अहमियत रिश्तों की (भाग-1) – मीनाक्षी सिंह : Moral stories in hindi

कहां मर गए सबके सब….??

ओ रे..

पिंटू  मिंटू रिंकु…

कोई ना दिख  रहा…

आज दशहरा है…

ये  ना बच्चों को ले जाएके दशहरा को  मेला दिखाए  लाये….

खुद से ही बड़बड़ाते हुए दीनानाथजी बरामदे में चकरघिन्नी से घूम रहे थे….

ए जी…

क्या हुआ ….??

काहे बड़बड़ा रहे हो अकेले में ….

जब से बुढ़ापा आया है….

तबसे बस ऐसे ही जाने क्या-क्या बोलते रहते हो….

आस  पड़ोसी भी कहने लगे हैं …

दद्दा को क्या हो गया है …

खुद से ही बातें करते रहते हैं…

अगर ऐसा ही रहा…

तो देखना सबरे  बालक मिलकर तुम्हें पागल खाने में भर्ती कराए  देंगे …

कह दे रही …

अपनी इस हरकत से बाज़  आ जाओ ….

दीनानाथ जी की पत्नी संतोषीजी   सरौता से कटहल को काटते हुए बोली….

सबको मैं ही तो पागल नजर आता हूं ….

मेरी बात तो कोई सुनता नहीं…

तो खुद से ही तो बात करूंगा ना….

तुझे पता है ,,,ना दशहरा है आज….

हां…हां …

अच्छे से जानती हूं ….

आज दशहरा है…

तो क्या हुआ….??

दशहरा तो हर साल आता है….

इसमें ऐसे गुस्से वाली कौन सी बात हो गई ….

मोये  यही समझ में ना आ रही ….

संतोषी जी दीनानाथ जी की ओर घूरते हुए बोली….

तभी तीनों लड़के पिंटू, मिंटू ,रिंकु  आ गए….

कहो…

पिताजी …

काहे इतनी देर से दहाड़ रहे…

कोई बात हो गई का…

कुछ नहीं लला…

तू तो अपने पिताजी को  जाने  है…

ऐसे ही बड़बड़ाते रहवे  हैं …

तभी तीनों बहू भी आ गई ये सोच कि शायद पिताजी कुछ पैसा रुपैया दे दे  ….

दशहरा   का त्यौहार है…

हां …

तो पिताजी…

मोये का दे रहे ….

बड़क्की बहू ललिता बोली….

तभी उसके पीछे दोनों देवरानियां  खिसक आई ….

कुछ नहीं कह रहा….

ना कुछ दे रहा मैं ….

त्यौहार है आज…

ये  न बालकों को जाकर कहीं घुमाये लाये सब…

यहीं पड़े हुए हैं सब कमरे में …अपनी लुगाइयों के संग….

नेक  भी शर्म ना है बच्चों के आगे कैसी बात करनी चाहिये…

संतोषी जी मन ही मन  बड़बड़ायी ….

पिताजी…

हम सब नौकरी वाले हैं ….

यही छुट्टियां मिली है …

आराम नहीं करें ,,,तो क्या करें…

और वैसे भी दशहरे  के मेले में  इतनी भीड़ होती है …

वहां कहां बच्चों को ले जाए …

परेशान और हो जाएंगे बालक….

और आए दिन हादसे सुनने को मिलते हैं …सो अलग….

हम तो नहीं जा रहे …..

मंझला बेटा  मिंटू बोला….

हां यही सब सोच  कर सब बैठे रहना ….

एक हमारा बचपन था…

कन्या लांगूर के पैसा इकट्ठा करके बाबा,,अम्मा के संग दशहरा मेला देखने  जाते….

और खूब हुड़दंग मचाते ….

झूला झूलते ,,,ना जाने कितने ही चकिया ,,बाशन  ,,बंदूक लेकर आते …

तुम्हारे बालक का जाने ,,,का होता है मेला…

बस वही फोन में और टीवी में घुसे रहवे  हैं…

तभी सामने से बड़ी सी ऐनक पहने,,उनका पोता बिल्लू आया…

हां और घुस जा फोन में लला….

दीनानाथ जी गुस्से में बोले…

तभी तो इतना बड़ा हंडा  लग गया है…

क्या बाबा ,,,

डिस्टर्ब कर दिया ना आपने…

तभी एक तरफ फोन को पटकते हुए  बिल्लू बोला….

बाकी सब बच्चे भी दौड़ते हुए आ गए…

बाबा चलो ना,,,

आप ही मेला दिखा लाओ हमें….

अभी आप कह रहे थे ना …

मुझ में इतनी दम होती तो दिखा ना लाता बालकों…

जब से इन पैरों ने सहारा देना बंद कर दिया है …

चलना ही  बंद हो गया है…

अपये मेहताई बाप से  क्यों ना कह रहे ….

लाओ बाबा पैसे…

हम सब जाते हैं ना….दीदी घुमा लायेंगी….

ना ,,,हम कहीं नहीं जा रहे…

तुमको लेकर के …

चुपचाप घर में बैठो…

अपना होमवर्क करो …

परसों से स्कूल खुल रहे हैं …

सभी  बहुएं  बच्चों को अपनी तरफ करती हुई बोली ….

हमें तो लगा…

बाऊजी कुछ बताने वाले हैं…

या कुछ देने वाले हैं …

तभी हम लोग आ गए…

चलो री चलो …

रसोईघर में चलो …

खाना बनाते हैं ….

तीनों बहू धीरे-धीरे करके किचन की तरफ खिसकने लगी….

सब रिश्ते स्वार्थी हो गए हैं….

दीनानाथजी बोले….

तभी सामने से घर का सबसे छोटा बेटा  प्रथम आता हुआ नजर आया….

लंबे कद का,,गौर वर्ण का,,बहुत ही सुंदर नैँन   नक्श वाला ,,प्रथम,,जिसकी छवि ऐसी थी …

कि जो भी देख ले…

बस उसको देखा ही रह जाए….

चारों बेटे में शायद सबसे सुंदर नैन नक्श वाला प्रथम ही था…

आ गया तू….

कहां था इतनी देर से…

क्या समझे है  तू छोरा  है …

तो क्या   तू पूरे दिन बाहर रहेगा ….आवारा की तरह घूमेगा ….

दीनानाथजी  प्रथम से बोले…

वो  बाऊजी थोड़ा सा काम था…

इस वजह से बस…

प्रथम बोला …

और अपनी मां से नज़रे चुराने लगा…

जा जा लाल …

अंदर जाकर हाथ मुंह धो ले…

तेरे लिए खाना लगाती हूं….

इस लाल पर तो बड़ा लाड़  आए हैं…

इसे देखते ही तेरे चेहरे पर खुशी छा जावे है….

ऐसो कौन सो काम करो है इसने….

आ जावे है बड़ी ममता लुटावे है….

जी क्यों ना लुटाऊँ ….

बाकी तीनों बेटों के  तो ब्याह हो गए…

उनकी देखभाल करने वाली आय़े  गई है घर में …

लेकिन मेरा यह छोरा तो मेरे ही सहारे है …

इसकी देखभाल तो मैं ही करूं हूं …

ऐसे तो मत कहिए मम्मी जी …

हम लोग भी भईया का पूरा ही ख्याल रखते हैं …

छोटी बहू रजनी सामने से हाथ में साग लेती  हुई आते हुए बोली….

लीजिए मम्मी जी …

बैठी हुई है …

तो साग  को ही काट दीजिए…

उसने साग वहीं पर रख दिया ….

प्रथम कुछ चिंता में था…

जाते ही बिस्तर पर लेट गया…..

तभी उसके बड़े भाई साहब उसके पास आए…

क्या रे छोटे….

कुछ काम बना क्या….??

भईया  बाकी सब तो ठीक है …

सब तैयारी हो गई हैं ,,बेंगलुरु जाने की…

लेकिन अभी तक हमने बाऊजी को नहीं बताई है…

पता नहीं वह इजाजत देंगे भी कि नहीं….

आज तक घर में बाहर पढ़ाई के लिए कोई नहीं गया है तीन पुश्तों से……

तू शांत रह ..

हम सब है ना…

सब तेरा पक्ष लेंगे….

बस आज दशहरा गुजर जाए…

कल ही बात करते हैं पिताजी से…

मेरा तो सोच सोच कर मन घबरा रहा है भईया…

इतने पैसे खर्च हुए हैं आप सबके…

मुझे बाहर पढ़ने को  भेजने के लिए …

कहीं सब पर पानी ना फिर जाए ….

तू शांत रह बस…

अच्छा सोच …

और जा अभी खाना खा ले…

कितना थका हुआ लग रहा है …

उसके सर पर हाथ फेरते हुए बड़े भाई पिंटू चले गए…

तभी प्रथम ने अपना बैग खोला…

उसमें उसे कुछ कागज दिखे …

अरे यह  ब्लैक कलर का बैग मेरा था …

यह किसका बैग आ गया है मेरे पास …

यह तो मेरा बैग नहीं शायद …

जिस दुकान पर मैं मोबाइल खरीद रहा था …

वहां पर भी ऐसा ही एक काला बैग  था …

कहीं गलती से मैंने उस बैग को तो नहीं उठा लिया…

पता नहीं ये किसका बैग है …

प्रथम ने बैग  में से कागजों को देखा…

उस पर एक एड्रेस लिखा हुआ था ….

कोई फोन नंबर नहीं था…

वह बहुत ही चिंतित हो गया ….

उसमें किसी लड़की के बहुत ही जरूरी कागजात थे…

शायद उसकी पढ़ाई लिखाई की  ही डिग्रियां थी…

प्रथम पढ़ाई लिखाई के महत्व को बहुत अच्छे से  जानता था….

क्योंकि वो खुद बेरोजगारी का दंश झेल रहा था …

वह सोचा …

अब इसे किस तरह से भेजा जाए…

आज तो छोड़ो …

कल देखता हूं…

अगला दिन हो चला था…

दीनानाथ जी सुबह उठ चुके थे…

चाय पी रहे थे…

और अखबार को पढ़कर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी …

तभी प्रथम बाऊजी के चेहरे पर आई  मुस्कान को देखकर तीनों भाइयों से बोला…

भईया  ये अच्छा मौका है …

चलिए ना चल कर बात कर लेते हैं …

सभी भाभियों को भी उसने बुला लिया….

आज प्रथम के लिए जीने या मरने वाली बात थी ….

अगर बाऊजी ने उसे हरी झंडी दिखा दी  तो वह पढ़ाई के लिए आगे बेंगलुरु जा सकता था ….

लेकिन दीनानाथ जी भी कम अड़ियल नहीं थे …

बहुत ही मुश्किल था उनको  मनाना…

बाऊजी…

सुनियो ….

देखते हैं ,,अगली कड़ी में…

दीनानाथ जी मानते हैं कि नहीं…

और यह जो लड़की इसके जरूरी कागजात प्रथम के पास आ गए हैं….

यह कौन है .

इसका प्रथम से आगे चलकर क्या कनेक्शन होता है…

यह सब इस कहानी में आपको पता चलेगा…

इस कहानी से जुड़े रहिए…

और अपना प्यार देते रहिए…

आपका  एक लाइक और एक प्रतिक्रिया कहानी लिखने के लिए उत्साहित करती है…

इस समय मंच पर कई कहानियां चोरी हो रही है…

इसलिए ज्यादातर कहानियों में लिंक लगाकर ही दी जाएगी…

कृपया उसे क्लिक करके पढ़ने का प्रयास करें…

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आपकी लेखिका

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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