शाम के छः बजे थे, फरवरी का महीना था। हल्की-हल्की गुलाबी ठंडक वातावरण में मौजूद थी क्योंकि ठंडी हवा भी चल रही थी, किन्तु इतनी ठंडक सुहानेवाली थी। आलोक जी एवं सुनयना जी घर के सामने ही बने छोटे से बगीचे में बैठे चाय का आंनद ले रहे थे। दोनों बेटे कोचिंग गये हुए थे। चाय के साथ -साथ वे बीते जीवन के लम्हों को भी याद कर जी रहे थे।
आलोक जी बोले देखो सुनयना समय कितनी जल्दी बीत गया बच्चे किशोरावस्था तक पहुंच गये।सोचो तो ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो जब हमने अपनी नई गृहस्थी जमाई थी।
हां सो तो है। गृहस्थी जमाते, बच्चों के पालन -पोषण में समय का पता ही नहीं चला।
आलोकजी बोले हमारे ऊपर भगवान की बड़ी कृपा रही हमें कोई कमी नहीं है सुख से जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
यह सुन सुनयना जी बोलीं हां सब तो है किन्तु भगवान ने मेरी एक चाहत अधूरी रख दी।
अब कौनसी चाहत अधूरी रह गई।
एक बेटी की चाहत।दो बेटों में से एक बेटी हो जाती तो मेरे मन की मुराद पूरी हो जाती।
आलोक जी मुस्कुरा के बोले अभी क्या बिगड़ा है अब कर लो बेटी की चाहत पूरी।
धत् तुम भी कैसी बातें करते हो उम्र देखी है अपनी।
अरे इसी उम्र में तो होगी पूरी चाहत , तुम भी पता नहीं क्या सोचने लगीं । अभी चार-छह बर्ष और इन्तजार कर लो फिर बेटी की चाहत पूरी कर लेना।
मैं समझी नहीं साफ-साफ बताओ।
अरे अपने नकुल की शादी कर जो बहू लाओगी उसे ही अपनी बेटी बना लेना। फिर कुछ सालों बाद रकुल की बहू आ जाएगी और इस तरह एक छोड़ तुम दो-दो बेटियों की मां बन जाओगी अब तो खुश।
सुनयना जी हंसते हुए बोलीं विचार तो अच्छा है। मैं तो बेटी बना लूंगी किन्तु क्या वह मेरे को अपनी मां बना पाएगी।
ये लो एक चिंता खत्म की तो तुमने दूसरी पाल ली।
ये तो वक्त ही बताएगा आलोक कि मेरी इच्छा पूरी होगी या नहीं कह वे उठ खडीं हुईं और चाय के बर्तन समेटने लगीं।
कहां चली दीं।
बच्चों के आने का समय हो गया अब रात के खाने की व्यवस्था भी देखूं।
चलो मैं भी पड़ोस में शर्मा जी के यहां जाकर उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछ आऊं तबीयत ठीक हुई कि नहीं। आलोक जी एवं सुनयना जी दोनों ही पति -पत्नी सीधे सादे, मिलनसार एवं सामाजिक सरोकार रखने वाले थे। सुनयना जी इधर उधर की बातें लगाना, फालतू के छल प्रपंच से कोसों दूर थीं।वे अपने आप में मस्त रहतीं।
समय को कौन पकड़ पाया है।वह तो ये गया कि वह गया। देखते ही देखते नकुल ने इंजीनियरिंग कर एम बी ए में प्रवेश ले लिया और रकुल सी ए की बनने की तैयारी में जुटा था।एम बी ए करते ही नकुल एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर लग गया। कुछ ही समय बाद उसकी शादी के लिए रिश्ते आने लगे।
ऊंचे घरानों से भी रिश्ते आ रहे थे।पर इन दोनों का मानना था कि रिश्ते बराबरी वाले ही सही रहते हैं।सो उन्होंने अपने जैसे ही परिवार की लड़की जूही नकुल के लिए पंसद कर ली। उसने भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ था।वह अपना बुटिक खोलना चाहती थी किन्तु माता-पिता ने अच्छा रिश्ता देख शादी कर दी।
ससुराल आकर कुछ ही दिनों में उसके मन से सास और ससुराल का भय निकल गया क्योंकि यहां उसे कुछ लगा ही नहीं कि उसके ऊपर किसी तरह की बन्दिश है। आराम से मम्मी जी, मम्मी जी कहती सुनयना जी के आगे पीछे डोलती रहती । सुनयना जी भी उसका बेटी की तरह ही पूरा ख्याल रखतीं। उसके खाने-पीने का , शौक पूरे पूरे करने का एवं उसके आराम का पूरा ध्यान रखतीं।
जूही बेहद खूबसूरत, पढ़ी-लिखी, एवं सुलझीं हुई लड़की थी। उसने सास के मन मुताबिक चलकर जल्दी ही उनके दिल में अपने लिए जगह बना ली।अब वे अपने मिलने वालों से, रिश्तेदारों से उसकी तारीफ करते नहीं थकतीं।
पापा बेटे के काम पर निकलते ही कभी दोनों सास-बहू शापिंग पर निकल पड़तीं। शापिंग कर माल में घूम कर कुछ खा-पीकर आ जातीं। कभी सब्जी,फल ले आतीं।गाड़ी चलानी दोनों सास-बहू को आती थी सो कहीं जाने में कोई परेशानी नहीं होती। हंसती खिलखिलाती सास-बहू की जोड़ी देख सबके सीने पर सांप लोट जाता।
पड़ोसिनों को सास-बहू का यह मेल-मिलाप फूटी आंख नहीं सुहा रहा था।सो वे इस फिराक में थीं कि असलियत कैसे पता चले, कहीं सुनयना झूठ बोल कर अपनी धाक तो नहीं जमा रही। यही सोच कर तीन -चार पड़ोसिनें बिना सूचना के उनके घर आ गईं कि घर चलकर देखें सही स्थिति क्या है। सुनयना जी उस वक्त घर पर नहीं थीं जूही के दरवाजा खोलते ही चार महिलाओं खड़ा देख वह समझ नहीं पाई कि कौन हैं, इन्हें बिठाऊं या नहीं।
उसे असमंजस में देख एक बोली बेटा हम तुम्हारे पड़ोस में ही रहते हैं एवं सुनयना से मिलने आए हैं।
आंटी जी आइये आप लोग बैठिए, मम्मी जी तो घर पर नहीं हैं मैं उन्हें जल्दी आने के लिए फोन कर देती हूं,तब तक मैं चाय लाती हूं आप लोग पिएंगे इतने में मम्मी जी भी आ जाएंगी।उसका संयमित व्यवहार, मीठी बोली और जिस तरह उसने उन
का आदर सत्कार किया उनके दिल को छू गया। फिर भी उनके मन में यही भाव था कि कहीं यह सब दिखावा तो नहीं।
रमा जी के यहां किटी पार्टी थी। गपशप के दौरान सुनयना जी अपनी बहू की बहुत तारीफ कर रहीं थीं। ऐसे ही कुछ दिनों बाद मिताली की बेटी की गोद भराई थी वहां भी बातों बातों में सुनयना जी अपनी बहू की प्रशंसा किए जा रहीं थीं। सबको सुनकर बड़ा अटपटा लगता कि सास-बहू बिना बर्तन खटकाए इतने मेल से रह सकतीं हैं,
जरूर दाल में कुछ काला है। या तो सुनयना अपने घर की बात छिपाने के लिए बहू की प्रशंसा करती रहती है। तभी कुछ ज्यादा मुंहफट सरला जी बोलीं देख सुनयना बहुत हो गया तुझे तो अपनी बहू की अच्छाई के आगे कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता यह सब कलई दो -चार दिन में उतर जाएगी फिर असलियत सामने आ जाएगी।
आज की किटी पार्टी सुनयना जी के यहां थी। दोनों सास बहू ने मिलकर कुछ डिशेज घर पर बना लीं और कुछ बाहर से मंगवा लीं। पूरी तैयारी कर दोनों अच्छे से तैयार हो सबके आने की प्रतीक्षा करने लगीं।
आज महिलाएं इस सोच के साथ आईं थीं कि काम ज्यादा होने से कुछ तो खट-पट होगी और असलियत सामने आ जाएगी।
उनकी सोच के विपरित जूही ने बड़ी ही शालीनतापूर्वक यह कहते हुए मम्मी जी आप बेफिक्र होकर बैठें, इन लोगों के साथ
बातचीत का आंनद लें खाने की सारी व्यवस्था मैं देख लूंगी वहां से उठ गई।
काम वाली बाई मंजू के सहयोग से उसने अच्छे से खाना सर्व किया। किसी को भी शिकायत का मौका नहीं दिया।
आज तो आगंतुक महिलाएं भी सुनयना से यह कहे बिना नहीं रह सकीं सच सुनयना तू तो बहुत भाग्यशाली है जो तुझे ऐसी सुन्दर, समझदार बहू मिली।हम तो सोचते थे कि तू दिखावे के लिए हमसे बहू की झूठी तारीफ करती है।
परंतु जूही सही मायने में बहू नहीं बेटी है मेरी सुनयना जी बोलीं।
आज पूरी महिला टीम को सुनयना जी के भाग्य से ईर्ष्या हो रही थी। वे बोलीं कौनसी जादू की छड़ी घुमाई है अपनी बहू पर।
आपसी समझ, एक दूसरे की तकलीफ़ समझना, बहू भी किसी की बेटी है,वह भी इंसान है उसे भी दुख तकलीफ़ होती है,उसका और उसके माता-पिता का भी सम्मान मायने रखता है उसे नीचा दिखाना बात-बात पर ताने मारना,इन चीजों को समझ लें और उसके साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा हम अपनी बेटी के लिए उसकी ससुराल वालों से चाहते हैं तो बस बहू से बेटी बनते एवं सास से मां बनते देर नहीं लगती और जीवन खुशनुमा हो जाता है एवं परिवार में खुशी की तरंगें जलतरंगों की भांति लहराती रहतीं हैं। कुछ ऐसा करके तो देखो आपको भी जीवन में खुशियां ही खुशियां नजर आएंगी।
पूरा ग्रुप विचाराधीन हो सुनयना जी की प्रशंसा करते हुए अपने -अपने घर को रवाना हो गईं।
शिव कुमारी शुक्ला
9-3-25
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
वाक्य***आपको तो अपनी बहू***कुछ दिखाई ही नहीं पड़ता