खुशियां बांटने से बढ़ती हैं – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

“खुशियां बांटने से बढ़ती हैं “

“छोटी छोटी बातों में खुशियों की तलाश किया करो, यूं हर बात में ,हर व्यक्ति में नुक्श निकालोगी तो जीवन को नरक बनते देर नहीं लगेगी,बेटा।”

मां ने अरुणिमा को समझाते हुए कहा।

पर मां मैं इस तरह के माहौल में नहीं जी सकती,अमोल एक कदम भी अपनी मां से पूछे बिना नहीं उठाता,वह कोई छोटा बच्चा है जो हर समय मां से चिपका रहता है???

हां ये बात तो तुम सही कह रही हो? हर बात मां से कहने की क्या जरूरत है,ये तो गलत है। मैं बात करूंगी।

हां मां वही तो , तुम भी मुझे ही ग़लत समझती हो ।

चलो ठीक है मैं इस बार इस किस्से को बिल्कुल खत्म ही कर दूंगी। 

अब तो पड़ जाएगी न तुम्हारे कलेजे में ठंडक?

क्या सच में? 

मां आप क्या करने वाली हो?

असली चाकलेट दिवस – डा. मधु आंधीवाल

 जो भी करुंगी पर तेरी ये परेशानी खत्म कर ही दूंगी बस ।

मां के इतने दृढ़ शब्द सुनकर अरुणिमा थोड़ा घबरा गई क्योंकि वह जानती थी कि मां जो ठान लेती है वह करके ही रहती है। ऐसा न हो मां मुझे अमोल से ही दूर कर दे उसके बिना तो मैं बिल्कुल नहीं रह सकती।

घबराकर अरूणिमा बोली,

मां आप कुछ ऐसा करना कि वह बस अपनी मां के पल्लू से न बंधे पर याद रखना मैं अमोल के बिना नहीं रह सकती।

क्यों जब वह तुम्हें इतना तंग करता है तो उसके बिना रहने में क्या समस्या है, क्या कमी है तुम्हारे पास?

मां आप समझती क्यों नहीं मैं उसे बहुत प्यार करती हूं उसके बिना नहीं जी सकती।

और वह?? वह तुम्हें प्यार करता है??

हां, मां! वो भी बहुत प्यार करता है, मेरे बिना तो वह खाना तक नहीं खाता।

तब फिर समस्या बस यह है कि वह मां की क्यों सुनता है उनसे सलाह क्यों लेता है?

हां मां।

तो यह तो तुम भी करती हो , यहां तक कि मम्मी पनीर अच्छा कैसे बनेगा यह तक तुम अपनी मां से पूछती हो!, कौन सी साड़ी कब अच्छी लगेगी यह भी तुम मुझसे पूछती हो ? मुझे घूमने कहां जाना चाहिए यह भी मेरी सलाह के बाद ही डिसाइड करती हो।

पहले प्यार का अहसास –  वंदना चौहान

हां तो और किससे पूछूं?

तुम अमोल से पूछो और अमोल तुमसे, किसी तीसरे की आवश्यकता ही क्या है?

मां आप क्या कह रही हैं? आप मुझे…?

हां मैं तुम्हें यहीं समझाना चाह रही हूं कि हर बच्चे के लिए मां बाप महत्वपूर्ण होते हैं और होने चाहिए। जिस तरह शादी के बाद भी तुम अपनी सारी समस्याओं का हल मां की पिटारी में खोजती हो, सारी बातें आज भी मेरे साथ शेयर करती हो वही तो अमोल भी करता है । पर अमोल का यह करना तुम्हें पसंद नहीं। जबकि अमोल तुम्हें कभी भी मुझसे बात करने को मना नहीं करता। यहां तक कि जब तुम बाहर घूमने जाती हो तब भी दिन में कम से कम दस बार मुझसे बात करती हो फिर भी वह नहीं झुंझलाता और अगर वह अपनी मां का हाल लेने के लिए भी फोन करता है तो तुम्हें शिकायत रहती है। रहती है न???

हां!ये तो है। जब हम घूमने गए हैं तो उसे मुझ पर ध्यान देना चाहिए न??

और तुम्हें??? तुम क्यों अपनी मां को याद करती हो तब?

बस यही बात है, तुम बात को समझना ही नहीं चाहतीं। वह लोग बहुत अच्छे हैं बस तुमने एक अलग ही चश्मा पहन रखा है जिससे तुम्हें सब ग़लत ही दिखता है।

आजकल एकल परिवार हैं, बच्चे भी एक या दो तो ऐसे में बच्चे मां को ही अपना हमराज पाते हैं, लड़की हो या लड़का। पर लड़कियां शादी के बाद इस बात को समझना ही नहीं चाहतीं। वैसे भी लड़के मां के ज्यादा करीब होते हैं, देखा नहीं है अपने भाई अमित को आज भी कैसे यहां आने पर मेरे आगे पीछे घूमता है, क्या वह छोटा बच्चा है?? मल्टीनेशनल कंपनी का हैड लगता है वह जब मुझसे चंपी कराता है??

तुम जो सलाह मुझसे लेती हो वही अगर अमोल की मां से लो तो उन्हें कितनी खुशी होगी इसका अनुमान भी तुम नहीं लगा सकती क्योंकि अभी तुम मां जो नहीं हो। 

इससे उन्हें लगेगा कि बहू उन्हें चाहती है और  मान देती है। इससे अमोल भी तुम्हारे और करीब आएगा। जैसे तुम चाहती हो कि अमोल हमें मान सम्मान और प्यार दे वैसे ही वह भी चाहता है बस कहता नहीं क्योंकि अधिकतर लड़के भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते।

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मां आप मेरी मां हो या अमोल की?? आप तो बस उसी की तरफदारी कर रही हो?

मैं तरफदारी नहीं कर रही बस सच्चाई बता रही हूं।

कभी अपने आप को उसकी जगह रखकर सोचो, सब कुछ हसीन दिखेगा हर बात पर प्यार आएगा।

कुछ सोचते हुए अरुणिमा….हम्

मां बात तो तुम्हारी सही है , पहले आपने यह ज्ञान क्यों नहीं दिया??

क्योंकि मैं सोच रही थी कि तुम खुद ही समझ जाओगी पर तुम तो इतनी नासमझ निकलीं कि जिन बातों में खुशी ढूंढनी थी उन्हें ही सिरदर्द समझ लिया।

तुम्हें अंदाजा भी है कि अमोल की मां तुम्हें कितना चाहतीं हैं,वह तुम्हारा मुंह देखती हैं कि यह उदास तो नहीं इसे कोई तकलीफ़ तो नहीं और तुम, तुम बस यह देखती हो कि अमोल उनके पास क्यों गया, क्यों बैठा, उन्हें साथ चलने के लिए क्यों कहा??

मम्मी!!!!?

हां, बेटा मैं सही कह रही हूं कुछ दिन तो यह दोनों का घूमना फिरना अच्छा लगता है लगना चाहिए पर तुम तो हर समय ही प्राइवेसी चाहती हो।

तुम्हें याद है जब तुम्हारी दादी यहां आती थीं तो हम हर जगह उन्हें साथ लेकर जाते थे यहां तक कि बाजार से जरूरी सामान लेने जाते समय भी, इससे उन्हें जो खुशी मिलती होगी वह मिलती होगी पर हमें भी तो उनका साथ मिलता था । हर जगह ज्यादा समय बिताने को मिलता था और तुम्हारे पापा वह तो बस इसी बात से खुश रहते थे कि सास बहू में इतना प्यार और आपसी समझ है।

बेटा किसी का साथ हमारी खुशी बढ़ाता है सिरदर्द नहीं बस हमें यह समझना चाहिए।

जहां तक मैं वैदैही जी को जानती हूं वह बहुत सुलझी हुई महिला हैं, उनके साथ किसी का सिरदर्द नहीं बढ़ सकता।

तो मां मैं क्या करूं?

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खुश रहो, खुश रहने के बहाने ढ़ूंढो। जब भी अपनी सास के साथ व्यवहार करो यह ध्यान रखो वैसा व्यवहार अमोल मेरे साथ करेगा तो तुम्हें कैसा लगेगा? बस फिर वही सब करो जो तुम्हें अच्छा लगे।

खुशियां बांटना सीखो । मिलजुल कर रहने से खुशहाली आती है।

हां मां बात तो सही है, मेरा ही नजरिया ग़लत था। मैं दोनों घरों के लिए अलग अलग मापदंड लेकर चल रही थी जो ग़लत है। जैसा माहौल में यहां चाहतीं हूं वैसा ही माहौल वहां बनाकर मुझे वहां खुश रहना चाहिए।

धन्यवाद मां , मुझे सही राह दिखाने के लिए,और अरूणिमा ने मां को बाहों में भर लिया।

कभी सासू मां को ऐसे गले से लगाया है!? नहीं।

और तो और जब अमोल अपनी मां के गले में झूलता है तो तेरा खून जलता है जबकि होना यह चाहिए कि दूसरी तरफ से तुम भी मां (सासूमां)को बाहों में भर लो।

अब से ऐसा ही होगा मां, देख लेना।

तब फिर तू जीवन में कभी उदास नहीं रहेगी यह तय है।

खुश रहो बेटा यूं ही।

एक भारी बोझ अरुणिमा की मां के सिर से हट चुका था और अरुणिमा की आंखों के आगे छाई धुंध भी छंट चुकी थी।

©® पूनम सारस्वत

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