Moral stories in hindi : एक पर एक जब चार चार बेटियाँ की माँ बन गयी मै तो सासू माँ का चेहरा उतर गया था ।वंश कैसे चलेगा? इस खानदान का नाम कौन रोशन करेगा? इसी चिंता में वह परेशान रहती ।मै भी क्या कर सकती थी ।मेरे हाथ में तो कुछ नहीं था।हालांकि मुझे मालूम था कि इस मामले की दोषी मै नहीं थी।
कमी तो उनके बेटे में ही रहा होगा ।लेकिन मै ही दोषी ठहरा दी जाती । खैर बच्चों को पिता का प्यार भरपूर मिला था ।हालांकि बेटे की चाह पति को भी थी । खेलते कूदते बड़ी होने लगी थी मेरी बेटी ।पढ़ाई लिखाई में भी अव्वल आती ।खुश होकर जब वह रिजल्ट दिखाती तो सासू माँ कहती ” ठीक है, ठीक है, ज्यादा पढ़ाई करके क्या करना है ” फिर मेरी बेटी का मुँह बन जाता ।
थोड़े दिन के बाद मेरे देवर की शादी हो गई ।और तीन साल में दो दो बेटे हो गये।अब सासू माँ की खुशी का ठिकाना नहीं था ।पोते के नाम की माला जपती रहती ।पूरा प्यार दुलार पोते के नाम पर था।खाने पीने की सुविधा से लेकर पहनने तक की।अधिक दुलार से उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता ।मेरी देवरानी भी आसमान पर रहती ।
सास की दुलारी बहू जो थी ।फिर अचानक मेरे जीवन में एक काली रात आ गयी ।मेरे पति को किसी ने गोली मार दिया ।वह बहुत अच्छे और इमानदार इनसान थे।लोगों ने उनके आफिस में लेन देन की गड़बड़ी की ।जांच हुई तो दुश्मनी बढ़ती गई और उनके जीवन का अन्त हो गया ।
अब यहाँ से मेरी उपेक्षा शुरू हो गई मुझे जो अधिकार घर की बहू होने के नाते मिलना चाहिए था उसमें कटौती होने लगी ।फिर मैने हिम्मत बटोरी ।ऐसे तो काम नहीं चलेगा ।मुझे अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी ।अपने अधिकार खुद ही लेने होंगे ।मैंने अपना पूरा जीवन बेटी को समर्पित कर दिया ।
उसके हर सुख सुविधा और शिक्षा में सहायक बनी ।जहाँ मेरी बच्चियाँ पढ़ाई पूरी करके उँचे मुकाम तक पहुंच गयी ।वहीं देवर के दोनों सुपुत्र गलत रास्ते पर चलते रहे ।समय के साथ सासू माँ गुजर गयी ।ससुर जी थे तो वे सिर्फ अपने से मतलब रखते थे ।अब बेटी की शादी करनी थी।दो बेटी का कन्या दान देवर ने किया ।मेरे मन में मलाल होता कि मैं भी तो माँ हूँ ।
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मै क्यो नही कन्या विवाह के रीति रिवाज करूँ? यह मेरा अपना अधिकार है ।फिर मैंने मन में ठान लिया कि अगले बार मै खुद सारे रीति-रिवाजों को निभा सकती हूँ ।माँ के न रहने पर पिता सब कुछ कर सकता है तो पिता के न रहने पर माँ कयों नहीं कर सकती? सवाल मथने लगा ।फिर हिम्मत किया ।
और बेटी के ब्याह की सारी जिम्मेदारी और रीति रिवाज निभाया ।भीड़ में कुछ खुसुर फुसुर भी हुई ।पर मुझे किसी की परवाह नहीं थी ।कमर कस लिया था तो निभाना जरूरी था।शादी में आये हुए रिश्तेदार खुद ही शान्त हो गये।यह मेरी जीत थी।अधिकार अगर मागने से न मिले तो खुद ही आगे बढ़ कर लेना चाहिए ।
फिर चौथी बेटी के शादी भी खुद ही निभाया ।अपने सभी बेटी को विदा किया ।अब देवर के बच्चे भी तो अपने ही थे।उन्हे भी तो देखना था।अधिकार के साथ करतवय भी तो बहुत जरूरी था देवर देवरानी अच्छे थे।तो मेरी जिंदगी में सभी से तालमेल ठीक चलने लगा ।सासूमा याद आती ।
अभी रहती तो देखती कि मेरी बेटी ने खानदान को कितना आगे बढ़ाया ।वह सब ने अपने चचेरे भाई की शिक्षा की जिम्मेदारी उठा ली।जीवन यथावत चलने लगा ।समय भागता रहा ।सभी अपने अपने जीवन में सुखी हो गये।अपनी अपनी गृहस्थी संभालते रहे।मेरे उम्र की आखिरी पड़ाव है ।
अब तबियत गड़बड़ होने लगी तो बच्चों ने कहा अम्मा अब अकेले मत रहो।मैंने हंस कर टाल दिया ।सबकी अपनी जिंदगी है ।क्यो परेशान करें? जब तक शरीर चलता है, चलाना चाहिए ।थक जाने के बाद तो बच्चे हैं ही ।और फिर अपना घर तो अपना ही होता है ।देवर जी ने भी सहमति जताई ” हाँ भाभी, हमलोग साथ है ना ” आज तबियत ठीक नहीं है ।
लेटी थी कि दोनों बेटे का मेसेज आया ।” बड़ी मम्मी, हमारा चयन अच्छे पद पर हो गया है, आपका आशीर्वाद चाहिए मम्मी ” मै खुशी से पागल हो गई ।आखिर वह भी तो मेरे ही बच्चे है ।सासूमा की सोच गलत थी।लेकिन मै कयों ऐसा सोचूं? भागती हुई मिठाई लाने गयी और कदम लड़खड़ा गये।
होश आया तो मै अस्पताल में थी।डाक्टर ने कहा आप का परिवार बहुत नेक है ।बहुत सेवा की सब ने।आपका तो ब्रेन डेड ही हो गया था लेकिन बहुत भागदौड़ और सेवा से अब आप ठीक हो गई ।मैंने नजर उठाया ।मेरे बेटे, बेटी, देवर देवरानी, दामाद सभी के चेहरे पर मुस्कान थी।बेटे ने बधाई
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दी ” बड़ी मम्मी, आप ने मौत को हरा दिया ” ।सच में बेटा और बेटी दोनों ही तो जरूरी होते हैं ।किसी के बिना जीवन अधूरा होता है ।यह हमारी पुरानी पीढ़ी कयों नहीं समझ पायी ? डाक्टर ने आज छुट्टी दे दी है ।बच्चे गाड़ी ले आये हैं ।
उमा वर्मा, नोएडा, स्वरचित, और मौलिक