अभागन – सुनीता मुखर्जी “श्रुति” : Moral Stories in Hindi

सौंदर्या व्याकुल होकर घर में ही चहल कदमी कर रही थी कभी बालकनी, कभी घर का गेट खोलकर बाहर देखने जाती। बेचैनी में एक-एक पल उसे एक-एक वर्ष के समान लग रहा था। थोड़ी भी आहट होने पर बाहर देखने लगती। बहुत ही बेसब्री से बेटे अंशुल का इंतजार कर रही थी। और हो भी क्यों न… क्योंकि आज उसकी तपस्या का फल मिलने वाला दिन है। 

इंतजार करते-करते अचानक उसकी नजर दीवार पर टंगी सौमित्र की तस्वीर पर ठिठक गई, और वहीं खड़े होकर लगातार तस्वीर को निहार रही थी। तस्वीर देखते- देखते अपने अतीत में चली गयी। 

सौंदर्या मौसी के यहां पहली बार आयी थी। सोचा मौसी को सरप्राइज देगी। बस स्टॉप से उतरकर  मौसी के घर ढूंढने में थोड़ी दिक्कत हुई तो सामने खड़े एक युवक से  मौसी के घर का पता पूछा। उस नौजवान को मजाक सूझी और उसने सामने वाले गौशाला का पता बता दिया। जब वह बताए हुए पते पर पहुंची, तो वहां ढेर सारी गाय देखकर उसे उस युवक पर बहुत गुस्सा आया। गौशाला से बाहर निकल ही रही थी कि तभी उसका एक पैर गोबर में पड़ा और वह फिसल कर गिर गई!! उसके कपड़े खराब हो गए ….खड़े होकर वह इधर-उधर देखने लगी काश!! वह लड़का एक बार मिल जाए उसकी ऐसी खबर लूंगी जो हमेशा याद रखेगा !!  

तभी उसे मंदिर से आते हुए मौसी दिखाई दी, मौसी को देखकर जोर से चिल्लाई…. मौसी!!

मौसी भी सौंदर्या को देखकर खुशी से चिल्ला पड़ी… अरे सौंदर्या! तुम यहां?? यहां गौशाला में क्या कर रही हो?

पहले घर आना चाहिए था फिर गौशाला घूमने आती। अरे! तुम्हारे तो सब कपड़े खराब हो गए हैं।

घर चलो जल्दी कपड़े बदल लो। सौंदर्या ने अनजान व्यक्ति से पता पूछने वाली बात मौसी को बताई। अचानक मौसी के बगल वाले घर में वह युवक दिख गया। सौंदर्या जोर-जोर से चिल्लाने लगी यही है! वह लड़का जिसने मुझे गलत पता बताया था।

मौसी ने कहा इसका नाम सौमित्र है लड़का बहुत अच्छा है लेकिन थोड़ा मजाकिया स्वभाव का है।

सौंदर्या से रहा नहीं गया उसने सौमित्र को खूब खरी खोटी सुनाई लेकिन सौमित्र मुस्कुराता ही रहा। 

मौसी हंसते हुए आगे बोली अभी कुछ दिन पहले ही इसकी सरकारी नौकरी लगी है, पूरे मोहल्ले में सभी की खूब मदद करता है। 

सौंदर्या तपाक से बोली!! ऐसी ही मदद करता है जैसी मेरी की। सौंदर्या को गुस्से में तमतमाये देखकर सौमित्र लगातार हंसे जा रहा था। 

कुछ दिन रहने के पश्चात सौंदर्या वापिस घर आ गई। 

सौमित्र माता-पिता का इकलौता बेटा था। धन वैभव की कमी न थी। सौमित्र के माता-पिता को सौंदर्या बहुत पसंद आई। उन्होंने मौसी से सौंदर्या और सौमित्र के रिश्ते की बात की। मौसी ने जब मम्मी पापा को रिश्ते की बात बताई तो उन्होंने सब कुछ देख सुन कर रिश्ते के लिए हांँ कर दी। 

कुछ दिनों के बाद  धूमधाम से सौमित्र और सौंदर्या का विवाह हो गया। 

सौंदर्या का दाम्पत्य जीवन बहुत ही खुशहाल था। सौमित्र के माता-पिता भी  सौंदर्या का बहुत प्यार करते थे । सौमित्र के अथाह प्यार एवं खुशहाल जीवन के कारण समय मानो पंख लगा कर दौड़ रहा था… कब तीन साल बीत गये पता ही नहीं चला। इस बीच अंशुल ने जन्म लिया। उनकी जीवन की फुलबगिया में चार चांँद लग गए। सौंदर्या का जीवन हंसते मुस्कुराते बीत रहा था।

उसे ऐसा कोई भी दिन याद नहीं जब सौमित्र ने डांटा या ऊंची आवाज में बात की हो। 

जब भी वह नाराज होती तो सौमित्र कोई न कोई ऐसी बात करते कि उसके मुंँह से हंसी निकल जाती। सौंदर्या ऐसे सास ससुर एवं जीवनसाथी पाकर अपने आप को धन्य मान रही थी।

दोनों अपनी विवाह की चौथी एनिवर्सरी मना रहे थे घर मेहमानों  से भरा था। सौमित्र भी शमां बाँधे एक से बढ़कर एक चुटकुले सुना रहे थे। लोग हंसते-हंसते लोटपोट हो रहे थे। पूरा माहौल खुशमिजाज था…. अचानक अंशुल के सीने में दर्द हुआ तुरंत सौमित्र को लेकर अस्पताल गए, वहां डॉक्टर चेक कर ही रहे थे उसी समय दोबारा दर्द हुआ जब तक डॉक्टर कुछ करते सौमित्र ने दुनिया को अलविदा कह दिया। डॉक्टर ने परिवार जनों को बताया कि मरीज अब इस दुनिया में नहीं है तो सौंदर्या बोली… “डॉक्टर साहब उन्होंने आपको भी अपने मजाक में मिला लिया” 

अभी देखिए मैं उनको लेकर आती हूंँ….और कहते हुए सौंदर्या सौमित्र के पास गई और पुराना हथकंडा अपनाते हुए उसके पैरों के तलवों में गुदगुदी करने लगी। सौमित्र को पैरों के तलवों में बहुत गुदगुदी लगती थी उस समय वो अपना मजाक भूल जाते थे और खिलखिला कर हंसने लगते थे।

वही सोचकर, वह सौमित्र के तलवों में गुदगुदी करने लगी  ;;;;; और हंसते हुए कह रही थी और करोगे! और करोगे! ऐसा मजाक!! आज तुम्हें छोड़ेंगे नहीं!! अब ऐसे मजाक करना तुम भूल जाओगे। 

वह हंसते जा रही थी और तलवों में गुदगुदी किए जा रही थी लेकिन यह क्या?? सौमित्र में कोई हलचल नहीं हो रही थी‌।  इतना गुदगुदी करने से तो उछलने लगते थे। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। उसे लग रहा था कि सौमित्र अभी मजाक से लेटे हैं सरप्राइज देते हुए खड़े हो जाएंगे। 

काश ऐसा होता!!…. “लेकिन यह सौमित्र का मजाक नहीं था”… सचमुच वह सबको  छोड़ कर चले गए थे।

सौंदर्या का जीवन वीरान हो गया।  जहां दूर-दूर तक कोई खुशियां दिखाई नहीं पड़ रही थी। सौंदर्या कभी अंशुल को कभी उनके माता-पिता को देखती।

सौमित्र के क्रिया कर्म में जो लोग आए थे वह उसी संवेदनशील समय में सौंदर्या के दूसरे विवाह की सलाह देने लगे। 

अभागन!!! यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे काटेगी?? 

सौंदर्या के माता-पिता भी बेटी के भविष्य की चिंता करते हुए दूसरी जगह विवाह करने की सोच रहे थे, लेकिन सौंदर्या ने सभी को बहुत गुस्से में कहा… 

“यह मेरा घर, मेरा व्यक्तिगत मामला है। आप लोग इसमें दखलअंदाजी न करें।”

मुझसे पहले आप लोग मेरे सास ससुर को जानते हैं आप उनके शुभचिंतक न होकर मेरे शुभचिंतक क्यों बन रहे हैं?? यदि कुछ देर के लिए मान भी लिया जाए कि मेरे दूसरा विवाह करने से मुझे पति और अंशुल को पिता मिल जाएंगे… लेकिन मेरे सास-ससुर को क्या बेटा मिल पाएगा??

नहीं ना!! उन्होंने भी तो अपना बेटा खोया है फिर…….

आप लोग अपनी सलाह अपने पास रखें।

मैं सदा अपने इसी घर में ही रहूंगी। क्या हुआ???  जो सौमित्र नहीं है। उनका घर तो है, उनके माता-पिता एवं उनका बेटा अंशुल तो है। 

मैं कोई अभागन नहीं हूंँ। मेरा भरा पूरा परिवार है। मैं इस घर को  छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी और न ही दूसरा विवाह करूंगी।

अभागन तो वह स्त्रियां होती हैं जो पतियों के जीवित रहते हुए भी ताउम्र पति के प्रेम के लिए तरसती रहती हैं। सौमित्र ने तो मुझे इतना प्यार दिया है जो कई जन्मों तक नहीं चुकेगा।  सौंदर्या की बात सुनकर सभी रिश्तेदारों ने चुप्पी लगा ली।

कुछ रिश्तेदार खुसूर- फुसुर कर रहे थे अभी ताजा- ताजा घाव है इसलिए ऐसा कह रही है एक-दो साल के बाद देखना उड़ते हुए नजर आएगी। 

सौंदर्या ने अपने आप को और अपने सास ससुर को संभाला…हमेशा सास- ससुर से कहती अंशुल ही आपका बेटा है। 

अब उसका एक ही मकसद था सौमित्र के माता-पिता की 

देखभाल करना और बेटे को अच्छी से अच्छी शिक्षा देकर एक कामयाब इंसान बनना।

अंशुल बचपन से ही बहुत नटखट और अपने पिता के समान मजाकिया स्वभाव का था। अंशुल को देखकर सास- ससुर एवं सौंदर्या के धीरे -धीरे घाव भरने लगे। अंशुल पढ़ाई में शुरू से ही बहुत तेज था। पेरेंट्स मीटिंग में सौंदर्या अपने सास- ससुर को भी साथ लेकर जाती थी, जहां बच्चे की परफॉर्मेंस देखकर सभी बहुत गदगद होते थे। स्कूल में अंशुल के अध्यापक एवं उसके मित्र मजाकिया स्वभाव के कारण सभी खुश रहते थे।

मांँ!! ओ मांँ!…… कब से बुला रहा हूंँ, कहांँ खोई हो तुम?

अचानक सौंदर्या जैसे नींद से जागी हो। अंशुल को देखते ही खुशी से पूछने लगी… क्या हुआ! कौन सा कॉलेज मिला है तुम्हें?

मांँ तुम्हारा पसंदीदा कॉलेज आई.आई.टी.कानपुर!!!

सौंदर्या खुशी से उछल पड़ी और अंशुल को अपने सीने से लगा लिया।

सौंदर्या ईश्वर को धन्यवाद देते हुए सास ससुर को दोनों मां बेटे ने पैर छूकर प्रणाम किया और आशीर्वाद लिया।

– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”

          लेखिका 

हल्दिया पूर्व मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल

#अभागन

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