अहमियत औरत की पसंद की – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

” मम्मी जी आज खाने में कटहल की सब्जी बना लेती हूं आप जरा बाहर सब्जी वाले से ला दे !” पंद्रह दिन पहले ब्याह कर आई रुचि ने अपनी सास नलिनी जी से कहा।

” नही नही कटहल की सब्जी हमारे यहां कोई नही खाता तुम ऐसा करो अपने पापा जी की पसंद की अरहर दाल बना लो और अमन की पसंद की आलू की सब्जी !” नलिनी जी बोली।

” पर मम्मी जी दाल के साथ कटहल बना लेते है ना !” रुचि बोली।

” बहु कटहल ना तुम्हारे पापा जी खाते ना अमन फिर क्यों बनानी जो तुम्हे बनाने को कहा है वही बनाओ !” नलिनी जी थोड़े गुस्से में बोली।

” जी ” रुचि केवल इतना बोली और रसोई में चली गई। जबसे वो शादी होकर आई है एक भी दिन अपनी पसंद की सब्जी नही खाई उसने क्योंकि पापा जी हमेशा दाल, तोरी, घीया खाते हैं और अमन को ज्यादातर सब्जियों में आलू पसंद कभी शिमला मिर्च आलू कभी गोभी आलू कभी फली आलू जबकि रुचि को ना दाल पसंद ना आलू। अभी तक उसकी पहली रसोई की रस्म नही हुई थी इसलिए वो खुद से भी अपनी पसंद का खाना नही बना कर खाती थी कल इस रस्म के बाद आज उसने अपनी पसंद की कटहल की सब्जी बनाना चाहा पर नलिनी जी के इनकार से उसको बहुत बुरा लगा। मायके में तो सबसे पहले उसकी पसंद पूछी जाती थी पर यहां लगता है उसकी पसंद की कोई अहमियत ही नही। 

” मम्मी जी आज क्या बनाना है खाने में ?” अगले दिन उसने नलिनी जी से पूछा।

” बहु आज अमन और तुम्हारे पापाजी को एक शादी में जाना है तो ऐसा करो कुछ मत बनाओ हम दिन की बची सब्जी से ही खा लेंगे हमारा क्या है !” नलिनी जी बोली।

” मम्मी जी आज जब पापा जी और अमन नही तो क्यों ना एक सब्जी आपकी पसंद की और एक मेरी पसंद की बनाई जाए !” रुचि बोली।

” अरे नही नही औरतें अपने लिए कहा कुछ बनाती है जो पड़ा है वही खा लेंगे हम भी!” नलिनी जी बोली।

” क्यों मम्मी जी औरतें इंसान नही होती या औरतों का मन नही होता?” रुचि हैरानी से बोली।

” ऐसा नही है पर औरतें वही सब बनाती है जो घर के मर्दों को पसंद होता हैं धीरे धीरे वही एक औरत की भी पसंद बन जाता है !” नलिनी जी बोली 

” मम्मी जी औरतें घर ग्रहस्थी चलाने को दिन रात पिसती हैं सबकी जरूरतें पूरी करती है सबकी पसंद का ध्यान रखती है फिर क्या उन्हे ये हक नही की अपनी पसंद की कोई चीज बना खा सके। हमारे घर का टॉमी ( पालतू कुत्ता) भी कोई चीज पसंद ना आने पर मुंह फेर लेता है तो क्या हमारी औकात टॉमी जैसी भी नही जो हम कुछ भी खा ले !” रुचि नलिनी के पास बैठती हुई बोली।

” बहु ये क्या कह रही हो तुम !” नलिनी जी गुस्से में बोली।

” मम्मी जी प्लीज मेरी बात का गलत मतलब मत निकालिए। एक बात बताइए क्या आपका मन नही करता कभी अपनी पसंद के कोई चीज खाने का पति बेटे की पसंद का तो आप रोज खाती हैं आप कह रही घर के आदमियों की पसंद ही औरतों की पसंद बन जाती है तो सच्ची सच्ची बताइए क्या आपकी अपनी कोई पसंद नही अब ?” रुचि प्यार से सासुमा का हाथ अपने हाथ में ले बोली।

” सच कहा बहु तुमने तुम्हारे ससुर और पति की पसंद की चीजे बनाते खाते मैं अपनी पसंद को तो भूल ही चुकी थी जबकि मायके में जब तक अपनी पसंद की सब्जी ना हो मैं खाना नही खाती थी !” नलिनी जी थोड़ी देर कुछ सोच बहु के हाथ पर अपना दूसरा हाथ रखते हुए बोली।

” मम्मी जी जब तक औरत बेटी होती है अपनी पसंद का इतना ध्यान रखती है फिर बहु बनते ही सब कैसे भूल जाती है क्या उसको अपनी पसंद का खाना खाने का भी हक नही ? क्यो हम औरतें सबकी पसंद को अहमियत देते देते खुद को अहमियत देना भूल जाती है ? ” रुचि बोली।

” क्यों नही है हमारी अहमियत । अरे हमें भी हक है अपनी पसंद का खाने का ।  हम सास बहू अपनी पसंद की सब्जी बनाएंगी भी खाएंगी भी तू ऐसा कर जल्दी से प्याज टमाटर काट मैं बाहर सब्जी की दुकान से तेरे लिए कटहल और अपने लिए अपनी पसंद का सीताफल लाती हूं बहुत साल हो गए खाए हुए भी कभी मायके जाती थी तो खा लेती थी मां से बनवा अब तो मां ही नही तो अपनी पसंद भी नही बता पाती हूं !” नलिनी जी उठते हुए बोली।

थोड़ी देर बाद दोनो सास बहू अपनी अपनी पसंद की सब्जी से रोटी खा रही थी नलिनी जी के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी आज क्योकि आज बहू ने उन्हे उनकी अहमियत समझा दी थी। 

” बहु कल से एक समय तेरी या मेरी पसंद की भी सब्जी बना करेगी भले अमन और तेरे पापा जी को पसंद ना आए पर थोड़ा बहुत तो खा ही लेंगे आखिर हम भी तो उनकी पसंद की खाते है !” खाना खाकर नलिनी जी रुचि से बोली तो रुचि हंसते हुए सास के गले लग गई।

दोस्तों हमारे भारतीय समाज में बहुत से घरों में खाने के मामले में औरत की पसंद कोई मायने नहीं रखती। औरत भी आदमियों की पसंद बनाते बनाते खुद की पसंद को अहमियत देना भूल सा जाती है जोकि बहुत गलत है जो औरत सबकी पसंद का ख्याल रखती है वो अपनी पसंद का क्यों नही खा सकती है ?

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल

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