहारिका ने भी पलट कर देख लिया….

और प्रथम को देखकर मुस्कुरा दी…

उसने बाय-बाय करते हुए अपना हाथ हिलाया….

प्रथम  की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था ….

पिंटू और प्रथम कॉलेज आ चुके थे…

बहुत ही बड़ा कॉलेज था…

पिंटू कॉलेज को देखकर अचंभित रह गया …

अरे छोटे …

इतना बड़ा कॉलेज तो मैंने अपने जीवन में ना देखा…

तू कैसे पढ़ाई करेगा यहां…

देख कैसे एडवांस बच्चे हैं…

छोरियां  कैसे छोटे-छोटे कपड़ा पहन के घूम रही  हैं …

यहां तो लड़के भी नाक में और कान में पहने हुए हैं ….

अरे भईया  यहां  ऐसा फैशन है….

तू मत पड़ जइयो  इन सब फैशन में …

पिंटू बोला …

अरे नहीं नहीं भईया…

ये बता  तू उस लड़की से इतनी ज्यादा बातचीत क्यों कर रहा था…..

समझ ले तू बाऊजी ने बड़े विश्वास से भेजा है तुझे ….

अच्छे अच्छे  फिसल जाते हैं …

बहुत से देखे हैं…

समझा …

नहीं भईया…

विश्वास कीजिए…

आपका प्रथम पढ़ने आया है…

पढ़कर ही जाएगा यहां से …

प्रथम और पिंटू कॉलेज में आकर सारी औपचारिकताएं पूरी करने लग गये…

कॉलेज की फीस वगैरह का,,,कहां पर किस तरह क्लासेस शुरू होगी…

उन्होंने वहां के हॉस्टल का भी जायजा लिया….

लेकिन सच में हॉस्टल बहुत ही महंगा था …

तो बता छोटे …

अगर तू कहे तो हॉस्टल में ही रह ले ….

यहां पर सुविधाएं तो सारी है …

तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा…

बस पढ़ाई करनी है…

और खाना खाना है …

नहीं भईया इतने में तो मैं यहां के एक साल के खर्चे में 4 साल का खर्च  बाहर रहने का निकाल लूंगा…

चल फिर …

बाकी और किसी से बात करते हैं…

वहां कोई कैमरा देखते हैं …

वहां हर जगह पर रेंट के लिए कमरा खाली है…

सेल फॉर रेंट …

कई रूम उन्होंने देखें …

अब उन्हे भूख  भी लग चुकी थी …

होटल में खाना खाकर आये दोनों…

फिर किसी तरह एक घर दिखाई पड़ा….

जो पीजी  की तरह था…

वहां जाकर उन्होंने पता किया…

तो यह उनके बजट में था…

भईया  ठीक है फिर…

मैं यहीं पर रुक जाता हूं…

हां हां बिल्कुल…

यह सही रहेगा …

वहां पर उन्होंने पैसे जमा किए …

और उन्हें कमरे की चाबी थमा दी गई उनको …

एग्रीमेंट हुआ…

आधार कार्ड की  कॉपी जमा हुई …

प्रथम और पिंटू कमरे में आ चुके थे ….

दोनों थक के चूर हो चुके थे …

आराम करने लगे…

अगले दिन सुबह…

अच्छा  छोटे  तो मैं  चलता हूं अब …

अच्छे से रहना  तू यहां…

तेरी सारी व्यवस्था हो गई है…

जो भी समस्या हो बता दिया करना …

वैसे तो यहां पर भी बिल्कुल हॉस्टल जैसी  सुविधाएं हैं …

खाना पीना तो बनाना नहीं पड़ेगा ….

भईया आपकी बहुत याद आएगी..

चुप कर …

याद आएगी…

ज्यादा याद  मत करना किसी को …

पिंटू का मन भी पिघल रहा था …

उसने प्रथम को गले से लगा लिया…

प्रथम बाहर तक आया….

भईया  आपको स्टेशन तक छोड़ आता  हूं…

अरे नहीं रे छोटे …

तू  अपना काम देख …

यहां से  ऑटो में बैठ जाता हूं …

पहुंच जाऊंगा…

जैसी आपकी मर्जी भईया…

प्रथम ने पिंटू के पैर छुए…

दोनों ही भाइयों की आंखें नम थी…

प्रथम अपने कमरे में आ गया…

उसका मन बिल्कुल भी नहीं लग रहा था…

उसने अपनी मां से बात करी …

मां प्रणाम …

कैसी हो मां …??

मैं तो बढ़िया हूं लाल…

तू बता …

तू कैसा है …??

सही से पहुंच तो गया ना…??

हां मां पहुंच गया सही से …

बाऊजी  और बाकी सब लोग घर में कैसे हैं …??

किसी ने मुझे ज्यादा याद तो नहीं किया …

नहीं नहीं..

सब अपने काम में व्यस्त  हो गए …सिवाय मेरे….

तू  कोई फिक्र मत कर…

अच्छे से वहां पर  रह रहा है ना…??

हां …

मुझे कोई दिक्कत नहीं है …

इससे पहले की संतोषी जी अपनी बात पूरी करती…

दीनानाथ जी ने अपने हाथ में फोन ले लिया….

प्रथम के कमरे  में एक लड़का दौड़ता हुआ आया …

ए भाई …

यहां से सामान लेकर के नौ दो ग्यारह हो जा…

पुलिस की रेड पड़ी है …

प्रथम घबरा गया …

बाऊजी मैं आपसे बाद में बात करता हूं…

घबराते हुए प्रथम ने फोन रख दिया …

दीनानाथ जी भी  बहुत घबरा गये  कि अचानक से फोन कैसे रख दिया प्रथम ने …

जल्दी से अपना सामान समेट  प्रथम  बाहर आ गया …

यह क्या …

पुलिस ने प्रथम को पकड़ लिया था…

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