अहमियत रिश्तों की (भाग-4) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

अब आगे…

घर में सभी की आंखें नम देखकर दीनानाथ जी बोले….

ए रे  लला….

मुझे कुछ ठीक ना लग रहा …

तू यहां से पढ़ाई काहे   ना कर रहो …?

कहीं दूर काहे जाये  रहो  है…??

पूरा घर सुनो है जाएगो….

क्या  बाऊजी जाते-जाते क्यों छोटे को  इमोशनल कर रहे हैं….

दिल मजबूत करके उसे भेजिए…

जीवन में कुछ करना है तो उसे जाना ही होगा….

यहां तो सब लोग ऐसे ही लफंगा गिरी कर रहे हैं…

और इधर-उधर घूमते रहते  हैं ….

रिंकू बोला…

बात तो ठीक ही बोली रिंकू तूने …

दीनानाथ जी बोले …

ठीक है लेकिन अब कोई भी लला को देखकर के रोएगा नहीं…

सुबह-सुबह अच्छे से भेज़ियो…

रोना कोई अच्छी बात नहीं …

संतोषी जी को और बाकी घर वालों को समझाते हुए दीनानाथ जी बोले ….

जी,,मैं कहां रो रही….

बस वही लाल को याद करके नेक मन दुखी सो  है जावे है…

दुखी मत हो…

आए जाएगो  कछु दिनों में ….

रोज तू वह का कहते,,

फोन पर वीडियो कॉल कर लो करियो…

और बात कर लियो …

ए रे प्रथम,,दिन में सात आठ बार तो तू  बात कर ही लेगो ना??

संतोषी जी बोली…

क्या मां …??

तुम भी ऐसी बात करती हो…

वहां पढ़ाई करने जा रहा है छोटे कि तुमसे बात करने …

मिंटू बोला…

अच्छा चलो …

सो  सब  लोग अपने कमरे में जाये के…

सवेरे 4:00 बजे  उठनो  है ….

5:00 बजे लला  जाएगो…

ना, ना बाऊजी …

हमें तो 3:00 बजे ही उठना होगा …

भईया  के लिए खाना   पीना जो बनाना है …

करेला , मठरी,,सब तो बन गई है …

बस सुबह पूरी और सब्जी बना देंगे …

और जो भईया  कहें …

ना,,ना..भाभी …

इतना बहुत है….

प्रथम ने कहा..

सभी लोग अपने-अपने कमरे में जाकर के सो गए…

प्रथम का कमरा आज खुला था …

दीनानाथ जी का मन भी बहुत ही व्याकुल हो रहा था…

उन पर ना रह गया …

तो चुपचाप से संतोषी जी को देखकर कि वह सो रही है …

उठ करके आए …

और प्रथम के पास आकर बैठ गए …

उसके सर पर हाथ फेरा,,उसके गालों पर हाथ फेरा …

और बंसी वाले को देख बोले ,भगवान मेरे  लाल को अच्छे से रखियो  ….

यह क्या ,,

तभी  संतोषी जी भी आ गई…

मैं तुमको ढूंढ रही…

तुम कहां चले गए…

फिर  लगी तुम यही आए होंगे …

सबको तो हिम्मत बंधाते हो….

और खुद  कैसे होये  रहे हो…

देखो …

चल ..

चुप कर…

ज्यादा पटर – पटर ना कर….

छोरा सो रहा है …

दीनानाथ जी और संतोषी जी वहां से चलने लग गए…

तभी प्रथम ने दीनानाथ जी का हाथ पकड़ लिया…

मैं नहीं सो रहा बाऊजी…

बाबूजी आपको लगता है …कि मुझे भी आज़ नींद आयेगी क्या…

आपके  स्पर्श से ही मैं जाग जाता हूं…

आप और सभी लोग परेशान मत होइए …

मैं जल्दी ही आ जाऊंगा …

मुझे पता है …

आप सब मुझे बहुत प्यार करते हो …

प्रथम दीनानाथ जी के गले से लग गया…

वो भी उस पर ममता लूटाने लगे …

संतोषी जी भी बोली …

लाल ..

अच्छा ..

अब तू सो जा …

नहीं तो पूरी रात तेरी ऐसी ही चली जाएगी…

दोनों लोग बाहर आ गए….

सुबह हो चली थी…

घर की बहुयें जल्दी उठ करके नहा धोकर रसोई घर में अपने देवर के लिए तरह-तरह के खाने बना रही थी….

जल्दी-जल्दी डब्बों  में ठंडा करके उन्हें पैक कर रही थी…

तभी पिंटू ने गाड़ी निकाली…

चल रे  प्रथम…

हो गया तैयार तू…

5:45 की गाड़ी है …

जाने में ही आधा घंटा लग जाएगा …

हां भईया ,,मैं तैयार हूं…

चलिए…

पूरा घर प्रथम  को गेट पर करने आया …

सात – आठ बैक थे…

सभी को धीरे-धीरे करके गाड़ी में एडजस्ट किया गया….

प्रथम ने सभी घरवालों  के पैर छुए …

भईया अच्छे से जाना…

कविता पीछे से दौड़ती हुई आई…

उसके हाथ में निहारिका का बैग था …

यह तो  मैं भूल ही गय़ा था…

थैंक यू छोटी …

अच्छे से रहना …

खूब मन लगाकर पढ़ाई करना …

प्रथम ने छोटी से कहा…

उसने संतोषी जी के पैर छुए…

संतोषी जी ने  माथे को चूम लिया प्रथम के…

और उसे ढ़ेरों  आशीर्वाद दिए…

दीनानाथ जी ने भी बेटे को आशीर्वाद दिया…

आज उनकी आंखों में आंसू नहीं थे…

वह अपने मन को मजबूत कर अपने  बेटे  को भेज  कर रहे थे….

जा रे लला…

मन लगाकर पढ़ …

यहां की  फिकर मत करियो …

यहां सब लोग हैं …

कोनो चीज की ज़रूरत होये तो  बताये  दें…

तेरी एक आवाज पर सब हाजिर है  जाएंगे…

यही तो होता है …

एक बाप ,जो बस इतना कह दे..

मैं हूं ना बेटा  …फिकर क्यूँ करता है …

मन गदगद हो जाता है बच्चों का…

सही कहा ना…

सभी को प्रणाम कर प्रथम पिंटू के साथ निकल आया था,,रिंकु गाड़ी चला जा रहा था …

उन्होंने कुली  कर लिया था…

सामान को अच्छे से रख दिया …

अच्छा भईया  अब आप निकल जाइए…

दोनों लोग बैठ गए …

रिंकु उन दोनों को करने आया था …

आपको ऑफिस के लिए भी निकलना है …

ठीक है  …

तू अच्छे से जाना छोटे…

फोन कर देना पहुंचते ही…

हां भईया..जरूर…

रिंकु ने पिंटू के पैर छुए ….

और वह घर की ओर रवाना  हो गया…

प्रथम तेरी आंखों में आंसू …

तेरी आंखें लाल हो रही है…

पिंटू ने कहा …

नहीं नहीं,,भईया वह तो बस ऐसे ही…

इतनी देर से खुद को संभाले  हुए था …

कोई बात नहीं ..

रो ले..

मन हल्का हो जाएगा…

पिंटू बोला…

सच में भईया  घर छोड़कर जाना आसान नहीं होता …

वह तो है ही …

तभी तो मैं नहीं गया आज तक …

पिंटू की बात सुन प्रथम हंस  पड़ा …

बेंगलुरु आ चुका था…

दोनों भाई धीरे-धीरे करके अपना सामान  बाहर की ओर उतारने लगे …

यह  क्या जैसे ही  उन्होंने स्टेशन पर समान उतारा …

सामने से एक आदमी और एक लड़की उनके  पास आयी….

प्रथम जी..

मैं निहारिका…

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तब तक के लिए जय श्री राधे …

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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