मुरली प्रसाद जी बैठे बैठे कविता लिख रहे थे कि उन्हे अपनी बहू राखी की आवाज सुनाई दी जो उनके बेटे कमल से कह रही थी देखा कैसे बैठे बैठे तुम्हारे बाबुजी ने खर्चा करवा दिया हमारा , मैं तो परेशान हो गई हुं इनसे , मुझसे नहीं होने वाली इनकी सेवा वेवा , पहले ही कह देती हुं , पंद्रह दिन तुम ही करो इनकी सेवा अब !!
कमल बोला – राखी , तुम तो जानती हो मैं खुद कितना परेशान हुं बाबुजी से !! पंद्रह दिन की बात हैं बस , फिर मैं भी इनसे कह दूंगा कि वे गांव वापस चले जाए !!
मुरली प्रसाद जी बेटे बहू का वार्तालाप सुन चुके थे !! हालांकि अब यह इनके लिए कोई नई बात नहीं थी !! जब से उनकी पत्नी विद्या जी उन्हें छोड़कर गई थी तब से बेटा बहू हर बात पर उन्हें जलील कर देते थे ताकि मुरली प्रसाद जी अपने गांव के घर में चले जाए जबकि मुरली प्रसाद जी ने तो गांव में सिर्फ घर बनवाकर रखा था ताकि गर्मी की छुटटियों में कभी कभार पुरा परिवार वहां प्राकृतिक सौदर्य देखने जाए और छुट्टियां बिता पाए !! वे खुद बरसों से शहर में बस चुके थे , यहां तक कि कमल भी यहीं पैदा हुआ था !!
मुरली प्रसाद जी अब अपने काम से रिटायर्ड हो चुके थे और एक वर्ष पूर्व ही उनकी पत्नी विदया जी भी उन्हें अकेला छोड़कर भगवान को प्यारी हो गई थी तब से मुरली प्रसाद जी अपने दिल के भावों को पन्नों में उतारने लगे थे !! उन्हे कविता लिखने का पहले से शौक था मगर नौकरी के चलते कभी समय नहीं मिल पाया था , अब रिटायरमेंट के बाद उन्होंने फिर से कविताएं लिखना शुरू किया था !!
अभी चार दिन पहले ही उनके पोते सोनू के हाथ से जमीन पर पानी गिर गया था और मुरली प्रसाद जी उस पानी की वजह से फिसल कर गिर गए थे तब बहू चिल्लाकर बोली थी पापा जी आपमें और सोनू में ज्यादा अंतर नही हैं , उसकी तरह आप भी देखकर नहीं चलते !! अरे सोनू तो बच्चा है मगर आप , आप तो उम्रदराज हैं !! बेटा कमल भी पीछे से आकर चिल्लया इस बार कितने का फटका लगा होगा क्या पता ?? यहां मुरली प्रसाद जी दर्द से कराह रहे थे और दूसरी तरफ बेटे बहू के ताने बंद हो ने का नाम ही नहीं ले रहे थे !!
डॉक्टर के पास पहुंचकर पता चला कि मुरली प्रसाद जी का पैर फैक्चर हो गया था जिस वजह से उन्हें डॉक्टर ने पंद्रह दिन का प्लास्तर बांधा और आराम करने कहा था मगर चार दिन में मुरली प्रसाद जी को यह एहसास हो गया था कि बेटे बहू से उनकी सेवा नही हो रही हैं !!.
मुरली प्रसाद जी ने भी मन में ठान लिया था की बस यह पंद्रह दिन निकल जाए फिर वे हमेशा के लिए यहां से चले जाएंगे !!
पत्नी विद्या जी ने तो कभी मुरली प्रसाद जी को कोई घर का काम करने दिया ही नही था इसलिए उन्हें घर के काम करने नहीं आते थे !! गांव के घर जाने का उनका बड़ा मन था मगर वहां जाकर अकेले कैसे दिन निकालेंगे ?? यहीं सोचते सोचते उनकी आंख लग गई !!
जैसे तैसे उन्होंने वह पंद्रह दिन निकाले , जैसे ही डॉक्टर ने उनका प्लास्तर खोला दूसरे दिन मुरली प्रसाद जी ने अपना सामान बांध दिया जिसमें सबसे उपर उन्होंने अपनी पत्नी विद्या जी की तस्वीर रखी !!
बेटे बहू और उनमें हमेशा मतभेद ही रहा और मुरली प्रसाद जी अब जान चुके थे कि उनके बेटे बहू को उनकी रत्ती भर भी कद्र नही हैं इसलिए रोज के झगडो से परेशान होकर उन्होंने हमेशा के लिए वृद्धाश्रम जाने का मन बना लिया !!
अपना सामान बांधकर दूसरे दिन मुरली प्रसाद जी अपने कमरे से बाहर आए तो देखा कि बेटा बहू टी.वी देखते हुए स्नैक्स का आनंद ले रहे थे !!
कमल बोला गांव जा रहे हैं क्या बाबुजी ??
मुरली प्रसाद जी बोले नहीं , वृद्धाश्रम जा रहा हुं !!
बेटे बहु ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और मुरली प्रसाद जी वृद्धाश्रम आ गए !!
वृद्धाश्रम आकर मुरली प्रसाद जी ने नए दोस्त बना लिए और अब वे पहले से ज्यादा खुश रहने लगे थे !!
रोज सुबह मुरली प्रसाद जी वृद्धाश्रम के प्रांगण में टहलते और दोस्तों संग खुब बतियाते !!
एक रोज वह इसी तरह वृद्धाश्रम के प्रांगण में टहल रहे थे और उन्होंने देखा कि बाहर एक कार आकर रुकी और उस कार में से एक युवक और एक वृद्ध महिला उतरी !! युवक ने उतरकर उस वृद्ध महिला का सामान वहां रख दिया और कार लेकर चलता बना !!
मुरली प्रसाद जी उदास होकर अपने मन में बोले हे भगवान !! आज फिर एक व्यक्ति अपने घर से बेघर होकर इस वृद्धाश्रम की पनाह में आ रहा हैं !!
वह वृद्ध महिला वृद्धाश्रम का गेट खोलकर अंदर आने लगी !!
बहुत दूरी होने की वजह से मुरली प्रसाद जी को वृद्ध महिला का चेहरा साफ साफ दिखाई नही दे रहा था मगर जैसे ही वृद्ध महिला अंदर आने लगी मुरली प्रसाद जी को देखते ही उसने अपनी साडी से सर पर पल्लू ले लिया और पल्लू भी इतना बड़ा कि वृद्ध महिला का चेहरा ढक गया !!
मुरली प्रसाद जी को लगा मानो उन्होंने उस वृद्ध महिला को कही देखा हो मगर चेहरा ना देख पाने की वजह से वह अंदेशा नहीं लगा पा रहे थे !!
वह वृद्ध महिला वृद्धाश्रम के अंदर जा चुकी थी तभी मुरली प्रसाद जी ने देखा कि उनका एक वृद्ध दोस्त रो रहा हैं !!
वे उसके पास जाकर बोले – क्या हुआ दोस्त ??
उनका वृद्ध दोस्त बोला आज बेटे बहू और पोते पोती की बहुत याद आ रही हैं !!.
मुरली प्रसाद जी बोले दोस्त तुम ऐसे बेटे बहू को याद करके आंखों से आंसू बहा रहे हो जिनकी वजह से आज तुम यहां हो , बल्कि तुम्हे तो उन्हें अब तक भूल जाना चाहिए था , उन्हें तुम्हारी बिल्कुल भी फिक्र होती तो वह तुम्हें यहां मिलने आते !! दोस्त , मैं तो उस वक्त ही अपने बेटे बहू से सारे रिश्ते तोड़ आया था जब उन्होंने मुझे यहां तक आने विवश कर दिया था !!
3न्होने अपने टूटे हुए दोस्त को हिम्मत दी जिसके बाद उनका दोस्त मुस्कुराया और बोला तुम जैसे दोस्तों की वजह से ही आज मैं जिंदा हूं वर्ना कब का मर गया होता !!
मुरली प्रसाद जी जब खाना खाने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दो दिन पहले आई वह महिला वृद्धाश्रम का बरामदा साफ कर रही थी , अभी भी उसका चेहरा उसके पल्लू से ढंका हुआ था , उन्होंने वृद्धाश्रम के एक कर्मचारी को बुलाकर पूछा कि वह महिला यह काम क्यों कर रही हैं ??
कर्मचारी बोला चाचाजी , यह वृद्ध महिला जब से वृद्धाश्रम में आई हैं , रोए जा रही थी , उसके परिवार के बिना उसका यहां मन ही नहीं लग रहा था !!
थोडी देर बाद वह खुद से बोली मुझे यहां साफ सफाई का काम दे दो , शायद काम करने की वजह से मुझे मेरे परिवार को भूलाने में मदद मिल पाए !!
मुरली प्रसाद जी कर्मचारी की बातें सुन ही रहे थे कि तेज हवा के कारण उस महिला के चेहरे पर ढका पल्लू गिर पड़ा और मुरली प्रसाद जी उस महिला का चेहरा देखकर हैरान रह गए , यह तो माला जी हैं अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा !!
हे भगवान !! इन्हें भी यह दिन देखना पड़ रहा हैं , इनके बेटे बहू ने भी इन्हें यहां छोड़ दिया मुरली प्रसाद जी मन ही मन बुदबुदाए फिर अचानक ही उन्हें क्रोध आया और गुस्से में उस कर्मचारी से बोले आजकल के बच्चों को अपने माता पिता की कोई कद्र ही नहीं हैं !!
जब बच्चों को माता पिता के साथ रहना ही नहीं हैं तो माता पिता को भी उनकी याद में आंसू बहाना बंद कर देना चाहिए !! जाने क्यों लोग बच्चा जनते हैं जब आगे चलकर यही दिन देखना हैं !!
कर्मचारी बोला चाचाजी आप सही कह रहे हो , वृद्धाश्रम में बढ़ती संख्या को देखकर मुझे भी यही लगता हैं !!
उतने में वृद्धाश्रम का एक दूसरा कर्मचारी मुरली प्रसाद जी से आकर बोला – आपसे कोई मिलने आया हैं !!
मुरली प्रसाद जी मन ही मन बोले जाने कौन मिलने आया होगा ??
मुरली प्रसाद जी बाहर आए तो देखा कि उनका बेटा कमल और बहू राखी उनसे मिलने आए है !!
मुरली प्रसाद जी खुद उन्हें देखकर अचंभे में थे और गुस्से से बोले तुम लोग यहां क्यों आए हो ?? चले जाओ यहां से मुझे किसी से नहीं मिलना !!! मैं यहां खुशी से अपनी जिंदगी काट रहा हुं , यहां सब मुझसे बहुत प्यार करते हैं और हम सब मिलकर खुब हंसी ठहाके लगाते हैं !!!
कमल मुरली प्रसाद जी से बोला पापा , आज शाम सोनू का जन्मदिन हैं इसलिए हम आपको लेने आए हैं !!
मुरली प्रसाद जी बोले मैं अब यहां बहुत खुश हुं और अब यहां से कहीं नहीं जाना चाहता !!
बहू राखी बोली – पापाजी सिर्फ आज शाम की पार्टी के लिए आ जाईए , सारे रिश्तेदारो , पड़ोसियों और आपके मित्रो को भी बुलाया हैं , लोग आपके बारे में पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब देंगे हम ??
मुरली प्रसाद जी बोले अच्छा अब समझ आया कि तुम लोग मुझे क्यों लेने आए हो ?? सभी के सामने अपनी नाक बचाना चाहते हो यहीं ना !! आज इतने महिनों बाद तुम लोगों को मेरी याद आई हैं वह भी अपनी इज्जत बचाने की खातिर , वर्ना इतने महीनों से मैं यहां अकेले पडा हुं , मेरी कभी खैर खबर तक नहीं लेने की कोशिश की तुम लोगों ने !! कितने स्वार्थी हो गए हो तुम लोग जरूरत पड़ी तो लेने आ गए !! एक बार भी फोन करने की भी जरूरत नहीं समझी , कम से कम यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि मैं जिंदा हुं या मर गया हुं !! अब से यही मेरा घर हैं , मैं कहीं नहीं आने वाला और रही दुनिया वालों की बात तो दुनिया वालो से कह देना मैं तीर्थ यात्रा पर गया हुं और वैसे भी मैं कहां जाकर किसी को बताने वाला हुं कि मैं वृद्धाश्रम में रहता हुं ऐसा बोलकर वह अपने कमरे में जाने लगे !!
बेटा बहू यह देखकर प्लान बनाने लगे कि ऐसे तो पापा मानने वाले नहीं हैं , हमें कुछ ओर करना पड़ेगा !!
थोडी ही देर में दोनों रोनी सुरत बनाकर मुरली प्रसाद जी के पास पहुंचे और गिड़गिड़ाकर बोले पापा सोनू भी आपको बहुत याद करता हैं , उसके लिए आ जाईए बस !!
कमल ने तुरंत सोनू को फोन लगा दिया, फोन पर सोनू ने मुरली प्रसाद जी से कहा दादाजी आप कहां चले गए हैं , मैं आपको बहुत मिस कर रहा हुं , प्लीस मेरे बर्थडे के लिए आ जाईए !!
मुरली प्रसाद जी की आंखों के आगे नन्हे सोनू का चेहरा आ गया और वे सोचने लगे पोते सोनू ने आखिर क्या बिगाड़ा हैं , वह नन्ही जान तो मेरा दोषी भी नहीं सोचकर बेटे बहू के साथ चलने राजी हो गए !!
मुरली प्रसाद जी बोले मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हुं मगर मेरी एक शर्त हैं और शर्त यह हैं कि कल वापस तुम लोगों को मुझे वृद्धाश्रम छोड़ने आना पड़ेगा !!
बेटे बहू ने शर्त मान ली और मुरली प्रसाद जी उनके साथ घर की ओर चल पडे !!
शाम की पार्टी में मुरली प्रसाद जी को उनके मित्र , रिश्तेदार और पड़ोसी सभी मिले , सभी ने मिलकर खुब सारी बातें की मगर मुरली प्रसाद जी ने किसी को कुछ नहीं बताया और उनके मन में खुब सारे विचार चल रहे थे !! वे सोच रहे थे कि कल उन्हें बेटे बहू को एक सरप्राइज भी तो देना हैं !!
पार्टी खत्म होने में रात हो चुकी थी , मुरली प्रसाद जी अपने कमरे में जाकर सो गए !!
अपने कमरे में जाते ही उन्हें अपनी पत्नी विद्या जी की याद आ गई !!
एक ओर गर्म रोटी खा लिजिए ना , आप खाते है तो मेरे तन को लगता हैं !!
मुरली प्रसाद जी कहते विद्या , तुम इसी तरह गर्म गर्म रोटियां खिलाती रही तो मैं एक दिन बहुत मोटा हो जाऊंगा और दोनों पति पत्नी हंस पड़े !!
विद्या के चले जाने के बाद उनकी बहू ने उन्हें एक एक रोटी के लिए तरसा दिया था , उपर से घर के सारे काम करवाने लगी थी वह अलग !! वो भी मुरली प्रसाद जी खुशी खुशी करने लगे थे मगर फिर भी घर में कोई इज्जत ना मिले तो कोई कैसे अपने ही घर में रहे !!
अपनी पत्नी विद्या जी की यादो में खोए मुरली प्रसाद जी की आंख लग गई !! सुबह उठे तो देखा बेटा बहू तैयार खड़े थे !! बहू राखी बोली – चलिए पापाजी आपको वृद्धाश्रम वापस छोड़ आते हैं !!
बहू राखी के मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे कि कही पापाजी हमेशा के लिए यही ना रुक जाए इसलिए उन्हें जल्दी से वृद्धाश्रम में छोड़ देना ही उचित होगा !!
मुरली प्रसाद जी भी बेटे बहु की मंशा भांप चुके थे इसलिए जल्दी से नहा धोकर तैयार हो गए और जैसे ही तैयार होकर गाडी में बैठते हैं वे देखते है कि उनकी बहू के चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान है !!
मुरली प्रसाद जी अपने घर को एकटक निहारते हैं और सोचते है बेटे बहू को यहां से मुझे निकालने की कितनी जल्दी हैं , चलो कोई बात नहीं जहां मन लगे वही रहना चाहिए और उनकी कार वृद्धाश्रम की ओर चल पड़ती हैं !! रास्ते में उनके चेहरे पर भी एक मुस्कान आ जाती हैं और वे सोचते हैं कि आज वृद्धाश्रम में बेटे बहू को जो सरप्राइज दूंगा उसके बाद यह लोग वृद्धाश्रम का नाम लेना भी भूल जाएंगे !!
थोडी देर में कार वृद्धाश्रम के आगे आकर रुक गई और बेटे बहू कार से बाहर आकर खड़े हो गए !!
मुरली प्रसाद जी कार से उतरकर वृद्धाश्रम का गेट खोलकर अंदर जाने लगे और फिर एक पल रुककर उन्होंने पीछे मुड़कर बेटे बहू को आवाज लगाई !!
बेटा बहू कार में बैठने ही वाले ही थे मुरली प्रसाद जी की आवाज सुनकर रुक गए !!
मुरली प्रसाद जी फिर से बोले रुको यहा आओ , मुझे तुम लोगो को किसी से मिलवाना हैं !!
वृद्धाश्रम के प्रांगण में पहुंचकर उन्होंने एक कर्मचारी से मालाजी को बुलाने कहा !!
मालाजी जैसे ही बाहर आई , कमल उन्हें देखकर दंग रह गया और राखी उसको तो जैसे काटो तो खून नहीं !!
राखी माला जी को देखकर फूट-फूट कर रोने लगी और बोली मां आप यहां कैसे ?? आपने मुझे बताया भी नहीं मगर आपको यहां लाया कौन ??
मालाजी के पास बेटी की बातो का कोई जवाब ना था !!
राखी बोली मुझे तो अब तक यहीं लगता था कि आप भाई भाभी के साथ अच्छे से रह रही हो !! कल ही मेरी भाभी से बात हुई थी तो मैंने उनसे कहा भी कि इतने दिनों से मेरी मां से बात नहीं हो पा रही है , तो भाभी बोली मां तीर्थयात्रा पर गई हुई हैं इसलिए मेरी तुमसे बात नहीं हो पाएगी और मैंने भी भाभी की बात मान ली !!
माला जी बोली बेटा , तेरे भाई भाभी झूठ बोल रहे हैं , करीबन एक महिने से वे लोग मुझे यहां वृद्धाश्रम छोड़कर चले गए हैं !!
राखी बोली मां उस जालिम औरत की इतनी हिम्मत की उसने तुम्हें यहां वृद्धाश्रम छोड़ दिया , देखना मैं उसे छोडूंगी नहीं मगर मां तुमने मुझे फोन क्यों नहीं किया ?? तुमने मुझे क्यों नहीं बताया , मैं तुरंत तुमको यहां से वापस लेकर जाती !!
आखिर उन लोगो की हिम्मत कैसे हुई मेरी मां के साथ ऐसा सब करने की और
अपनी मां से लिपट गई !!
माला जी बोली मैं किस मुंह से तुम्हें बताती राखी !!
जिस दिन मैं यहां वृद्धाश्रम पहुंची , मैंने देखा कि तुम्हारे ससुर जी भी यहां ही हैं मतलब की तुममें और तुम्हारी भाभी में कोई फर्क नहीं हैं इसलिए तो तुम्हारे ससुर जी भी यहां हैं !!
यह कहते हुए माला जी ने अपनी बेटी को अपने से अलग कर दिया !!
तुम मेरी बेटी कहलाने के लायक ही नही हो इसलिए दूर रहो मुझसे !!
एक तरफ मेरे बेटे ने एक मां को घर से बेघर कर दिया हैं तो दूसरी तरफ मेरी बेटी ने अपने ससुर को घर से बेघर कर दिया !! मेरी दोनों ओलादें एक जैसी निकली निकम्मी !! अब तो मुझे तुम्हें अपने बच्चे कहने में भी शर्म आ रही हैं !!
अपनी मां की बातें सुन राखी का सिर शर्म से झुक गया !!
मां मुझे माफ कर दो , मुझसे बहुत बडी गलती हो गई हैं !! मैं नहीं जानती थी कि जो मैं अपने सास ससुर के साथ कर रही हुं , वही सब मेरे माता पिता के साथ भी हो सकता है !!
माला जी बोली वैसे तुम्हारी गलती माफी के लायक नहीं हैं फिर भी अगर माफी मांगनी हो तो अपने ससुर जी से मांगो !!
राखी अपने ससुर जी के पांवो में गिर गई और बोली पापा , मुझे माफ कर दीजिए !! पीछे से कमल भी उनके पैरो में गिर पड़ा और बोला हमें माफ कर दो पापा और अब आप दोनों घर चलो और हमें अपनी सेवा का मौका दो मगर मुरली प्रसाद जी और माला जी ने घर जाने से मना कर दिया और बोले एक बार धोखा खा चुके हैं , अब बार बार धोखा खाने की हिम्मत नही हैं हम लोगो में , हमारे शरीर में अब जो थोडी बहुत जान बची हैं वह यहां वृद्धाश्रम में ही रहकर गुजारेंगे !! हम यहां वृद्धश्रम में सुखी हैं कहकर दोनों बुर्जुग अपने अपने कमरे में चले गए !!
कमल और राखी भी भारी मन से अपने घर आ गए !!
राखी तो अपनी मां को वृद्धाश्रम में देखकर उस सदमे से अब तक उभर ही नहीं पाई थी !!
कमल अपने पिताजी के कमरे में पहुंचा तो देखा वहां नीचे एक कागज का टुकड़ा गिरा हुआ था जो शायद उसके पिताजी की जेब से गिरा हुआ लग रहा था , उस पर उसके पिताजी ने एक कविता लिखी हुई थी …..
नाजो से पाल पोसकर जिसको हमने बड़ा किया
आज देखो उसी बेटे ने घर से हमको अलग किया !!
तुम कहती थी यह बेटा ही तो हमारे जी ने की वजह हैं
मगर मैंने तो उसके रहते मौत आते देखी हैं !!
हां मैंने मरने से पहले मौत आते देखी हैं
उसी बेटे की वजह से मैंने जिंदा होकर भी मौत आते देखी हैं !!
पढ़ते पढ़ते कमल फफक फफककर रो पड़ा और अब उसके पास पश्चाताप के अलावा कोई चारा ना था !!
दोस्तों यह कहानी आपको कैसी लगी कृपया जरूर बताएं तथा ऐसी ही अन्य कहानियां पढ़ने के लिए हमारे पेज को फॉलो जरूर करें !!!
धन्यवाद !!
#मतभेद
स्वाति जैन
nice story
Absolutely