अधूरी पहचान – प्राची अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi :

लाड़ली दो-दो छिके री दल्लान…..

लाड़ली दो-दो छिके री दल्लान…..

लाड़ली बाबा खड़े री कुछ मांग….

 लाडली ताऊ खड़े री कुछ मांग….

 मैं क्या मांगू मेरे बाबा हजारी….

मैं क्या मांगू मेरे ताऊ हजारी….

हाथ का दिया, भाग का लिखा चलेगा मेरे साथ….

लाडली दो दो छिके री दल्लान…..

ढोलक पर थाप देते हुए महिलाएं गीत गा रही हैं। सौम्या की हल्दी की रस्म चल रही है। घर के पुरुषो की आंखें भी नम हो जाती हैं, बेटियों के विवाह में।

सौम्या के पिता जी हल्दी लगाने के बाद अपना हाथ उसके सिर पर रखते हैं तो सौम्या एकदम पिता से चिपट जाती है। पिता पुत्री की आंखों से आंसुओं का सैलाब बहने लगता है। माहौल नम हो जाता है। एक तरफ खुशी होती है, दूसरी तरफ बेटी को विदा करने का दर्द। माता-पिता के इस दर्द को केवल वहीं समझ सकता है जिसने यह दर्द सहा होता है।

कल सौम्या की शादी है। धूमधाम से तैयारी की जा रही है। वैसे तो सब सही चल रहा है लेकिन सौम्या बड़ी मुश्किल से इस शादी के लिए राजी हुई थी। यह बात नहीं थी कि सौम्या को लड़का पसंद नहीं था बल्कि सौम्या चाहती थी पहले वह कुछ बन जाए अपनी एक #पहचान बना ले‌। जब शादी व्याह के चक्कर में फंसे। लेकिन परिवार के लोग और रिश्तेदारों के अधिक बात बनाने के कारण उनके पिता पर दवाब पड़ रहा था बेटी के विवाह करने का। इसलिए सौम्या के पिता ने उसकी पढ़ाई बीच में ही रुकवाकर उसकी शादी तय कर दी।

विवाह धूमधाम से निबट गया। सौम्या नई उम्मीदें लेकर ससुराल आ गयी। शुरू में तो दिन सही चले लेकिन बाद में तनाव का सा माहौल रहने लगा। सबको अलग-अलग फरमाइश के खाने चाहिए होते थे। किसी को मसाले कम लगते, किसी को ज्यादा। फिर सास ताना मारते हुए कहती,”पढ़ने लिखने में ही रही है ना इसलिए चौके चूल्हे की समझ कम है।”

आधा दिन रसोई में निकलने के पश्चात जब यह सुनने को मिलता है तो दिल बहुत दुखता है।

सौम्या की सहेलियां जो उसके साथ ही तैयारी कर रही थी एक की तो उसके साथ ही शादी हो जाती है। उसकी दो सहेलियां उच्च पदों पर नियुक्ति पा जाती हैं।

शादी के चार-पांच महीने बाद ही सौम्या गर्भवती हो जाती है। मातृत्व सुख की आशा में सौम्या सब तकलीफों को सहन कर रही थी। 9 महीने पश्चात जब वह अपनी बेटी का मुंह देखती हैं तो उसके मन में आज एक संतुष्टि का भाव नजर आता है। लेकिन जैसे ही उसके परिवार को पता चलता है बेटी हुई है तो उन सबके मुंह बन जाते हैं। आज भी चाहे व्यक्ति कितना ही समानता का दंभ भर ले। बेटों के होने पर ही दावतें उड़ती हैं। समाज में बेटियों के होने पर कुछ जागरूक लोग ही खुशियां मनाते हैं।

अब सौम्या जिम्मेदारियां में व्यस्त बेटी के रूप में, बहू के रूप में पत्नी के रूप में और माँ के रूप में सब कर्तव्य निभा रही है बस नहीं निभा पाई तो अपने प्रति।

हम महिलाओं की अपने लिए भी तो एक जिम्मेदारी है कि हम अपनी पहचान से रूबरू हो। जब हम इस संसार में आए हैं तो कुछ अपने लिए भी तो करने आए हैं।

अधिकांश महिलाएं अपनी इस कसक को अपने मन के अंदर ही दवा लेती हैं।

समय बढ़ता गया 2 साल पक्ष पश्चात सौम्या दोवारा से एक और बेटी की माँ की बन गई लेकिन घर में उसकी अहमियत घटती गई। सौम्या जिम्मेदारियां के चलते व्यस्त रहती है और अपनी बेटियों पर ही अपना सारा ध्यान लगाती हैं। बिटिया पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार निकलती है। आज फिर उसके परिवार में उसकी बेटियों के ब्याह शादी करने पर जोर दिया जाने लगा। वही रिश्तेदारों का दवाव, उच्च नीच होने का डर, दिखाकर लड़कियों की शादी कर दो ऐसे विचार चारों तरफ से प्रकट होने लगे।

सौम्या की बिटिया तैयारी कर रही थी उच्च पदों के लिए। जब उसके घर में बेटियों की शादी पर अधिक दबाव बनाए जाने लगा तो आज सौम्या डटकर खड़ी हो गई। 20 साल पहले जिस स्थिति में सौम्या थी वह अपनी बेटी को उसमें धकेलना नहीं चाहती थी। उसने साफ-साफ स्पष्ट कहा कि उसकी बेटियां पढ़ेंगी लिखेंगी। तब ही उनका ब्याह किया जाएगा। सब ने खूब जोर लगाया पर सौम्या टस से मस न हुई।

सौम्या के प्रयासों का ही परिणाम था कि आज उसकी एक बेटी है बैंक में उच्च अधिकारी है दूसरी सी० ए०बन चुकी है।

अब तो उसके परिवार को भी गर्व महसूस होता है सौम्या की बेटियों पर। पर आज सौम्या संतुष्ट है कि वह अपनी पहचान तो ना बन पायी लेकिन उसकी बेटियां की पहचान बहुत सशक्त चुकी है। बेटियां ही कल का भविष्य है। बेटियों की शिक्षा बहुत आवश्यक है। शिक्षित होकर दो कुलों का नाम रोशन करती हैं बेटियांँ।

एक पीढ़ी के समर्पण और त्याग का परिणाम होता है दूसरी पीढ़ी की सफलतायें। कितनी मातायें अपने सपनों की, अपनी पहचान की बलि देती हैं अपनी संतानों के सुनहरे भविष्य के लिए और वही संतान इस त्याग को ना समझे तो दर्द भी बहुत होता है। एक पिता धूप में तपता है और एक माता चूल्हे पर तपती है तब जाकर संतान पलती हैं।

अपनी पहचान को कुर्बान करके सौम्या ने अपनी बेटियों को पहचान दिलाई। खुश है बेटियों की तरक्की देखकर सौम्या।पर मन में कसक आज भी उठती है अपने नाम की अपनी पहचान की। क्यों छिपी रह जाती है हम स्त्रियों की खुद की एक पहचान…………

#प्राची_अग्रवाल

खुर्जा उत्तर प्रदेश

#पहचान शब्द पर आधारित कहानी

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