” अरे ये क्या कर रहे हो अब क्या तुम्हारी उम्र है बच्चों के साथ उछल कूद करने की !” अपने पति मोहन बाबू को पोते पोतियों के साथ खेलते देख कुमुद जी बोली।
” राघव की मां उम्र का क्या है वो तो बस एक नंबर भर है दिल तो अभी बच्चा है तो क्यों ना मस्ती मजा करूं !” मोहन बाबू पकड़न पकड़ाई खेलते हुए बोले।
” अजी लोग क्या कहेंगे और घर में दो दो बहुएं भी है उनका क्या सब बोलेंगे बुड्ढा बुढ़ापे में सठिया गया है !” कुमुद जी उन्हें छेड़ते हुए बोली क्योंकि वो जानती है मोहन बाबू को बुड्ढा शब्द से चिढ़ है।
” बुड्ढी होंगी तुम मैं तो अभी जवान हूं जवान भी कहां बच्चा हूं …. चलो बच्चों पकड़ो मुझे !” मोहन बाबू ये बोल बच्चों के साथ लग गए।
रसोई में खड़ी दोनों बहुएं चंचल और वंदिता मुस्कुरा दी मां बाऊजी की इस नोकझोंक पर।
ये हैं बासठ साल के मोहन बाबू और साठ साल की कुमुद जी जिनका भरा पूरा परिवार है । दो बेटे – बहुएं , दो बेटी – जमाई , नाती पोते सभी। मोहन बाबू अभी दो साल पहले रिटायर हुए हैं सारी जिंदगी सीमित कमाई होने के कारण संघर्षों में बीती ना तो मन से कहीं घूमे ना बच्चो साथ ज्यादा वक़्त ही बिता पाए क्योंकि आमदनी बढ़ाने को ओवर टाइम जो लगाते थे हमेशा से जिंदादिल रहे हैं मोहन बाबू। बच्चों को उच्च शिक्षा दी उनकी शादियां की और अब रिटायर होने के बाद पोते पोतियों साथ बचपन जीना चाहते हैं अपना।
” अरे राघव की मां बहू से बोलो हम सबके लिए रसना बना दे !” खेलने के बाद थक कर मोहन बाबू बोले।
” रसना बच्चों के पीने की चीज है या आपके लो आप तो चाय पियो !” कुमुद जी चाय का कप बढ़ाती बोली।
” नहीं मैं भी रसना पियूंगा उसके बाद हम आइस क्रीम खाने चलेंगे …क्यों बच्चों?” मोहन बाबू बोले।
” हद्द करते हो जी आप भी इस उम्र में जाने समझदारी कब आएगी !” कुमुद जी चिढ़ कर बोली।
” अरे राघव की मां सारी जिंदगी आपा धापी में बिताई है अब जो जिंदगी बची है उसे खुल के जीने दो जिससे आखिरी समय मलाल ना रहे की कितना कुछ छूट गया करने से। इंसान को समझदार होना चाहिए पर अपने भीतर एक बच्चे को जिंदा रखना चाहिए वरना जिंदगी के मज़े कैसे ले सकते हैं !” मोहन बाबू बोले ।
दूर कहीं गाना बज रहा था दिल तो बच्चा है जी मोहन बाबू भी रसना पीते हुए गुनगुनाने लगे। फिर बच्चाें को ले बाज़ार निकल गए।
” मांजी आप क्यों पिताजी को टोकती हो देखो तो उनकी जिंदादिली से घर गुलजार रहता है हमेशा वैसे भी जिस घर मे बुजुर्गो के हँसने की आवाजे गूंजे वहां भगवान का वास होता है । वरना तो मेरे पापा तो रिटायर होने के बाद सबकी नाक में दम किए रहते हैं कभी सफाई को ले कभी खाने को ले और हमेशा घर मे कलह सा रहता है माँ भी परेशान , भाभी भी !” तभी बड़ी बहु चंचल वहां आ बोली।
” और नहीं तो क्या पिताजी के साथ बच्चों की भी चिंता नहीं रहती और हम आराम से काम कर लेती हैं !” छोटी बहू वंदिता भी कहां पीछे रहने वाली थी।
” बेटा मैं उन्हें टोकती नहीं हूं बस उनकी सेहत और उम्र को के चिंतित रहती हूं कि कहीं बीमार ना पड़ जाएं सारी जिंदगी मेहनत की और अब भी चैन नहीं इन्हे !” कुमुद जी बोली।
” मां हाथ पैर चलते रहेंगे तो ठीक रहेंगे वरना आराम के चक्कर में बिस्तर पकड़ लेंगे मैं तो बल्कि ये कहूंगा आप भी उनके साथ घूमने फिरने जाया करो जो पल पहले नहीं बिता पाए अब बिताओ साथ में !” बड़ा बेटा राघव बोला।
तभी मोहन बाबू बच्चों के साथ घर आ गए आइस क्रीम ले।
” पिताजी आप कहो तो आपकी और मां की चार धाम की टिकट करवा दें घूम आना आप दोनों ! ” छोटा बेटा विवेक घर आकर बोला।
” अरे मैं क्या बूढ़ा हुआ हूं जो चारधाम को जाऊंगा टिकट करवानी है तो शिमला की करवा वो भी पूरे परिवार की साथ में मस्ती करेंगे। मेरा बचपन से सपना था कभी शिमला जाऊं और बर्फ में खेलूं । पर छोटी उम्र में आए जिम्मेदारियों के बोझ ने कभी सपने को पूरा ही नहीं करने दिया !” मोहन बाबू बोले।
” इस उम्र में बर्फ में खेलोगे पगलाई गए हो क्या !” कुमुद जी बोली।
” नहीं मां पिताजी सही कह रहे मैं आज ही टिकट करवाता हूं !” विवेक बोला।
तय समय पर सब शिमला को निकल गए । वहां सबने खूब मस्ती की। बच्चे भी खुश थे पर सबसे ज्यादा खुश थे मोहन बाबू। कभी बर्फ के गोले बनाते कभी बर्फ में फिसलते कभी बच्चों के पीछे भागते। ऐसा लग रहा था मानो 62-63 साल का कोई बूढ़ा नहीं बल्कि 6 साल का बच्चा हो जो बर्फ देख मचल रहा है। उनकी जिंदादिली को देख वहां आए सभी लोग हंस पड़े ।
शिमला से वापिस आ जिंदगी फिर अपनी रफ़्तार से चलने लगी। मोहन बाबू अभी भी वैसे ही मस्ती करते बच्चों के साथ। पर एक दिन अचानक इस मस्ती को जाने किसकी नजर लग गई।
एक रात मोहन बाबू ऐसे सोए की सुबह उठे ही नहीं। नींद में ही साइलेंट अटैक आया और उनकी जिंदादिली का अंत हो गया। पर चिर निद्रा में सोए हुए मोहन बाबू के चेहरे पर भी संतुष्टि भरी चमक थी मानो अपनी जिंदगी की हर कमी पूरी करके गए हो। घर में सभी को उनके जाने का दुख था पर साथ ही ये तसल्ली भी थी कि मोहन बाबू अपने अंतिम समय में अपनी अभिलाषाएं पूरी करके गए हैं।
दोस्तों आपको मेरी कहानी का अंत दुखद लग सकता है पर ये जीवन की सच्चाई है। इसलिए हमे अपनी जिंदगी हंसी खुशी अपनी इच्छाएं पूरी करते हुए और अपने अंदर के बच्चे को जीवित रखते हुए जीनी चाहिए क्योंकि भविष्य के गर्भ में क्या छिपा कोई नहीं जानता हम आज हकीक़त हैं कल किस्सा बन जाएंगे।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल