आज फिर ढाक के वही तीन पात …नौकरी नहीं …!! कितनी एडियां रगड़ी कितनी मिन्नतें की पर बिना सिफारिश बिना ऊंची पहुंच के आज के जमाने में मुझे कौन नौकरी दे देगा।प्रतिभा है मेरे अंदर आखिर तीन वर्षो तक लगातार पूरे कॉलेज का बेस्ट एक्टर मुझे ही चयनित किया जाता रहा है स्कूल में भी अभिनय प्रतिभा का लोहा सभी मानते थे ढेरो ट्राफियां अनगिनत प्रमाणपत्र मेरे अभिनय कौशल को प्रमाणित करने के लिए काफी है यही सोचता था मयंक हमेशा और इसी आत्मविश्वास से भरा वह अपने परिजनों की इच्छा के विरुद्ध अभिनय को ही अपना कैरियर बनाने की ठान चुका था।
लेकिन वास्तविकता के कठोर धरातल से टकरा कर उसका काल्पनिक सुनहरा कैरियर विखंडित हो गया था।
पता नही #आखिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है मेरे सभी दोस्त कुछ ना कुछ बेहतर कर रहे हैं और मैं उन सबसे बेहतर होते हुए भी नकारा की श्रेणी में धकेल दिया गया हूं।आज भी कितनी उम्मीद से गया था शशिकांत जी के पास किसी नाटक में या सीरियल में छोटा सा ही रोल दे देंगे …विकास ने ही तो भरोसा दिलाते हुए कहा था मयंक निराश मत हो सभी को ऐसा लगता है की आखिर मेरे ही साथ सब कुछ बुरा और खराब क्यों घटित होता है जबकि असल में ऐसा नहीं है सच बात तो यह है कि हर बात का एक समय निर्धारित होता है समय पर तेरे साथ भी अनायास ही सब सही होता जायेगा। शशिकांत जी अभिनय की दुनिया के बादशाह है नए चेहरों को अवसर देते हैं आगे बढ़ाते हैं एक बार उनसे मिल ले फिर देख तेरी किस्मत का सितारा अभिनय जगत में कैसे चमकता है.!!
लेकिन उनसे मिलना मिलने की कीमत अदा करना भी मयंक के लिए टेढ़ी खीर ही था।लंबा कर्ज लेकर किसी तरह उसने मिलने की शर्त पूरी की थी और नियत तिथि पर पहुंच गया था उनके भव्य कांत स्टूडियो में..!
क्षणिक मुलाकात हुई उसने अपने बारे में बताते हुए एक अवसर देने की प्रार्थना की थी।
शशिकांत जी ने आश्वासन तो दिया लेकिन सुबह से बैठे बैठे रात हो गई परंतु छोटा सा एक रोल नहीं दिया।ऊंची पहुंच वाले लोगों की रेलमपेल मची रही ।आखिर में थक कर वह फिर उनके पास गया और हिम्मत करके उबल पड़ा था आप सबकी तरफ ध्यान दे रहे हैं सबको मौका दे रहे हैं आखिर मेरे ही साथ ऐसा क्यों हो रहा है कि आप मुझे अपना अभिनय दिखाने का एक मौका तक नहीं दे रहे हैं कम से कम मेरा काम तो देख लीजिए..
तब जाकर उन्होंने एक रोल उसे दिया जिसे उसने बखूबी निभाया भी लेकिन तभी एक और दावेदार वहां आ गया जिसकी ऊपर तक पैठ थी ।बस वह रोल भी उसे नहीं दिया गया यह कह कर कि अभी तुम्हे और अभ्यास की जरूरत है सहजता नही है।
इस झूठे बेबुनियाद खोट से उसके अंदर का अभिनेता मर गया था उसके अभिनय के सारे तार झनझना कर टूट गए थे।
अब कभी कोई अभिनय नहीं करूंगा सोचूंगा भी नहीं इरादा पक्का कर लिया था….!
आज एक माह से घर से बेघर भटक रहा है खाने के लाले पड़ गए हैं फुटपाथ के किनारे बेदम होकर लुढ़क गया है लंबी दाढ़ी उलझी लटें उसकी दयनीय दशा की व्यथा कथा कह रही थीं… बेबस बेसहारा लाचार हताश इंसान हो चुका था वह जिस अभिनय प्रतिभा पर इतराता फिरता था उसे दफन कर चुका था….
अचानक एक कुत्ता आकर उसकी सूखी रोटी जो शायद किसी ने उसे भिखारी जान कर निर्बल हाथ में पकड़ा दी थी उसको खाने लगा.. भूख में बावला वह अपनी उस कीमती सूखी रोटी बचाने के लिए कुत्ते के मुंह से रोटी छीनने की भगाने की असफल कोशिश में खड़ा होकर फिर गिर गया था तभी एक बड़ी सी कार उसके सामने रुकी और एक रौबदार व्यक्ति उतर कर उसके पास आए..कुत्ते के साथ उसकी फोटो कई पोज में खींची फिर आनंदित होकर कहने लगे….वाह क्या सहज मौलिक अभिनय है हां हां यही चाहिए मुझे बिल्कुल ऐसा ही किरदार है मेरी कहानी का इसकी वेशभूषा इसका दयनीय चेहरा कातर बेबस आंखें इसीकी जरूरत है मुझे यही सुयोग्य पात्र है चलो इसे ले चलो आओ भाई मेरे साथ कार में बैठ जाओ मैं तुम्हें एक बेहतरीन रोल के लिए चुन रहा हूं जो अभिनय जगत में तहलका मचा देगा !लेकिन मुझे कोई अभिनय नहीं करना है अब मैने छोड़ दिया सब.. मयंक कहता ही रह गया.. पर उसका विरोध कोई मायने नहीं रख रहा था..!
वह व्यक्ति उसे पकड़ कर संभाल कर कार में बिठा रहे थे उसकी तारीफ कर रहे थे सुनहरा भविष्य दिखा रहे थे एकदम मगन हुए जा रहे थे ..और मयंक आज बिना प्रयास के खुद चलकर अपने पास पहुंची किस्मत पर विस्मित हो रहा था और ईश्वर से फिर पूछ रहा था अभी तो मैने कोई अभिनय ही नही किया ना ही अभिनय करने की इच्छा की फिर भी ऐसा क्यों!!क्या अब जाकर आपके प्रदत्त रोल के अभिनय की कसौटी में खरा उतर पाया हूं मैं …!!
कई बार जब हम हिम्मत हार कर बैठ जाते हैं तभी हमारी जीत की शुरुआत होती है..!!
लेखिका : लतिका श्रीवास्तव
#आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है