कानपुर में ममता जी का संयुक्त हंसता खेलता परिवार। दो बेटे अमित और सुमित। बड़े बेटे अमित की पत्नी सीमा और दो बेटे खुश और राहुल। छोटे बेटे सुमित की पत्नी रेखा और उनकी दो बेटियां साधना आराधना। ममता जी के पति सुधांशु जी का कुछ समय पहले ही देहांत हो गया था। पूजा पाठ और नाश्ता करने के बाद वह ऐसे लेटे कि फिर कभी उठे ही नहीं।
अमित की सैलरी सुमित से ज्यादा थी और अमित की पत्नी सीमा को इस बात पर बड़ा घमंड था। वह हमेशा जताती थी कि हमारी कमाई भी अच्छी है और मैंने जो बेटों को जन्म दिया है। वह अपनी देवरानी रेखा को ताना मारने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देती थी। ममता जी ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की पर उसकी समझ में कुछ नहीं आया। एक बार दिवाली का बोनस मिलने पर अमित उसके लिए सोने की अंगूठी खरीद कर लाया, तब वह रेखा को दिखाती हुई बोली-“देखो देवरानी जी,
मेरे पति मेरे लिए कितनी सुंदर और महंगी अंगूठी लाए हैं और बेटों के लिए महंगे कपड़े भी लाए हैं। अभी तो यह कुछ भी नहीं है जब मेरे दोनों बेटे बड़े होकर कमाने लगेंगे तब तो मैं और भी महंगे महंगे उपहार प्राप्त करूंगी, पर तुम्हारी तो बेटियां हैं तुम्हारे नसीब में यह सब कहां। ऊपर से देवर जी कमाते ही कितना है। तुमने तो कोई बेटा जना नहीं है, तुम्हें क्या पता बेटों की मां होने का सुख।”
रेखा शांत स्वभाव की थी और बहुत समझदार भी, वह चाहती तो अपनी जेठानी को खरी-खोटी सुना सकती थी लेकिन उसने मुस्कुराकर कहा-” दीदी, आजकल तो लड़के और लड़कियों में कोई भेद नहीं है। लड़कियां कहां लड़कों से कम है हर कदम पर लड़कियां आगे ही है और फिर सोने के गहनों का क्या, लॉकर में ही पड़े रहते हैं। हर कोई आजकल शादी ब्याह में मैचिंग आर्टिफिशियल ज्वेलरी पहनता है।”
सीमा यह बात सुनकर चढ गई
और बड़बड़ाती हुई, चली गई-“खुद कोई चीज खरीद तो सकती नहीं है इसीलिए दूसरों को भाषण देती रहती है।”
रेखा हमेशा की तरह मुस्कुरा दी। समय बीता, रेखा के पति का तबादला किसी छोटे शहर में हो गया था लेकिन साथ-साथ उसकी तरक्की भी हुई थी। दरअसल सरकार ने तय किया था कि बड़े शहरों की तरह छोटे शहरों में भी यातायात के लिए पुल होने चाहिए। उसकी रूपरेखा बनाने का काम सुमित करता था। वह अपने परिवार के साथ कानपुर से मेरठ शिफ्ट हो गया। सीमा तो बहुत खुश थी। अब तो उसके अंदर अहंकार और ज्यादा घर बनाता जा रहा था। वह किट्टी पार्टियों में जाने लगी थी। बच्चों पर ध्यान कम देती थी। किट्टी में अपनी सहेलियों के सामने अपनी देवरानी की बातें बता कर उसकी हंसी उड़ाती थी और अपने बेटों की तारीफों के पुल बांधा करती थी।
साधना आराधना, खुश और राहुल चारों बच्चे समय के साथ बड़े हो रहे थे। कभी-कभी रेखा के कानपुर आने पर सीमा कुछ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी।
चारों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। राहुल अपनी मां की देखा देखी घमंडी हो गया था और साथ-साथ बदतमीज भी। कई बार वह अपनी मां सीमा का भी अपमान कर चुका था, लेकिन सीमा हंस कर टाल देती थी, कहती थी कोई बात नहीं , अभी बच्चा है।
जब भी कभी देखा सीमा के पास आती तब कहती -“दीदी, आप भी कभी हमारे घर आकर रहिए।”
सीमा टका सा जवाब देती-“ना बाबा, तुम्हारे घर ना तो इनवर्टर और ना एयर कंडीशनर, मैं तो बिल्कुल नहीं रह सकती एयर कंडीशनर के बिना।”
चारों बच्चे युवा हो चुके थे और अब सबसे बड़े बेटे खुश का विवाह तय हो चुका था। तीन दिन पहले सुमित और उसका परिवार कानपुर आ गया।
इन तीन दिनों में, रेखा और उसके परिवार में नोटिस किया कि राहुल छोटी-छोटी बातों में सीमा का अपमान कर रहा है लेकिन सीमा उसे कुछ नहीं कह रही। हां, एक दो बार उसके चेहरे पर उदासी जरूर छा गई थी।
पहले दिन उसने राहुल से कहा था-“बेटा, मेरा मोबाइल एक बार चेक कर लो, पता नहीं क्यों उस में ठीक से आवाज नहीं आ रही है।”
राहुल ने बड़े रूखे तरीके से कहा-“मम्मी, आप खुद देख लो अपना मोबाइल, मेरे पास टाइम नहीं है, मुझे दोस्त के पास जाना है।”ऐसा कहकर चला गया।
तब रेखा ने अपनी छोटी बेटी आराधना से बड़ी मम्मी सीमा का फोन देखने के लिए कहा। आराधना ने उनके फोन की आवाज को एडजस्ट कर दिया।
दूसरी बार सीमा ने राहुल से कहा -“बेटा राहुल अपने कपड़े जो तुम्हें सगाई और शादी में पहनने हैं, संभाल कर एक जगह रख दो, ताकि बाद में ढूंढने ना पड़े और कोई परेशानी ना हो।”
राहुल-“मम्मी, आप अपने कपड़ों की चिंता करो, मैं अपने कपड़ों की
चिंता खुद कर लूंगा।”
रेखा ने राहुल को टोका-“राहुल तुम किस तरीके से बात करते हो बड़ों से। प्यार से बात करा करो बेटा।”
राहुल चुपचाप चला गया।
अब तीसरे दिन की बात, सीमा ने अपनी बहू के घर से मिले सामान को दिखाने के लिए अपनी सहेलियों को बुलाया था और उनके आते ही बोली-“मैंने तो अपनी समधन से पहले ही कह दिया था कि”जो भी सामान देना हो, हाई क्वालिटी का देना, वरना मत देना। हमारे घर सब कुछ है। देखो रेखा, तुम भी देखो। इतना बढ़िया सामान शायद तुम पहली बार देख रही हो, है ना।”
यह बात रेखा की बेटी साधना को बहुत बुरी लगी। वह कुछ कहने के लिए मुंह खोल ही रही थी कि रेखा ने उसे इशारे से चुप करवा दिया। सीमा की सारी सहेलियां सामान देखकर और नाश्ता खाने के बाद वापस जा रही थी और सामने से राहुल अपने दोस्तों के साथ आ रहा था।
तभी अचानक सीमा की एक सहेली के पैर में उसकी साड़ी उलझ गई और वह राहुल के दोस्त से टकरा गई। उस लड़के ने उसे संभालने की बजाय उसे धक्का देते हुए कहा-“यू इडियट, ओल्ड लेडी, अंधी हो क्या?”
उस औरत को बहुत गुस्सा आया और उसने खड़े होकर उस लड़के को एक तमाचा लगा दिया।
तब राहुल बीच में आ गया और चिल्लाने लगा-“मम्मी, अपनी इस बुड्ढी सहेली को समझाओ, वरना मुझ से बुरा कोई ना होगा। इसने मेरे दोस्त पर हाथ क्यों उठाया?”
सीमा-“तुम्हारे दोस्त ने इनका अपमान किया है क्या तुमने देखा नहीं?”
राहुल-“मम्मी, आप इनकी साइड लेकर ठीक नहीं कर रही हो, मैं आपको भी देख लूंगा।”
अब साधना से रहा न गया। उस ने राहुल से कहा-“राहुल, एक तो तुम्हें अपने दोस्त की बदतमीजी दिखाई नहीं दे रही है और ऊपर से तुम सबके सामने अपनी मां का अपमान कर रहे हो। यह किस तरीके से बात कर रहे हो। क्या आंटी जी जानबूझकर तुम्हारे दोस्त से टकराई थी? तुम्हारे दोस्त ने उन्हें गिरने से बचाया नहीं और ऊपर से उन्हें अंधी भी बोला फिर भी तुम उसकी साइड लेकर बड़ी मम्मी का अपमान कर रहे हो। वैसे भी हम सब जब से आए हैं तुम्हारा व्यवहार देख रहे हैं। कभी भी तुम बड़ी मम्मी से प्यार से बात नहीं करते हो।”
राहुल चिल्लाया-“तू बीच में मत पड़, मेहमान है और मेहमान की तरह ही रह।”
साधना-“नहीं, मैं गलत को गलत बोलूंगी और यह मेरी बड़ी मां है मैं इनका अपमान नहीं सहूंगी। तुम और तुम्हारा दोस्त है अभी बड़ी मम्मी से और आंटी जी से माफी मांगो, वरना।”
राहुल-“वरना, क्या कर लेगी तू।”
साधना-“वरना, हम सबके साथ साथ हैं दादी जी और खुश भैया खुद भी, अपनी शादी में नहीं जाएंगे। तुम ही चले जाना अपने दोस्तों के साथ। क्यों खुश भैया?”
दादी ने ,पूरे परिवार ने खुश ने साधना का साथ दिया। राहुल अपने भाई खुश से बहुत प्यार करता था और वह उसकी शादी का माहौल खराब नहीं करना चाहता था और मन ही मन उसे अपने दोस्त के ऊपर बहुत गुस्सा भी आ रहा था।
उसने माफी मांगने में ही अपनी भलाई समझी। राहुल और उसके दोस्त ने सब से माफी मांगी और अगले दिन सुख पूर्वक विवाह संपन्न हुआ।
इसके साथ साथ , सीमा का अहंकार भी टूट चुका था और अब उसे अपनी देवरानी रेखा की परवरिश पर और अपनी दोनों बेटियों साधना आराधना पर गर्व था।
#अहंकार
स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली