अहमियत – मंजू ओमर : Moral stories in hindi

अनुपमा आज एकदम से बिफर पड़ी पति और बेटे पर आखिर तुम लोगों ने मुझे समझ क्या रखा है घर की फुल टाइम नौकरानी हूं ,सबकी जरूरतों का ख्याल रखने वाली आया ,या बस घर में सबको सब चीजें समय से उपलब्ध कराने वाली एक नौकर । उसके मन में जो आ रहा था बस बोले जा रही थी।मैं ही सबका बस ख्याल रखूं कोई मेरा भी कुछ ख्याल रखता है इस घर में मेरी भी कोई अहमियत है कि नहीं ।

अनुपमा बस चिल्लाए जा रही थी और खाने की प्लेट दूर सरकार कर उठ खड़ी हुई नहीं खाना मुझे खाना तुम लोग ही खा लो ।चली जा रही हूं मैं कुछ दिनों के लिए कहीं तब पता चलेगा कि कैसे घर में सब मैनेज होगा । दिनभर सबके लिए करों लेकिन इस घर में मेरी कोई अहमियत नहीं है।

                   अनुपमा के एक बेटा और एक बेटी थे । करोना समय से ही आफिस का काम घर से ही हो रहा था । बेटी अभी कुछ समय पहले ही आफिस खुलने की वजह से दिल्ली गई है । बेटी थोड़ा बहुत काम में हाथ बंटा देती थी लेकिन अब अनुपमा बिल्कुल अकेली पड़ गई है ।

                   सुबह से बेटे का चाय नाश्ता फिर पति महोदय का ,इस बीच कभी दूध वाला आ रहा है तो कभी सब्जी वाला आ रहा है या कोई कोरियर आ रही है (बेटा अक्सर आन लाइन सामान मंगवाया करता है ) उसको भी लेना है कोई भी किसी काम को उठकर नहीं जाना है । अनुपमा सबकुछ अकेले करते हुए परेशान हो जाती है बस एक पैर से सुबह से दौड़ती ही रहती है । बाजार से क्या मंगवाना है उसके लिए भी काफी बार कहो तब जाकर आ पाता है ।

किसी को भी कोई काम से मतलब नहीं रहता है । कोई ये भी नहीं समझता कि दिनभर और रोजाना वहीं काम करते करते कभी अनुपमा भी थक जाती होगी । अनुपमा को लगता कभी उससे भी तो कोई पूछे कि नाश्ता किया की नहीं खाना खाया कि नहीं तुम्हारे लिए खाना कम तो नहीं पड़ गया सब्जी है कि नहीं तुम्हारे लिए ।सबकी जरूरतें पूरी करते करते थक गई थी अनुपमा सोंचती थी मैं तो इस घर के लिए सिर्फ नौकरानी बन कर रह गई हूं ।

यदि गर्मी है तो सबको एसी में बैठकर खाना है और सदीं है तो हीटर के सामने बैठ कर खाना है , कुछ स्पेशल बन गया या पकौड़े वगैरह कुछ बन गए तो सब खा-पीकर बैठ गए कोई पूछता भी नहीं कि लाओ देख ले उसके लिए बचा है कि नहीं या अकेले बैठकर खा रही है तो कोई कंपनी दे दे कुछ नहीं।

                आज अनुपमा को थोड़ी थकान सी हो रही थी रात का खाना थोड़ा जल्दी करके आराम करूं लेकिन सबको उसी समय खाना है जब खाते हैं पहले नहीं खा सकते ।हम तो अभी नहीं खायेंगे भाई बाद में खायेंगे ।वो झुंझला रही थी की बार आवाजें देने के बाद भी कोई खाना खाने नहीं आ रहा था।

                फिलहाल किसी तरह बेटा और पति खाने की टेबल पर बैठे। बेटा आज आइसक्रीम ले आया था तो खाना खाने के बाद अनुपमा आइसक्रीम निकालने लगी कि चलो ये भी काम निपटा लें तो आराम करें लेकिन पति महोदय कहने लगे नहीं नहीं अभी मुझे आइसक्रीम नहीं खानी आधे घंटे बाद खाऊंगा । अनुपमा बोली अरे अब निकाल ही रही हूं तो सब लोग खा लो क्या बार बार वही काम करेंगे क्या ।

तो तैश में आकर पति देव कहने लगे अभी ही निकाल कर रख दो मेरी भी आइसक्रीम पिघल जाएगी तो पानी जैसा उसको पी जाऊंगा ।इस बात पर अनुपमा को बहुत गुस्सा आया और वो बिफर पड़ी कि सबको बस अपनी अपनी पड़ी है मेरी तो किसी को परवाह भी नहीं है। अभी एक हफ्ते पहले मुझको बुखार आ गया था तो मैंने कहा खाना बनाने का मन नहीं हो रहा है कुछ खिचड़ी वगैरह बना दे तो पति देव बोले अरे खाना बना कर रख दो फिर आराम कर लो ।

चार दिन तक मैंने खाना नहीं खाया लेकिन काम बराबर करती रही कोई एक कप चाय को भी नहीं पूछा। ठीक है जब मेरी कोई अहमियत नहीं है नहीं किसी को मेरी चिंता है तो मैं जा रही हूं कुछ दिनों के लिए अपने भाई के घर मेरे न होने पर पता लगेगा कि सबकुछ कैसे होता है।

                  अनुपमा ऊब गई थी घर के कामों से और घर वालों के रवैए से ।ये सच भी है कि जिसके लिए आप हर वक्त हाजिर रहो वो आपकी कीमत कभी नहीं समझेगा।सबको सबक सिखाने के लिए अनुपमा ने एक हफ्ते को जाने का मन बना ही लिया हंलाकि उसको पता था कि उसके पीछे घर की क्या हालत होगी फिर भी उसने बेटे से कहा मेरा टिकट बनवा दो । उसने घर में बर्तन धोने वाली मीना से कहा तुम नाश्ता और खाना दोपहर का बना कर रख देना और शाम के लिए पूछ लेना जैसा कहें वैसा कर देना।

              आज अनुपमा चली गई भाई के घर ।घर में जब कोई न हो देखने वाला तो आप कितना भी कठोर मन बना लो लेकिन घर की चिंताएं आपको लगी ही रहती है ।भाई के घर से भी अनुपमा मीना को फोन करके बताती रहती थी नाश्ता क्या बनाओ खाना क्या बनाओ ।अब मीना खाना बना कर चली जाती फिर उसको गर्म करो और अपने हाथ से निकाल कर लेना पड़ेगा सलाद कांटों बर्तन वगैरह हटाओ अपना हाथ पैर तो चलाना ही पड़ेगा न ।

             एक हफ्ते बाद जब भाई के घर से अनुपमा लौटी तो घर बएतरबईसए फैला हुआ था । सबकुछ समेटकर एक सा करने में दो तीन दिन लग गए । लेकिन इन एक हफ्ते में हल्का सा बदलाव तो नजर आया कि बिना बुलाए खाने की टेबल पर आ जाते ।आज जब बेटे ने कहा मम्मी तुम् भी खाना खा लो लाओ दो पराठे गर्म सेंक दे तुम्हारे लिए तो अनुपमा की आंखें भर आईं 

जिनकी बरसों से जो आदत पड़ गई है उसको तो आप नहीं बदल सकती लेकिन कभी-कभी ही सही यदि कोई थोड़ा सा भी आपको समझता है तो कितना अच्छा लगता है । लगता है कि जिस घर को मैं दिन-रात देखती हूं उस घर में मेरी भी कुछ अहमियत है ।एक पत्नी और मां का दिल तो धड़कता ही परिवार और बच्चों के लिए ही है ।बस थोड़ा सा उनका भी ध्यान रखें ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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