“पापा ..अगले महीने कंपनी मुझे एक साल के लिए जर्मनी भेज रही है, प्रोजेक्ट है तो एक टीम जा रही जिसमें मेरा भी नाम है” वैभव ने खाना खाते समय अपने पापा राम कपूर से कहा-
“अगले महीने..? तुझे पता है ना दो महीने के बाद शिखा की शादी है तू कैसे जा सकता है ? यहां सब कौन संभालेगा ? जाना है तो शादी के बाद चले जाना। तू बोल दे अपने ऑफिसर को वह समझ जाएंगे।”राम कपूर ने कहा ।
“पापा कमाल करते हो आप, मेरे भविष्य का सवाल है दोबारा ऐसा मौका मिले ना मिले और फिर एक बात और पापा अगर मैं यहां होऊंगा भी तो या तो ये शादी नहीं होगी या फिर शादी में मैं नहीं रहूंगा
क्योंकि शिखा लव मैरिज कर रही है।” “मतलब….?” राम कपूर ने आश्चर्य भरे स्वर में पूछा “लव मैरिज ही तो कर रही है और फिर हमें जब कोई एतराज नहीं है तो तुझे क्या प्रॉब्लम है..?” “पापा हमारे परिवार में लव मैरिज को कब से इजाजत मिलने लग गई ? भूल गए इस परिवार की एक लड़की को 20 साल से इस घर की देहरी को पार करने की आज तक इजाजत नहीं मिली
भूल गए क्या आप अपनी बहन को, हमारी उमा बुआ को..? उन्होंने भी तो लव मैरिज की थी, क्या गुनाह किया था लव मैरिज ही तो की थी ना और इस घर में सबसे ज्यादा तकलीफ आपको ही हुई थी
दादा दादी तो मान भी गए थे पर आप तो पूरे दकियानूसी ही बन गए थे। अब अपनी बेटी के लिए कहां गए आप के आदर्श, आपके उसूल?” राम कपूर के मुंह से कोई शब्द ना
निकला पत्नी की तरफ देखा उन्होंने भी अपना मुंह नीचे कर लिया। “पापा 12 साल का था तब मैं, बुआ का दरवाजे पर आकर रो रो कर गिड़गिड़ाना, दादा दादी से मिलने के लिए उनका तड़पना सब याद है मुझे ।
आपने उनकी राखी, भाई दूज जैसे त्योहारों पर भी आने की रोक लगा दी थी। दादा दादी की मृत्यु पर भी उन्होंने शमशान में जाकर उनके अंतिम दर्शन किए घर आने तक की इजाजत आपने नहीं दी
और जब जायदाद की बात हुई तो मुझे साथ लेकर गए पेपर साइन करवाने के लिए वह भी उन्हें बाहर बुलाया । वह तो बुआ भाई के प्यार में पागल थी जो उन्होंने बिना पढ़े पेपर्स पर अपने हस्ताक्षर कर दिए तो माफ कीजिए
पापा मुझ में भी आप ही का खून है अगर शिखा लव मैरिज करेगी तो उसका इस घर से कोई रिश्ता नहीं रहेगा।” कहकर वैभव ने अपनी मां की तरफ देखा “मम्मी,
कहते हैं कि घर पर रिश्तो की नींव एक औरत ही रखती हैं ।आपने भी कभी पापा को समझाने की कोशिश नहीं की ? बुआ का मायका तो आपने भी खत्म कर दिया अगर एक बार आप ही पहल कर लेती उन्हें राखी पर
बुला लेती तो क्या होता ज्यादा से ज्यादा पापा थोड़े दिन आपसे बात ना करते नाराज होते पर इतनी हिम्मत तो उनमें ना थी कि आप से भी रिश्ता तोड़ देते ।
आप सोचो मम्मी, कल को आपकी बहू भी अगर आप के नक्शे कदम पर चले, शिखा का मायका ही ही खत्म कर दे तो आपको कैसा लगेगा ?
और वैसे पापा आपको बता दूं आप जैसा बदनसीब भाई मैंने नहीं देखा जिसकी कलाई बहन के होते हुए भी राखी के दिन सूनी रहती है और मेरी कलाई पर तीन-तीन राखियां होती हैं ।
ना..ना हैरान होने की जरूरत नहीं है मैं आपको हमेशा झूठ बोलता था कि वह दो राखियां मुझे मेरे दोस्त अमित की बहने बांधती थी वो मुझे स्वरा और वाणी, बुआ की बेटियां बांधती थी । तो पापा अब फैसला आपको करना
है या तो शिखा की लव मैरिज होगी जिसमें उसका इस घर से रिश्ता टूट जाएगा या फिर उमा बुआ को घर बुलाकर उन्हें पूरी तरह से मान इज्जत दी जाएगी और जायदाद में से उनका जो हिस्सा बनता है वह उन्हें दियाजाएगा ।
आप और मम्मी उनके घर जाकर उन्हें इज्जत से न्योता देकर आएंगे वरना मेरे से तो आप कोई उम्मीद रखना मत।” कहते हुए वैभव कमरे से बाहर निकल गया दरवाजे के पास ही शिखा खड़ी थी
होठों पर मुस्कान और आंखों में आंसू भरे वह बड़े भाई के गले लग गई “भैया मुझे बहुत गर्व है कि आप मेरे भाई हो।” “पगली स्क्रिप्ट तो तेरी ही लिखी थी मैं तो बस अपनी भूमिका निभा रहा था । गर्व तो मुझे तुझ पर है
जिसने एक बेटी को, हमारी बुआ को उसका मायका लौटा दिया।” “अरे भैया आपको वह कहावत याद है ना – बुआ भतीजी एक जात, बस उसे ही याद रखा मैंने।”
और दरवाजे के पीछे खड़े राम कपूर सोच रहे थे कि आज उनके बच्चों ने ही उनके अंदर खड़ी अहंकार की ऊंची दीवार को गिरा दिया।
शिप्पी नारंग
नई दिल्ली
VM