अभागी गंगा – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

‘‘ कितनी अभागी हूँ मैं… मेरे जैसी अभागन भी हो सकता है कोई दूनिया में ???? ऐसा लगता है लिखने वाले ने मेरी किस्मत ही काली स्याही से लिख दी है फिर किसी को क्या दोष दूँ… बचपन से लेकर आज तक बस सबकी सुनता ही आई हूँ….जब बाप का कुछ काम बिगड़ा बेटी दोषी ठहरा दी गई..

शादी के बाद पति का हृदयाघात हुआ तो भी मेरी वजह से हो गया के ताने सुनने को मिले… आज बेटा ( कमल)भी खड़े खड़े मुझको ही अपना दोषी समझ बैठा..  बहू तुम चुप क्यों हो? तुम्हें भी कुछ कहना है तो कह दो…. जब अपनी किस्मत ही  खराब हो तो किसी और को क्या दोष देना।”रोते रोते गंगा जी अपनी किस्मत को कोस रही थी

‘‘ नहीं माँ जी आप क्यों खुद को कोसती है?…ये तो इनकी मति भ्रष्ट हो गई है जो आपसे ऐसे बात कर के गए, और मैं क्यों आपको कुछ कहूगी… आप तो हम सब का भला ही सोच कर बोल रही होगी ना… आप चुप हो जाईए और पानी पी लीजिए।‘‘ कहती हुई बहू  कला  सास के हाथ में पानी का गिलास थमा दी

गंगा जी अभी भी रो रही थी। 

रोते रोते बस अपनी किस्मत को कोसती जा रही थी, याद करने लगी जब वो पैदा हुई थी तो उनकी दादी कुछ दिनों बाद चल बसी थी बस उनके बाबा अपनी माँ की मौत के लिए अपनी फूल सी नाज़ुक बिटिया को देख कर बस ताने सुनाते रहते, हजार दफे उनकी माँ ने पति से कहा अपनी बिटिया को कोई ऐसे बोलता है क्या? अरे अम्मा की उम्र हो रही थी ,फिर बीमारी अलग से थी नहीं बच पाई ,उसमें मेरी गंगा कैसे दोषी हो गई। 

कभी उनके पिता के काम का नुकसान हो तो उसके लिए भी गंगा ही सुनती.. सुबह सुबह इसकी सूरत जो देख ली थी काम तो बिगड़ना ही था।

गंगा चुपचाप सब सुनते सुनते बड़ी होती गई। 

बस एक माँ का ही सहारा था। वो भी बेटी की शादी कर चल बसी। 

मायके तो फिर छूट ही गया। शादी कर के ससुराल आई तो पति के साथ कितना भी निभाने की कोशिश करती पर नाकामयाबी हासिल हुई बस दोनों जिन्दगी काट रहे थे, जिम्मेदारी निभा रहे थें। पति किसी ऑफिस में लिखा पढ़ी का काम करते थे एक दिन हाथ में कलम पकड़े पकड़े ही हृदयाघात से इस दुनिया से चले गए।

गंगा अभागी के किस्मत में कोई अपना सगा कहने को बस एक चार साल का बेटा ही रह गया था।

बेटे को बड़े जतन से पाल पोस कर बड़ा आदमी बनाने के सपने देखती रहती थी।सिलाई कढ़ाई के काम में दक्ष थी तो जीविका चल रही थी।बेटा बड़ा हुआ तो वो कभी कभी  सिगरेट दारू का सेवन करने लगा। लाख समझाने पर समझता कुछ दिन बंद रहता फिर सेवन कर लेता।

किसी तरह ग्रेजुएशन करवा कर गंगा ने उसकी नौकरी लगवा दी। साल भर बाद बहु भी आ गई।

कुछ दिन तक कमल कला के  साथ बहुत अच्छी तरह से व्यवहार करता रहा….पर एक दिन वो शराब पी कर आया और कला के मना करने पर उसको मारने लगा। 

गंगा जी ने बेटे को बहुत डांटा और समझाया। कुछ दिन फिर कमल का संयत व्यवहार रहा। पर जिसको पीने की लत लग गई हो वो कैसे जल्दी जा सकती है। धीरे धीरे कमल घर में कम बाहर ज्यादा पैसे उड़ाने लगा।

कला तो अब कमल से कम ही बात करती थी, हाँ….सास से उसे बड़ा स्नेह था।

एक दिन कमल कला के गहने खोज रहा था, जो उसने गंगा जी के संदूक में रखवा दिया था।

कला ने कहा,”वो माँ जी के पास है।”

‘‘ माँ.. माँ ..किधर है,  सुन मुझे वो कला के गहने दें कुछ काम है।‘‘ कमल गंगा जी से बोला

“पहले बता क्या काम है फिर दूँगी….वो गहने तेरे उड़ाने के लिए सँभाल के ना रखें है जो तू बोले और मैं दे दूँ ….पहले काम बता।”गंगा जी कड़क आवाज में बोली

लड़खड़ाती जबान से कमल बस वो वो करता रहा।

उस दिन तो बात किसी तरह  दब गई पर अगले दिन कमल जबरदस्ती माँ से संदूक की चाभी माँगने लगा । 

“जो एक बार बोल दिया नही दूँगी जब तक तू ये नही बताता काम क्या है? वो गंगा के गहने है तेरा उनपर कोई अधिकार नही है। वो उसके घरवालों ने दिए हैं अपनी बेटी को तू यूँ ही उनको बर्बाद नहीं कर सकता।”गंगा जी गुस्से में आकर बोली

‘‘ तो सुनो, मेरे उपर बहुत कर्जा हो गया है। दो दिन में उनके पैसे लौटाने है नही दिया तो वो सब ना जाने क्या करे!”कमल ने कहा

‘‘ क्या ऽऽऽ !! सास बहू दोनों एक स्वर में बोली

“ ये क़र्ज़ तुने कब और किससे और क्यों लिया?” गंगा जी ने पूछा

‘‘ सब पैसे शराब में खर्च हो गए, अब उधर ही उधारी बढ़ गई है। मुझे जल्दी से गहने दो बेच कर उनका क़र्ज़ चुका दूँगा।”कमल ने कहा

‘‘ चुप कर नालायक, इसी दिन के लिए पाल पोस कर बड़ा किया था तुझे जो अब बहू के गहने बेच कर शराब के पैसे चुकाएगा?? तुझे उसके गहने तो नही मिलेंगे  कान खोल कर सुन लें ….वो उसके अम्मा बाबूजी ने दिए हैं।”गंगा जी गुस्से में तमतमाते हुए बोली

‘‘ सुन माँ, तुझे देना तो पड़ेगा…आज आखिरी दिन है….उनके पैसे ना दूँगा ….तो वो मुझे आज पीने भी ना देंगे। सुन तु ऐसा कर उसके गहने नहीं देगी तो अपनी ये सोने की चूड़ियां ही दे दें। कला के घर वालों ने उसके लिए दिए हैं ना तू अपने बेटे के लिए दे दें।”कमल आज पागलों की तरह बोले जा रहा था

 चटाक की आवाज से सारा आँगन गूंज उठा।

गंगा जी ने बेटे के गाल पर रसीद कर चांटा जड़ दिया था।

“तुम सच में सबकी जिंदगी बर्बाद करने वाली हो… सब ठीक ही कहते थे तुम किसी का भला नही कर सकती । जब से आई हो

अपनी खराब किस्मत से सबको बर्बाद ही करती रही हो। तुमने मुझे दिया ही क्या?? बस पढ़ ले पढ़ ले करती रही…. कोई शौक पूरे किए कभी…बहू भी अपने जैसी ही ले आई हो….

जिसकी क़िस्मत भी काली स्याही से लिखी गई है…  दोनों रहोगी तो मेरी ही जिन्दगी बर्बाद होनी  है।”ऐसे कड़वे बोल बोलकर कमल घर से निकल गया था और गंगा जी खुद को कोसे जा रही थी।

‘माँ जी कहाँ है आप ? इस शोर से उनकी सोच का सिलसिला टूट गया

देखा तो आस पास के लोग आँगन में बेटे को खाट पर सुला रहें थे,पूरे शरीर पर खून ही खून।

‘‘ क्या हुआ इसको?” कह कर गंगा जी रोने लगी

‘‘ पता नहीं कौन सी धुन में चला जा रहा था एक ट्रैक्टर से टकरा गया बाल बाल बच गया नही तो पता नहीं क्या हो जाता।‘‘ भीड़ में से किसी ने कहा

 जल्दी जल्दी मरहम पट्टी कर दी गई। ज्यादा चोट ना लगी थी ,बस पैर में मोच आई और शरीर में जगह जगह खरोंच लगी थी।

गंगा जी और कला ने मिलकर कमल की खूब सेवा की।बिना उससे कोई बात किए। 

गलती करने वाला इंसान जब जानता है कि उसने गलती की है और सामने वाला चुप है तो बात और ज्यादा चुभती है।बस यही कमल को महसूस होने लगा था।

कमल दोनों से नजरें नहीं मिला पा रहा था। एक शराब के लिए वो माँ को क्या क्या नहीं सुना गया था। 

‘‘ आप दोनों मुझे माफ कर दो। आज के बाद मैं शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा…..मैं दोस्तों के संग कभी कभी ज्यादा पी  लेता था इसलिए कर्जा बढ़ गया और मैं परेशान हो गया था।” कमल नजरें नीची कर के बोला

‘‘ ये ले मेरी चूड़ियां, बेचकर कर्ज उतार लें पर वादा कर आज के बाद हाथ ना लगाएगा।‘‘ गंगा जी अपनी चूड़ियां देते हुए बोली

चूड़ियों को हाथ में लेकर माँ को वापस पहनाते हुए कमल ने कहा,”ये तेरा आखिरी गहना बचा है माँ,..इसे भी बेच दूँ?मेरे लिए तुने सब तो बेच ही दिया था इसको संभाल के रख।”

 गंगा बेटे की बात सुन कर खुश हो गई।

गंगा और कला ने अपने अपने पास से जितना बचा रखा था वो पैसे देकर कमल से बोली,”ये देकर कुछ दिनों की मोहलत माँग ले उनसे ,,, और कहना हम जल्दी ही बाकी क़र्जा चुका देंगे।”

कमल पैसे लेकर रोता हुआ बोला,”माँ आज के बाद ना कहना तू अभागन है और ना ही तेरी किस्मत काली स्याही से लिखी गई है,.. नवो तो मैं बदनसीब हूँ जो अपनी किस्मत वाली माँ को पहचान ना पाया …..और तेरी बहू के दिल को भी जो मेरी हर बात बर्दाश्त करते हुए भी मेरी सेवा करती रही…..मैं ही अभागा अपनी किस्मत समझ ना पाया। ‘‘

गंगा जी ने बेटे को गले लगा कर कहा,,”अब लग रहा मेरी किस्मत अच्छी हो गई बड़े भागों वाली हूँ मैं तो जो ऐसे बेटा बहू मुझे मिले।‘‘

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धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

#अभागन

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