Moral stories in hindi : साधना एक मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की थी। वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थी। वह b.ed करके टीचर बनना चाहती थी लेकिन कुछ दिनों से उसके घर के लोगों को उसका व्यवहार बदला हुआ लग रहा था। वह ना तो पढ़ाई में पूरा ध्यान दे रही थी ना ही घर के कामों में अपनी मां की मदद कर रही थी।
सिर्फ मोबाइल लेकर बातों में लगी रहती थी। उसके पिता राजेश जी ने एक बार उसे टोका। तब साधना ने बात को घुमाकर सही जवाब नहीं दिया। उसके पिता राजेश समझ गए थे कि मेरी संस्कारशील बेटी को कोई गलत दोस्त मिल गया है और वह उसकी संगत में पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रही है।
उन्होंने साधना को समझाया और कुछ दिन तक इंतजार भी किया कि साधना सही लाइन पर आ जाएगी, लेकिन सही कुछ नहीं हुआ।
तब उन्होंने दोबारा साधना को सामने बिठाकर उससे पूछा-“बेटी साधना, तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रही हो। हर वक्त बातें करती रहती हो आखिर तुम क्या चाहती हो?”
साधना ने कुछ झिझकते हुए बताया-“पापा, मैं अतुल से प्यार करती हूं और उसी से शादी करना चाहती हूं।”
पापा-“अतुल क्या करता है और कहां रहता है कितना पढ़ा लिखा है?क्या तुम्हें यह सब पता है।”
साधना-“नहीं?”
पापा-“कल तुम उसे बुला कर लाना और उसको बुलाने का यह मतलब नहीं है कि मैं शादी के लिए हां कर दी है। अगर मुझे उससे बात करके तसल्ली नहीं हुई तो मैं उससे तुम्हारी शादी कतई नहीं करूंगा और फिर तुम्हें मेरी बात मानकर जहां मैं कहूंगा वहां शादी करनी होगी। अगर तुम्हें मंजूर है तो उसे बुला कर लाना वरना नहीं।”
साधना खुश होकर बोली” ठीक है पापा”
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अगले दिन उसने अतुल से घर चलने के लिए कहा। अतुल ने बहुत टालने की कोशिश की,लेकिन साधना नहीं मानी। वह उसे लेकर घर आ गई। राजेश जी ने अतुल से पूछा-“हां तो बेटा, कितना पढ़े लिखे हो,क्या करते हो, कौन-कौन है घर में?”
अतुल-“मैं दसवीं पास हूं और काम धंधा ढूंढ रहा हूं। घर में सिर्फ पापा है।”
राजेश जी ने नोटिस किया कि वह बहुत ही सोच-सोच कर उत्तर दे रहा था और उसके किसी भी जवाब से उन्हें संतुष्टि नहीं मिल रही थी इसीलिए उसके जाने के बाद उन्होंने साधना को इस शादी के लिए साफ मना कर दिया। साधना पापा के जवाब से बहुत गुस्से में थी लेकिन उसे अतुल पर भी गुस्सा आ रहा था।
कुछ समय बाद राजेश जी ने साधना का विवाह एक साधारण से दिखने वाले लेकिन अच्छा कमाने वाले और अच्छे घर परिवार वाले लड़के नीरज से करवा दिया। नीरज और उसके परिवार वाले बहुत ही अच्छे लोग थे। साधना और उसके परिवार का बहुत सम्मान करते थे। वहां साधना को कोई कमी नहीं थी। लेकिन वह फिर भी अपने मन में नीरज और अतुल की तुलना करती रहती थी। कहां अतुल हीरो की तरह दिखता था और नीरज एक साधारण इंसान।
विवाह के बाद मायके जाने पर साधना ने अतुल से छुप-छुप कर मिलना जारी रखा। एक बार वह इसी तरह छुप कर अतुल से मिलने गई, तो वह उसे बहला फुसला कर मीठी-मीठी बातें करके उसे अपने घर ले गया और उसे फिजिकल होने के लिए फोर्स करने लगा।
तब साधना को उसकी असलियत समझ में आई। साधना ने उसे एक तमाचा मारते हुए कहा-“मैं तो समझती थी कि तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो, लेकिन तुम्हें तो सिर्फ मेरे शरीर को पाने की लालसा है। छि, कितने नीच हो तुम। वैसे इसमें तुम्हारी क्या गलती है सारी गलती तो मेरी ही है। मैं अपने पापा के समझाने पर भी नहीं समझी और शादीशुदा होकर भी अपने पति को धोखा देकर तुमसे मिलती रही। मैंने तुम पर भरोसा किया यह मेरी सबसे बड़ी गलती है। लेकिन अब मुझे तुम पर भरोसा नहीं। तुम एक ओछे और संस्कारहीन व्यक्ति हो। मुझे तो आज अपने ऊपर भी शर्म आ रही है कि मैं तुमसे प्यार किया और तुम्हें आज तक पहचान भी नहीं पाई। मेरे पापा ने तुम्हें एक दिन में एक मुलाकात में ही पहचान लिया था। तुम्हारे कारण मैं अपने दोस्त जैसे पति को भी धोखा दिया। अब मेरी अक्ल ठिकाने आ गई है मैं अब कभी भी तुमसे मिलने नहीं आऊंगी और तुम भी ऐसी कोशिश कभी मत करना।”
ऐसा कहकर साधना घर का दरवाजा खोलकर वहां से चली गई और सीधा अपनी ससुराल पहुंचकर अपने पति की बाहों में समा गई। नीरज भी उसके इस व्यवहार पर बहुत हैरान था लेकिन खुश भी बहुत था।
स्वरचित अप्रकाशित
गीता वाधवानी दिल्ली