अफ़सोस – शनाया अहम : Moral Stories in Hindi

20 साल गुज़र गए लेकिन आज फ़िर से श्यामा को वो दिन याद आ गया जिसका अफ़सोस उसे आज भी है और शायद ज़िंदगी भर अफ़सोस रहेगा।  जो कुछ 20 साल पहले घटा था उसमें श्यामा की गलती नहीं थी लेकिन सबने उसे ही दोषी ठहरा दिया था।  टूट गई थी श्यामा उस हादसे के बाद और अपनों की बेरुखी और आरोपों ने उसे अपना देश तक छोड़ने को मजबूर कर दिया था। 

श्यामा को आज भी उस घटना की याद आ गई क्योंकि आज उसका जन्मदिन था , आज वो होता तो 23 साल का होता।  

बालकनी में चाय का प्याला टेबल पर रखे रखे ठंडा हो रहा था और श्यामा उसे याद करके 20 साल पहले की यादों में पहुंच चुकी थी। 

घर में हर तरफ साज सज्जा की जा रही थी क्योंकि आज श्यामा के भतीजे अनिरुद्ध का तीसरा जन्मदिन था।  श्यामा कई दिनों से अपने भतीजे के जन्मदिन की तैयारियों में लगी हुई थी , जान बस्ती थी श्यामा की अपने भतीजे अनिरुद्ध में , उसके माँ बाप से भी ज़्यादा श्यामा प्यार करती थी अनिरुद्ध को और अनिरुद्ध भी अपनी माँ से ज़्यादा बुआ के साथ रहता, बुआ के बिना वो भी एक भी पल रह नहीं पाता था।  बाज़ार की शॉपिंग से लेकर अनिरुद्ध का खाना पीना , डॉक्टर दवाई सब श्यामा ही करती थी। 

सब कहते थे “अरे, श्यामा इतना लाड न लड़ा अनिरुद्ध से, कल तू ब्याह के चली जाएगी तो इसे तेरी कमी बहुत खलेगी और तू भी कहाँ ससुराल में दिल लगा पायेगी इसके बिना ” . श्यामा कह देती थी “अगर ऐसा है तो मैं शादी ही नहीं करुँगी या तो घर जमाई बना लुंगी , लेकिन अनिरुद्ध को ख़ुद से अलग नहीं कर सकती और आँखों में आंसू भरकर श्यामा अनिरुद्ध को गले से लगा लेती”. 

आज अनिरुद्ध का जन्मदिन था , जिसके लिए श्यामा ने सारी तैयारियां कर ली थी।  घर सज गया था , मेहमानों को पहले ही पार्टी का निमंत्रण दे चुकी थी, कैटरिंग , इवेंट मैनेजमेंट सब कुछ हो चुका था।  लेकिन अभी केक और अनिरुद्ध के लिए तोहफ़ा लाना बाक़ी था। 

“भाभी, ओ भाभी , मैं केक और अनिरुद्ध के लिए तोहफ़ा लेने जा रही हूँ , आप अनिरुद्ध के पास आ जाओ “. श्यामा ने अपनी भाभी और अनिरुद्ध की माँ को आवाज़ लगाई। 

नहीं बुआ मैं भी साथ जाऊंगा , अनिरुद्ध ने श्यामा से कहा। 

नहीं बेटू, बुआ बस गई और आई, बुआ तुम्हारा केक और बहुत ख़ूबसूरत तोहफ़ा लेकर आएगी”, श्यामा ने प्यार से अनिरुद्ध को समझाते हुए कहा। 

लेकिन जन्मदिन मेरा है, तो मुझे अपना केक और तोहफ़ा देखना है।  अनिरुद्ध ने ज़िद की तो श्यामा ने उसे समझाते हुए कहा कि “बेटू, तुम्हारा जन्मदिन है, तुम्हारे लिए सरप्राइज है” । 

बुआ ठीक कह रही है बेटा, तुम मम्मा के पास रहो, बुआ आती है बस , कमरे में आते हुए अनिरुद्ध की माँ ने उसे प्यार से कहा लेकिन अनिरुद्ध की ज़िद के आगे दोनों को झुकना पड़ा। 

भाभी मैं, अनिरुद्ध को नहीं रुला सकती, मैं अपने साथ ही ले जाती हूँ, श्यामा भाभी से कह कर अनिरुद्ध को गाड़ी में बिठाने लगी। 

श्यामा की गाड़ी एक बड़े से मॉल के आगे रुकी , वो अनिरुद्ध को लेकर मॉल के अंदर गई ,,मॉल में एक शोरूम से श्यामा ने अनिरुद्ध की पसंद का तोहफ़ा उसे दिलाया , उसके बाद दोनों केक लेने के लिए निकल पड़े। 

केक की शॉप पर बहुत भीड़ थी, जिसे देखकर श्यामा ने अनिरुद्ध से कहा कि “बेटू, थोड़ी देर गाड़ी में बैठो , अंदर बहुत भीड़ है , मैं केक लेकर आती हूँ। 

अनिरुद्ध साथ आने की ज़िद करने लगा लेकिन श्यामा ने इस बार उसे गाड़ी में रुकने के लिए मना लिया।  

श्यामा केक शॉप के अंदर चली गई, अनिरुद्ध श्यामा के जाने के कुछ देर बाद गाड़ी से उतरकर केक शॉप के अंदर जाने लगा, लेकिन सामने से आती गाड़ी को न वो देख पाया न अचानक से सामने आये बच्चे को ड्राइवर देख पाया और पल भर में श्यामा के हाथों का केक ज़मीन पर था और अनिरुद्ध का शरीर ख़ून से लथपथ उसके सामने।  

पल भर में सब उजड़ चुका था, जन्मदिन पर रंगीन कपड़े पहनने वाला अनिरुद्ध सफ़ेद क़फ़न में चला गया।  परिवार इस दुःख को सह नहीं पा रहा था , अनिरुद्ध की माँ दहाड़े मार मार कर रो रही थी, पिता पत्थर बन चुके थे। 

रिश्तेदार अपने आंसू छुपा नहीं पा रहे थे लेकिन श्यामा, वो तो बुत बन चुकी थी , आँख से आंसू तक नहीं गिर पा रहे थे ,उसे रुलाने की कोशिश बेकार जा रही थी। 

ये क्यों रोने लगी, इसी के लापरवाही से मेरी गोद उजड़ गई ,इसने मेरे बच्चे का ध्यान नहीं रखा ,,ये है उसकी अकाल मौत की ज़िम्मेदार। भाभी के मुँह से निकले ये शब्द श्यामा के दिल को चीरते चले गए

एक एक करके सभी श्यामा को पूरी तरह से अनिरुद्ध की मौत का ज़िम्मेदार ठहराने लगे। 

दहाड़े मार मार कर रो पड़ी श्यामा, उस दिन के बाद से सब उसे दोषी की तरह देखने लगे , दुसरी तरफ़ इस घर के एक एक कोने में अनिरुद्ध की याद बसती थी , श्यामा रह रह कर रो पड़ती थी।  

भाई भाभी ग़ैर से हो गए थे।  श्यामा की सहेली के समझाने और अपने पास बुलाने की बात मान कर श्यामा चली गई इस घर से सात समुन्दर पार।  उसने अनिरुद्ध की यादों में ही अपना जीवन तलाश लिया था। 

उसकी सहेली ने उसे समझा बुझाकर उसकी शादी अपने भाई से करवा दी , उसकी शादी में भी भाई भाभी नहीं आये थे। 

श्यामा का नया जीवन शुरू हो चुका था , उसने अपने बेटे का नाम अनिरुद्ध ही रखा था।  

श्यामा बीते वक़्त को याद कर अफ़सोस में डूबी थी कि काश, उस दिन अनिरुद्ध को अपने साथ ले जाती तो आज वो अपन तेइसवां जन्मदिन मना रहा होता।  ये अफ़सोस उसके दिल के हज़ार टुकड़े कर देता था। 

माँ, आप यहां बैठी हो और मैं आपको सारे घर में तलाश कर रहा हूँ ,पापा भी आज बिज़नेस टूर से वापस आने वाले हैं , शाम की पार्टी में वो हमें ज्वाइन कर लेंगे। 

पार्टी का नाम सुनते ही श्यामा को याद आया कि आज न सिर्फ़ उसके भतीजे अनिरुद्ध का जन्मदिन था उसके बेटे अनिरुद्ध का भी जन्म दिन था। 

उसने अपने बेटे को सीने से लगाकर ढेरों आशीर्वाद दिए। पल भर को उसे लगा कि ये वो ही 3 साल का अनिरुद्ध है जो आज की तारीख़ को उससे जुदा हो गया था और आज की तारीख़ को उसे बेटे के रूप में मिल गया था। 

श्यामा का अफ़सोस उसकी रूह से जुड़ा था , शायद इसीलिए भगवान ने इस बार अनिरुद्ध को उसकी कोख से पैदा किया था। 

श्यामा अपने आंसुओं को छिपाते हुए अपने बेटे अनिरुद्ध के साथ ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ गई ,,,अपने दिल के अफ़सोस को एक बार फ़िर इस उसने अपने अंदर ही दफ़न कर लिया।

लेखिका : शनाया अहम

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