Moral stories in hindi : सुहाना सफ़र और ये मौसम हसीं
गाते गुनगुनाते एक हाथ से एक दुसरे को पकड़े और दुसरे हाथ से कुल्फी के मजे लेते निहाल और नित्या रात की सैर से वापस घर की ओर जा रहे थे कि एक सुनसान जगह पर उनके बगल में एक गाड़ी आकर रुकी, दोनों जब तक संभलते गाड़ी से उतरे दो शख्स ने नित्या को गाड़ी में धकेला और गाड़ी चल पड़ी।
क्या हुआ तू इतना बदहवास क्यूं है, नित्या कहां है… दरवाज़ा खोलते ही बेटे को बदहवास देख पिता आनंद पूछते हैं।
सुनती हो एक गिलास पानी ले आओ…आनंद अपनी पत्नी सविता को आवाज़ देते हैं।
निहाल क्या हो गया बेटा, नित्या ने कुछ कहा है क्या… एक मिनट चैन से नहीं रहने देती मेरे बच्चे को, इसीलिए कहा था रितु से शादी कर। लेकिन इसके ऊपर तो नित्या का भूत सवार था… कुढ़ती हुई सविता कहती है।
क्या बकवास किए जा रही हो। अकेले ही आया है ये, नित्या कहां है बेटा… आनंद बेटे को झकझोरते हुए कहते हैं।
क्या कह रहे हो.. अकेले आया है ये। चलो जान छूटी.. सविता कहती है।
पापा वो… निहाल सारी घटना दोनों को बताता है और ये भी कि स्ट्रीट लाइट में उसने गाड़ी का नंबर भी नोट किया है।
अरे तो फिर बैठा क्यूं है…पुलिस स्टेशन चल कर रिपोर्ट लिखवाते हैं… आनंद निहाल को सहारा देकर उठाते हुए कहते हैं।
पर इंस्पेक्टर साहब चौबीस घंटे बाद क्यूं,…नित्या का अपहरण हुआ है… आनंद परेशान होते हुए कहते हैं।
आपको कैसे पता अपहरण हुआ है। कल तक देख लीजिए, खुद ही आ जाएगी घूम फिर कर.. अपने प्लेट से रोटी का कौर तोड़ता हुआ इंस्पेक्टर अविनाश कहता है।
घूम फिर कर का क्या मतलब है आपका… निहाल चीख पड़ता है।
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आवाज़ नीची रखो बरखुरदार… नई नई शादी है ना। क्या पता जबरदस्ती करवाई गई हो उससे… इंस्पेक्टर अपने डिनर की तरफ ध्यान केंद्रित करता हुआ कहता है।
सर हमारी बात समझिए… इसने गाड़ी का नंबर भी नोट किया था.. आनंद कहते हैं।
ठीक है बाहर बैठिए.. मैं खाना खत्म करके बुलाता हूं… इंस्पेक्टर उनकी ओर बिना देखे कहता है।
सब इंस्पेक्टर अविनाश.. आप फोन पर गप्पें लड़ा रहे हैं और बहार शिकायतकर्त्ता बैठे हुए हैं… अविनाश के केबिन में पुलिस वर्दी में आता हुआ एक चालीस साल का पुरुष कहता है।
जी जी सर वो मैं डिनर कर रहा था.. सैल्यूट करता हुआ अविनाश हकलाने लगता है।
इन लोगों को मेरे कैबिन में लेकर आइए… वो आदमी कहता हुआ अपने कैबिन की ओर बढ़ जाता है।
रामपाल इन्हें लेकर सर के कैबिन में आओ.. अविनाश हवलदार को निर्देश देता हुआ उधर ही बढ़ जाता है।
वो साहब कौन हैं… आनंद हवलदार के साथ चलता हुआ पूछता है।
वो बड़े साहब हैं… इस थाने के इंस्पेक्टर संजीव साहब और अविनाश साहब सब इंस्पेक्टर हैं… हवलदार दोनों को इंस्पेक्टर के कैबिन में पहुंचा आता है।
क्या बात है.. आपदोनों ही बहुत परेशान लग रहे हैं.. बैठने का इशारा करते हुए इंस्पेक्टर संजीव पूछता है।
सर मैं आनंद हूं और ये मेरा बेटा निलय है। सर मेरी बहू का अपहरण हो गया है कहते हुए आनंद बेटे के द्वारा बताई गई सारी बातें बताते हैं।
कहां है गाड़ी नंबर दिखाएं… सब इंस्पेक्टर अविनाश को घूरते हुए संजीव कहता है।
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मिस्टर अविनाश नंबर नोट कीजिए , साथ ही लड़की का फोटो भी लीजिए और तत्काल गाड़ी का पता लगाइए। आपलोग चिंता मत कीजिए, आपकी बहू मिल जाएगी…अविनाश को निर्देशित करते हुए संजीव आनंद और निहाल को भी आश्वासन देता है।
ये क्या आनंद जी का नम्बर है… सूरज की दस्तक के साथ आनंद का मोबाइल भी बज उठता है और उधर से सवाल किया जाता है।
जी.. जी.. आप कौन साहब बोल रहे हैं.. आनंद जल्दी से पूछते हैं।
आप थाने आ जाइए… आपकी बहू मिल गई है.. उधर से कहा जाता है और कॉल कट गया।
निहाल जल्दी थाने चल.. नित्या मिल गई है… आनंद शर्ट पहनते हुए कहते हैं।
उसे उसके मायके छोड़ते आना। ऐसी कुलटा की यहां जरूरत नहीं है… सविता दोनों से कहती है।
क्यूं खार खाए बैठी हो मां उससे, जाने किस हालत में होगी.. निहाल मां की बात सुन खीझ जाता है।
छोड़ अपनी मां को… नित्या को देख पहले… गाड़ी की चाभी उठाते हुए आनंद कहते हैं।
नित्या.. इंस्पेक्टर के कैबिन में सिर झुकाए नित्या को बैठा देख निहाल आवाज़ देता है।
निहाल को देखते ही नित्या उससे लिपट कर जार जार रोने लगती है।
आप अपनी पत्नी को लेकर बाहर बैठे और मिस्टर आनंद आप कुछ पेपर्स पर साइन कर दें… इंस्पेक्टर कहता है।
इंस्पेक्टर साहब नित्या ठीक तो है ना… आनंद पूछते हैं।
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देखने से तो ठीक ही लग रही है। आप पेपर्स पर साइन कर दें और फिर हमलोग नित्या के चेकअप के लिए हॉस्पिटल जाएंगे… आनंद की ओर पेपर बढ़ाते हुए इंस्पेक्टर कहता है।
खबरदार जो इसे अंदर लेकर आए तुमलोग… दरवाज़ा खोलते ही नित्या को देख सविता चीखती है।
ये क्या पागलपन है सविता.. इसे सहारा देने के बदले ऐसा व्यवहार… छिः.. आओ बेटा.. आनंद गुस्से से सविता की ओर देखते हुए कहते हैं।
नहीं मेरा घर अपवित्र हो जाएगा.. ऐसी कुलक्षणी के आने से.. सविता दरवाजे से हटने के लिए राजी नहीं होती है।
क्यूं तमाशा बना रही हो मां… ईश्वर से तो डरो.. निहाल नित्या को थामे थामे कहता है।
मैं पवित्र हूं निहाल.. मैं पवित्र हूं। डॉक्टर ने भी तो कहा, मां को बताएं ना… नित्या विस्फारित आंखो से सविता को देखती हुई निहाल से कहती है।
डॉक्टर के अलावा क्या सबूत है… सविता पर नित्या की बात का कोई असर नहीं होता है।
मां ना तो मैं राम हूं और ना ही नित्या सीता ही है, जो कि अग्निपरीक्षा देनी पड़े इसे। मुझे नित्या जीती जागती चाहिए थी बस और ये मेरे सामने है, इतना ही काफी है। आप सबूत इकट्ठे करते रहिए, हमदोनों अब इस घर में नहीं रहेंगे। मैंने अग्नि के समक्ष इसका सुख दुःख में साथ देने का वादा किया था और हर हालत में दूंगा, आप अग्निपरीक्षा की तैयारी करती रहें। चलो नित्या… कहकर निहाल नित्या को लेकर जाने लगता है।
रुक जाओ निहाल.. अभी इसका पिता जिंदा है। ये घर जितना तेरी मां का है, उतना ही नित्या का भी है… नित्या के सिर पर हाथ फेरते हुए आनंद कहते हैं।
आ तक मैंने तुम्हारी किसी बात को नहीं काटा, ना ही विरोध में खड़ा हुआ। जब से नित्या आई है, तुमने सिर्फ और सिर्फ उसे परेशान हो किया है। काश पति होने के नाते मैं तभी तुम्हें रोक देता। तुम्हारी गलत बातों का विरोध करता तो आज शायद तुम गलत सही में फर्क कर सकती सविता। लेकिन बस अब और नहीं, तुम्हें गलत सही समझना ही होगा। कब तक औरत होकर औरत की अग्निपरीक्षा लेती रहोगी.. कहते हुए तीक्ष्ण दृष्टि से पत्नी को देखते हुए दूसरी ओर से नित्या को पकड़े आनंद घर के अंदर आ गए।
#विरोध
आरती झा आद्या
दिल्ली