अनु का अपराध बस इतना था कि उसने अपने मम्मी-पापा से एक विजातीय लड़के से शादी करने की अनुमति मांगी थी। वह शैलेश से प्यार करने की गल्ती जो कर बैठी थी। किन्तु उसे खुद नहीं पता कब साथ-साथ काम करते दोस्ती प्यार में बदल गई ।दोनों इंजिनीयर थे और एक ही एम एन सी में कार्यरत थे। दोनों की प्रथम नियुक्ति इसी कम्पनी में हुई थी तीन साल पहले ।एक ही टीम में एक ही प्रोजेक्ट पर काम करते-करते वे एक दूसरे
के सम्पर्क में आए, और आपस में एक दूसरे के व्यक्तित्व, कार्यशैली एवं विचारों से प्रभावित होकर करीब आ गए। अनु के अनुमति माँगने पर घर में उबाल आ गया। मम्मी तो चुप रहीं किन्तु पापा ने साफ कह दिया दोनों में से किसी एक को चुनना होगा ।यदि वह शैलेश से शादी करना चाहती है तो उसे इस घर से रिश्त तोडना होगा सोच लो।
अनु दोराहे पर खडी थी क्या करे। न तो वह अपने उस घर को जहां पच्चीस बर्ष उसने गुजारे उसकी परवरिश हुई उसे इस योग्य बनाया की अपने पैरों पर खडी हो सके, मम्मी-पापा का प्यार मिला, छोटे भाई का स्नेह मिला उसे छोडने की सोच भी नहीं सकती थी और दूसरी ओर उसका मात्र तीन साल पुराना प्यार था जिसे वह जी जान से प्यार करती थी उसे छोडना चाहती थी। क्या करे कौन सी
राह चुने असमंजस में थी। उसने मम्मी से विनती की मम्मी मुझे समझने की कोशिश करो न तो में आप लोगों को छोड़ सकती हूं और न शैलेश को।मम्मी उसमें कमी क्या है । दिखने में अच्छा है, पढ़ा लिखा है, अच्छी नौकरी कर रहा है उसके परिवार को इस रिश्ते से कोई परेशानी नहीं है। प्लीज़ पापा को समझाओ मम्मी हम बहुत प्यार करते है और एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते।
किन्तु उसके पापा को न मानना था सो वे न माने।अनु ने लाख प्रयत्न किए पापा को समझाने के , किन्तु वे अपनी बात कि समाज में उनकी इज्जत है, इस शादी से उनका मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाएगा लोग क्या कहेंगे पर अडिग रहे। एक साल तक दोनों ने पापा को मनाने का प्रयास किया पर वे नहीं माने। आखिर दुखी मन से दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली।
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शादी के बाद वे आशीर्वाद लेने आए किन्तु उन्होंने उन्हें बेइज्जत कर लौटा दिया।
अनु का वैवाहिक जीवन शुरू हो गया किन्तु वह हमेशा दुखी रहती। मम्मी-पापा की याद आती तो रोने लगती घर जाकर उनसे मिलने की हुडक उठती भाई की हंसी ठिठोली भी याद आती मन मसोस कर रह जाती । उसे अपना प्यार तो मिला किन्तु अपनों के प्यार की कुर्बानी के बदले जो वह स्वीकार नहीं कर पा रही थी अत: दुखी रहती। उसके ससुराल बाले, शैलेश सब थोडा खुले विचारों के थे। सो उसे समझाते , प्यार करते,सास कहती बेटा अब हम तुम्हारे मम्मी-पापा की जगह हैं थोडा सम्हालो अपने आपको कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा। तुम्हारे पापा भी मान जायेंगे।
समय बीत रहा था। उसने दो साल बाद एक सुन्दर से बेटे को जन्म दिया। वे दोनो बेटे को लेकर गए क्योंकि शैलेश का मानना था कि शायद बच्चे को देख कर उनका मन पिघल जाए किन्तु पिता ने बच्चे की तरफ देखा तक नहीं और फिर बेइज्जत कर लौटा दिया । मां , भाई जरुर बोलने के लिए आगे बढे किन्तु पिता ने उन्हें भी धमका दिया कि यदि तुमने बात की तो तुम्हें भी घर से निकाल दूंगा। वे चुप रह गए।
वे लौट आए और अनु ने अपने मन को समझा लिया। समय के साथ वह एक प्यारी सी बेटी की मां भी बन गई ।
माँ से बात करने की उसे हूक सी उठती किन्तु वह उनके लिए मुसीबत खडी नहीं करना चाहती थी।
एक दिन मन न मानने पर उसने मां के पड़ोस में रहने वाली आंटी को फोन किया और मम्मी-पापा के हाल चाल पूछे। उसने कहा आंटी अपने घर बुलाकर क्या मम्मी से मेरी बात करवा सकतीं हैं। उन्होंने कहा मैं प्रयास करती हूं ।
आंटी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
अरे बेटा इसमें धन्यवाद की क्या बात है तुम्हारी मम्मी भी दुखी रहती हैं और तुमसे बात करना चाहती हैं यदि में उनके कुछ काम आ सकूं इससे अच्छा और क्या होगा
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अब वह अपनी मम्मी से बात कर लेती और मम्मी बेटी को असीम संतोष मिलता। ऐसे ही दस साल बीत गए।इस बीच भाई की शादी भी हो गई और वह न जा पाई।
एक दिन अचानक पापा को दिल का दौरा पडा भाई उन्हें अस्तपताल लेकर भागा किन्तु वह अकेला परेशान हो रहा था। मम्मी ने उसे फोन पर बताया । वे दोंनो तुरन्त अस्तपताल पंहुच गये ,अब उन्हें देख भाई को भी हिम्मत आ गई। पापा अइ सी यू में एडमिट थे जाने की मनाही ही थी सो बारी बारी हो कर आ जाते। चार दिन तक गम्भीर हालात रहने के बाद पांचवें दिन उन्हें होश आया तो देखा अनु कुर्सी पर सिर रखे आँखे मूंदे बैठी है।
वे कुछ बोलते इसके पहले ही बापस नींद के आगोश में चले गए।थोडी देर बाद उन्हें हे फिर होश आया तो अनु उनके बैड के पास सिराहने खडी थी। उनके सिर पर
प्यार से हाथ फिरा रही थी। जैसे ही उन्हें जागते देखा डर से हाथ हटा लिया कि कहीं उसे देखकर उन्हें गुस्सा न आ जाए
और ज्यादा तबितयत खराब हो जाऐ। इतने में उसने उनका मुडा हाथ सीधा करने की कोशिश की क्योंकि दवा जाने में रुकावट हो रही थी। तभी उसने देखा पापा एक टक उसे देखे जा रहे हैं और उनकी आँखो में आंसू झलक रहे हैं।
उसने हाथ से उनकी आंखें पोंछी और
डाक्टर को बुलाया। उनकी अच्छी स्थिति देखकर डाक्टर ने कहा अब स्थिती खतरे से बाहर है कल उन्हें कमरे में शिफ्ट कर देंगे।
कमरे में अब सब उनके पास थे। उन्होंने देखा शैलेश कमरे के बाहर से हीआवश्यक चीजें लाकर दे देता है कमरे में नहीं आता। वे समझ गए उन्हीं के कारण वह दूरी बनाए हुए है।
पांच दिन बाद उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया।जब घर ले जाने लगे तो भाई और मम्मी साथ थे अनु खडी उन्हें जाते देख रही थी कुछ ही दूरी पर शैलेश भी उन्हें जाते देख रहा था ,किन्तु उन्होंने पास जाने का प्रयास नहीं किया कि कहीं उसे देख कर पापा को गुस्सा न आ जाये और उनकी तबियत फिर से खराब हो जाए
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गाडी में बैठने के बाद देखा कि वे साथ नहीं हैं तो आयुष से कहकर उन्हें भी बुलाया और साथ चालने को कहा। आज उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था कि पापा ने उन्हें माफ कर दिया। सब घर पहुँचे आज खुशी दो गुनी थी एक तो पापा स्वस्थ हो गए थे दूसरे उन्होंने बेटी-दामाद को माफ कर दिया था । घर में उत्सव का माहौल था। अनु पापा के गले लग रो रही थी और बोली पापा आज मैं कितनी खुश हूं कि आपने मुझे माफ कर दिया।
सही मायने में आज मेरे खुशहाल जीवन की शुरुआत हुई है अभी आपके प्यार के बिना अधूरा सा लगता था मेरी खुशी अधूरी थी। पापा आपने कैसे सोच लिया कि मैं आपके बिना खुश रह सकूंगी।दस
बर्षों से इसी दिन का इन्तजार कर रही थी। उन्होंने शैलेश को भी अपने पास बुलाया और और बोले बेटा मुझ माफ कर दे मुझसे समझने में भूल हुई।
नहीं पापा जी आप माफी न माँगे आप बडे है आपने हमें माफ कर अपना लिया यही हमारे लिए बहुत है।
बच्चे कहां हैं ।
वे अभी दादी के पास हैं।
तभी मम्मी बोलीं दोनों दस दिन से घर नहींं गये हैं एक पॉव खडे रहकर आपकी सेवा की है। ऐसे बेटी दामाद को आपने ठुकरा रखा था मुसीबत में वे ही काम आये। उनकी आंखों में आंसू थे।
शैलेश बोला में बच्चों को ले आऊं।
बच्चे आते ही नानू नानू कह कर उनसे लिपट गए और बोले पता है नानू हामारा किताना मन करता था आपके पास आने का पर मम्मी आपका नाम लेते ही रोने लगती थीं तो फिर हम नहीं बोलते थे। आप हमारे यहां क्यों नहीं आते । मम्मी आपकी कितनी बातें हमें बतातीं थीं ।आप मम्मी से बहुत प्यार करते थे। नानू आप हमसे नाराज हैं जो हमें नहीं बुलाते ।अब दोस्ती हो गई नानू आप हमारे कर आयेंगे तो मैं आपको बहुत सी बातें
अपने स्कूल की, दोस्तों की बताउंगा तभी बेटी बोली औल क्या मैं भी बताऊँगी । और अब हम भी नानू के घर आयेंगे सब हमारे दोस्त जाते थे अपनी नानी के घर पर हम तो कभी नहीं आए।अब नानी के घर आयेंगे और खूब मस्ती करेंगे ।
बच्चों की बातें सुन उनका कलेजा फटा जा रहा था सोच रहे थे इन मासूमों की क्या गल्ती थी जो मैंने इन्हें सबसे दूर कर दिया। अपनी करनी पर पछता रहे थे । बच्चों को जोर से अपनी छाती से चिपका लिया और रोने लगे। तभी अनु भी उनके पास आकर बोली पापा आज आपने मेरे जीवन की खुशी पूरी कर दी। आज तक मैं अपने प्यार को पाकर भी अधूरी खुशी के साथ जीवन जी रही थी।
उसकी बात सुन मम्मी-पापा दोनों रो पड़े।
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बेटा अनु मैं गलत था। गुस्से में मैंने तुम्हारी बात नहीं सुनी, तुम्हें समझने की कोशिश भी नहीं की। तुम लोग मुझे मनाते रहे पर मैं नहीं पिघला और तुम्हारा अपमान करता रहा। मैंने समाज की, लोगों के कहने की चिन्ता की बजाय अपने बच्चों को समझने के, किन्तु फिर भी सब भुला कर तुम मेरे लिए दौड़े चले आए।आज समझ में आया कि खून के रिश्ते तोड़ने से भी नहीं टूटते।
मैंने अपने मान सम्मान के खातिर अपने बच्चों को खुद से दूर कर दिया बहुत बड़ी गल्ती की अब अपनी इस भूल को मैं ही सुधारूंगा
उनके स्वस्थ होते ही उन्होंने एक पार्टी का आयोजन किया, जिसमें शैलेश का परिवार भी आमंत्रित था। समधी समधन, बेटी दामाद का स्वागत कर उन्हें पूरे मान सम्मान के साथ ढेरों उपहारों के साथ बेटी की असली विदाई आज करी।
आज अनु खुश थी उसके जीवन की खुशी मायके का पूरा प्यार जो मिल गया था।
नाती नातिन भी अपने नाना नानी,मामा मामी को पाकर निहाल थे। आज सबसे उनकी बातें हुईं खत्म ही नहीं हो रहीं थीं जैसे इतने दिनों की सारी कमी आज ही पूरी कर लेना चाहते थे।
आज एक आत्म संतुष्टि का भाव पापा के चेहरे पर दिखाई दे रहा था।
शिव कुमारी शुक्ला
20-8-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशितवे
वाक्य****उसने बात ही ऐसी की छलक
मां -बाप के आंसू छलक आए