अभागी माँ – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

पल्लवी जी अपने पति प्रकाश जी के साथ डॉक्टर के केबिन में बैठी डॉक्टर के मुँह से रिपोर्ट सुनने के लिए व्याकुल थीं । डॉक्टर के चेहरे पर असमंजस और परेशानी के भाव देखते हुए पल्लवी जी ने पूछ ही लिया,…”सब ठीक तो है न डॉक्टर साहब ? डॉक्टर ने पानी पीते हुए कहा…”आपकी रिपोर्ट ठीक नहीं आयी है । आपको ब्रेस्ट में तीसरे स्टेज का कैंसर पता लगा है   । आप एडमिट हो जाइए आज शाम तक । प्रकाश जी दूसरी जगह ये बातें सुनकर गम्भीर हो गए कि अब ईलाज शुरू करने की जरूरत है   । फिर भी उन्होंने डॉक्टर से कहा..”एक दिन की मोहलत दीजिए, घर के काम थोड़े सेट कर लें फिर हम कल आते हैं ।

डॉक्टर ने तो फरमान सुना दिया और सहानुभूति भी दिखा डाली..”घबराइए मत । तो कैसे नहीं घबराऊँ ? केबिन से बाहर सोफे पर बैठकर पल्लवी जी प्रकाश जी के सामने आँखों में दुःख का शैलाब लिए  बुदबुदा रही थीं ।

गाड़ी में बैठते ही वो अपने पुराने दिनों को कोस रही थीं । कहने को मैंने तीन औलाद को जन्म दिया लेकिन समय पर मेरे साथ आज कोई नहीं है । कोई ऐसी अभागी माँ नहीं होगी जो अपनी कोख को कोसती होगी, लेकिन मैं कोस रही हूँ । किस घड़ी – मुहूर्त में इन बच्चों को जन्म दिया था ।  दोनों बेटे राहुल और मेहुल ने तो विदेश जाने के बाद मुझसे किनारा ही कर लिया और बची – खुची कसर तो मेरी बेटी निष्ठा ने पूरी कर दिया । कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा ।

कितने अरमानों से इकलौती बेटी के ख्वाब संजोए थे । बी . टेक की पढ़ाई जैसे ही पूरी होगी उसे दो साल चैन से मौज करने दूँगी फिर शादी के लिए कोई विदेश में जॉब करने वाला अच्छा लड़का ढूंढ के उसकी शादी कर दूँगी । ढूँढने में भी परेशानी नहीं होगी, राहुल , मेहुल सब तो हैं ही, निष्ठा भी वहीं बस जाएगी । 

एक बार कम से कम बीस दिन की छुट्टी लूँगी और एक साथ ही सबके घर रहकर निपटा लूँगी ।

पर निष्ठा को जाने क्या सूझी घर से भागकर अंतर्जातीय में विवाह करने की । एक बार बोलकर तो देखती, गम्भीर हम जरूर थे पर इतने नहीं की बच्चों की खुशी नहीं देख पाते । कहने को तो इसी शहर बनारस में है , पर हमारे लिए वो मृत के समान ही है । फिर लगता है कभी – कभी हमारी भी तो गलती है । एक बिल्कुल साधारण से नैन – नक्श और छोटे कद वाले इंसान के साथ (निष्ठा  के पति ) निष्ठा के बिल्कुल विपरीत .. वो आशीर्वाद लेने आयी और मैंने गुस्से में कह दिया..”चढ़ना मत कभी, इस घर । यहाँ के दरवाजे तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद रहेंगे । मर चुकी हो तुम हमारे लिए ।

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उस वक़्त मेरे दिल पर क्या बीती थी इस कड़वी जुबान के पीछे शायद निष्ठा ने भी नहीं सोचा होगा । काश ! वो मेरा हृदय पढ़ पाती । इतने कटु वचन के पीछे मेरे दर्द की गहराई समझ पाती ।

सच कहते हैं बड़े बुजुर्ग ..”बच्चों को एक हद तक ही शिक्षा देनी चाहिए जब तक कि वो संस्कारों का मोल समझ सकें । मुझमें ही कमी थी मैंने बच्चों को ज़िन्दगी में धूप , बारिश और तकलीफ का सामना करना नहीं सिखाया । सारे दुःख खुद ही घोंटती रही तभी तो आज वो मेरी तकलीफ से वाकिफ होते हुए भी तकलीफ नहीं समझ पाते हैं। मुझे लगा था इन्हें जीवन के किसी भी दुःख के लम्हों से रु – ब – रु नहीं कराउंगी । पर गलत थी मैं । मुझे हर घड़ी हर परस्थिति का सामना करना उन्हें सिखाना चाहिए था   । तभी वो आज मेरे दर्द समझ पाते 

प्रकाश जी ने गाड़ी घर के सामने रोका और दरवाजा खोल कर पल्लवी जी को उतरने कहा ..पल्लवी जी अपने कंधे पर छुअन महसूस करके घबरा गई थीं । वो बोले जा रही थीं  आधे घण्टे से और कब घर आ गया पता ही नहीं चला । बेमन से वो गाड़ी से निकलकर घर के अंदर घुसीं और बेडरूम में जाकर पर्स को टेबल पर रखा और खुद निढाल होकर पैर नीचे रखे हुए ही लेट गयीं । प्रकाश जी ने पानी लाकर दिया और उनके पास बैठते हुए सिर को सीने के पास रखते हुए कहा..”बेटी है, गलती हो गयी उससे, क्या ज़िद लेकर बैठी हो । पुरानी बातें भुलाकर माफ कर दो न उसे । उस बात को भी तीन साल हो गए । अभी तुम्हें जरूरत भी है उसकी । 

पल्लवी जी ने पानी का गिलास रखते हुए कहा..”कैसे माफ करूँ उसे, मोहल्ले में कितनी बातें बनी थी, रात बिना सोए बिताई है मैंने । प्रकाश जी ने फिर समझाया..”गलती तो गलती होती है, माँ – बाप हैं हम । हमें तो ध्यान रखना ही पड़ेगा । बेड पर सिर टिकाते ही कब पल्लवी जी नींद के आगोश में चली गईं उन्हें पता ही नहीं चला ।

प्रकाश जी ने अपने दोनों बेटों को फोन लगा कर माँ की स्थिति बताई । राहुल ने ये कह दिया कि बहुत छुट्टी हुई है मेरी, अब छुट्टी नहीं मिलेगी पापा, मैं पैसे भेज दूंगा आप ऑपरेशन करा लो ।

प्रकाश जी ने कड़क आवाज़ में कहा..”बेटा राहुल ! पैसों की जरूरत नहीं मुझे, कमाता हूँ मैं । इंसान की कीमत पैसों से नहीं तोली जाती । जो सही लगे वही कर ।अब मेहुल को कॉल किया तो मेहुल ने कहा..”अब ये बीमारी कॉमन है पापा । कोई ज्यादा कठिन नहीं है । धीरे – धीरे ठीक हो जाता है । आप ऑपरेशन करवा लो लेकिन मेरा मुश्किल है आ पाना । और हाँ पापा..”आपको ही फोन करने वाला था । एक गुड न्यूज है । मैंने दूसरी बड़ी कम्पनी का इंटरव्यू दिया है वहाँ मुझे दो दिन में जॉइन करना है ।

मन ही मन प्रकाश जी सोच रहे थे ..आज तक तुम्हें गुड न्यूज और दुःख में फर्क ही देखना नहीं आया । माँ ही नहीं रहेगी तो इन चीजों का क्या मोल होगा ।

अपनी स्थिति पर प्रकाश जी को भी तरस आ रहा था । दिल बैठा जा रहा था अंदर ही अंदर   । लेकिन उन्होंने खुद से वादा लिया था पल्लवी को कमजोर नहीं पड़ने देंगे  । उसके साथ हिम्मत बनकर रहेंगे । उन्होंने पल्लवी जी का माथा चूमा और दोनो पैरों को बिस्तर पर रखकर सही से लिटा दिया और चादर ओढ़ा दिया ।

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माफ करना मुझे पल्लवी ! तुम्हारे विरुद्ध जा रहा हूँ लेकिन अभी मुझे कुछ नहीं तुम्हारे सिवाय दिख रहा है । पता है मुझे सब बच्चे ऐसे ही हैं पर मुझे तो तीनों में भेद – भाव नहीं करना । कल को ये मलाल न रहे कि बेटी को नहीं बताया । मन में इतना सोचते हुए कंपकंपाते हाथों से प्रकाश जी ने निष्ठा को फोन लगाया ।

पर फोन निष्ठा ने नहीं उठाया । किसी पुरुष की आवाज़ थी । समझते देर नहीं लगी कि उसके पति होंगे । उधर से आवाज़ आयी प्रणाम पापा जी ! मैं शिवम बोल रहा हूँ । प्रकाश जी का आवाज़ मानो भारी हो गया   । गले से बाहर ही नहीं आ रही थी आवाज़  । उन्होंने फोन रख दिया और लगातार उनके आँसू बहे जा रहे थे ।

दुबारा निष्ठा के नम्बर से   फोन आया और इस बार थोड़ा हल्के होकर प्रकाश जी ने उठाया और अपनी स्थिति बताई । निवेदन करते हुए कहा कि एक दिन के लिए हमारी बेटी को भेज दीजिए, बहुत बड़ी गलती हो गयी हमसे  । अभी कहाँ है वो, बात करा दीजिए । उसकी माँ दिल से तो बहुत चाहती है पर वो खुलकर नहीं बोल पा रही । बात को बीच मे ही रोकते हुए शिवम ने बोला ..”पापा जी ! आप  कैसी बात कर रहे हैं ।

आपकी ही बेटी है । हमारी गलतियों की आपने सजा दी इसका मतलब ये नहीं कि हम नाराज़ हैं आपसे । बस आपका दुःख न बढ़े इसलिए हमने दूरी बना ली । अभी निष्ठा नहा रही है । कल सुबह समय से हम हॉस्पिटल पहुँच जाएंगे  । प्रकाश जी के कलेजे को जैसे बहुत ठंडक मिली ।

शिवम ने निष्ठा को सब सच बता दिया और कॉल डिटेल्स भी दिखा दिया  । माँ की बीमारी का दुःख भी बहुत था निष्ठा को तो मिलने की खुशी भी थी । 

अगले दिन पल्लवी जी अस्पताल में भर्ती हो गईं । दो घण्टे बीत गए । प्रकाश जी को अब लगने लगा ये शिवम भी धोखेबाज़ ही है । बस बातों से जीत लिया । तब तक एक व्यक्ति आकर नर्सिंग स्टेशन के पास मरीज के बारे में पूछ रहा था । अंदाज़ से प्रकाश जी ने समझ लिया और नज़दीक जाकर कहा..शिवम ? शिवम ने पैर छूकर प्रकाश जी को गले से लगा लिया । बेड के सामने से पल्लवी जी नज़ारा देख रही थीं

और कुछ समझ नहीं पा रही थीं कि इस तरह से मिलने वाला कौन आया । अब शिवम के साथ प्रकाश जी अंदर कमरे में घुसे । पल्लवी जी को मानो काटो तो खून नहीं वाली स्थिति हो गयी । अनायास ही मुँह से निकला ..”अरे शिवम बेटा ! निष्ठा कैसी है, उसे नहीं लाए ? शिवम ने कहा..”उसे लाना मुश्किल था मम्मी जी , दरअसल उसकी डिलीवरी है परसों और अभी उसके साथ पास के हॉस्पिटल में दिखाने आया था उसे ।

पल्लवी जी समझ नहीं पा रही थीं नानी बनने की खुशी मनाएँ या अपना दुःख । पल्लवी जी की आँखों से आँसू बहते जा रहे थे । शिवम ने ढाढस बंधाते हुए कहा..”मम्मी जी ! बिल्कुल मत रोइए आप । निष्ठा ने मुझे कहकर भेजा है तुम्हारे रहते हुए मम्मी – पापा के  आँखों में एक आँसू नहीं आना चाहिए । मैं आ गया हूँ न , सब ठीक हो जाएगा । जीवन # सुख – दुःख का संगम है । आपको अपने नाती / नातिन को गोद मे लेकर खेलाना है न ? तो खुद को मजबूत करना होगा । वरना निष्ठा मुझ पर गुस्सा करेगी कि मेरे मम्मी को इसने रुला दिया । 

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पल्लवी जी के अंदर एक उम्मीद सी जाग रही थी । तभी वार्ड बॉय ने आकर कहा.. दो यूनिट किसी भी ब्लड ग्रुप का इंतज़ाम कर लीजिए फिर ऑपरेशन शुरू होगा । अब प्रकाश जी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं ।  लेकिन बहुत प्यार से शिवम ने कहा..”मैं दूँगा ब्लड आप इंतज़ाम करो लेने का । प्रकाश जी ने बहुत मना किया ये कहते हुए कि कितने बुरे हैं हम । पहली बार मिले और वो भी .. लेकिन नहीं माना शिवम ।

शिवम ने कहा..”मैंने अभी आपलोगों को समझाया था और दुबारा समझा रहा हूँ मम्मी – पापा जी ! # जीवन सुख दुःख का संगम है । मैं तो हर छः महीने में रक्तदान करता हूँ । क्या हुआ अगर किसी अपने के लिए करना पड़े । बाहर का खोजने ढूँढने की जरूरत क्या है जब मैं तैयार हूं तो ।

प्रकाश जी और पल्लवी जी शिवम के आगे हाथ जोड़े अपराधबोध महसूस कर रहे थे  । इधर ऑपरेशन की तैयारियों में अभी दो घण्टे का समय था । तब तक निष्ठा ने फोन किया कि डॉक्टरी जाँच हो गयी है और  शिवम उसे लेने आए । शिवम बोलते हुए निकल गया कि वह पन्द्रह मिनट में आ रहा है ।

पल्लवी जी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी शिवम का स्वभाव देखकर । आँखों को बंद कर लिया और उन्हें वो पल याद आने लगा जब उन्होंने साधारण सी शक्ल देखकर उसे बाहर निकाला था । निष्ठा का वो मासूम चेहरा उनके आगे घूम रहा था । 

तभी मम्मी आवाज़ सुनकर वो चौंक गयीं । निष्ठा पहले से और ज्यादा चमक रही थी । चेहरे पर वही प्यारी मुस्कान । पल्लवी जी की जीने की इच्छा मानो प्रबल हो उठी । दोनो एक दूसरे के गले लगकर भाव – विहल हो उठीं । प्रकाश जी के गले लगकर भी वो देर तक लिपटी रही । निष्ठा ने चुपके से आँसू पोंछे और कहा..”अब निष्ठा हमेशा के लिए आपके साथ है मम्मी ।  पुराना सब अपने दिल से निकाल दिया अब आप भी अपना दिल साफ करके मुझे माफ़ करो और थोड़ी जगह अपने दिल मे दे दो । 

थोड़ी देर में व्हील चेयर आ गयी और शिवम ने पकड़ कर बिठाया पल्लवी जी को । निष्ठा ने प्यार से माँ का माथा चूमा और लक विश् करके दूर तक देखती रही ।

सात – आठ घण्टे के ऑपरेशन के बाद अब वापस पल्लवी जी वार्ड में आ गयी थीं । शिवम ने कहा कि अब हमलोग निकलते हैं, फिर शाम को आएँगे ।पल्लवी जी ने भी कहा..”जाओ बेटा ! निष्ठा को भी तुम्हारी जरूरत है । फिर शाम को शिवम और निष्ठा नहीं आए । प्रकाश जी ने इतना कॉल लगाया । फोन बंद आ रहा था । घर जाने के बाद ही निष्ठा को लेबर पेन होने लगा था और अफरा – तफरी में फोन चार्ज करना शिवम भूल गया था । 

रात में शिवम के मम्मी – पापा सब हॉस्पिटल में थे । नर्स ने एक प्यारी सी परी को लाकर दिखाया..”बधाई हो ! बेटी हुई है । सबके चेहरे प्रसन्नता से चमक रहे थे । 

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देर रात में परेशान न  करने की वजह से शिवम ने प्रकाश जी को फोन नहीं किया । अगली सुबह 5 बजे शिवम का फोन आया । आपलोग नाना नानी बन गए । लक्ष्मी घर आई हैं । बहुत दिनों बाद इतनी खुशी को बटोर नहीं पा रहे थे प्रकाश जी । बधाई देकर शिवम को कहा..”मैं मिलने आऊँगा तुम थोड़ी देर के लिए माँ के पास आ जाओ । शिवम ने कहा..”आप परेशान मत होइए । मैं दिखाने लाऊंगा परी को ।

और फोन रखने के बाद हाथों में बुके लिए एक अधेड़ उम्र का जोड़ा कमरे की तरफ आ रहा था ।हाथ जोड़कर उनलोगों ने प्रकाश जी से कहा..”नमस्ते ! हम शिवम के मम्मी पापा हैं । शिवम हमे यहाँ छोड़कर गया है । आपको घबराने की जरूरत नहीं है, जल्दी स्वस्थ हो जाइए बहन जी अब तो घर मे एक खिलौना भी आ गया   ।  शिवम की मम्मी ने पल्लवी जी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा..”खुशकिस्मत हैं हम, आपकी बेटी हमारे घर की बहू बनकर हमारे घर को सँवार दी ।

पल्लवी जी को बहुत ख़ुशी हो रही थी उन्होंने जो सपने बुने थे निष्ठा के लिए वो सब सजीव दिख रहे थे और उनके जीने की उम्मीद भी उमंग में बदल रही थी । प्रकाश जी और पल्लवी जी निहाल हो रहे थे ऐसा दामाद और ऐसा परिवार पाकर ।

 

मौलिक, स्वरचित

#सुख दुःख का संगम

(अर्चना सिंह )

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