अहिल्याबाई – सरला मेहता

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी ग्राम में हुआ था। पिता मन्कोजी राव शिंदे गाँव के पाटिल थे और माता                  

            । उस ज़माने में बालिका अहिल्या स्कूल जाती थी। उनका विवाह इंदौर के संस्थापक सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। उनकी विद्वता देखकर मल्हारराव जी ने उन्हें अपनी बहू बना लिया। पति को राजकाज में वे समय समय पर सलाह देती थी। अपने ससुर की वे अति प्रिय थी और उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करती थी। उनकी बुद्धि व चतुराई से वे बहुत प्रसन्न होते थे। वे पुत्र मालेराव व पुत्री मुक्ताबाई की माँ बनी।  किन्तु पति खंडेराव 1757 में कुंभेर युद्ध में शहीद हो गए। 12 वर्ष पश्चात ससुर जी भी स्वर्ग सिधार गए। एक वर्ष पश्चात उन्हें मालवा साम्राज्य की महारानी का ताज पहनाया गया।

वे बड़ी सूझबूझ से राज्य का संचालन करने लगी। 1766 में पुत्र के दिवंगत होने के बाद 1767 में तुकोजीराव होलकर को सेनापति नियुक्त किया। वे स्वयं युद्ध में जाकर मुस्लिम आक्रमणकारियों का सामना करती थी। उन्होंने स्त्रियों की सेना बनाई थी। उनका आशय स्त्रियों का मान बढ़ाना था। कोई हारे तो कहा जाएगा कि स्त्रियों से हारे। इसी बुद्धिमानी के कारण पेशवा ने रानी से युद्ध का विचार ही त्याग दिया।

उन पर दत्तक पुत्र लेने का दबाव बढ़ने लगा। किन्तु उनके लिए तो प्रजा ही सन्तान थी। हालाँकि राजपूतों ने विद्रोह छेड़ दिया। किन्तु महारानी ने बुद्धिमानी से उसका दमन किया।

     उनकी गणना कुशल, स्वस्फूर्त व आदर्श शासक के रूप में होती है। वे अपनी उदारता व प्रजावत्सलता के लिए प्रसिद्ध थी। वे प्रजा से संवाद कर उनकी समस्याएँ सुनती थी। एक बार राजकुमार के रथ द्वारा एक बछिया कुचला जाता है। रानी ने बेटे के लिए भी वही सजा सुनाई। किन्तु रथ के आगे स्वयं गौ माता ने राजकुमार जी जान बचाई।

वे मानती थी कि राज्य का धन, प्रजा के लिए है। प्रजा के लिए दत्तक लेने का व स्वाभिमान से जीने का अधिकार भी उन्होंने दिया। जाति भेद, अन्धविशास व रूढ़ियाँ तथा अन्याय का विरोध किया। मालवा का खजाना भरपूर करने का श्रेय महारानी साहेब को ही जाता है।

रानी ने महेश्वर को अपनी  राजधानी बनाया। 18 वीं सदी का प्रख्यात अहिल्या महल का निर्माण नर्मदा किनारे किया। टेक्सटाइल उद्योग राजधानी की पहचान बना। महेश्वर भी साहित्य, मूर्तिकला, संगीत व कला का गढ़ बन गया। उन्होंने कई कल्याणकारी कार्य किए। किले, विश्रामगृह, कुंए बावड़ियाँ, घाट, अन्नक्षेत्र, प्याऊ, सड़कें, आदि बनवाए।

महारानी स्वयं बड़ी धार्मिक महिला थी। शिव परमेश्वर के प्रति अति आस्था के कारण राजाज्ञाओं पर अपने नाम के स्थान पर श्री शंकर लिखती थी। रुपयों पर शिवलिंग व पैसों पर बिलपत्र का चित्र अंकित रहता था।

बनारस में अन्नपूर्णा मन्दिर, गया में विष्णु मंदिर तथा सोमनाथ का जीर्णोद्धार किया।

साथ ही अयोध्या, हरिद्वार, रामेश्वर, द्वारिका , जगन्नाथपुरी, मथुरा, कांची, अवंति, बद्रीनारायण आदि ख्यात मंदिरों का निर्माण कराया।

1उ67-1795 के कालखंड में उन्होंने कई अभूतपूर्व कार्य किए। इंदौर को एक छोटे से गाँव से मालवा का खूबसूरत शहर बना दिया।

सरला मेहता

इंदौर म प्र

स्वरचित

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