अभागन – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

अंजना अपनी ननद के  गृहप्रवेश 

  का बेसब्री से इंतजार कर रही थी ,क्योंकि उसकी ननद ने उसके साथ ही बाजार जाकर काफी खरीदारी की थी।

उसने भी ननद के पूरे परिवार के लिए उपहार लेकर रखे थे,भाई नहीं हैं तो क्या!बड़ी भाभी होने के नाते उसका भी कुछ फर्ज बनता था,

परन्तु आज गृहप्रवेश के अवसर पर जब ननद रीता ने उसे बुलावा नहीं भेजा,तो वह पति विनय की फोटो के समक्ष फूट-फूटकर रो पड़ी। पति विनय को पाकर  वह खुद को भाग्यशाली  समझने लगी थी,परन्तु दुर्भाग्य  ने यहाँ भी उसका पीछा नहीं छोड़ा।उसकी आँखों

 से मूसलाधार बारिश  होने लगी।उसके दुखी मन की सारी भावनाएँ बहकर बाहर आने लगीं।वह अतीत की गलियों का सफर करते हुए अपनी जिन्दगीनामे को याद करने लगी।

अंजना के जन्म के कुछ दिनों बाद  ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। उसकी दादी उसकी सूरत तक नहीं देखना चाहती थी।उसे देखते ही बेटे का कातिल और अभागन समझकर उसकी दादी मुँह फेरकर लेती थी,परन्तु उसकी माँ ऊषा अपने बड़े दो बच्चों बेटा और बेटी के साथ  छोटी अंजना को भी सीने से चिपकाए  रखती थी।

ऊषा पति का सहारा टूटने पर भी बच्चों को बेसहारा नहीं महसूस होने देना चाहती थी।वह परिस्थितियों से लड़ते हुए एक साहसी योद्धा के समान जिन्दगी की कठिनाईयों से दो-चार कर रही थी।पति की छोटी-सी पेंशन से जैसे-तैसे परिवार का गुजारा हो ही जाता था,

परन्तु सास के कटु व्यंग्य-वाण हमेशा उसके कलेजे को छलनी करके रख देते।एक दिन  बचपन में छोटी अंजना  बुखार के कारण रो-रोकर  हलकान हो रही थी ।देसी और घरेलू  दवाईयों से भी उसका बुखार  नहीं उतर रहा था।अंजना की माँ  ऊषा ने अपनी सास से कहा -” माँ जी!अंजना के बुखार नहीं उतर रहे हैं,उसे शहर के किसी अच्छे डाॅक्टर से दिखाना पड़ेगा!”

उसकी सास ने  बच्ची की ओर गुस्से से देखते हुए कहा -“ये तो जन्म से ही अभागन है।जन्मते ही अपने बाप को खा गई, अब हमें भी परेशान करती रहेगी!”

अब तक ऊषा सास की बातों को कोई खास तवज्जो नहीं देती थी,परन्तु आज बीमार मासूम बच्ची के लिए अभागन शब्द सुनकर उसका दिल तड़प उठा।उसने गुस्से में अपनी सास से कहा -” माँ जी!आजतक मैं आपकी बातों को अनसुनी करती रही,परन्तु आज मेरे सब्र ने जबाव दे दिया है।आज के बाद  मैं अपने बच्चों के लिए अभागन शब्द नहीं सुनुँगी।उनके पिता नहीं रहें ,उसमें इनका क्या दोष?”

ऊषा की सास की समझ में बात आ गई कि जल में रहकर मगरमच्छ से वैर नहीं किया जा सकता है।अब बुढ़ापा भी तो बहू के सहारे ही काटनी है।अब ऊषा की सास  मनोरमा देवी खुलकर तो अंजना को कुछ नहीं कहतीं,

परन्तु अपने हिस्से का सारा प्यार बड़े पोते-पोतियों पर उड़ेल देतीं,अंजना के हिस्से कतरा भर भी उनका प्यार नहीं आता।कभी-कभार मनोरमा देवी अपने बेटे की अकाल मौत के कारण क्रोध,कटु वाक्यों और तानों  से ऊषा और अंजना के मर्मस्थल पर चोट कर ही जातीं।

दादी के उपेक्षित व्यवहार के कारण  बचपन में ही अंजना की बाल-सुलभ इच्छाएँ कुंठित हो गईं।उसे उन तारीफों से वंचित रखा ,जो एक किशोरी के विकास के लिए जरुरी है।इस कारण वह मात्र इंटर तक ही पढ़ाई कर पाई।

धीरे-धीरे उनकी जिन्दगी पटरी पर लौटने लगी।दिन के दिन जुड़ते चले और जीवन आगे बढ़ता रहा।अंजना की दादी परलोक सिधार गईं।उसका भाई पढ़-लिखकर नौकरी करने लगा।बड़ी बहन की भी शादी हो गई। अंजना की शादी भी अच्छे परिवार में हो गई। शादी के बाद मानो सारे जहां की खुशियाँ उसके पहलू में आकर बैठ गईं।आरंभिक उदासी और मायूसी से उबरकर खुशी से उसके बुझे चेहरे पर उन्मुक्त खुशियाँ खिलखिला उठीं।

अंजना के ससुराल में भरा-पूरा परिवार था।सास-ससुर, ननद-देवर सभी उसे बड़े का सम्मान और इज्जत देते।वह खुशियों के हिंडोले में झूले झूलती।अब उसे ऐसा महसूस होता,मानो अभागन का ठप्पा उसके सिर से उतर गया हो।

परन्तु नियति के खेल को आजतक किसने समझा है!शादी के दस साल बाद भी माँ न बनने के कारण बाँझ का ठप्पा उसपर लग गया,परन्तु सचमुच में वह बाँझ नहीं थी,खराबी तो उसके पति विनय में थी।पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पित थे,इस कारण अंजना ने इस बात का जिक्र किसी से नहीं किया।एक दिन अंजना ने अपनी ख्वाहिश व्यक्त करते हुए पति से कहा -“विनय!क्यों न हम एक बच्चे को गोद ले लें?”

विनय ने इसे अपनी तौहीन समझकर  गुस्से से तिलमिलाए हुए कहा -“अंजना!घर में तुम्हें मेरे छोटे भाई के बच्चे नहीं दिखते हैं? मैंने तो सोच लिया है कि उसका बेटा अनय ही मेरा वारिस होगा।आज के बाद  किसी बाहरी बच्चे को गोद लेने का जिक्र मत करना।”

 विनय की बातें तीखी  गर्म बरछी की तरह उसके मोम से हृदय  को चीर गईं।सचमुच  परिस्थितियाँ व्यक्ति को कब और कितना झकझोर दे,कुछ पता नहीं।कुछ जख्मों की कोई उम्र नहीं होती।वे जिस्म के खाक होने तक चलते हैं।

 अंजना का पति विनय ने अपने छोटे भाई  के परिवार  को घर की ऊपरी मंजिल  पर  लाकर रख दिया।वह रोज अपने छोटे भाई  के बच्चों के लिए नित नई चीजें लाता।अंजना को इन बातों से कोई दिक्कत नहीं थी,समस्या थी तो देवर-देवरानी के दोगले व्यवहार से।विनय के सामने तो वे लोग जी-हजूरी करते,परन्तु विनय के जाते ही

अंजना के सामने घर के मालिक-सा व्यवहार करते।शिकायत करने पर विनय उससे कहते -” अंजना!अपना दिल बड़ा रखो।वे अपने ही हैं! कोई तुम्हें उपेक्षित नहीं समझता है।घर में सभी  तुम्हें इज्जत और प्यार करते हैं।”

विनय की बातें सुनकर अंजना मन मसोस रह जाती।कुछ नहीं कह पाती।यह सत्य  है कि  नारी  को लोगों की कुत्सित  मंशा का आभास   पहले हो जाता है,जबकि  पुरुष  को समझने में देर लग जाती है।छोटे-मोटे मतभेदों के बावजूद  अंजना अपने पति के साथ  काफी खुश थी।विनय भी  उसे मान-सम्मान  देते थे।परन्तु  अंजनाके दुखों का  कोई अंत नहीं था।

अचानक से आई कोरोना महामारी की   आँधी विनय को छीनकर उससे बहुत दूर ले गई ।विनय की मौत के बाद वह कागज की तरह इधर-उधर उड़ने लगी।जिधर हवा का झोंका बहा लेता,वह चली जाती।कभी मायके,कभी ससुराल!इस बेगैरत भरी जिन्दगी से ऊबकर वह अपने घर में रहने चली आई।

यहाँ देवर ने नीचे का घर भी कब्जा कर लिया था।उसे रहने को बस एक कमरा दे दिया था।निस्सहाय अंजना को आगे का मार्ग नहीं सूझ रहा था।वह खुद को सचमुच  अभागन  समझने लगी।परन्तु अंजना की माँ और भाई ने मिलकर  नीचे का पूरा घर खाली करवा दिया।अंजना की माँ ऊषा जी ने दिलासा देते हुए कहा

-” बेटी!जीवन एक बहता दरिया है,इसे बहने दो। अपनी सोच को नया आयाम  दो।अपनी जिन्दगी में ठहराव  मत आने दो।”

माँ की प्रेरणा और सहयोग से अंजना ने अपने घर में ही छोटे बच्चों के लिए  डे केयर खोल लिया।कभी-कभी उदासी से अंजना कहती -” माँ!मैं खुद माँ नहीं बनी,तो इन बच्चों की देखभाल अच्छे से कैसे कर पाऊँगी?”

अंजना की माँ ऊषा जी उसका मनोबल बढ़ाते हुए कहतीं -” बेटी!हर नारी में माँ के गुण होते हैं,चाहे वह खुद जन्म दे या न दे।बेटी!तुम्हारा जीवन  अभी ठहराव नहीं है,बल्कि एक पड़ाव से गुजरा है।अभी तो तुम्हें बहुत रास्ते तय करने हैं।नन्हें-नन्हें बच्चों को अपनी ममत्व की रसधारा से सींचना है।तुम एक बच्चे की माँ नहीं बनने के कारण  खुद को अभागन समझती रही।आज कितने बच्चे तुम्हारी ममत्व-धारा से तृप्त होते हैं?”

 अतीत  में विचरण करते-करते उसकी आँखों से आँसुओं की रसधार बहने लगी।उसकी माँ ऊषा जी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा -” बेटी!मायूसी छोड़ो।प्यारे नन्हें-मुन्ने के आने का समय हो गया है।”

अंजना उठकर  माँ के गले लग जाती है।सचमुच  जन्म से कोई  अभागन  नहीं होता है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।

#अभागन

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