अपने घर की बालकनी में बैठी उमा एकटक सूरज को निहार रही थी।उसकी जिन्दगी की तरह शाम का सूरज ढ़लते दिन का आभास करा रहा था।उसकी जिन्दगी का सूरज भी तो बेवफा निकलकर रात के अंधेरे में गुम हो गया। उमा को सदैव अफसोस रहेगा कि उसकी खुद की गलती के कारण ही उसका प्यार उससे दूर चला गया।
उसका अंतर्मन उस घड़ी को कोसता रहता है,जिस घड़ी में उसने अपनी सहेली नीरजा को अपने घर में पनाह दी थी।पनाह माँगनेवाली ही ने उसके पति के साथ षड़यंत्र रचकर उसे और उसके बच्चों को अनाथ कर दिया।उसने सुना था कि जिन्दगी का सफर सुख-दुःख की छाँव है,कहीं सूरज की रोशनी है,तो कहीं घना अंधेरा छाया रहता है,परन्तु उसके जीवन में तो अचानक से अंधेरा-ही-अंधेरा भर गया।
उमा को आज भी याद है कि उसके साथ शादी के कारण सूरज अपने परिवारवालों से विद्रोह कर उठा था।उसे अपने प्यार पर गुमान था।शादी के बाद उसकी जिन्दगी में खुशियाँ -ही-खुशियाँ थीं।उसके प्यार की निशानी बेटा-बेटी के रुप में दो सुन्दर फूल खिल चुके थे।सूरज की बेपनाह मुहब्बत से उमा दिनोंदिन नवयौवना बनती जा रही थी।
परिवार में आपस में बेशुमार प्यार की बरसात होती थी।दोनों पति-पत्नी मिलकर भविष्य की योजना बनाते,बच्चों के सुखद भविष्य का ख्वाब बुनते।अचानक से उसकी जिन्दगी में नीरजा नाम की काली आँधी आई, जो उसके जीवन से उसकी खुशियाँ चुराकर ले गई। उसके कारण उसके जीवन में रिक्तता और शून्यता भर गई। बिना किसी अपराध के पति ने उसे ठुकराया, विश्वासघात कर डाला।
उमा को आज भी वो दिन अच्छी तरह याद है,जिस दिन गाँव से उसकी सहेली नीरजा का फोन आया था।नीरजा ने रोते-रोते उससे कहा था -” उमा! कुछ दिन पहले दुर्घटना में पिताजी नहीं रहे।मेरे लिए परिवार चलाना मुश्किल हो गया है।माँ की बीमारी और भाई की पढ़ाई के कारण गहरी आर्थिक संकट है।गाँव में कोई रोजगार नहीं है।ग्रेजुएट होने के बावजूद यहाँ कोई काम नहीं है।तुम ही जिन्दगी जीने का कोई रास्ता बताओ।”
सहेली की करुण फरियाद से उमा विह्वल हो उठी ।उसने सहेली को सांत्वना देते हुए कहा -” नीरजा!धैर्य रखो।मैं अपने पति से बात करूँगी।कम-से-कम उनके दफ्तर में तुम्हें काम दिलाने की कोशिश करुँगी।”
उमा ने पति सूरज से अपनी सहेली नीरजा के बारे में बात की।आरंभ में तो सूरज नीरजा को बुलाने में आना-कानी करने लगा,परन्तु पत्नी की जिद्द के समक्ष मान गया।कुछ दिनों बाद नीरजा उसके पास आ गई। नीरजा बला की खुबसूरत थी।कजरारी आँखें,दूधिया रंग,दुबला-पतला शरीर, अनार से लाल होंठ जिन्हें देखकर पहली बार में कोई भी आकर्षित हो उठता।
कुछ दिनों तक तो नीरजा अलग रहने की बात करती थी,परन्तु उमा ने उसे डाँटते हुए कहा था -” नीरजा!तुम मेरी सहेली हो।इस बड़े शहर में तुम्हारा अकेले रहना सुरक्षित नहीं है।मेरा इतना बड़ा घर है।क्या मैं अपनी सहेली को एक कमरा रहने के लिए नहीं दे सकती हूँ?”
‘अंधा क्या चाहे दो आँख’ नीरजा भी तो मन -ही-मन यही चाह रही थी।
कुछ दिनों बाद नीरजा सूरज के दफ्तर में काम करने जाने लगी।खुबसूरत नीरजा के कोपलों पर सुवर्ण की पीताभा निरंतर चमकती चली जा रही थी।धीरे-धीरे सूरज उसे अपने साथ ही दफ्तर ले जाता,ले आता।अब नीरजा सूरज के दिल में पैठ बनाने लगी थी।सूरज उसे अब मीटिंग्स और टूर पर भी साथ ले जाने लगा था।इन सब बातों से बेखबर उमा विश्वास की डोर थामे बैठी थी।वह इस भ्रम में जी रही थी कि उसके रिश्ते अटूट हैं,वे कभी विश्वासघात नहीं करेंगे।उसने सपने में भी नहीं कल्पना की थी कि उसके मजबूत रिश्तों की डोरी इतनी कच्ची निकलेगी!
अवैध रिश्तों की बातें भला कब तक छिपतीं!एक दिन उमा को सबकुछ पता चल ही गया।उसने दोनों को सामने बिठाकर पूछा -” सूरज!मैं अफवाहों में विश्वास नहीं करती।तुम दोनों अपने रिश्तों की असलियत ईमानदारी से मुझे बताओ। “
यह सुनकर नीरजा तो खामोश रही,परन्तु सूरज ने बेशर्मी
से नीरजा के साथ अवैध रिश्तों की बात कबूलते हुए कहा -“उमा!मैं नीरजा से प्यार करने लगा हूँ,उससे शादी करूँगा।तुम्हें और बच्चों को कोई आर्थिक परेशानी नहीं होगी।”
सूरज की बातों से उमा हतप्रभ थी।कितनी आसानी से सूरज ने उसक हृदय पर वज्रपात कर दिया!रिश्ते वही थे,पर अंदाज बदला-बदला था।खामोश जुबां,क्रंदन करता उसका मन सोचता है कि ये क्या से क्या हो गया?उसका मुखकमल पल भर में मूर्छा उठा।सूरज ने उसे पलभर में दूध में गिरी मक्खी की भाँति अपनी जिन्दगी से निकाल दिया।उसे बहुत गुरूर था अपने प्यार पर,क्या पता था कि वो उसका वहम था!
अपनी गलती पर उमा के दिल में एक हूक-सी उठने लगी।शरीर के किसी अंग के कट जाने से शायद उसे उतनी तकलीफ नहीं होती,जितनी उसे पति और सहेली के विश्वासघात से हुई। उसकी उम्मीदों का महल एक ही झटके में भरभराकर गिर चुका था।जिन मजबूत कंधों के सहारे उसने जिन्दगी जीने की सोच रखी थी,वही पानी के बुलबुले के समान छ्द्म निकला।उमा अपनेअस्तित्व पर हुए आघात से धू-धूकर जल रही थी।
जिस अतुल रूप और यौवन पर उसे गुमान था,उसे पलभर में अपनों ने ही नोंच डाले,टुकड़े-टुकड़े कर डाले।किसी के प्रति अगाध विश्वास भी इंसान को गहरी चोट पहुँचा जाता है।उसने सहेली को अपना समझकर अपनी ही खुशहाल जिन्दगी में आग लगा डाली। अफसोस से उसकी आँखों से आँसुओं की धार बह निकली।उसी समय उसके दोनों बच्चों ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा -” माँ!आप मत रोओ।पापा छोड़कर चले गए तो क्या,हम दोनों हैं न!”
बच्चों की बातें सुनकर उमा का मृतप्राय आत्मविश्वास जीवित हो उठा।दोनों बच्चों को गले लगाकर उसने प्रण करते हुए खुद से कहा -” मैं अब से अफसोस करने के बजाय खुद को आत्मनिर्भर बनाऊँगी और बच्चों का भविष्य सवारूँगी।”
उमा के होठों पर मुस्कान देखकर दोनों बच्चे मुस्कराने लगें।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।