जब मैं 8-9 साल की थी तो मैं फ्री हैंड आर्ट बनाया करती थी.. मेरी मम्मी मुझे आर्ट बनाते देखकर बहुत खुश होती थी । धीरे धीरे मुझे पता चला कि मेरी मम्मी भी कला की बहुत शौकीन थी और वह ऑयल पेंटिंग करती थी लेकिन शादी होने की वजह से वह पेंटिंग नहीं कर पाई ।
जब मैं 10-11 साल की थी तब मेरी मम्मी ने मेरे अंदर कला के लिए बहुत लगन देखते हुए मुझे आर्ट क्लासेस में डाला जहां पर आयल पेंटिंग सिखाई जाती थी… वह जो मास्टर जी थे वह वही थे जिनसे मम्मी ने आर्ट सीखी थी
दरअसल मम्मी अपनी एक अधूरी पेंटिंग पूरी करवाना चाहती थी इसलिए उन्होंने मुझे क्लासेज में भेजा था लेकिन मेरी उम्र इतनी छोटी थी कि मास्टर जी ने मुझे लेने से मना कर दिया । 11 साल के बच्चे के लिए आयल पेंटिंग एक बहुत बड़ी चीज है लेकिन जब मेरी मम्मी ने ज़िद की तो मास्टर जी ने कहा कि अगर यह कुछ बनाने लायक होगी तो मैं इसे सिखाऊंगा …
उन्होंने पहले तो मुझे एक ग्राफ से स्केच बनाने के लिए बोला… यह सब तो मैं बचपन से ही करती रही थी इसलिए तुरंत ही उन्हें ग्राफ खींच कर दिखा दिया और अगले दिन स्केच भी पूरा कर दिया और वह भी ह्यूमन स्केच…. वो काफी प्रभावित हुए क्योंकि और बच्चों को ग्राफ सीखने में ही दो-तीन दिन लग जाते थे और मैंने पहले दिन ही ग्राफ खींचकर ह्यूमन फिगर बना दिया था ।
मास्टर जी काफी प्रसन्न हुए फिर भी माने नहीं ….10-12 ग्राफ बनाने के बाद ही मुझे कैनवास पर उतारा … मम्मी को लगा शायद अब मुझे वह पेंटिंग पूरी करने का मौका मिलेगा लेकिन मास्टर जी के नियम थे … डायरेक्ट ह्यूमन फिगर का पेंटिंग बनाना उनके नियम में नहीं था
पहली प्राकृतिक दृश्य व दूसरा जीव जंतु और तीसरा फेस यानी किसी इंसान की तस्वीर ।
मास्टर जी ने मुझसे पहली नेचर पेंटिंग बनवाई ….अकेले मैंने नहीं बनाई … मदद वही करते थे और सिखाते भी थे… फिर एनिमल पेंटिंग भी ऐसे ही पूरी हो गई… फिर आई तीसरी पेंटिंग जो मेरी मम्मी ने आधी बना रखी थी…. पहले से उसमें रंग भी भरे हुए थे। मेरे ख्याल से डेढ़ × 3 फीट की वह पेंटिंग थी लेकिन 10- 12 साल पुरानी होने की वजह से उसके रंग काफी फ़ीके हो गए थे
मास्टर जी ने उसमें बिल्कुल शुरू से रंग भरवा कर कंप्लीट करवाना शुरू किया और वह पेंटिंग बनाते समय मुझे ऐसा एहसास होता था जैसे मेरी मम्मी ने मुझ पर कितना भरोसा करके मेरे ऊपर एक जिम्मेदारी डाली है और एक दिन वह पेंटिंग पूरी हो गई… उस पेंटिंग के कंप्लीट होने पर मेरी मम्मी बहुत खुश थी ….उनके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी कि उनकी एक अधूरी इच्छा पूरी हो गई और इसे पूरा करके मैं बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही थी । वह पेंटिंग आज भी मेरे घर का एक हिस्सा है और उससे मेरी बहुत अच्छी यादें जुड़ी हुई है….
उस पेंटिंग के नीचे नाम बेशक मेरा लिखा है लेकिन है तो वह मेरी मम्मी की ही पेंटिंग
मौलिक
स्वरचित
अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा “