अहमियत – शिप्पी नारंग : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : “रोशनी”… आवाज आई और सिलाई मशीन पर झुकी रोशनी ने सिर उठाकर सामने देखा उसकी दोनों ननदें.. राखी और शशि खड़ी थी । रोशनी ने उठकर दोनों के पांव छू लिए और उन्हें बैठा कर पानी लेने चली गई । अभी उसकी सासू मां, कृष्णा भी काम से आने वाली थी सो उसने चाय का पानी चढ़ाने का सोचा ही था कि दोनों ननदों ने आवाज देकर बुला लिया और अपने थैले में से चार सूट निकालकर रोशनी के सामने रख दिए

 “रोशनी यह सूट हैं दो दिन में सी कर दे देना हमने करवा चौथ पर पहनने हैं…” “पर दीदी मेरे पास अभी बहुत लोगों के आर्डर पड़े हुए हैं पहले ही सब ने दिए हुए हैं जो मुझे करवा चौथ तक सबको देने हैं तो यह तो नहीं सिल पाएंगे और अभी पिछले महीने ही तो मैंने आप दोनों के दो-दो सूट्स सी कर दिए थे वह पहन लेना यह वाले दिवाली से पहले आपको पक्का दे दूंगी”  

रोशनी ने अभी कहा ही था कि सासू मां कृष्णा ने घर में प्रवेश किया रोशनी की बात उन्होंने सुन ली और एकदम गुस्से में चिल्ला पड़ी “तेरी इतनी हिम्मत कि मेरी बेटियों के काम को मना करें ” “पर अम्मा…” “पर वर कुछ नहीं दो दिन में उन्हें बना कर दे।”

  “अम्मा मेरे पास अभी 8 सूट पड़े हैं सिलने को मैंने अगले हफ्ते तक अपना आर्डर पूरा करना है यह मैं बाद में दे दूंगी ना अभी तो दोनों के पास नए सूट पड़े हैं तो वह पहन लेंगी।”  रोशनी ने बेचारगी से कहा।  “वो सब बाद में भी दे देगी तो कोई आफत ना आएगी पर हमारे तो तुम्हें देने ही होंगे दो दिन में।” दोनों ननदों ने आर्डर दे ही दिया । रोशनी को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे तीनों को समझाएं। 

 रोशनी सिलाई का काम करती थी हाथ में बहुत सफाई थी तो अच्छे से ऑर्डर मिलने लगे थे सासू मां कृष्णा पांच घरों में झाड़ू पोछा का काम करती थी रोशनी का पति राघव एक फैक्ट्री में काम करता था महीने का 18000/- उसे मिल जाते थे । सासू मां को भी 15000/- के करीब मिल जाते थे पर अपनी कमाई का एक भी पैसा वो घर पर नहीं देती थी वो पैसा सिर्फ अपनी बेटियों पर ही खर्च करती थी।

 घर का खर्च राघव को ही चलाना होता था । हाथ हमेशा टाइट ही रहता था क्योंकि तनख्वाह कोई ज्यादा तो थी नहीं लिहाज़ा रोशनी ने पति का साथ देने के सोचा इसीलिए उसने पति और सासू मां की इजाज़त से सिलाई का काम शुरू कर दिया हाथ में बहुत सफाई थी तो काम मिलने लगा और कमाई में भी बढ़ोतरी होने लगी। रोशनी की दोनो ननदें, जो अभी तक बाजार से सूट सिलवाती थी अब रोशनी से सिलवाने लगी।

 सिलाई के पैसे देने का तो सवाल ही नहीं उठाता था क्योंकि भई..भाभी पैसे तो नहीं लेगी और यह बात कभी-कभी रोशनी को खटक जाती थी। राघव के सामने कभी-कभी मुंह खोल भी देती थी। रोशनी का कहना था कि – “ठीक है सिलाई के पैसे मैं नहीं लूंगी पर ऊपर से जो फैंसी बटन, लैस वगैरा लगती है उसकी लागत तो दे दे”  पर सासू मां के सामने कहना तो मतलब घर में तूफान लाना होता था।  

रोशनी घर का सारा काम करने के बाद अपने डेढ़ वर्षीय बेटे को भी देखती और सिलाई का काम भी करती थी । सासू मां सुबह 9:00 बजे घर से निकलती थी और शाम को 5:00 बजे घर में घुसती थी उसके बाद पलंग पर पसरकर हुकुम बजाना ही उसका काम था क्योंकि सास के हिसाब से बहू सारा दिन करती ही क्या है ? 

 सिलाई मशीन के आगे बैठे ही तो रहती है,  घर पर रहती है मैं तो घर-घर धक्के खाती हूं ” पर रोशनी कुछ ना कहती थी मेहनत से तो वह घबराती ना थी राघव भी उसकी मेहनत की कद्र करता था तो वह सब कुछ हंसते हुए झेल जाती थी रोशनी के पास अब इतना समय न था तो उसने ननदों के सूट नहीं सिए क्योंकि जिन लोगों से उसने वायदा किया था वह उन्हें पहले देने थे।  उसने सोचा वह ननदों को समझा लेगी लेकिन यही सोचना उसको बहुत भारी पड़ जाएगा यह उसको पता न था । ननदों ने मिलकर मां को इतनी आग लगाई कि सासू मां का फरमान जारी हो गया कि आगे से यह सिलाई का कोई भी काम नहीं करेगी बल्कि मेरे साथ घरों में झाड़ू पोछा करने जाएगी । 

राघव ने जब यह सुना तो उसे बहुत बुरा लगा वह वैसे भी अपनी मां के इस काम के खिलाफ था उसका कहना था जब हम दो कमा ही रहे हैं तो तुम धक्के क्यों खाती हो पर कृष्णा को यह मंजूर न था क्योंकि घर से बाहर रहने में ही उसे अच्छा लगता था घर में बंद कर रहना उसे नहीं आता था । 

राघव और रोशनी ने बहुत समझाने की कोशिश की पर कृष्ण को ना मानना था ना मानी उसका कहना था कि इसकी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटियों के काम न करने की पहले मेरी बेटियां फिर कोई और लिहाजा रोशनी का काम बंद हो गया पर वह भी अब इस बात पर अड़ गई कि वह लोगों के घर जाकर झाड़ू पोंछा तो ना करेगी अगर तुम्हें आराम से रहना नहीं रास आना तो ऐसा ही सही।  रोशनी सोचती थी कि सासू मां तुमने मेरी कदर तो कभी भी नहीं जानी… तो खाओ अब फिर रूखी सूखी ।

शिप्पी नारंग

# सासु जी तूने मेरी कदर न जानी

 

 

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