अभूतपूर्व बदलाव – सुषमा यादव : Moral stories in hindi

अपने माता-पिता का परिचय कराने में शरम क्यों????

संदीप के माता-पिता गांव से हैं। संदीप की मां अशिक्षित और बिल्कुल देहाती रहन सहन वाली महिला है। पिता जी बारहवीं पास एक फैक्टरी में काम करते हैं।

उन दोनों का जीवन बड़ी कठिनाईयों और संघर्षों में बीता। आर्थिक अभाव होते हुए भी उन्होंने संदीप को किसी चीज में कमी नहीं होने दिया। संदीप की एक छोटी बहन भी थी जो गांव के स्कूल में ही पढ़ती थी। उनका सारा ध्यान अपने इकलौते बेटे संदीप की ख़्वाहिशों को पूरा करने में लगा रहता।वो उसकी जायज नाजायज सभी बातों को मान लेते जिसके कारण संदीप उद्दंड और बदतमीज होता जा रहा था। 

वह जब कालेज पढ़ने गया वहां के लड़कों को टिपटाप से रहते देखकर पिता से नये नये कपड़ों, जूतों की मांग करने लगा। वो उसे समझाते,बेटा, वो सब बड़े लोगों के बेटे हैं हमारी सामर्थ्य नहीं है उनकी बराबरी करने की।

पर संदीप पिता पर चिल्लाता, झगड़ा करता, मां कुछ कहती तो मां को बुरी तरह झिड़क देता। 

अब वह बड़े बड़े होटलों में दोस्तों के साथ जाता और स्वयं भी पिताजी से पैसे ऐंठता। 

उसकी मां अनपढ़ थी, उसे ठीक से हिंदी भी बोलना नहीं आता था। गांव की औरतों जैसे ही उसका पहनावा था। इस कारण संदीप हमेशा अपनी मां को जलील करता उसके साथ कहीं चलने को कहती तो मां को कहता, तुम्हारे साथ मैं बाहर जाऊंगा? कभी नहीं। मेरे दोस्त मेरी हंसी उड़ायेंगे। तुम्हें तो अपनी मां कहने में भी मुझे शर्म आती है।अक्सर अपने माता-पिता की गांव वालों के सामने हंसी उड़ाता उन्हें बुरा भला कहता। बेचारे दोनों मन मसोस कर रह जाते। मां बाप कितनी कठिनाइयों से अपने बच्चों का पालन पोषण करतें हैं खुद अभावों में रह कर उन्हें हर सुख-सुविधा मुहैया कराते हैं और वही बच्चे दूसरों के सामने अपने माता-पिता को अपना नहीं कह सकते, उन्हें अपने मां पिता बताने में भी शर्म आती है। 

अब संदीप गांव में ना रहकर किराये से कमरा लेकर शहर में ही रहने लगा। उसकी मकान मालकिन ने उससे एक दिन कहा कि तुम अपनी मां को मुझसे मिलवाने कब ला रहे हो। बोला, आंटी मेरी मां को फुरसत नहीं मिलती। वो नहीं आ सकती।

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एक त्यौहार पर मकान मालकिन ने देखा कि कोई देहाती औरत और एक साधारण कपड़े पहने एक व्यक्ति संदीप के कमरे में आये थे। वहां से संदीप की जोर जोर से डांटने की आवाज आ रही थी। मकान मालकिन ऊपर गई तो उनकी बातों से सब समझ गई। उसने संदीप से पूछा, ये कौन हैं। उसने नज़रें झुकाते हुए कहा,मेरे गांव से मिलने आयें हैं,

आंटीजी। आंटीजी गुस्सा कर बोलीं, संदीप, तुम कब तक झूठ बोलते रहोगे। मैंने ही इन्हें बुलाया है। मैं सब जान गईं हूं। तुम अपने मां को कब तक सबके सामने शर्मसार करते रहोगे। ये वही मां है, जिसने तुम्हें नौ महीने भयंकर कष्ट झेलकर जन्म दिया है। तुम्हारे लिए सारी सारी रात जागी है।अपना लहू पिला कर तुम्हें नई जिंदगी दी है। क्या क्या नहीं झेला तुम्हारे लिए? एक तुम हो जो अपने माता-पिता को सबके सामने शर्मसार करते रहते हो।शर्म तो तुम्हें आनी चाहिए। पढ़े-लिखे होकर तुम असंस्कारी ही रह गए। आज इस मुकाम पर पहुंचाने वाले ये तुम्हारे देहाती माता-पिता ही हैं। 

बस अब बहुत हो गया, इन्हें कब तक शर्मसार करते रहोगे। तुम्हें अपने को सुधारना होगा अपने माता-पिता से माफी मांगों और गर्व के साथ सबसे कहो कि ये तुम्हारे माता-पिता हैं जिनकी वजह से तुम प्रतियोगिता में सफल हो कर बढ़िया नौकरी पाओगे। वरना मेरे घर में तुम जैसे लोगो की कोई जगह नहीं है। संदीप ने लज्जित होते हुए कहा, आंटी जी, मैं बहुत शर्मिन्दा हूं, अपने दुर्व्यवहार पर। मुझे किसी ने इस तरह नहीं समझाया था। मैं अब इनका पूरी तरह ध्यान रखूंगा। सही कहा आपने,ये चाहते तो मुझे भी दसवीं तक गांव में पढ़ा कर मजदूरी करने पर विवश कर देते। आपने मेरी आंखें खोल दीं। उसने रोते हुए अपनी मां को गले से लगा लिया और पापा के पैरों पर झुक गया। 

उस दिन के बाद से उसमें अभूतपूर्व बदलाव आया। वह अपनी मां के साथ बाहर जाता और फख्र से सबसे अपनी मां का परिचय कराता।

सुषमा यादव

“स्वरचित मौलिक अप्रकाशित”

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