अच्छे लोगों के साथ बुरा -गीता वाधवानी

शिवानी की नई-नई शादी हुई थी। उसकी ससुराल के लोग बहुत अच्छे थे। वह प्रतीक से शादी करके बहुत खुश थी। थोड़े दिनों में दिवाली आने वाली थी और शिवानी को अपनी मां की बहुत चिंता सता रही थी क्योंकि वह दूसरे शहर में घर में बिल्कुल अकेली थी। 

     शिवानी के माता-पिता बहुत सुलझे हुए इंसान थे और वक्त बेवक्त सबकी मदद करने के लिए हर पल तैयार रहते थे। 

   शिवानी बहुत अच्छी तरह समझ रही थी कि अकेले में मां को कैसा महसूस हो रहा होगा। पूरा खाली घर और उसका 

सूनापन मां को खाने को दौड़ता होगा। हालांकि बड़ौदा से अहमदाबाद 100 किलोमीटर से ज्यादा नहीं था फिर भी शिवानी सास से पूछे बिना कैसे मायके जा सकती थी। 

फिर एक दिन शिवानी ने अपनी सास से कहा-“मां जी, क्या मैं किसी दिन दिवाली से पहले मां के पास रह आऊं?” 

    शिवानी की सास ने कहा-“नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं, दिवाली से पहले कितना काम होता है घर में और इस बार तो तुम्हारी इस घर में पहली दिवाली है और फिर इतने सारे मेहमान भी तो आएंगे। सारी तैयारियां मैं अकेली कैसे करूंगी?” 

        शिवानी-“पर मां जी, मैं तो पहले ही वापस आ जाऊंगी। आपको तो सारी बात पता ही है कि मां अकेली कितनी उदास होगी और फिर भैया के जाने।” 

शिवानी की बात अधूरी रह गई। उसने देखा कि उसकी सास उसकी बात पूरी होने से पहले ही उठ कर चली गई। शिवानी सोच रही थी कि मेरी सास का स्वभाव तो बहुत अच्छा है फिर आज इन्हें क्या हुआ।  

शिवानी भी उठ कर अपने कमरे में जाकर बैठ गई और पिछली बातें याद करके उसे रोना आ गया। 

   उसका बड़ा भाई विशाल, उसका नाम लेते ही घर में रौनक छा जाती थी। हर त्योहार को इतने उत्साह से मनाता था कि उदास व्यक्ति भी उसे देखकर खुश हो जाए। शिवानी और मम्मी पापा का लाडला विशाल। पढ़ाई लिखाई में भी नंबर वन और दिखने में भी बहुत स्मार्ट। 




   ‌ विशाल की बहुत बढ़िया जॉब लगने के बाद तो मम्मी पापा उसका विवाह करवाने के बारे में सोच रहे थे। हालांकि जॉब लगे हुए अभी एक महीना ही हुआ था। माता-पिता का क्या है, वह तो सारे सपने अपने बच्चों के लिए ही देखते हैं। 

       जब पहली तनख्वाह मिली, उस दिन सब बहुत खुश थे। विशाल ने कहा-“चलो पापा, आज आपके लिए बढ़िया सी टीशर्ट और मम्मी के लिए साड़ी ले ले चलते हैं और इस नकचढी को भी कुछ दिलवा दूंगा।”उसने बहुत जिद की, तो पापा मान गए। 

लेकिन मम्मी ने कहा-“तुम लोग जाकर आओ, तब तक मैं और शिवानी खाना बनाते हैं।” 

विशाल-“मां, इस नकचढी को भी हमारे साथ भेज दो, वरना बाद में रोएगी कि भाई ने मुझे कुछ नहीं दिलवाया।” 

शिवानी-“मां, देखो ना भैया मुझे फिर से नकचढी कह रहे हैं, नाराज होने का नाटक करती हुई बोली, मुझे नहीं चाहिए कोई गिफ्ट।” 

मां ने कहा-“अच्छा शिवानी फिर कभी ले लेगी।” 

विशाल-“और मां तुम्हारी साड़ी?” 

मां-“मैं किसी दिन शिवानी के साथ चली जाऊंगी, अभी तो मेरे पास बहुत साड़ियां हैं।” 

विशाल और उसके पापा बाइक पर चले गए और फिर उस दिन पापा तो घर आ गए ,पर विशाल कभी वापस नहीं आया। सड़क पर भाग रहे एक कुत्ते को बचाने के लिए विशाल की बाइक का संतुलन बिगड़ गया और बाइक से गिरते ही उसका हेलमेट उतरकर दूर जा गिरा। सिर फट जाने के कारण वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई और कुछ लोगों ने पापा को अस्पताल पहुंचाया। पापा के दोनों टांगों में फ्रैक्चर हो गया था। 

पापा जब से अस्पताल से घर आए थे तब से गुमसुम हो गए थे। वह खुद को इस हादसे का जिम्मेदार मानने लगे थे। 

वे कहते थे कि-“काश! मैंने विशाल को बाजार चलने के लिए मना कर दिया होता, मैंने उसे हां क्यों की?” 

मां ने ऐसे वक्त में पापा को संभालने में इतनी हिम्मत दिखाई कि खुद शिवानी भी उनकी दृढ़ता देखकर हैरान हो गई थी। एक तो लाडले बेटे का कम और दूसरे पापा की गुमसुम हालत। 

फिर 1 दिन पापा नींद में ही हमें छोड़ कर चले गए। अभी तो उनका प्लास्टर भी नहीं उतरा था। तब मां बिल्कुल टूट गई। 




इस दुर्घटना को 2 साल बीत गए थे। मां ने खुद को संभालना शुरू कर दिया था और मेरे यानी शिवानी के लिए विवाह योग्य लड़का ढूंढना भी। फिर मेरा विवाह प्रतीक से हुआ। यह सब बातें प्रत्येक और उसकी मम्मी को पता है, फिर भी मां के पास जाने की बात पर मां जी ने कैसा व्यवहार किया , तब से यही सोच रही थी शिवानी। 

अब वह थोड़ा उदास रहने लगी थी। दिवाली वाले दिन सुबह सुबह 6:00 बजे प्रतीक और उसकी मां तैयार हो गए और शिवानी से कहा-“घर का ध्यान रखना और तुम भी ध्यान से रहना, हम दोपहर तक आ जाएंगे।” 

तब शिवानी से रहा न गया और उसने प्रतीक से पूछा-“आप लोग कहां जा रहे हैं?” 

प्रतीक-“मां की सहेली से मिलने।” 

उनके जाने के बाद शिवानी सोच में पड़ गई कि क्या सासू मां का अपनी सहेली के पास जाना, मेरा मेरी मां के पास जाने से ज्यादा जरूरी है?” 

फिर सोचने लगी चलो छोड़ो। मैं कर भी क्या सकती हूं। मैं दिवाली के बाद मां से मिल आऊंगी। 

वे लोग दोपहर तक वापस आ गए। वापस आकर सासू मां ने शिवानी से कहा-“शिवानी, मैंने मेरी सहेली को अपने कमरे में बिठाया है तुम वहीं पर खाना लेकर आ जाओ।” 

शिवानी जैसे ही सब्जी का डोंगा ट्रे में रख कर कमरे में पहुंची, वहां अपनी मां को बैठा देखकर हैरान रह गई। ट्रे रखकर मां के गले लग कर रो पड़ी। मां ने उसे दुलारते हुए कहा-“रो मत शिवानी, त्योहार पर नहीं रोते बेटा।” 

तब शिवानी की मां ने उसे बताया कि”समधन जी और प्रतीक मुझे अचानक लेने आ गए और मेरे बहुत मना करने पर भी नहीं माने, तो मुझे इनके साथ आना पड़ा। बेटी तुम बहुत खुश नसीब हो ,जो तुम्हें इतना ध्यान रखने वाला परिवार मिला है।” 

शिवानी दौड़ कर सासु मां के गले लग गई। सासू मां ने हंसकर कहा-“अब तो खुश है ना मेरी शिवानी।” 

शिवानी-“पर मां जी, आपने तो मुझे जाने से मना कर दिया था, फिर यह सब?” 

सासू मां-“हां मैंने जानबूझकर मना किया था, अगर तुम्हें जाने देती तो तुम्हारी इस प्यारी सी मुस्कान को कैसे देख पाती और तुमने ऐसा कैसे सोच लिया कि हम तुम्हारी मां को वही अकेला छोड़ देंगे। वह भी तो अब हमारे घर की सदस्य बन चुकी हैं।” 

शिवानी-“मां जी, मुझे माफ कर दीजिए। मेरे मन में पता नहीं कैसे-कैसे विचार आ रहे थे और मैं सोच रही थी कि हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही बुरा क्यों होता है?” 

सासू मां-“चलो शिवानी, माफी वाफी की कोई बात है ही नहीं। शाम होने वाली है। चलो दीपावली पूजन की तैयारी करते हैं। हम सब मिलकर पूजा करेंगे। 

#कभी_खुशी_कभी_ग़म 

स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!