Moral Stories in Hindi :
सुबह-सुबह सुमि को देखकर सुधा को आश्चर्य हुआ।
” अरे सुमि, तुम इतनी सुबह?”
बाहर अपने बगान में सुधा अपने पापा के साथ टहल रही थी। सुमि ने तो सोचा था कि बाहर से ही उसे संदेशा दे चली आऊँगी, लेकिन चाचा जी को देखकर उसे बहाना बनाना पड़ा।
चाचा जी को नमस्ते करते के बाद सुमि से इतिहास का नोटबुक लेने के लिए उसके कमरे तक आई।
“सुधा आज अनुराग भैया तुम से मिलना चाहते है। मेरे घर शाम को आ जाना। तुम काॅलेज के लिए निकल जाओगी, इसलिए मुझे सुबह-सुबह आना पड़ा।”
“ठीक है।”
चलते-चलते रुक कर सुमि ने कहा।
“एक कोई काॅपी तो दो। बाहर ही चाचा जी है।”
सुमि तो चली गयी । अब सुधा शाम को घर देर से आने का बहाना ढूँढने लगी। जहाँ चार वहाँ राह।
अनुराग को देखते ही सुधा को तीन साल पहले की वो स्थिति स्मरण हो आई जब अनुराग से पहली बार मिली थी।
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नये पड़ोसी आए थे। उसकी माँ पड़ोसी धर्म निभाने अनुराग की मम्मी से मिलने गयी थी। अनुराग सुधा से चार सार आगे था। तब सुधा दसवीं में थी और अनुराग स्नातक की परीक्षा देकर घर में आराम फर्मा रहा था।
माँ को बुलाने की गरज से सुधा वहाँ गयी। माँ ने सुधा से सबको मिलवाया।
” ये है तुम्हारा अनुराग भैया।”
सामने अनुराग को देखकर न जाने क्यों सुधा भैया बोलने से कतराने लगी।
” मैं इन्हें अपना दोस्त बनाना चाहती हूँ।”
“अरे, तुमसे इतना बड़ा है।”
माँ ने कहा था।
दबी आवाज में सुधा कुछ बोली जिसे सिर्फ उसका दिल ही सुन पाया।
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फिर तो उस परिवार से काफी घनिष्टता हो गयी। मूल में शायद सुधा और अनुराग ही थे। धीरे-धीरे सुधा अनुराग से इतनी खुलती गयी कि दोनों माँओं को पसंद नही आया। अनुराग को देखते ही सुधा सबकी उपस्थिति भूल जाती थी। उसे अपने चारों तरफ सिर्फ अनुराग ही दिखाई देता था।
एक दिन माँ ने कह भी दिया-
” तुम्हारा अनुराग से बात करने का तरीका ठीक नहीं है। अब तुम अनुराग से दूर ही रहो।”
माँ का ये फरमान सुधा को बर्दाश्त नहीं हुआ। माँ से खूब लड़ाई हुई और सुधा क्रोध में आकर सीधे अनुराग को सबकुछ बता दिया।
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” मैं तुम से अब बात नहीं कर सकती। मेरी माँ को लगता है कि हम गलत है।”
कहने को तो सुधा अनुराग से दूर रहने लगी, लेकिन स्थूल रूप से जितनी ही दूर रहती थी, सूक्ष्म रूप से वह उतनी ही उसके करीब होने लगी। जब- तक अनुराग को एक झलक देख नहीं लेती थी तब- तक उसे सुकून नहीं मिलता था। अनुराग भी सुधा की इस बेचैनी का अनुभव किया था और आज एक महीना बाद सुमि से संदेशा भेजवाया। सुमि सुधा की हमराज सहेली थी। उसके घर और अनुराग के घर से भी पारिवारिक सम्बन्ध था।
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“अरे सुधा वहाँ क्यों खड़ी हो? अन्दर आओ।”
अनुराग की आवाज से सुधा चौक गयी। सुमि के घर में उस समय कोई नहीं था।
सुधा को बैठते ही अनुराग ने सीधे प्रश्न किया-
अनुराग सुधा को सुधि ही कहता था।
” सुधि, मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारे मन में मेरे लिए क्या भाव है? तुम्हारे एक हाँ पर मैं यमराज से भी लड़ सकता हूँ।”
“यमराज से तो लड़ सकते हो, लेकिन मैं अपने पिता से तुम्हें लड़ने नहीं दूँगी। स्वयं को मिटा दूँगी पर पिता को आहत नहीं करूँगी।”
“फिर मेरी एक झलक पाने के लिए झरोखे पर खड़े होने का क्या मतलब है?”
” प्रेम तो उन्मुक्त है। उसे कौन रोक सकता है?”
इतना कहकर सुधा वहाँ से निकल गयी। अनुराग उसे जाते हुए देखता भर रह गया। अब तो सुधा की दिनचर्या ही बदल गयी। चंचल तितली सी उड़ती हुई सुधा अधिकतर खामोश रहने लगी। काॅलेज जाना भी एक मजबूरी बन गयी थी। अधिकतर समय खिड़की पर ही व्यतीत होता था। हँसना – बोलना जैसे भूल ही गयी थी। इधर दोनों के परिवार की मित्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। मेधावी छात्रा सुधा किसी तरह चालीस प्रतिशत नम्बर लाकर प्रथम साल की परीक्षा पास की।
इधर अनुराग स्नातक की डीग्री से वंचित रहा और पुनः पढ़ाई से मन उचट गया। सुमि के माध्यम से सुधा ने कहलवाया भी था कि स्नातक की डीग्री जिन्दगी सुधार सकती है, लेकिन उसे अब जिन्दगी कहाँ दिख रही है?
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उसके पिता ने अपने साथ दुकान पर बैठना शुरू कर दिया। कपड़े की बहुत बड़ी दुकान थी।
एक साल बाद ही अनुराग पर शादी का दबाव पड़ने लगा। एक बार फिर सुमि संदेशवाहक बनकर आई।
“अनुराग भैया तुमसे मिलना चाहते हैं।”
इस बार सुमि मंदिर परिसर में लेकर गयी।
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“सुधि, मेरी शादी हो रही है।”
“अच्छी बात है, कर लो।”
” सोच लो।”
“इसमें सोचना क्या है? शादी शरीर से शरीर की होगी। आत्म तो स्वतंत्र है। मेरा सम्बन्ध तो तुम्हारी आत्मा से है।”
इतना कह वहाँ से चली आई, लेकिन डगमगाते कदमों से घर तक पहुँचना आसान नहीं था। चार कदम चलकर ही अचेत हो गयी। सुमि काफी घबड़ा गयी। रिक्शे से लेकर घर आई। माँ ने आनन-फानन में डाँक्टर को दिखाया। गर्मी को ही डाँक्टर ने कारण माना।
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अनुराग की शादी तय हो गयी। नियत समय पर सारी रस्में शुरू हो गयी। अनुराग की मम्मी को लाख बुलाने पर भी सुधा शादी में शामिल नहीं हो पाई। सभी जानते थे कि सुधा शादी की सभी रस्मों की लोकगीत खूब गाती थी।
सुधा कैसे देख सकती थी कि अनुराग किसी और के लिए दूल्हा बने।
अपनी तबियत का बहाना बनाकर लेटी रही। चेहरा पीला पड़ चुका था। बालों में दो- दो दिन कंधी नहीं पड़ते थे। आँखे और जुबान दोनों खामोश थे। दोनों परिवार खुश था कि हम गलत थे, सुधा- अनुराग सही थे वरना आज अनुराग शादी नहीं करता।
शहनाई बजी अनुराग दूल्हा बना। सुमि बता रही थी कि परिछावन के समय अनुराग भैया बच्चों की तरह रो रहे थे।
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बारात गयी और दुल्हन भी आ गयी। अनुराग के घर में दुल्हन का गृहप्रवेश हो रहा है और इधर सुधा के घर में कोहराम मच गया। तीन दिन से सुधा को नींद नहीं आई थी । वह सोना चाहती थी। अतः पापा की नींद की गोली खाकर दिल और दिमाग को अनुराग की यादों से ब्रेक देना चाहती थी ताकि अनुराग को कुछ देर के लिए ही सही भूल सके। उसे क्या पता था कि चार गोली सदा के लिए सुला देगी। शीशी में भी चार गोली ही कम थी। यदि मरने के इरादे से खाई गयी होती तो चार ही क्यों? डाॅक्टर का कहना था। अतः कोई पुलिस केस भी नहीं हुआ।
सुधा अगले जन्म के इंतजार में जाकर मृत्युलोक के दरवाजे पर बैठी अनुराग का इंतजार करने लगी। अगले जन्म में अधूरी प्रेम- कहानी पूरी होने की उम्मीद में।
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।