अभागिन – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

   बस…. मां… बस…..अब एक शब्द भी मत बोलना ….नहीं सुन सकूंगी अब ……और तू चिंता मत करना मां ….. ये बड़ा अटैची देखकर ये मत सोच लेना कि अब मैं यही रहूंगी…. कुछ दिनों के लिए आई  हूं मां ….हां कुछ दिनों के लिए  ही आई हूं… कहते कहते आंचल का गला भर आया…!

अरे ..तू तो मेरी वही मां है ना जो पहले मेरे आने का राह ताकती रहती थी…

      आज आंचल को अचानक आई देख मां मालती ने बस इतना ही तो पूछा था…. अरे तू अचानक….फिर मालती की नजर आंचल के हाथों में पकड़ी अटैची पर पड़ी थी….।

पति के मृत्यु के बाद आंचल पहली बार मायके आई थी ।

आंचल जमाने भर के ताने सुन सुन कर शायद अपनी मां के लिए भी पूर्वाग्रह से ग्रसित हो चुकी थी…. इसीलिए मां के किसी प्रतिक्रिया के बगैर ही अपने मन की सारी बातें एक सांस में कह डाली….।

अंदर आते ही आंचल ने मालती से पहला सवाल किया…..मां क्या तू भी मुझे अभागिन मानती है …. ससुराल में कुछ लोग लोगों की काना फुसी मैंने सुनी थी मां ….मेरे अपशगुन कदम उस  घर में पडने के लिए ….पर मेरी सासू मां ने हर उन लोगों का विरोध किया जो मुझे अपशगुनी या अभागिन कह रहे थे….

        बचपन में पापा की मौत का जिम्मेदार मेरा जन्म होना बताया जाता था …..तेरे को छोड़कर …. हां मां सिर्फ तेरे को छोड़कर …..बाकी सभी लोग तो बोलते थे ना ….पैदा होते ही बाप को खा गई…

   पर मां मेरे अपशगुनी या अभागिन होने से मेरे पिता की मृत्यु नहीं हुई थी …. बल्कि वो अपनी मौत के खुद जिम्मेदार थे….

   उनकी अत्यधिक शराब के सेवन की लत और लीवर खराब होने के कारण उनकी मौत हुई थी…. 

 ” हां ये जरूर हुआ कि मेरा जन्म और उनकी मौत की तारीखों में ज्यादा अंतर नहीं था “

रहा सवाल पति की मौत का…. तो तू एक बार सोच ना मां….बिना हेलमेट पहने तीन-तीन दोस्तों के साथ बाइक पर खतरनाक स्टंट करेंगे तो हादसा होने की संभावना तो होगी ना ….कम से कम अपनी नहीं तो अपने जीवनसाथी की तो परवाह करनी चाहिए थी ना मां इन्हें….. 

    मां कहीं तू भी तो मुझे अभागिन नहीं समझती ना…. जो अभी तक बड़ी कठोर बन निर्भीकता से अपने विचार मां के सामने रख रही थी…. वो एक बार  फफक – फफक कर रोने लगी…!

 नहीं बेटा…. मैं तुझे अभागिन कैसे मान सकती हूं….. तेरे जन्म से ही तो मेरा मातृत्व पूर्ण हुआ था… मां का सुख मिला था फिर मैं तुझे कैसे अभागिन कहूं.. मैंने तुझे अपनी कोख से जना है…. इस बार मालती के आंखों में भी आंसू थे…।

   जानती हूं मां …तेरी मजबूरी भी जानती हूं…तू भी बूढी हो गई है…. तू सोच रही होगी कि मैं भैया के ऊपर भार बनकर यही रहूंगी ….पर मां मैं कुछ दिनों के लिए आई हूं…. एक दो महीने के लिए ….

     देख ना मां ….हाथों की रची मेहंदी का रंग भी गया नहीं और मेरी मांग सुनी हो गई ……मुझे देखकर मेरी सासू मां सदमे से उबर ही नहीं पा रही है….

    जानती है मां…. वो खुद भी अपने मांग में सिंदूर लगाने से घबराती हैं… सोचती है कहीं मुझे बुरा ना लगे… किसी भी सास के सामने उसकी बहू का विधवा होना …समझ रही है ना मां…!

मैंने सोचा एक-दो महीने यहां रहकर अपनी b.Ed की तैयारी कर लूं…तब तक ” समय ” सासू मां को थोड़ा मजबूत जरूर बना देगा…।

जानती हूं बेटा …समधन जी बड़े दिल वाली है…. बहुत सुलझे हुए विचारों की है….कितने अच्छे घर में तेरी शादी हुई थी …..उदयपुर का प्रतिष्ठित परिवार… पैसे धन संपत्ति से परिपूर्ण…. एक ही तो बेटा था सुमित्रा जी का …..हम उनके बराबरी के लायक कहां थे …हमारी इतनी औकात कहां थी कि उनके घर शादी कर सके … वो तो सुमित्रा जी को ऐसी बहू की तलाश थी जो भले ही गरीब परिवार से हो… पर संस्कारी और समझदारी से घर परिवार चला सके… सुघड़ ,सुशील कन्या की तलाश में उन्हें हमारे घर का पता मिला…. और उन्हीं के पहल पर  बिना दान दहेज के हमने शादी किया …अब कोई क्या जानता था…

अरे ये कैसी बातें कर रही हैं आंचल… ये घर आपका भी तो है…. अंदर से निकलकर भाभी मीता ने कहा… और इन सब फालतू बातों का असर आप पर कब से होने लगा… मीता ने अपने ढंग से आंचल का समर्थन कर समझाने का प्रयास किया…।

   घर के कामों में मीता का भरपूर सहयोग करती आंचल ….मां की भी देखरेख में कोई कसर नहीं छोड़ती… खाली समय में अडोस पड़ोस के बच्चों को पढ़ाने  , लिखाने में भी लगी रहती… ताकि समय अच्छे से व्यतीत हो जाए….!

     महीना भर बीता नहीं कि …मोहल्ले में काना  फूसी शुरू हो गई…. ऐसी अभागन को कौन रखेगा ससुराल में…?  आखिर लौटकर मायके आ ही गई …..वगैरह – वगैरह …! पर आंचल इन बातों की परवाह किए बिना शाम को घंटे भर बच्चों को पढ़ाने में व्यस्त रहने लगी…।

आंचल बहु होने का भी फर्ज बखूबी निभा रही थी…. फोन पर सास ससुर का हाल खबर लेना आंचल कभी ना भूलती…!

   मन ही मां मालती सोचती थोड़ा समय और बीत जाए फिर आंचल को जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला लेने के लिए समझाऊंगी मतलब दूसरी शादी का फैसला…!

इसी बीच आंचल की शिक्षाकर्मी में नौकरी भी लग गई…..अरे ये क्या आंचल ….?   तूने पोस्टिंग के लिए अपने तीनों चॉइस में उदयपुर भरा है… पर क्यों ….?  मालती ने आश्चर्य से पूछा…!

   हां मां…. मैं वहां नौकरी करूंगी तो सास ससुर की सेवा तो कर पाऊंगी….पर बेटा तू वहां रहकर…??

मां , उनकी तो सोच…. इकलौता बेटा छोड़कर चला गया है…..मेरे सिवा और कौन है उन दोनों का….. तेरे पास तो भैया है ना मां …..फिर भी मैं तेरी भी देखभाल करूंगी अब नौकरी भी लग गई है ना मेरी….

मां बेटी आपस में बातें कर ही रहे थे.. तभी फोन की घंटी बजी…अरे सासू मां का फोन… 

हेलो ,कैसी है मम्मी जी …अभी मां से आप ही के बारे में बात हो रही थी…. मैं  आपको बहुत याद करती हूं मम्मी जी…. पापा जी कैसे हैं…?  हम लोग ठीक हैं बेटा …… एक बात पूछूं….आंचल बेटा कितने दिन और वहां रहेगी…. मेरा मन नहीं लगता है… तेरे बिना…. बस मम्मी जी जल्दी आऊंगी…! अपॉइंटमेंट लेटर के साथ आऊंगी मम्मी जी….और आंचल खुशी से झूम उठी…।

आंचल के आंखों में आंसू आ गए…मम्मी जी आप कितनी अच्छी हैं… लोग तो मेरे बारे में क्या-क्या बोल रहे हैं …? पर एक आप है ,बेटे के जाने के बाद भी मुझसे उतना ही प्यार करती हैं बल्कि उससे भी ज्यादा…. मैं भी वादा करती हूं मम्मी जी..बेटा बनकर आप लोगों की देखभाल करूंगी.. ।

कुछ दिनों बाद आंचल खुशी-खुशी ससुराल पहुंची… आंचल की नौकरी लगने से सास ससुर भी काफी खुश थे… समय और मौका देखकर सुमित्रा जी ने आंचल से कुछ बात करने को सोची…. बड़े प्यार से पास में बिठाया और बोली…. बेटा अभी पूरी जिंदगी पड़ी है तेरी…? अच्छे से सोच ले… मेरे नजर में एक लड़का है…यदि तू आगे बढ़ना चाहती है .. तो हम तेरी शादी की बात चलाएं…?

नहीं मम्मी जी…. जब एक बार मेरे भाग्य में सुहाग था ही नहीं…जिसकी वजह से मैं अभागिन कहलाई … शायद भगवान को भी यही मंजूर था…तो फिर दोबारा  भगवान की मर्जी के खिलाफ शादी कर सुहागिन बनने की निरर्थक कोशिश क्यों करूं मम्मी जी…।

मम्मी जी यह मेरा  “आखिरी फैसला ” है प्लीज इस विषय पर मुझे बाध्य ना करें..

चलिए मम्मीजी ….आज पहला दिन है मुझे आशीर्वाद दीजिए..आंचल ने सुमित्रा जी के पांव छूए और निकल पड़ी एक बार दूसरी बारी की शुरुआत करने ….कर्म भूमि की ओर….!

फोटो में लगे पति देव की तस्वीर के सामने झुक कर प्रणाम करते हुए आंचल ने कहा… देव तुम्हारी जगह तो दुनिया में कोई नहीं ले सकता पर बहू के साथ-साथ बेटा बनने के भी कोशिश जरूर करूंगी…

    हर संभव कोशिश कर आंचल ने एक नहीं दो-दो घरों को मायका और ससुराल  में आर्थिक , मानसिक जरूरतो को पूरा कर पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य निभा रही थी…!

आंचल जैसे ही काम से लौटी ….आंचल सुमित्रा जी को फोन पर किसी से बात करते हुए सुनी…

आज आंचल ना होती तो हमारा क्या होता समधन जी… दुनिया में आंचल के सिवा और कौन है हमारा… बचपन से बेचारी ने अपशगुनी अभागिन जैसे कितने जहरीले शब्दों से संघर्ष किया… अरे वास्तव में तो अभागिन मै हूं समधन जी…बेटा भी गया…!

    अरे ऐसा ना बोलिए सुमित्रा जी… जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो आते ही रहते हैं… पर उसे न जाने क्यों लोग ऐसे शब्दों का प्रयोग कर… लांछन लगाकर… किसी को दुखी कर…समाज में एक अंधविश्वास या नकारात्मकता जैसी चीज नहीं फैला रहे हैं… ?   धन्य है आप सुमित्रा जी… और आपकी सोच …जो इन सब से ऊपर है और आंचल तो अभागिन नहीं बहुत किस्मत वाली है जो आप जैसी सास के रूप में मां मिली है उसे…!

(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित और अप्रकाशित प्रकाशित रचना )

साप्ताहिक विषय # आखिरी फैसला

संध्या त्रिपाठी

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