माँ…माँ…ननका भाई आ रहा है…. सरकारी दौरे पर इधर आना हो रहा था तो बोल रहा है घर आकर सबसे मिलकर जाऊंगा….. फोन आया था…. मोना ननका आ रहा है घर में सब चीजें तो है ना…!
बड़ा भाई कनका (कनक) ने एक ही साँस में खुश होते हुए कहा…
हां भाई हां ….मैंने सुन लिया है , देवर जी आ रहे हैं …अच्छा ये बताइए… अकेले या देवरानी जी व बच्चे भी आ रहे हैं ….नहीं इस बार ननका अकेले आ रहा है…!
ननका के आने की खुशी मां सुचिता के चेहरे पर स्पष्ट रूप से झलक रही थी…
आइए, थोड़ा सुचिता के पारिवारिक पृष्ठभूमि पर नजर डालते हैं ….
जानकीपुरा में विशाल संपत्ति के मालिक थे मनोहर जी …पैतृक संपत्ति के अलावा उनकी जमींदारी भी थी… आसपास के क्षेत्र में काफी दबदबा था…
जब सुचिता की शादी हुई थी.. एक जिम्मेदार पत्नी व सुघड गृहिणी बन अपने पूरे दायित्व को बखूबी निभाया था…. फिर एक प्यारे से पुत्र को जन्म दिया…. जिसका नाम कनक रखा गया था …. एक वर्ष के अंतराल में ही दूसरा पुत्र भी हो गया था …चूँकि वो छोटा था इसलिए उसे सब प्यार से ननका बोलते थे …. कुछ समय बाद… ननका सबको बोलते हुए सुनता था कि बड़े भाई को सब कनक बोल रहे हैं …तो वो भी कनक बोलने की कोशिश तो करता पर स्पष्ट रूप से बोल नहीं पाता था… और उसके मुंह से कनका .. कनका … ही सुनाई पड़ता था… इस तरह कनक का पुकारू नाम कनका ही पड़ गया…।
धीरे-धीरे खुशियों से भरा परिवार आगे बढ़ रहा था… कनका और ननका ने 12वीं की परीक्षा भी पास कर ली थी …अब उनका बाहर जाकर पढ़ाई करने का समय आ गया था…. इसी बीच.. कहते हैं ना … कोई कितना भी संपन्न क्यों ना हो भगवान की मर्जी के आगे किसी का कुछ नहीं चलता एक दिन अचानक हार्ट अटैक से मनोहर जी की मृत्यु हो गई… पत्नी सुचिता और दो बेटे कनका और ननका सहित खुशियों से भरा पूरा परिवार छोड़कर चले गए मनोहर जी…!
अब घर में चिंता बन गई यदि दोनों बच्चे बाहर चले गए तो सुचिता बिल्कुल अकेली रह जाएगी… और फिर घर की संपत्ति , खेती बाड़ी सब की जिम्मेदारी सुचिता अकेले कैसे संभालेगी… हालांकि सुचिता तो चाहती थी दोनों बच्चे बाहर जांए , पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हों…।
दोनों भाइयों ने आपस में मिलकर तय किया कि… दोनों में से एक भाई बाहर जाएंगे और एक मां के साथ घर पर ही रहकर यहीं पढ़ाई करेगा और घर व मां की देखभाल भी करेगा..!
कनका और ननका आपस में ही तर्क वितर्क करते रहे …आप चले जाओ बाहर पढ़ने …तो आप चले जाओ बाहर पढ़ने…! दोनों ही एक दूसरे के लिए त्याग करने को आतुर थे…।
फिर आखिर में निर्णय ये हुआ कि..
जिसका 12वीं में नंबर ज्यादा आया है …वही बाहर जाएगा.. मतलब जो पढ़ने में ज्यादा होशियार है , इस तरह ननका दिल्ली चला गया और कनक सुचिता के साथ यहीं रहकर आगे की पढ़ाई करने लगा…!
ननका पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बन गया… बहुत बड़ा अफसर…
” ननका सिंह “
कुछ दिनों बाद ननका सिंह ने अपनी पसंद की लड़की( सहकर्मी) आश्रिता से शादी कर ली थी… आश्रिता पढ़ी-लिखी व काफी समझदार थी…!
इधर कनक की भी शादी हो गई थी …कनक की पत्नी मोना भी समझदार तो थी पर कहीं ना कहीं अपने पति के अतीत की बातों को सुनकर उनके द्वारा किए त्याग.. पढ़ाई को लेकर उसे बेवकूफी करना ही समझती थी…।
इस बात को लेकर पति-पत्नी दोनों के विचारों में ” मतभेद ” होते रहते थे…
कनक इसे परिवार के लिए उठाया गया सार्थक कदम बताता था …इसके विपरीत मोना इसे बेवकूफी भरा कदम मानती थी…!
ननका सिंह को छुट्टियां कम मिलती थी.. पर जब भी संभव होता वो घर जरूर आते और अपने परिवार को भी घर से हमेशा जोड़ कर रखा था….!
एक दिन बातों ही बातों में आश्रिता ने मोना से कहा…
देखिए जेठानी जी …आप छोटे शहर में जरूर रहती हैं …पर चिंता बिल्कुल मत करिएगा.. आपके बच्चे , मेरे बच्चों के साथ ही पढ़ेंगे ….
आप घर संभालिए ,मैं बच्चों को संभाल लूंगी…!
अरे आश्रिता ..तुमने तो मेरी चिंता ही दूर कर दी ..बच्चों की पढ़ाई को लेकर मैं भी चिंतित रहने लगी थी …अब उंचे क्लास में पहुंचने वाले हैं…।
देवरानी जी.. एक बात पूछूं नाराज तो नहीं होगी ना…
नहीं दीदी , नाराज क्यों होंंऊगी ..आप जेठानी के अलावा मेरी बड़ी बहन भी तो हैं…और फिर…
” हमारे विचारों में मतभेद हो सकते हैं पर हम मनभेद कभी नहीं होने देंगे “
आप बोलिए ना क्या बात है…?
देवरानी जी , मेरा ना कभी-कभी तुम्हारे जेठ जी से विचारों से मतभेद हो जाता है …मुझे डर है कि कहीं , उनके समान मेरे बच्चों को भी घर देखने के लिए… अपनी पद , प्रतिष्ठा , नौकरी …से त्याग ना करना पड़े …।
ये तो उस समय बाहर जाने का मौका खुद ना लेकर देवर जी को दे दिए …पर कहीं मेरे बच्चों को भी…
आगे मोना और कुछ कहती आश्रिता ने कहा …बस इतनी सी बात… सासू मां के बाद आप और भैया ही बड़े हैं.. फिर भैया के फैसले के सामने हम हमेशा नतमस्तक रहेंगे …एक बात और दीदी हमारे व्यवहार से कभी आपको लगा क्या कि… जेठ जी ने बाहर जाकर पढ़ाई न करने का फैसला और छोटे भाई को बाहर जाने का मौका देकर कोई गलती की है …या कहूं हमारे तरफ से घर के लिए या आप लोगों के लिए कभी कोई कमी रह गई है क्या…?
अरे नहीं आश्रिता …मेरा ये मतलब नहीं था …मैं तो यह सोच रही थी कि फिर से कहीं इतिहास दोहराने की बारी आएगी तो कहीं…
नहीं नहीं दीदी… भविष्य की प्लानिंग की है हमने …मेरा बेटा एग्रीकल्चर से पढ़ाई करेगा और पढ़ लिखकर जैविक खेती को प्रमुखता देगा …फिर जैसे ये दोनों भाई समझदार है ना वैसे हमारे बच्चे भी समझदार होंगे आप चिंता मत करिए…!
गाड़ी आ गई …लगता है ननका आ गया…
बाड़ी के ताजे भुट्टे ( मक्का) का कबाब….. जो ननका को बहुत पसंद था… सुचिता ने बनवाया था …पर सुचिता के मन में एक संदेह था ..कि ननका के साथ और भी अफसर होंगे.. कुछ बाजार का नाश्ता समोसा वगैरह भी मंगवा लें क्या …पर कनक यह कहकर मां को समझा दिये कि.. मां ये सब तो ननका रोज खाता होगा अपनी बगान के भुट्टे उसे कहां नसीब होता है मां …।
मोना चाय चढ़ाने को केतली उठाई ही थी.. कि सुचिता आज ननका को अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाना चाहती थी …शायद मोना ने सासू मां की भावनाओं को पढ़ लिया था उसने मुस्कुरा कर सुचिता को केतली पकड़ाई ….सुचिता ने अदरक वाली अच्छी कड़क चाय बनाई और कांपते हाथों से चाय छानने लगी…!
कहते हैं ना …” शरीर बूढ़ा होता है भावनाएं प्यार तो वही रहती है “
माँ…. कहते हुए ननका एक झटके में अंदर आया और मां को बाहों में भर लिया… अचानक बेटे की आवाज सुन सुचिता के हाथ से हड़बड़ाहट में चाय उंगली पर गिर गई… पर मां को थोड़ी भी जलन नहीं हुई , होती भी कैसे… इतने दिनों बाद बेटे के आने से कलेजे में ठंडक जो थी …पर कनक ने शायद देख लिया था …तुरंत बर्फ लाकर उंगली पर रगड़ा और शरारत भरे अंदाज में बोला …अभी भाई ननका के जाने के बाद पूरा जलन का दर्द मुझे ही सहना पड़ेगा और दोनों भाइयों के साथ मोना और सुचिता भी हंसने लगे…।
हां बेटा जानती हूं ..ननका सरकारी अफसर है , पर मेरा अफसर बेटा तो तू भी है… सुचिता ने कनक की तारीफ करते हुए कहा…!
सच में सासू मां आपकी दूरदर्शिता आपकी सोच , आपका व्यवहार , और कनक के सही निर्णय ने इस घर में कभी विचारों में मतभेद आने का मौका ही नहीं दिया… आपके द्वारा अफसर बेटा और खेती बाड़ी करने वाले बेटा में कभी फर्क नहीं किया गया और फिर देवर जी ,देवरानी जी भी हमारे सिंह परिवार के उत्थान में इतना कुछ किए हैं तभी तो समाज में हमारे परिवार के एकता की मिसाल दी जाती है…!
और तू अपने बारे में भी तो कुछ तारीफ कर बहू सुचिता ने मोना को छेड़ते हुए कहा…
मेरे दिमाग में चल रहे सारे मतभेदों को आश्रिता ने साफ कर मुझे भी इस परिवार के एकता में योगदान का हिस्सा बना दिया….।
( स्वरचित , अप्रकाशित , सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )
साप्ताहिक विषय
# मतभेद
संध्या त्रिपाठी