अग्निपरीक्षा – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज सोनाक्षी को उसकी सास दमयंती जी और पति पुलकित बहुत अनुनय-विनय के साथ अपने किए की माफी मांगते हुए वापिस ले जाने आए थे। वैसे तो सोनाक्षी का उनसे मिलने का भी मन नहीं था पर अपने संस्कारों की वजह से वो घर आए मेहमान का अपमान नहीं करना चाहती थी। वो बेमन से उनके सामने आई तो दमयंती जी अपने आंचल को फैलाकर घर लौट चलने के लिए कहने लगी। 

उस समय उसने दमयंती जी बहुत ही विनम्र शब्दों में सिर्फ इतना कहा वो लोग घर जाएं, अब उसका वापस लौटना नामुमकिन है।सोनाक्षी की मां भी उसकी मनोस्थिति समझ रही थी इसलिए आज उन्होंने भी उसको कुछ भी कहना और टोकना उचित नहीं समझा। आज की रात सोनाक्षी के लिए परीक्षा की रात थी। आज उसे अपनी बीती ज़िंदगी के वो कड़वे घूंट फिर से याद आ गए जिनसे वो दूर भागना चाहती थी। उसे याद आ गया कि कैसे वो और उसकी मां संध्या एक दूसरे के साथ अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थे।

 पापा तो जब वो बहुत छोटी थी तब हृदयघात होने पर उनका साथ हमेशा के लिए छोड़ गए थे। पापा की जगह मां को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल गई थी। उसके बाद दोनों मां-बेटी एक दूसरे का संबल बन गई। सोनाक्षी भी बहुत ही समझदार बच्ची थी,उसने कभी भी संध्या जी को किसी बात के लिए तंग नहीं किया था। अभी वो कॉलेज के अंतिम वर्ष में ही थी कि दमयंती जी के अमीर घर से उसके लिए उनके बेटे का रिश्ता आया था। सोनाक्षी और उसकी मां ने अभी उसकी शादी के विषय में कुछ सोचा भी नहीं था क्योंकि सोनाक्षी कॉलेज की पढ़ाई के बाद प्रतियोगी परीक्षाएं देना चाहती थी और अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती थी।




 दमयंती जी ने सोनाक्षी को अपनी एक रिश्तेदार के घर उनकी बेटी के साथ देखा था, रिश्तेदार की बेटी और सोनाक्षी बहुत अच्छी मित्र थी। सोनाक्षी के सौम्य स्वभाव और कम बोलने की आदत को दमयंती जी की पारखी नजरों ने भांप लिया था।

दमयंती जी को अपने बड़े बेटे पुलकित के लिए वो ही ठीक लगी इसलिए उन्होंने उसके घर रिश्ता भेजा। सोनाक्षी और उसकी मां संध्या सोच में पड़ गए कि इतने बड़े अमीर परिवार उनके साथ ही क्यों रिश्ता जोड़ना चाहता है। वैसे भी सोनाक्षी स्वभाव में तो बहुत अच्छी थी पर रंगरूप में सामान्य ही थी। दमयंती जी के सामने भी जब ये बात रखी गई तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनके बेटा पुलकित की उम्र तो ज्यादा नहीं है पर उसकी पहली पत्नी शादी के दो साल बाद ही एक दुर्घटना में चल बसी थी।

 पीछे रह गया था उसका एक साल का बेटा आरव। अब पूरी ज़िंदगी तो अकेले नहीं काटी जा सकती। उनके पोते को मां मिल जाए और उनके बेटे की दुनिया फिर से बस जाए इसलिए वो सोनाक्षी में ही अपनी होने वाली बहू का अक्स देखती हैं। सोनाक्षी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसकी मां की तरफ से कोई बाध्यता नहीं थी पर उसके मामा-मामी जिनके वो बहुत निकट थी और उसकी कुछ सखी में उसको ये शादी करने की सलाह दी क्योंकि पुलकित का परिवार की गिनती शहर के बहुत ही सभ्य और अमीर परिवार में होती थी। वैसे भी आरव की मासूम आंखें भी सोनाक्षी को अपनी तरफ खींच रही थी। इतना सब सोचने और विचार करने के बाद उसने इस रिश्ते के लिए हां कर दी। 




शादी भी खूब धूमधाम से हो गई वो इतने बड़े समृद्ध परिवार की बहू बनकर आ गई। यहां आने के बाद उसके लिए सारे तौर-तरीके बिल्कुल नए थे। हर कार्य के लिए नौकर थे। अगर वो अपनी पसंद से कुछ करना भी चाहती तो उसको मध्यम वर्ग की मानसिकता बता कर उसका मज़ाक उड़ाया जाता। यहां तक की उसकी दोनों छोटी ननद भी जब देखो तब उसके कपड़े पहनने और कई बार तक तो उसके रंगरूप का भी मज़ाक बना देती।

 पुलकित को भी उससे कोई मतलब नहीं था वो तो दिन भर काम और रात को अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने में व्यस्त होता था। अगर वो कभी पुलकित से बात भी करने की कोशिश करती तब वो उसको स्तरहीन बताकर वहां से चला जाता। घर में एक आरव ही था जिसके साथ वो सुकून के पल बिता पाती थी। जिसके साथ उसको अपने रहन-सहन,रंगरूप और मध्यम वर्ग का एहसास नहीं दिलाया जाता था। उसके साथ बिताए वो पल उसके लिए अनमोल होते थे। समय इसी तरह से आगे बढ़ रहा था।

 एक दिन दमयंती जी के समूह की कुछ सदस्या घर पर आई थी। असल में दमयंती जी शहर की सबसे बड़ी महिला उत्थान संस्था की सदस्य थी। इस बार वहां अध्यक्ष पद का चुनाव भी था, दमयंती जी किसी भी तरह से ये मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी। असल में इस संस्था के चर्चे आए दिन प्रमुख समाचार पत्रों की सुर्खियों का हिस्सा बनते थे। अपने वैभव और चकाचौंध से प्रभावित करने के लिए दमयंती जी ने समूह की सभी सदस्य महिलाओं को लंच पर बुलाया था। कहीं ना कहीं पुलकित के साथ सोनाक्षी की शादी भी दमयंती जी के अध्यक्ष बनने की योजना का हिस्सा थी। 




आज सुबह से ही घर में बहुत हलचल थी,तरह-तरह के नाश्ते और खाने के आइटम बनाए जा रहे थे। आज दमयंती जी सोनाक्षी पर भी विशेष प्यार बरसा रही थी। उसको ही सारे खाने-नाश्ते के प्रबंध के लिए बोला था। उसको अच्छे से तैयार होने के लिए भी बोला था। साथ-साथ सभी अतिथि के स्वागत की तैयारी भी उसी को सौंपी थी। आज सोनाक्षी बहुत खुश थी उसको लग रहा था कि शायद अब दमयंती जी उसको अपने परिवार का हिस्सा मान चुकी हैं।धीरे-धीरे सभी महिला मंडल की सदस्याओं का आना शुरू हो गया। सोनाक्षी ने उनकी आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ी।

 दमयंती जी की भी बोली आज और दिनों की अपेक्षा सोनाक्षी के लिए ज्यादा ही मधुर थी। आज सब ताने जो वो सोनाक्षी के मध्यम वर्ग और रहन सहन को लेकर सुनाती थी सब गायब थे। आज वो सभी सदस्याओं को अपनी बड़ी बहू कहकर उसका परिचय दे रही थी। सब अच्छे से चल रहा था। खाना-पीना चल रहा था, सभी महिला सदस्य दमयंती जी की बहुत प्रशंसा कर रही थी। अब सोनाक्षी बाकी प्रबंध देखने बाहर आ गई थी।अब हॉल में दमयंती जी और उनकी संस्था की महिलाएं ही रह गई थी। तभी उनमें से किसी महिला ने कहा कि आप की बहू तो बहुत ही सुशील और सुघड़ है। उसकी इस बात पर दमयंती जी ने कहा कि ये तो हमारे घर के रहन सहन का नतीज़ा है नहीं तो अपने घर में तो उसने कुछ भी नहीं देखा था।मैं नारी उत्थान को ही अपना लक्ष्य मानती हूं इसलिए मैंने सोचा क्यों ना इसकी शुरुआत घर से ही की जाए। 

मैंने एक साधारण सी शक्ल और परिवार वाली लड़की को अपनी बहू बनाना उचित समझा। आप लोगों ने भी देखा होगा कि मैं उसके साथ कोई भेदभाव ना करके पूरे प्यार और सम्मान से बात करती हूं। मेरे परिवार में उसको किसी काम को हाथ नहीं लगाना पड़ता, यहां आकर उसने इतना वैभव और पैसा देखा जितना कि वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी। मैं तो अपने इस कार्य के द्वारा समाज को एक संदेश देना चाहती हूं, जिससे गरीब घरों की लड़कियों का उद्धार हो सके। देहज़ प्रथा बंद हो सके। उनकी इस तरह की बातें सुनकर महिला मंडल की सभी सदस्याओं ने मुक्त कंठ से उनकी प्रशंसा करनी शुरू कर दी। कई ने तो ये भी बोल दिया कि आप वास्तव में इस संगठन की अध्यक्ष बनने लायक हैं। यही तो वो चाहती थी।




जब ये सब बातें चल रही थी तब सोनाक्षी किसी काम से हॉल की तरफ ही आ रही थी। दमयंती जी के अंहकार से परिपूर्ण शब्द उसके कानों में भी पड़ गए। उसको लगा कि कितनी आसानी से दमयंती जी ने बेटे की दूसरी शादी और बच्चे को छुपाकर उसके साधारण रंगरूप और मध्यम स्तर के रहन-सहन को अपना चुनावी मुद्दा बना लिया। इस हकीकत को जानकर उसके पैरो के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई।किसी तरह से उसने अपने आपको संभाला। जब सब लोग चले गए तब शाम को सोनाक्षी ने इस विषय पर दमयंती जी से बात करनी चाही तो वे बुरी तरह भड़क गई। 

उल्टा वो उसको ही बोलने लगी कि उसको छिपकर सबकी बातें सुनते हुए शर्म नहीं आई। यही शायद उसके मध्यम वर्गीय संस्कार हैं। लगता है उसकी मां उसको ये सब सिखाना भूल गई। दमयंती जी ने ये भी कह दिया कि उसकी हैसियत तो उनके सामने खड़े होने तक की नहीं थी। उसके जैसे बिना बाप की साधारण रंग रूप वाली लड़की की शादी अपने बेटे से करवाकर उन्होंने उस पर और उसकी माता जी पर एहसान किया है। उनकी जली कटी बातें सुनना अब सोनाक्षी के लिए कठिन हो रहा था। उसने बहुत ही शांत शब्दों में उनसे ये कहा कि आज उसके स्वाभिमान को काफ़ी ठेस लगी है। अब वो उनका मोहरा नहीं बनेगी। वो अभी इस घर से जा रही है। आज भी उसकी मां के घर के दरवाज़े उसके लिए खुले हैं। 

ये कहकर वो उनके दिए हुए सारे कपड़े, आभूषण वहीं छोड़कर अपनी मां के दिए कपड़ों में अपने मायके आ गई। घर की पुरानी नौकरानी ने उसको रोकने की कोशिश भी की तब वो ये कहकर जिस घर में उसको कभी बहू का दर्ज़ा ही नहीं दिया वो वहां रुककर किया करेगी। इस तरह अपने स्वाभिमान से समझौता ना करके उसने अपने मायके आना ही वापिस समझा। वो घर पहुंची, अपनी मां को सब बताया तो उन्हें भी सब जानकर बहुत दुख पहुंचा।




अब वो आगे की पढ़ाई पूरी करने और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई। कभी-कभी उसको आरव की तो याद आती थी पर वो उन सब बातों को भूलकर अपनी पढ़ाई में लग जाती थी। पुलकित और बाकी घर वालों को तो वैसे भी उससे कोई लगाव नहीं था। ऐसे ही छः महीने से ज्यादा का समय बीत गया था। उधर आरव वैसे तो किसी को कुछ नहीं कह पाता था पर एक साल की अवधि में वो सोनाक्षी से बहुत हिलमिल गया था। सोनाक्षी ने भी आरव को सगी मां से बढ़कर चाहा था। 

सोनाक्षी के जाने के बाद वो काफ़ी बीमार रहने लगा था। दो साल का बच्चा अंदर ही अंदर घुल रहा था। अभी पिछले सप्ताह से उसको तेज़ बुखार था जिससे वो कोमा में जा सकता है। वो किसी के हाथ से कुछ भी खा पी नहीं रहा था। अच्छे से अच्छे डॉक्टर उसका बुखार नहीं उतार पा रहे थे। पोते की ऐसे हालत देखकर दमयंती जी की आंखों के सामने बार-बार सोनाक्षी का ही चेहरा आ रहा था। कहीं ना कहीं वो आरव की तबियत खराब होने के पीछे अपना ही हाथ मान रही थी। वो सोनाक्षी के प्रति अपने किए व्यवहार के लिए बहुत पछता रही थी। 

उन्होंने अपनी भूल का सुधार कर सोनाक्षी को वापस लाने की सोची। वो तुरंत गाड़ी निकलवाकर पुलकित के साथ सोनाक्षी के घर पहुंच गई। वहां सोनाक्षी से उन्होनें अपने किए की माफी मांगी और आरव की दुहाई देते हुए घर वापसी की बात की।

 सोनाक्षी ने कहा कि वो बार-बार अपने स्वाभिमान की बलि देकर अग्नि परीक्षा नहीं दे सकती । वो अपने मध्यम स्तरीय जीवन और साधारण रंगरूप में ही खुश है। उसने पुलकित और दमयंती जी की कोई भी मदद करने से इंकार कर दिया और उनके सामने से उठकर चली गई। दमयंती जी ने सोनाक्षी की मां संध्या जी से भी उसको मानने की प्रार्थना की। संध्या जी को आज दमयंती जी और पुलकित की आंखों में पश्चाताप स्पष्ट झलक रहा था पर अब वो सोनाक्षी को किसी बात के लिए मजबूर नहीं करना चाहती थी। बो चाहती थी कि अब सोनाशी अपने विवेकानुसार फैसला ले।वो लोग वापिस चले गए।




 उधर सोनाक्षी के दिमाग में यही सब चल रहा था तभी उसके मोबाइल पर पुलकित का संदेश आया जिसमें उसने अब तक के व्यवहार के लिए क्षमा मांगी थी। संदेश में ये भी लिखा था कि इन सबमें मासूम बच्चे आरव की तो कोई गलती नहीं है। आरव ने अपनी सगी मां को तो देखा नहीं पर सोनाक्षी को ही अपनी मां माना है। कम से कम एक बार आकर वो उससे मिल तो सकती है।

 सोनाक्षी बहुत आहत थी पर मां की ममता उसकी सब घाव पर हावी हो गई। सूरज की पहली किरण की दस्तक के  साथ ही उसने आरव के पास जाने का फैसला कर लिया। साथ-साथ उसने अपनेआप से भी ये वायदा किया कि वो उस घर में वापिस तो जाएगी पर अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेगी। वो अपने पैरों पर खड़ी होगी।अब वो इस दवाब में नहीं आयेगी कि बड़े अमीर घर की बहु बाहर नौकरी नहीं करती।

दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। कई बार एक लड़की बहू के रूप में अपने आस-पास के वातावरण से समझौता करने की बहुत कोशिश करती है पर जब उसके स्वाभिमान पर चोट पहुंचती है तो वो सहन नहीं कर पाती। आज के समय में वो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती है तो फिर वो ही क्यों सारी अग्निपरीक्षा का दंश सहन करे। बराबर सम्मान की प्राप्ति के लिए कभी-कभी आवाज़ उठाना भी आवश्यक हो जाता है।

#बहु 

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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